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हाई कोर्ट का मानवीय फैसला: 6 माह की गर्भवती नाबालिग पर नहीं थोपा जाएगा गर्भपात

जबलपुर
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट कर दिया कि दुष्कर्म पीड़िता नाबालिग किसी भी हालत में आरोपित के घर पर नहीं रह सकती। न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की एकलपीठ ने आदेश दिया कि जब तक पीड़िता बालिग नहीं हो जाती, उसे रीवा के नारी निकेतन में ही रखा जाए। नारी निकेतन की अधीक्षक को भी निर्देशित किया गया है कि पीड़िता की सुरक्षा और देखरेख में कोई चूक न हो।

यह मामला रीवा जिले के मऊगंज क्षेत्र से जुड़ा है, जहां एक 17 वर्षीय किशोरी ने गर्भधारण किया था। मऊगंज अदालत ने गर्भपात की अनुमति हेतु हाई कोर्ट को पत्र भेजा था। कोर्ट ने जब इस पर सुनवाई की तो पता चला कि पीड़िता आरोपित भूपेंद्र साकेत के साथ रह रही थी और उसने मेडिकल जांच व गर्भपात कराने से इनकार कर दिया है। गर्भ अब लगभग 25 सप्ताह का हो चुका है।

कोर्ट ने साफ किया कि पीड़िता की मर्जी के बिना गर्भपात कराने का आदेश नहीं दिया जा सकता, खासकर जब वह मेडिकल जांच भी नहीं करवा रही। इस स्थिति में, यदि माता-पिता लड़की को अपने पास नहीं रखना चाहते, तो उसे नारी निकेतन में ही सुरक्षित रूप से रखा जाए।

वहीं, एक अन्य मामले में कोर्ट ने कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग पर कड़ा रुख अपनाया। भोपाल की एक महिला ने सतना निवासी अरुणेंद्र कुमार गौतम पर शादी का झांसा देकर शारीरिक शोषण करने का आरोप लगाया था। इस पर पुलिस ने दुष्कर्म और अन्य धाराओं में मामला दर्ज किया था। याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में अग्रिम ज़मानत की अर्जी दी, जिसे मंजूर कर लिया गया।

बाद में महिला ने जमानत रद्द करने की मांग की, लेकिन याचिकाकर्ता की ओर से प्रस्तुत साक्ष्यों में सामने आया कि महिला पहले भी जबलपुर में ऐसे ही एक मामले में एफआईआर दर्ज करा चुकी है और वह पहले से शादीशुदा भी है। कोर्ट ने इन तथ्यों के आधार पर एफआईआर और आपराधिक कार्रवाई को निरस्त कर दिया। न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि कानूनी प्रक्रिया का इस तरह दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।

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