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नक्सलियों में आत्मसमर्पण की बाढ़: माओवाद खत्म करने की ‘मोदी-शाह’ प्लानिंग कितनी कारगर?

रायपुर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने देशवासियों को यह भरोसा दिलाया है कि 31 मार्च 2026 से पहले 'नक्सलवाद' पूरी तरह खत्म हो जाएगा। माओवाद के खात्मे पर अब प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री 'शाह' का हाई 'कॉन्फिडेंस' साफ झलक रहा है। अभी तो डेड लाइन करीब आने में पांच माह बचे हैं, लेकिन अभी से ही नक्सलियों में 'सरेंडर' करने की होड़ मच गई है। माओवादियों की केंद्रीय कमेटी और जोनल कमेटी के सदस्यों के अलावा सीनियर ऑपरेटिव, सुरक्षा बलों के समक्ष हथियार डाल रहे हैं। पिछले कई दिनों से सुरक्षा बलों एवं राज्यों के विशेष दस्तों को ऐसे खुफिया इनपुट मिल रहे हैं कि नक्सली, भारी तादाद में सरेंडर करने के इच्छुक हैं। उन्हें एनकाउंटर में न उलझाया जाए। इस सप्ताह सैकड़ों नक्सलियों ने सरेंडर किया है। माओवादियों पर कसी गई नकेल का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अब नक्सलियों की गिरफ्तारी का आंकड़ा, सरेंडर की गिनती से पीछे छूट चुका है। 2024 में छत्तीसगढ़ में 2100 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था, 1785 गिरफ्तार हुए, जबकि 477 को न्यूट्रलाइज किया गया। बता दें कि इस सप्ताह जितने नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है, यह एक रिकार्ड बन गया है। छत्तीसगढ़ में शुक्रवार को 208 नक्सलियों ने सरेंडर कर दिया है। इनमें 98 पुरुष और 110 महिलाएं शामिल हैं। सभी 208 नक्सलियों ने 153 हथियार भी पुलिस के पास जमा करा दिए हैं। इससे पहले छत्तीसगढ़ में 170 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था। बाद में 27 अन्य नक्सली भी हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हो गए। दो दिन पहले महाराष्ट्र में भी 61 नक्सलियों ने हथियार डाले थे। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों की सूची में 10 सीनियर ऑपरेटिव, जिनमें सतीश उर्फ टी वासुदेव राव (सीसीएम), रानीता (एसजेडसीएम, माड़ डीवीसी की सचिव), भास्कर (डीवीसीएम, पीएल 32), नीला उर्फ नंदे (डीवीसीएम, आईसी और नेलनार एसी की सचिव), दीपक पालो (डीवीसीएम, आईसी और इंद्रावती एसी का सचिव) शामिल हैं। टी वासुदेव राव पर 1 करोड़ रुपये का इनाम था। बाकी कई दूसरे माओवादियों पर भी इनाम घोषित किया गया था। इतने बड़े पैमाने पर हुए सरेंडर को लेकर अमित शाह ने कहा, यह अत्यंत हर्ष की बात है कि एक समय आतंक का गढ़ रहे छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ और नॉर्थ बस्तर को आज नक्सली हिंसा से पूरी तरह मुक्त घोषित कर दिया गया है। अब छिटपुट नक्सली केवल साउथ बस्तर में बचे हुए हैं, जिन्हें हमारे सुरक्षा बल शीघ्र ही समाप्त कर देंगे। यह 31 मार्च 2026 से पहले नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने के हमारे दृढ़ संकल्प का प्रतिबिम्ब है। सरेंडर बाबत केंद्रीय सुरक्षा बल के एक अधिकारी, जो लंबे समय तक नक्सल प्रभावित इलाकों में तैनात रहे हैं, ने बताया, अब ज्यादा कुछ बचा नहीं है। हां, यह भी नहीं कह सकते है कि माओवादी पूरी तरह से समाप्त हो गए हैं। कुछ क्षेत्रों में उनकी मौजूदगी है, लेकिन देर सवेर वहां भी सरेंडर या मुठभेड़ में मारे गए, जैसी कोई सूचना मिल सकती है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में 'सीआरपीएफ', डीआरजी, एसटीएफ, बीएसएफ और आईटीबीपी के जवान 31 मार्च 2026 के लक्ष्य की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। नक्सलवाद से प्रभावित अधिकांश इलाकों में सीआरपीएफ और इसकी विशेष इकाई 'कोबरा' तैनात है, इसलिए अब तेज रफ्तार से 'फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस' स्थापित किए जा रहे हैं। ये कहना गलत नहीं होगा कि नक्सल को खत्म करने में सबसे बड़ा योगदान सीआरपीएफ और इसकी विशेष इकाई, 'कोबरा' का है। डीआरजी एवं दूसरे बलों की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। सात आठ वर्ष पहले लोकल पुलिस, अकेले जंगल में नहीं जा पाती थी। साथ में सीआरपीएफ/कोबरा या कोई दूसरा बल रहता था। सीआरपीएफ, कोबरा, डीआरजी के जवानों ने इस लड़ाई में खूब बलिदान दिया है। जब से केंद्रीय गृह मंत्री ने नक्सलियों के खात्मे की डेड लाइन तय की है, मानवीय और गैर मानवीय दिक्कतों के बावजूद 'सीआरपीएफ' द्वारा महज 48 घंटे में नया एफओबी तैयार कर दिया जाता है।'फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस' स्थापित करने में पहले काफी समय लगता था। वजह, उस क्षेत्रों में सड़कें न होने के कारण वहां पर निर्माण सामग्री, जल्दी नहीं पहुंच पाती थी। नक्सलियों द्वारा घात लगाकर हमला, आईईडी लगाना व बैरल ग्रेनेड लॉन्चर (बीजीएल) से अटैक, ये सब आम बात थी। इस तरह के खतरों के बीच सीआरपीएफ ने खुद के बलबूते और कुछ जगहों पर डीआरजी (डिस्ट्रिक रिजर्व गार्ड) एवं लोकल पुलिस को साथ लेकर एफओबी स्थापित किए हैं। दो तीन वर्षों में एफओबी के बीच में अंतराल ज्यादा बिल्कुल कम कर दिया गया है। अब तो चार-पांच किलोमीटर या उससे कम की दूरी पर भी एफओबी स्थापित किए जा रहे हैं। नतीजा, नक्सलियों के पास अब दो ही विकल्प, 'सरेंडर' या 'गोली' ही बचते हैं। लगातार खुलते एफओबी के चलते नक्सलियों के ठिकाने तबाह होने लगे हैं। ऐसा कोई इलाका नहीं बचा है, जहां सुरक्षा बलों की पहुंच न हो। महज 48 घंटे में 'फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस' स्थापित कर सुरक्षा बल, आगे बढ़ रहे हैं। नक्सलियों के लिए जंगलों में ज्यादा लंबी दूरी तक भागना संभव नहीं रहा। उनकी सप्लाई चेन कट चुकी है। अब उन्हें वित्तीय मदद भी नहीं मिल पा रही। नक्सलियों की नई भर्ती तो पूरी तरह बंद हो गई है। घने जंगलों में स्थित नक्सलियों के ट्रेनिंग सेंटर भी तबाह किए जा रहे हैं। तीन सौ से ज्यादा एफओबी खुलने के बाद माओवादी,  सुरक्षा बलों के चक्रव्यूह में फंसकर रह गए हैं। यही वजह है कि अब एकाएक, आत्मसमर्पण बढ़ता जा रहा है। नक्सलियों के गढ़ में 2024 में 58 नए कैंप स्थापित हुए थे। इस वर्ष 100 नए एफओबी स्थापित करने पर काम शुरु हुआ था। ये कैंप नक्सल के किले को ढहाने में आखिरी किल साबित हो रहे हैं। जिस तेजी से 'फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस' स्थापित हो रहे हैं, उससे यह बात साफ है कि तय अवधि से पहले ही नक्सलवाद को खत्म कर दिया जाएगा। सुरक्षा बलों ने नक्सलियों का हर वो ठिकाना ढूंढ निकाला है, जो अभी तक एक पहेली बना हुआ था। उनके स्मारक गिराए जा रहे हैं। 'फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस' स्थापित होने के कारण नक्सली घिरते जा रहे हैं। पहाड़ी जंगल में सुरक्षा बल चारों तरफ से घेरा डालकर आगे बढ़ रहे हैं। एफओबी को स्थापित … Read more