सतना
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट में दीपावली के बाद फिर से गूंज उठा पशु व्यापार का अनोखा संगम गधा मेला। मंदाकिनी नदी के किनारे सजे इस तीन दिवसीय मेले की शुरुआत मंगलवार को पारंपरिक अंदाज में हुई। यह मेला अपनी अनूठी परंपरा, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और दिलचस्प नामों वाले जानवरों के कारण पूरे देश में प्रसिद्ध है। इस बार मेले में महिला व्यापारियों का पहुंचना कौतूहल का विषय बना रहा। जहां घूंघट ओढ़े महिला व्यापारियों ने सर्वाधिक तेज बोली लगाते दिखी।
देश-विदेश से पहुंचे व्यापारी
इस बार मेले में 300 से अधिक गधे, खच्चर और घोड़ियां शामिल की गई हैं। व्यापारी मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, नेपाल और यहां तक कि अफगानिस्तान से भी पहुंचे हैं। पहले ही दिन खरीद-फरोख्त का माहौल बेहद रोमांचक रहा।
‘शाहरुख’ बना स्टार, ‘सलमान’ और ‘बसंती’ भी छाए
हर साल की तरह इस बार भी फिल्मी नामों वाले जानवर मेले की शान बने हुए हैं। ‘शाहरुख’ नाम के गधे की सबसे ऊंची बोली 1 लाख 5 हजार रुपए लगी। वहीं ‘सलमान’, ‘बसंती’ और ‘धोनी’ नाम के गधों ने भी व्यापारियों का ध्यान खींचा। पिछले साल ‘लॉरेंस’ नाम के खच्चर ने 1.25 लाख की रिकॉर्ड बोली लगवाकर सबको चौंका दिया था। इस बार भी खरीदारों में उसी उत्साह और प्रतिस्पर्धा का माहौल है।
महिला व्यापारियों की बढ़ती भागीदारी
इस बार मेले में महिलाओं की उपस्थिति भी चर्चा में रही। घूंघट में पहुंची एक महिला व्यापारी ने अकेले 15 जानवरों की खरीद कर सबको अचंभित कर दिया। खरीदे गए ये जानवर निर्माण कार्य, ईंट-भट्टों और परिवहन के काम में उपयोग होते हैं।
औरंगजेब से जुड़ा इतिहास
इतिहासकार बताते हैं कि इस मेले की शुरुआत सन् 1670 के आसपास मुगल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल में हुई थी। कहा जाता है कि चित्रकूट पर आक्रमण के दौरान उसकी सेना के घोड़े बीमार पड़ गए थे। तब उसने बालाजी मंदिर निर्माण कार्य और सामान ढुलाई के लिए गधों की खरीद के आदेश दिए। वहीं से इस अनोखे मेले की परंपरा शुरू हुई। आज यह मेला राजस्थान के पुष्कर मेले के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला माना जाता है, जहां व्यापार के साथ परंपरा, संस्कृति और लोकजीवन की सजीव झलक देखने को मिलती है।