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जानें मंदिर में कौन-सी गलतियां बनती हैं वास्तु दोष का कारण

घर के हर हिस्से में वास्तु नियमों का ध्यान रखवी जरूरी माना गया है। इसी के साथ मंदिर भी घर का एक महत्वपूर्ण स्थान है, जिसमें यदि आप वास्तु नियमों  का ध्यान रखते हैं, तो इससे मिलने वाले सकारात्मक परिणाम बढ़ जाते हैं।   रखें इन बातों का ध्यान कभी भी घर के मंदिर को सीधा फर्श पर नहीं रखना चाहिए। इसी हमेशा थोड़ी ऊंचाई पर रखें। इसके साथ ही आपके मंदिर में हवा और रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था भी होनी चाहिए। इन नियमों का ध्यान रखने से सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। इसके साथ ही आपका मंदिर शांत स्थान पर होना चाहिए, ताकि पूजा-पाठ के दौरान कोई विघ्न न पड़े। मंदिर में साफ-सफाई का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए, ताकि आपको वास्तु दोष का सामना न करना पड़े। वहीं अगर आपके मंदिर के नीचे जूते-चप्पल रखे हैं, तो यह भी वास्तु दोष का कारण बन सकता है। मूर्ति रखने के नियम वास्तु शास्त्र में माना गया है कि मंदिर में कभी भी शनिदेव और भगवान शिव की मूर्ति को एक साथ नहीं रखना चाहिए। इसके साथ ही घर के मंदिर में मां काली, राहु, केतु, और शनि देव की मूर्ति रखने भी बचना चाहिए। वरना आपको नकारात्मक परिणाम मिलने लगते हैं। अगर आपके मंदिर में शिवलिंग स्थापित हैं, तो उसके पास बहुत अधिक मूर्ति न रखें और एक से अधिक शिवलिंग भी अपने मंदिर में न रखें। मंदिर की सही दिशा वास्तु शास्त्र में मंदिर रखने के लिए उत्तर-पूर्वी कोने यानी ईशान कोण को सबसे उत्तम माना गया है। इसी के साथ मंदिर का मुख पूर्व की ओर होना चाहिए। इन नियमों का ध्यान रखने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि  का माहौल बना रहता है। इसी के साथ इस बात का भी ध्यान रखें कि मंदिर के पास बेडरूम या बाथरूम नहीं होना चाहिए। वरना आपको वास्तु दोष का सामना करना पड़ सकता है। रख सकते हैं ये चीजें सकारात्मक परिणाम देखने के लिए आप अपने मंदिर में तुलसी का पौधा, गंगाजल और कलश आदि रख सकते हैं। इससे आपको अद्भुत परिणाम देखने को मिल सकते हैं। साथ ही घर में सुख-शांति और खुशहाली आती है।  

हर दिन अलग भोग, अलग शुभ संकेत: नवरात्रि 2025 में माता को प्रसन्न कैसे करें

नवरात्रि के नौ दिनों में हर दिन माता रानी को अलग-अलग भोग अर्पित करने की परंपरा है. जालोर के ज्योतिषाचार्य पंडित भानुप्रकाश दवे बताते हैं कि मां को घी, शक्कर, दूध, मालपुआ, केला, शहद, पान, नारियल और अंत में हलवा-पूरी-चना चढ़ाने से देवी प्रसन्न होती हैं और घर-परिवार में सुख, समृद्धि व शांति का आशीर्वाद देती हैं. नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. इस दिन माता को घी का भोग लगाया जाता है. घी पवित्रता और शक्ति का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि घी का नैवेद्य अर्पित करने से जीवन में ऊर्जा, स्वास्थ्य और दीर्घायु प्राप्त होती है. यह भोग घर के वातावरण को भी शुद्ध और पवित्र बनाता है. दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की आराधना होती है. इस दिन माता को शक्कर का भोग अर्पित किया जाता है. शक्कर जीवन में मिठास और सौभाग्य का प्रतीक है. माना जाता है कि इस दिन शक्कर चढ़ाने से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और भक्त की कठिनाइयां दूर होती हैं. तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है. इस दिन माता को दूध का भोग अर्पित करना शुभ माना जाता है. दूध शुद्धता, संतुलन और पोषण का प्रतीक है. इस भोग से माता प्रसन्न होती हैं और भक्त को मानसिक शांति, धैर्य और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं. चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा होती है. इस दिन माता को मालपुआ का भोग अर्पित किया जाता है. मालपुआ वैभव, स्वाद और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. इसे अर्पित करने से जीवन में आर्थिक उन्नति और घर में खुशहाली बनी रहती है. पांचवें दिन मां स्कंदमाता की आराधना की जाती है. इस दिन माता को केले का भोग चढ़ाया जाता है. केला पवित्रता और सादगी का प्रतीक है. इसे अर्पित करने से संतान सुख प्राप्त होता है और परिवार में शांति का वातावरण बना रहता है. छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है. इस दिन माता को शहद का भोग लगाया जाता है. शहद मिठास और सेहत का प्रतीक है. इसे चढ़ाने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, स्वास्थ्य लाभ और रिश्तों में मधुरता आती है. सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना होती है. इस दिन माता को पान का भोग अर्पित किया जाता है. पान शुभता और सौभाग्य का प्रतीक है. इसे अर्पित करने से भक्त को भय से मुक्ति मिलती है और साहस तथा आत्मबल की प्राप्ति होती है. आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है. इस दिन माता को नारियल का भोग चढ़ाया जाता है. नारियल पूर्णता और पवित्रता का प्रतीक है. इसे अर्पित करने से भक्त की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का संचार होता है. नवरात्रि के अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा होती है. इस दिन माता को हलवा, पूरी और चने की सब्जी का भोग लगाया जाता है. यह भोग पूर्णता और संतोष का प्रतीक है. इस दिन कन्या पूजन का विशेष महत्व है. माना जाता है कि इस दिन का भोग माता को प्रसन्न कर जीवन में सफलता और सिद्धि प्रदान करता है.

नवपंचम राजयोग बनेगा दिवाली पर, इन 3 राशियों की किस्मत में आ रहा है पैसा ही पैसा

 ज्योतिष शास्त्र में ग्रह-नक्षत्रों का गोचर जातक के जीवन में कई तरह के बदलाव लाता है. हर पर्व-त्योहार पर ग्रहों की विशेष स्थिति बनती है, जो सभी 12 राशियों पर शुभ और अशुभ प्रभाव डालती है. इस साल दिवाली का पर्व 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा और इस दिन ज्योतिषीय दृष्टि से बेहद शक्तिशाली योग बनने वाला है. द्रिक पंचांग के अनुसार, इस बार दिवाली पर शनि और बुध का विशेष संयोग बनेगा, जिससे नवपंचम राजयोग का निर्माण होगा. ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि यह राजयोग विशेष रूप से कुछ राशियों के लिए धन, सफलता और उन्नति के द्वार खोल सकता है. वृषभ राशि (Taurus): वृषभ राशि के जातकों के लिए यह योग बेहद खास रहने वाला है. आपको मनचाही उपलब्धियां मिल सकती हैं. करियर में प्रगति होगी. व्यापार में बड़ा लाभ होने के योग हैं. इस दौरान आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा. परिवार में शुभ समाचार मिलेगा और सामाजिक मान-सम्मान में वृद्धि होगी. शनि-बुध का ये दुर्लभ संयोग आपको साल के अंत में खूब लाभ देने वाला है. कर्क राशि (Cancer): दिवाली पर बन रहे इस खास राजयोग का सीधा असर कर्क राशि के जातकों पर दिखाई देगा. लंबे समय से अटके कार्यों में सफलता मिल सकती है. पुराने अटके पैसे वापस मिल सकते हैं और आर्थिक स्थिति मजबूत होगी. नौकरीपेशा लोगों को आय के नए स्रोत प्राप्त हो सकते हैं. जीवन में सुख-सुविधाएं बनी रहेंगी. संतान की ओर से शुभ समाचार मिल सकता है.  मकर राशि (Capricorn) शनि और बुध का यह दुर्लभ संयोग आपके लिए नई उपलब्धियों और तरक्की के द्वार खोलने वाला है. कार्यक्षेत्र में किसी बड़ी जिम्मेदारी की प्राप्ति हो सकती है. इस दौरान भाग्य पूरी तरह आपका साथ देगा.दांपत्य जीवन में चल रही दूरियां और गलतफहमियां खत्म होंगी, रिश्तों में मधुरता आएगी. व्यापारियों को अचानक बड़े मुनाफे का लाभ हो सकता है. व्यापार में लंबे समय से जो घाटा आप झेल रहे थे, उस पर अंकुश लग सकता है.

आज का राशिफल सोमवार 22 सितंबर: बदलेगी इन राशियों की किस्मत, देखें दैनिक राशिफल

मेष: आज के दिन प्रेम संबंध अच्छी सिचूऐशन में हैं। उत्पादक बनने के लिए पेशेवर चुनौतियों का समाधान करें। स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा। आर्थिक सफलता मिलेगी और यह आपको अपने धन को बढ़ाने के लिए नए विकल्प आजमाने के लिए भी प्रेरित करेगी। वृषभ: आज के दिन ऑफिस और निजी जीवन दोनों ही उत्पादक हैं। संतुलन बनाए रखें। आपकी सफल वित्तीय स्थिति आपको महत्वपूर्ण निर्णय लेने में मदद करेगी। स्वास्थ्य पर ध्यान देने की आवश्यकता है। अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें। मिथुन: मिथुन राशि वालों के लिए आज का दिन उतार-चढ़ाव भरा रहने वाला है। करियर में आपको चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। किसी भी प्रोजेक्ट में निवेश करने से पहले सलाह जरूर लें। लव लाइफ में टेंशन का माहौल बन सकता है। कर्क: आज के दिन आपकी आर्थिक स्थिति बेहतर रहेगी। आपका पार्टनर आपके लिए सरप्राइज डेट प्लान कर सकता है। वहीं, आपको स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत है। प्रॉपर्टी के मसलों में ध्यान दें, हानि हो सकती है। छात्रों के लिए भी ये दिन अच्छा रहने वाला है। सिंह: आज का दिन आपके लिए सकारात्मक रहने वाला है। पार्टनर के साथ वैकेशन पर भी जाने की संभावना है। वहीं, अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। प्रॉपर्टी से जुड़ी कोई अच्छी खबर मिल सकती है। आपको करियर में सफलता मिलेगी। कन्या: आज के दिन प्रेम संबंधों में मधुरता बनाए रखने के लिए जीवन में आ रही मुश्किलों का इल्जाम साथी के सिर न डालें। व्यावसायिक सफलता का अनुभव भी करेंगे। आपके जीवन में छोटी-मोटी आर्थिक परेशानियां भी रहेंगी। तुला: आज के दिन व्यापार में थोड़ी बहुत दिक्कतें आ सकती हैं, जिसे आप अपनी सूझबूझ के साथ आसानी से हल कर लेंगे। आपकी आय में वृद्धि होगी। कार्यक्षेत्र में सफलता मिलेगी। प्रेम-संबंधों में मधुरता आएगी। बेवजह की यात्रा से बचें। वृश्चिक: आज के दिन आपकी सेहत और आर्थिक स्थिति दोनों दमदार रहने वाली हैं। वृश्चिक राशि के लोग जीवन को खुशहाल बनाने के लिए लव लाइफ में आ रही दिक्कतों को सुझाएं। रोमांस में कुछ लोग डूबे रहेंगे। धनु: आज के दिन व्यापार से जुड़ी कोई अच्छी खबर मिल सकती है। बच्चों के साथ कहीं घूमने जाने का प्लान बना सकते हैं। सालों से रुका हुआ धन मिलने की संभावना है। काम के सिलसिले में विदेश यात्रा पर जा सकते हैं। मकर: आज के दिन ऑफिस में पॉलिटिक्स से दूर रहना आपके लिए बेहतर रहेगा। हर सोमवार शिव जी की उपासना करें। सेहत में सुधार होगा। जीवनसाथी के साथ चल रही मतभेदों को बैठकर बातचीत कर सुलझाएं। कुंभ: आज के दिन स्वास्थ्य अच्छा रहने वाला है। आपका दिन फायदेमंद माना जा रहा है। समाज में मान-सम्मान बढ़ेगा। व्यापार में धन लाभ होने की संभावना है। बिजनेस कर रहे लोगों को कोई अच्छी डील भी मिल सकती है। मीन: मीन राशि के लोगों को रिश्तों में छोटी-मोटी समस्याएं आ सकती हैं लेकिन बात-चीत कर इन दिक्कतों को सुलझाना बेहतर रहेगा। प्रोफेशनल लाइफ में अपनी प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के लिए चुनौतियों का बखूबी सामना करें।

नवरात्रि की शुरुआत: कल से कलश स्थापना कैसे करें और इसका आध्यात्मिक महत्व

शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर से शुरू है. शारदीय नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करते हैं. उसके साथ ही मां दुर्गा की पूजा प्रारंभ होती है. कलश स्थापना का मुहूर्त सुबह और दोपहर दोनों समय है. कलश स्थापना के लिए पूजा सामग्री की व्यवस्था आज ही कर लें. आइए जानते हैं शारदीय नवरात्रि में कलश स्थापना की विधि, सामग्री और महत्व के बारे में. शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर सोमवार से शुरू है. इस दिन नवरात्रि का पहला दिन है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार, आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन शारदीय नवरात्रि की शुरूआत होती है. उस दिन दिन कलश स्थापना करके मां दुर्गा की पूजा करते हैं. नवरात्रि के 9 दिनों तक कलश पूजा स्थान पर ही रहता है. दुर्गा विसर्जन के दिन कलश को हटाया जाता है. नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना के बाद मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा करते हैं. तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ. कृष्ण कुमार भार्गव से जानते हैं शारदीय नवरात्रि में कलश स्थापना कैसे करें? कलश स्थापना का मुहूर्त क्या है? शारदीय नवरात्रि शुभ मुहूर्त आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि का शुभारंभ: 22 सितंबर, सोमवार, 01:23 ए एम से आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि का समापन: 23 सितंबर, मंगलवार, 02:55 ए एम पर शुक्ल योग: प्रात:काल से लेकर शाम 07:59 पी एम तक ब्रह्म योग: शाम 07:59 पी एम से पूर्ण रात्रि तक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र: प्रात:काल से 11:24 ए एम तक हस्त नक्षत्र: 11:24 ए एम से पूरे दिन कलश स्थापना शुभ मुहूर्त 1. अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त: सुबह में 06:09 बजे से सुबह 07:40 बजे तक 2. शुभ-उत्तम मुहूर्त: सुबह 09:11 बजे से सुबह 10:43 बजे तक 3. कलश स्थापना अभिजीत मुहूर्त: 11:49 बजे से दोपहर 12:38 बजे तक कलश स्थापना सामग्री मिट्टी या पीतल का कलश, गंगाजल, जौ, आम के पत्ते, अशोक के पत्ते, केले के पत्ते, सात प्रकार के अनाज, जटावाला नारियल, गाय का गोबर, गाय का घी, अक्षत्, धूप, दीप, रोली, चंदन, कपूर, माचिस, रुई की बाती, लौंग, इलायची, पान का पत्ता, सुपारी, फल, लाल फूल, माला, पंचमेवा, रक्षासूत्र, सूखा नारियल, नैवेद्य, मां दुर्गा का ध्वज या पताका, दूध से बनी मिठाई आदि. नवरात्रि कलश स्थापना कैसे करें? शारदीय नवरात्रि के पहले दिन स्नान के बाद व्रत और पूजा का संकल्प करें. फिर पूजा स्थान पर ईशान कोण में एक चौकी रखें और उस पर पीले रंग का कपड़ा बिछा दें. उसके बाद उस पर सात प्रकार के अनाज रखें. फिर उस पर कलश की स्थापना करें. कलश के ऊपर रक्षासूत्र बांधें और रोली से तिलक लगाएं. इसके बाद कलश में गंगा जल डालें और पवित्र जल से उसे भर दें. उसके अंदर अक्षत्, फूल, हल्दी, चंदन, सुपारी, एक सिक्का, दूर्वा आदि डाल दें और सबसे ऊपर आम और अशोक के पत्ते रखें. फिर एक ढक्कन से कलश के मुंख को ढंक दें. उस ढक्कन को अक्षत् से भरें. सूखे नारियल पर रोली या चंदन से तिलक करें और उस पर रक्षासूत्र लपेटें. फिर इसे ढक्कन पर स्थापित कर दें. उसके बाद प्रथम पूज्य गणेश जी, वरुण देव समेत अन्य देवी और देवताओं का पूजन करें. इस प्रकार से कलश स्थापना करें. उसके पास मिट्टी डालकर उसमें जौ डालें और पानी से उसे सींच दें. इस जौ में पूरे 9 दिनों तक पानी डालना है. ये जौ अंकुरित होकर हरा भरा हो जाएगा. हरा जौ सुख और समृद्धि का प्रतीक होता है. कलश के पास ही एक अखंड ज्योति भी जलाएं, जो महानवमी तक जलनी चाहिए. कलश स्थापना का महत्व नवरात्रि में कलश स्थापना करने के बाद मां दुर्गा का आह्वान करते हैं. कलश स्थापना करके ही त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश के साथ अन्य देवी और देवताओं को इस पूजा का साक्षी बनाते हैं. धर्म शास्त्रों में कलश को मातृ शक्ति का प्रतीक मानते हैं. नवरात्रि के 9 दिनों में कलश में सभी देवी और देवताओं का वास होता है.

शारदीय नवरात्रि में कौन सा रंग लाएगा किस्मत? मां दुर्गा के 9 स्वरूप और रंगों की पूरी गाइड

22 सितंबर दिन सोमवार से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है और 2 अक्टूबर दिन गुरुवार को नवरात्रि का समापन हो रहा है. नवरात्रि सिर्फ व्रत और पूजा का पर्व नहीं है. यह आत्मा के रंगों को देवी के रूप में देखने और उन्हें अपने जीवन में उतारने का समय भी है. हर दिन एक देवी, हर देवी एक भाव, और हर भाव का एक रंग. यही है रंगों वाली नवरात्रि की असली आत्मा. हालांकि देवी पुराण या धार्मिक ग्रंथों में इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन जब प्रश्न आस्था का हो और मां के गुणों का हो, तो भक्त खुद को कैसे अलग रख पाएगा? तो आइए देखें किस दिन किस देवी की पूजा होती है और उनके गुणों के अनुसार कौन‑सा रंग उनके लिए उपयुक्त होता है! मां दुर्गा के 9 स्वरूप और 9 रंग मां शैलपुत्री- प्रतिपदा को नौ दुर्गे के प्रथम रूप देवी शैलपुत्री का पूजन होता है. देवी पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं, जो स्थिरता, शक्ति और नए आरंभ की प्रतीक हैं. शायद इसलिए पीले रंग से शुरुआत होती है, ऐसा रंग जिससे जीवन में उत्साह, ऊर्जा और सकारात्मक सोच का संचार होता है, ठीक वैसे जैसे सूरज की पहली किरण होती है. मां ब्रह्मचारिणी – द्वितीया को मां के ब्रह्मचारिणी स्वरूप को पूजा जाता है. मां ब्रह्मचारिणी कठोर तप की देवी हैं. उनका जीवन संयम, साधना और अध्यात्म से जुड़ा है इसलिए हरा रंग उनकी पहचान है. ऐसा रंग जो शांति और आत्म-संयम का प्रतीक है. मां चंद्रघंटा – तृतीया को मां चंद्रघंटा की आराधना होती है. उनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है और इसलिए उनको ये नाम मिला है. उनके दस हाथ हैं जिनमें शस्त्र होते हैं और उनका वाहन सिंह है. मां शांति, स्थिरता और जमीन से जुड़ी हैं, इसलिए ग्रे या स्लेटी रंग, जो संतुलन का माना जाता है, भक्तगण पहनने की कोशिश करते हैं. यह रंग संतुलन के साथ ही सौम्यता का भी प्रतिनिधित्व करता है, जो मां चंद्रघंटा के गुणों से मेल खाता है, जहां शक्ति भी है और शांति भी. मां कूष्मांडा – चतुर्थी को मात कूष्मांडा पूजी जाती हैं. मां ब्रह्मांड की रचयिता और आदिशक्ति मानी जाती हैं. उनके गुणों से नारंगी रंग मेल खाता है, जो सृजन और शक्ति का रंग है. यह आत्मविश्वास, क्रिएटिविटी और ऊर्जावान जीवन का प्रतीक है. मां स्कंदमाता – नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा होती है. ममता निश्चल होती है, इसलिए इस दिन श्वेत रंग को तरजीह दी जाती है. ये रंग ममता और पवित्रता का है. देवी स्कंदमाता को ममता और करुणा की देवी माना जाता है. और सफेद रंग शांति, सरलता और निर्मलता का प्रतीक है. मां कात्यायनी – षष्ठी मां कात्यायनी को समर्पित है. मां साहस और प्रेम का प्रतीक हैं. उन्होंने असुरों का वध किया था इसलिए साहस और प्रेम का रंग लाल उनके गुणों से मेल खाता है. मां असुरों का वध करने वाली शक्तिशाली देवी हैं. लाल रंग वीरता, प्रेम और शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है. मां कालरात्रि – सप्तमी को कालरात्रि का स्मरण और ध्यान किया जाता है. वह भयंकर अंधकार और भय का विनाश करने वाली देवी हैं, इसलिए उनके इन गुणों को परिलक्षित करता है नीला रंग, ऐसा रंग जो रहस्य के साथ सुरक्षा का भी पर्याय है. गहरा नीला रंग सुरक्षा, गहराई, और आंतरिक शक्ति को दर्शाता है. मां महागौरी – ॐ महागौर्यै नमः! अष्टमी को देवी के आठवें स्वरूप, मां महागौरी, की पूजा की जाती है. मां महागौरी सौम्यता और पवित्रता की देवी हैं. गुलाबी रंग कोमलता और कृपा को दर्शाता है. ये रंग करुणा, स्नेह और स्त्रीत्व का रंग है. मां सिद्धिदात्री – नवमी, सिद्धि दायिनी, मां सिद्धिदात्री को समर्पित है. जैसा कि नाम से विदित होता है, मां का संबंध सिद्धि से है और सिद्धि ज्ञान से ही अर्जित की जा सकती है. मां का ये गुण बैंगनी रंग से मेल खाता है. बैंगनी रंग आध्यात्मिकता, वैभव और ज्ञान का प्रतीक है. हर रंग के परिधान सिर्फ पहनने की चीज नहीं होते, बल्कि वो एक भाव, एक सोच और मां का आशीर्वाद है. जब हम देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर रंग पहनते हैं, तो सिर्फ तन नहीं, मन भी सजता है. इस बार शारदीय नवरात्रि में आप भी ये करके देखिए.

पितरों को प्रसन्न करने के लिए सर्वपितृ अमावस्या की रात अपनाएँ ये आसान उपाय

सर्वपितृ अमावस्या, जिसे आमतौर पर महालय अमावस्या भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह वह दिन होता है जब पितरों की पूजा और तर्पण किया जाता है। इस दिन पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए विभिन्न धार्मिक क्रियाएं की जाती हैं। सर्वपितृ अमावस्या की रात पितरों के लिए पानी रखने की प्रथा भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसके पीछे कई धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कारण हैं, जिनको समझना आवश्यक है।  हिंदू धर्म के अनुसार, इस दिन पितरों की पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और उनके द्वारा दैहिक या मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। पितर तर्पण और श्राद्ध कर्म इस दिन विशेष रूप से किए जाते हैं ताकि वे संतुष्ट हो सकें और उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य बना रहे। जिन व्यक्तियों की श्राद्ध की तिथि न पता हो इस दिन उनका श्राद्ध किया जाता है। सर्वपितृ अमावस्या पर इस जगह रखें पानी सर्वपितृ अमावस्या का दिन श्राद्ध का आखिरी दिन होता है और इस दिन पितृ पृथ्वी लोक से अपने लोक वापिस चले जाते हैं। इस वजह से इस दिन अमावस्या की रात पितरों के लिए पानी रखा जाता है। यह पानी इस वजह से रखा जाता है ताकि वह पूर्ण तरीके से अपनी प्यास बुझा सकें। पानी कहां रखना चाहिए ? सर्वपितृ अमावस्या की रात या सुबह पितरों के लिए पानी रखने की सबसे उपयुक्त जगह होती है – घर का मुख्य द्वार या उसके पास का कोई स्वच्छ स्थान। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर रखा गया जल और भोजन, पितरों तक आसानी से पहुंचता है क्योंकि यहीं से वे प्रतीकात्मक रूप से हमारे घर में प्रवेश करते हैं। पानी को कांसे, तांबे या मिट्टी के लोटे में रखा जाता है, जिसे साफ किया गया हो। इसके साथ ही कुछ लोग आटे से बनी छोटी रोटियां भी रखते हैं। इन रोटियों को अक्सर खुले में इसलिए रखा जाता है ताकि पक्षी, विशेषकर कौए, उन्हें खा सकें।  यह इस विश्वास पर आधारित है कि कौए पितरों के प्रतीक माने जाते हैं। पितृ दोष से मुक्ति का मार्ग ज्योतिष शास्त्र में यह माना गया है कि यदि किसी व्यक्ति के जन्म कुंडली में पितृ दोष होता है, तो उसे जीवन में बाधाएं, संघर्ष और मानसिक अशांति का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में, पितरों के लिए जल अर्पित करना और श्रद्धा से भोजन देना इस दोष को शांत करने का एक प्रभावशाली उपाय माना गया है। जब पूर्वज तृप्त और प्रसन्न होते हैं, तो उनका आशीर्वाद परिवार में सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य का कारण बनता है।

नवरात्रि परंपरा की अनकही कथा, पहला व्रत किससे शुरू किया?

नवरात्रि शक्ति साधना का महापर्व कहा जाता है. नौ दिनों तक मां दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना होती है. लेकिन सवाल उठता है नवरात्रि व्रत की शुरुआत कब और कैसे हुई? शास्त्र और परंपरा इस सवाल का जवाब दो रूपों में देते हैं. चैत्र नवरात्र का उद्गम प्राचीन काल से जुड़ा है, जबकि शारदीय नवरात्रि की परंपरा समय के साथ स्थापित होकर सबसे लोकप्रिय बन गई. शारदीय नवरात्रि की परंपरा किसने शुरू की? नवरात्रि भारत के सबसे बड़े उत्सवों में से एक है, जिसे शक्ति साधना का पर्व कहा जाता है. नौ दिनों तक मां दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है लेकिन अक्सर लोग पूछते हैं आखिर सर्वप्रथम नवरात्रि का व्रत किसने रखा था. शास्त्रों और परंपराओं में इसका उत्तर दो भागों में मिलता है एक ओर मार्कंडेय पुराण बताता है कि नवरात्रि व्रत की शुरुआत राजा सूरथ और समाधि वैश्य ने की थी, जबकि दूसरी ओर रामायण में उल्लेख है कि शारदीय नवरात्रि की परंपरा भगवान श्रीराम ने स्थापित की. आइए दोनों पहलुओं को विस्तार से समझते हैं. राजा सूरथ और समाधि वैश्य की कथा: नवरात्रि व्रत का उद्गम मार्कंडेय पुराण के देवी महात्म्य यानी दुर्गा सप्तशती में विस्तार से वर्णन मिलता है कि सबसे पहले नवरात्रि का व्रत राजा सूरथ और समाधि वैश्य ने रखा. कथा के अनुसार, राजा सूरथ अपने शत्रुओं से हारकर राज्य से वंचित हो गए. दुखी होकर वे वन में चले गए, जहां उनकी मुलाकात समाधि नामक व्यापारी से हुई. समाधि को भी उसके परिवार ने त्याग दिया था. दोनों ही गहरी पीड़ा में थे और उत्तर खोजते-खोजते मेडा ऋषि के आश्रम पहुंचे. राजा और व्यापारी ने मुनि से अपने दुखों का समाधान पूछा. तब मुनि ने उन्हें बताया कि संसार की सारी शक्तियां आदिशक्ति दुर्गा के अधीन हैं और यदि वे नवरात्र के नौ दिनों तक मां की उपासना करें, तो उनकी मनोकामनाएं पूरी होंगी. राजा सूरथ और समाधि ने पूरे नियम से नौ दिनों तक उपवास और पूजा की. मां दुर्गा प्रसन्न हुईं और राजा को अगले जन्म में साम्राज्य तथा व्यापारी को मोक्ष का वरदान दिया. यही कारण है कि कहा जाता है नवरात्रि व्रत का प्रथम पालन राजा सूरथ और समाधि वैश्य ने किया था. भगवान श्रीराम और शारदीय नवरात्र: आकाल बोधन की परंपरा दूसरी ओर रामायण और लोककथाओं में उल्लेख है कि जब श्रीराम रावण से युद्ध की तैयारी कर रहे थे, तब उन्होंने विजय की कामना से मां दुर्गा की पूजा का संकल्प लिया. समस्या यह थी कि उस समय शरद ऋतु चल रही थी, जबकि नवरात्रि का पर्व पारंपरिक रूप से चैत्र मास में आता था. तब श्रीराम ने शास्त्रों से हटकर शरद ऋतु में ही मां दुर्गा की पूजा आरंभ की. इसे ही आकाल बोधन कहा गया यानी समय से अलग काल में देवी का आवाहन. मां दुर्गा ने श्रीराम को विजय का आशीर्वाद दिया और उसके बाद ही रावण-वध संभव हुआ. इस घटना के बाद से ही शारदीय नवरात्रि की परंपरा शुरू हुई, जो समय के साथ सबसे अधिक लोकप्रिय बन गई. चैत्र और शारदीय नवरात्र: दोनों का महत्व चैत्र नवरात्रि: इसका मूल उद्गम राजा सूरथ और समाधि वैश्य की साधना से जुड़ा है. इसे वसंत ऋतु की शुरुआत और नए साल के आरंभ (हिंदू पंचांग के अनुसार) के रूप में भी मनाया जाता है. वसंत ऋतु की शुरुआत में आता है, इसे आत्मशुद्धि और साधना का पर्व माना जाता है. शारदीय नवरात्रि: भगवान श्रीराम की पूजा और विजय की कथा से जुड़ा. यह आश्विन मास में आता है और आज भारतभर में सबसे अधिक धूमधाम से मनाया जाता है. शरद ऋतु में आने वाला यह नवरात्रि शक्ति, विजय और देवी की कृपा का प्रतीक बन गया. दोनों ही पर्व का आधार एक ही है आदिशक्ति मां दुर्गा की आराधना, लेकिन इनके स्वरूप और महत्ता समय के साथ अलग-अलग रूप में स्थापित हुए.इस तरह नवरात्रि का उद्गम चैत्र मास में हुआ, लेकिन समय के साथ शारदीय नवरात्रि सबसे बड़ी और लोकप्रिय परंपरा बन गया. यही कारण है कि आज लोग इसे शक्ति साधना, विजय और आस्था के महापर्व के रूप में मनाते हैं. इस तरह शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि व्रत की प्राचीन परंपरा राजा सूरथ और समाधि वैश्य से जुड़ी है, लेकिन शारदीय नवरात्रि की परंपरा भगवान श्रीराम ने शुरू की, जब उन्होंने रावण से युद्ध से पहले मां दुर्गा की पूजा की. यही वजह है कि आज शारदीय नवरात्रि को विजय, शक्ति और आस्था का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है.

बेहद तनाव में भी तुरंत पाएँ सुकून – अपनाएँ ये 5 असरदार उपाय

रोजाना के बिजी शेड्यूल की वजह से ज्यादा तर लोग खुद के लिए समय नहीं निकाल पाते। भागदौड़ भरी जिंदगी में बहुत से लोग तनावग्रस्त हैं। तनाव की वजह से मन अशांत रहता है और बड़े फैसले लेना मुश्किल होता है। टेंशन के बीच मन को शांत रखना सरल काम नहीं है, लेकिन नामुमकिन भी नहीं है। छोटे-छोटे तरीकों को अपनाकर आप टेंशन में भी मन को शांत रख सकते हैं। जानें, मन शांत करने के 5 तरीके- गहरी सांस लेना अपनी नाक से गहरी सांस लें और फिर कुछ सेकंड के लिए रोककर रखें बाद में अपने मुंह से धीरे-धीरे सांस छोड़ें। ऐसा करते समय अपनी सांस की अनुभूति पर ध्यान केंद्रित करें। माइंडफुलनेस प्रेक्टिस आएगी काम अपने आस-पास के माहौल और शरीर की संवेदनाओं पर ध्यान दें। आप 5-4-3-2-1 तकनीक को आजमा सकते हैं। इसके लिए 5 ऐसी चीजें पहचानें जिन्हें आप देख सकते हैं, 4 ऐसी चीजें जिन्हें आप छू सकते हैं, 3 ऐसी चीजें जिन्हें आप सुन सकते हैं, 2 ऐसी चीजें जिन्हें आप सूंघ सकते हैं और 1 ऐसी चीज जिसे आप चख सकते हैं। टहलने से मिलेगी मदद टेंशन के बीच मन को शांत रखने का सबसे अच्छा तरीका है कुछ मिनटों के लिए बाहर निकलें और वॉक करें। इस दौरान अपने आस-पास के वातावरण पर ध्यान केंद्रित करें। शांत करने वाले म्यूजिक को सुनें बहुत ज्यादा टेंशन के बीच ऐसा करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। लेकिन अगर आप गलत फैसले लेने से बचना चाहते हैं तो मन शांत करने के लिए शांत करने वाले म्यूजिक को सुनें। म्यूजिक हृदय गति और ब्लडप्रेशर को कम करने में मदद कर सकता है। च्युइंग गम आएगी काम बहुत से लोग इसे खाना पसंद नहीं करते हैं लेकिन स्ट्रेस के बीच मन शांत करने में ये आपकी मदद कर सकती है। जब भी आपको तनाव महसूस हो तो च्युइंग गम चबाना शुरू कर दें। दरअसल च्युइंग गम चबाने से तनाव से जुड़े हार्मोन कोर्टिसोल के लेवल को कम करने में मदद मिलती है , जिससे यह तनाव को जल्दी से मैनेज करने में मदद करता है।

बेलन के जादू से आएगी समृद्धि, जानें कौन से उपाय हैं प्रभावी

बेलन सुनने में तो एक आम से चीज लगती है लेकिन इसके फायदे इसके नाम से भी बड़े हैं। आपको शायद सुनने में अजीब लगे लेकिन वास्तु एक्सपर्ट्स के अनुसार बेलन हमारे जीवन को बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभाता है। हिन्दू धर्म में ऐसी बहुत से चीजे बताई हुई हैं जो शायद ही हर व्यक्ति को पता हो। बेलन को मां अन्नपूर्णा से जोड़ा जाता है और इनके आशीर्वाद से ही हमारे जीवन की डोर जुड़ी है।  मां अन्नपूर्णा ही हमारे जीवन में सुख-समृद्धि लाने का काम करती हैं। तो चलिए ज्यादा देर न करते हुए जानते हैं कि बेलन से जुड़े उपायों से हम कैसे अपने जीवन को खुशहाल बना सकते हैं। बेलन का स्थान: बेलन को हमेशा रसोई में उत्तर-पूर्व दिशा या पूर्व दिशा में रखें। यह स्थान शुभ माना जाता है और यहां रखे गए बेलन से सकारात्मक ऊर्जा निकलती है। बेलन की स्थिति: बेलन को हमेशा अपनी ओर से सही और साफ-सुथरे स्थान पर रखें। बेलन पर कभी भी दरार या टूट-फूट न होने दें। यदि बेलन में कोई दरार हो जाए तो उसे तुरंत बदल देना चाहिए क्योंकि टूटा हुआ बेलन घर में संकट लेकर आता है। बेलन की सफाई: बेलन को हमेशा साफ रखें। गंदा या खराब बेलन नकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है। घर में हमेशा साफ-सुथरी चीजें ही रखें। बेलन का रंग: वास्तु के अनुसार, बेलन का रंग भी महत्वपूर्ण है। सफेद, हल्का गुलाबी या प्राकृतिक लकड़ी के रंग के बेलन शुभ माने जाते हैं। अत्यधिक चमकीले या रंग-बिरंगे बेलन से बचें। रसोई में बेलन का प्रयोग: बेलन का प्रयोग नियमित रूप से करें। खाना बनाते समय इसका सही उपयोग करना घर में खुशहाली लाता है। बेलन को अनावश्यक रूप से घर के बाहर या गंदे स्थानों में न रखें। बेलन को कभी जमीन पर न रखें: बेलन को जमीन पर या फर्श पर न रखें। इसे हमेशा टेबल या किसी साफ स्थान पर रखें ताकि यह अपशिष्ट से दूर रहे। नए बेलन की पूजा करें: नया बेलन खरीदते समय उसकी पूजा करें। इसे हल्दी और कुमकुम से सजाएं और भगवान के चरणों में रखें। इससे घर में समृद्धि आती है। बेलन को दक्षिण-पश्चिम दिशा में न रखें: दक्षिण-पश्चिम दिशा में बेलन रखना अशुभ माना जाता है, क्योंकि यह दिशा घर के प्रमुख कार्यकर्ता या मुखिया से जुड़ी होती है और यहां बेलन रखने से धन की हानि हो सकती है। धन-धान्य से जुड़ी परेशानी से मुक्ति पाने के लिए खासतौर पर शुक्रवार के दिन नया चकला-बेलन खरीदें और किसी जरूरतमंद को दान दें। ऐसा करने से आपके जीवन में बेहतरीन बदलाव देखने को मिलेगा।