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बूढ़ेश्वर महादेव: क्यों खास है छत्तीसगढ़ का यह 600 साल पुराना शिव मंदिर?

रायपुर

सावन का आज चौथा सोमवार है। ऐसे में शिव मंदिरों में सोमवार सुबह से भक्तों की भीड़ लगी हुई है। रायपुर के शिलालयों में दर्शन करने के लिए शिव भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी हुई है। मंदिरों में सुबह से भक्तों का तांता लगा हुआ है। रायपुर के प्राचीन बूढ़ेश्वर महादेव मंदिर में लोग भगवान भोले को जलाभिषेक किए।

बात रायपुर के बूढ़ेश्वर महादेव मंदिर के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की करें, तो यहां पांच सौ वर्ष पूर्व बूढ़ातालाब के किनारे शिवलिंग की पूजा की जाती थी। मान्यता है कि शिवलिंग पर हमेशा सर्प लिपटे रहते थे। श्रद्धालु तालाब में स्नान करने के बाद शिवलिंग पर जलाभिषेक करते थे। करीब 75 वर्ष पहले पुष्टिकर ब्राह्मण समाज ने यहां पर भव्य मंदिर बनवाकर शिवलिंग को प्राण प्रतिष्ठित की। रायपुर का बूढ़ेश्वर महादेव मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का मुख्य केंद्र है। मंदिर के पुजारी के अनुसार, आदिवासी समाज के कुल देवता बूढ़ादेव के नाम पर बूढ़ातालाब का निर्माण हुआ था। इसी तालाब के किनारे स्थित शिवलिंग को बूढ़ेश्वर शिवलिंग कहा जाने लगा। बाद में मंदिर का निर्माण कराया गया।

मंदिर की विशेषता
मंदिर परिसर में प्राचीन कुआं है। इस कुएं के जल से ही शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। कुएं के सामने भोलेनाथ के अवतार भैरव बाबा की प्रतिमा खुले आसमान में विराजित है। इस प्रतिमा का सोने, चांदी के बर्क से अगहन माह की अष्टमी तिथि पर विशेष श्रृंगार किया जाता है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान गणेश, कार्तिकेय, पार्वती, नंदीदेव भी प्रतिष्ठापित हैं। एक बड़े हाल के बीच छोटा सा गर्भगृह बना है और चारों ओर अनेक देवी-देवता विराजित हैं। राधा-कृष्ण, श्रीराम-सीता के मंदिर है।  

हर सोमवार को श्रृंगार
पुजारी पंडित महेश पांडेय ने बताया कि मंदिर में सावन के हर सोमवार को किया जाने वाला श्रृंगार प्रसिद्ध है। यहां पर विविध सामग्री से शिवलिंग का श्रृंगार किया जाता है। अलग-अलग रूपों में भोलेनाथ को सजाया जाता है। जलाभिषेक की व्यवस्था की जाती है। पुराने वटवृक्ष से लोगों की आस्था जुड़ी है। मंदिर में दर्शन करने की विशेष महत्व है।

फेमस है भस्म आरती
यहां महाशिवरात्रि और सावन महीने में दर्शन करने के लिए रायपुर सहित आसपास के जिलों से श्रद्धालु पहुंचते हैं। महाशिवरात्रि भव्य तरीके से मनाई जाती है। महाशिवरात्रि पर सुबह शिवलिंग पर भस्म आरती की जाती है। बनारस, उज्जैन और रामेश्वर ज्योतर्लिंग से भस्म मंगवाकर उसी भस्म का लेपन किया जाता है। सुबह से दोपहर तक जलाभिषेक होता है। शाम को भांग, धतूरा, चांदी, मालीपाणा के बर्क से श्रृंगार किया जाता है।

200 साल पुराना वटवृक्ष
बूढ़ेश्वर मंदिर के 200 साल पुराना वटवृक्ष है। श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र इस वृक्ष के नीचे वट सावित्री व्रत पूजा करने सैकड़ों महिलाएं पहुंचती हैं। इसी वृक्ष के नीचे ही नृसिंह जयंती पर नृसिंह लीला का भव्य मंचन किया जाता है, जो पूरे प्रदेशभर में मशहूर है। मंदिर परिसर में भगवान शिव के अवतार भैरव बाबा की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के ऊपर गुंबद नहीं बनाया गया है। भैरव अष्टमी पर मंदिर में लोग दर्शन करने पहुंचते हैं।

 

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