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RJD-CONG की परेशानी बढ़ी: राहुल गांधी का बयान बिहार चुनाव में बना तीर

नई दिल्ली 
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए माहौल गरमाने लगा है। महागठबंधन के बड़े नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी इस बार पूरे जोर-शोर से ‘वोट चोरी’ का मुद्दा उठा रहे हैं। वे विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया को संस्थागत वोट चोरी का तरीका बता रहे हैं। लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि क्या इस मुद्दे पर इतनी आक्रामक राजनीति कांग्रेस और उसके सहयोगियों को फायदा देगी, या फिर यह दांव उल्टा भी पड़ सकता है?

राहुल गांधी ने गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया कि कर्नाटक की एक विधानसभा सीट पर वोट अवैध रूप से हटाए गए, जबकि महाराष्ट्र की एक सीट पर फर्जी तरीके से जोड़े गए। उन्होंने दावा किया कि उनके पास “हाइड्रोजन बम” जैसे बड़े सबूत हैं, जिन्हें वे जल्द सार्वजनिक करेंगे। इससे पहले वे “एटम बम” छोड़ने की बात कह चुके हैं। राहुल लगातार बीजेपी और चुनाव आयोग पर हमलावर हैं। उनका कहना है कि वोटर लिस्ट में हेरफेर कर चुनाव परिणाम प्रभावित किए जा रहे हैं। हालांकि, अब तक उन्होंने चुनाव आयोग के पास औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं कराई है।

सहयोगियों की बेचैनी
महागठबंधन के भीतर ही इस रणनीति को लेकर असहजता दिखाई दे रही है। राजद सूत्रों के मुताबिक, तेजस्वी यादव बेरोजगारी, पलायन, अपराध, सरकारी सेवाओं की बदहाली और पेपर लीक जैसे सीधे मुद्दों पर आक्रामक कैंपेन कर रहे हैं। इसके उलट राहुल गांधी बार-बार सिर्फ ‘वोट चोरी’ की बात कर रहे हैं। इससे संदेश एकतरफा हो रहा है और जनता के असली सरोकारों पर ध्यान कम हो रहा है। कांग्रेस के अंदर भी कुछ नेताओं को आशंका है कि यह आक्रामक रुख न सिर्फ चुनावी रणनीति को नुकसान पहुंचा सकता है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की साख पर भी सवाल खड़े कर सकता है।

जमीन पर असर कितना?
राहुल गांधी ने हाल ही में वोटर अधिकार यात्रा के दौरान 16 दिन तक मार्च किया और हर सभा में वोट चोरी का मुद्दा उठाया। लेकिन जमीनी स्तर पर इसका असर कितना है? वोट वाइब के बिहार इलेक्शन 2025 सर्वे के मुताबिक, राज्य में सिर्फ 21% लोग SIR प्रक्रिया और वोट चोरी को बड़ा चुनावी मुद्दा मानते हैं। इसके विपरीत बेरोजगारी को 32% लोग सबसे अहम मुद्दा बता रहे हैं। इससे साफ है कि जनता की प्राथमिकताओं में वोट चोरी फिलहाल सबसे ऊपर नहीं है।

बड़ा दांव या जोखिम?
विश्लेषकों का कहना है कि राहुल गांधी ने अपनी पूरी ताकत ‘वोट चोरी’ के आरोपों पर केंद्रित कर दी है। अगर यह मुद्दा जनता के बीच उतना असरदार नहीं रहा तो इसका खामियाजा महागठबंधन को भुगतना पड़ सकता है। खासकर तब जब विपक्षी गठबंधन ने हाल के महीनों में तेजी से चुनावी गति पकड़ी थी। अब देखना होगा कि राहुल गांधी का यह “हाइड्रोजन बम” वास्तव में सत्तारूढ़ दल को झटका देता है या फिर कांग्रेस के लिए ही भारी पड़ जाता है।

 

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