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भूलकर भी न करें ये खरीदारी! पितृपक्ष में पितृ दोष का खतरा

पितृपक्ष के दिनों में कुछ नियमों का सख्ती से पालन करना होता है, अन्यथा इसके बुरे प्रभाव जीवन में देखने को मिलते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि इस दिनों किन कार्यों को करने से बचना चाहिेए।

हिंदू धर्म में पितृपक्ष को विशेष महत्व दिया जाता है। हर साल पितृपक्ष भाद्रपद मास की शुक्ल पूर्णिमा से आरंभ होकर आश्विन अमावस्या पर समाप्त होते हैं। लगभग पंद्रह दिनों तक चलने वाले इस समय में लोग अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करते हैं। इस दौरान पितरों को याद करने से परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है और सुख-समृद्धि आती है।

पितृपक्ष के दिनों में कुछ नियमों का सख्ती से पालन करना होता है, अन्यथा इसके बुरे प्रभाव जीवन में देखने को मिलते हैं। इन दिनों शुभ कार्य, धार्मिक अनुष्ठान या किसी चीज की खरीदारी करने की मनाही होती है। ऐसा करके आप पितरों को अप्रसन्न कर सकते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि इस दिनों किन कार्यों को करने से बचना चाहिेए। 

पितृ दोष क्या है?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब पूर्वजों की आत्माएं अप्रसन्न होतीं है, तो इससे वंशजों के जीवन में कष्ट और बाधाएं उत्पन्न होने लगती हैं। इस स्थिति को पितृ दोष कहा जाता है। मान्यता है कि पितृपक्ष में पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने परिवार को आशीर्वाद देते हैं। इस दौरान अगर उन्हें उचित सम्मान और श्रद्धा न मिले, तो वे नाराज हो जाते हैं। इसलिए इस अवधि में किए गए कर्म अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं।

पितृपक्ष में क्या न करें

  • पितृपक्ष में कुछ कार्य वर्जित बताए गए हैं जिन्हें इस अवधि में भूलकर भी नहीं करना चाहिए।
  • पितृपक्ष में नए कपड़े, जूते या चप्पल खरीदना अशुभ माना जाता है।
  • इस दौरान विवाह, सगाई या अन्य मांगलिक आयोजन करना वर्जित है।
  • इस समय तामसिक भोजन जैसे मांस, मछली, अंडा, प्याज और लहसुन आदि के सेवन से भी बचें।
  • इस समय सोना-चांदी खरीदना भी अशुभ माना जाता।
  • जितना संभव हो धार्मिक कार्य करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  • दूसरों के प्रति अपमानजनक व्यवहार न रखें और बड़ों का सम्मान करें।

पितरों को प्रसन्न करने के लिए करें मंत्र जाप
पितृ पक्ष में मंत्रोच्चारण का विशेष महत्व है। इन मंत्रों का जाप करने से पितर प्रसन्न होते हैं।

  • ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
  • ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।
  • ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।

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