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मान्यता वाले निजी स्कूलों के नए शैक्षणिक सत्र में एडमिशन पर हाई कोर्ट ने लगाई रोक

बिलासपुर

प्रदेश में बिना मान्यता संचालित निजी स्कूलों के खिलाफ हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने शुक्रवार को सख्त आदेश पारित किया। कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि आगामी आदेश तक बिना मान्यता वाले निजी स्कूलों में किसी भी नए छात्र का दाखिला नहीं किया जाएगा।

साथ ही कोर्ट ने कहा कि जिन छात्रों का प्रवेश हो चुका है, उन्हें कक्षा से बाहर नहीं किया जाएगा। रजिस्ट्रार को आदेश दिया गया है कि ऐसी याचिकाएं स्वीकार न की जाएं, जिनमें दाखिला रद कराने की मांग हो, ताकि अभिभावकों को और परेशानी न उठानी पड़े। इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख 5 अगस्त निर्धारित की गई है।

विकास तिवारी की ओर से अधिवक्ता संदीप दुबे और मानस बाजपेई के माध्यम से जनहित याचिका दायर की गई है। इसमें कहा गया कि प्रदेश में बड़ी संख्या में बिना मान्यता के ऐसे स्कूल संचालित हो रहे हैं, जिनमें नर्सरी से कक्षा एक तक की शिक्षा दी जा रही है। यही नहीं एक मान्यता प्राप्त स्कूल के नाम पर, कई शाखाएं खोल ली गई हैं।

कार्रवाई के नाम पर शिक्षा विभाग सिर्फ खानापूर्ति करता है और 25 हजार रुपये का नाममात्र का जुर्माना लगाकर स्कूलों को मान्यता मिलने तक की मोहलत दे देता है। इस बीच पूरा शैक्षणिक सत्र निकल जाता है और लाखों फीस की वसूली हो जाती है।

डीपीआइ ने दी कोर्ट को गलत जानकारी

30 जून को हुई सुनवाई के बाद कोर्ट के निर्देश पर 11 जुलाई को संचालक, लोक शिक्षण विभाग (डीपीआइ) ने शपथपत्र प्रस्तुत किया। इसमें कहा गया कि नर्सरी से केजी-दो तक की कक्षाओं के लिए मान्यता लेना अनिवार्य नहीं है, जबकि कक्षा एक और उससे ऊपर की कक्षाओं के लिए मान्यता आवश्यक है।

डीपीआइ की ओर से दी गई जानकारी पर हस्तक्षेपकर्ता विकास तिवारी के अधिवक्ताओं ने कोर्ट को अवगत कराया कि शासन ने सात जनवरी 2013 को अधिसूचना जारी की थी। इसके अनुसार नर्सरी से केजी-दो तक की कक्षाएं चलाने वाले स्कूलों के लिए भी मान्यता अनिवार्य है।

चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने शिक्षा विभाग के सचिव को व्यक्तिगत शपथपत्र प्रस्तुत करने के निर्देश देते हुए पूछा है कि निदेशक, लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा कोर्ट में गलत जानकारी क्यों दी गई।

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