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बच्चों की मौत के बाद इंदौर में चूहों पर अभियान, ऑपरेशन रैट किल में मारे और पकड़े गए चूहों की जांच

इंदौर

इंदौर के सरकारी एमवाय अस्पताल में चूहों के काटने से दो नवजातों की मौत के बाद पेस्ट कंट्रोल एजाइल कंपनी को हटाने की जानकारी सामने आई है। अब इस काम की मॉनिटरिंग के लिए मंगलवार रात डॉ. महेश कछारिया को असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट की नियुक्ति कर विशेष जिम्मेदारी। 

अस्पताल में चूहों को पकड़ने के लिए चूहामार दवाइयां (कुछ विशेष तरह का पॉयजन, जिसका तुरंत असर हो) डाली जा रही हैं। साथ ही हर यूनिट में बड़े पिंजरे और रोडेंट ग्लू ट्रेप (जिसमें कुतरने वाले जीव, खासकर चूहे, फंस जाते हैं) लगाए जा रहे हैं।

बता दें, नवजातों की मौत के मामले में डीन डॉ. अरविंद घनघोरिया और सुपरिटेंडेंट डॉ. अशोक यादव सहित अन्य पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

कितने चूहे पकड़ाए, इसकी जवाबदेही इंचार्ज की चूहों को पकड़ने को लेकर तुरंत फीडबैक लिया जा रहा है कि रातभर में कितने चूहे पकड़े गए और कितने मारे गए। इसके लिए हर यूनिट के इंचार्ज की जवाबदेही तय की गई है कि 24 घंटे में क्या नतीजे रहे। इसमें NICU (Neonatal Intensive Care Unit) और PICU (Pediatric Intensive Care Unit) पर खास फोकस है।

नवजातों को शिकार बनाते हैं चूहे दूसरी मंजिल पर इन NICU और PICU में पूरे कॉरिडोर में गार्डों को सख्त हिदायत दी गई है कि यहां किसी भी हालत में चूहों की एंट्री नहीं होनी चाहिए। इस संबंध में सख्त निर्देश जारी किए गए हैं। दरअसल, इन दोनों यूनिट्स में उन गंभीर नवजात शिशुओं को रखा जाता है, जिनकी स्थिति काफी क्रिटिकल रहती है। इनमें से अधिकतर वेंटिलेटर पर रहते हैं।

कम वजनी इन नवजातों का हर अंग नाजुक होता है। जिन गंभीर बीमारियों के कारण उन्हें इन यूनिट्स में एडमिट किया जाता है, उनकी वजह से वे पहले से ही काफी कमजोर रहते हैं और बीमारियों से लड़ने की क्षमता (Immunity Power) बहुत कम होती है। ऐसे में इन दूधमुंहे नवजातों को बड़े चूहे आसानी से अपने भोजन का शिकार बना लेते हैं। हाल की दो घटनाओं में, चूहों ने एक नवजात की चारों उंगलियां तक खा लीं।

अस्पताल के बाहर बम चेक करने जैसी चेकिंग चूहों के आतंक को खत्म करने के लिए अस्पताल के और भी ज्यादा सख्ती की गई है। यहां तीन-तीन गार्डों की ड्यूटी लगाई गई है। वे दिन-रात एंट्री करने वाले अटेंडर्स के सामान को बारीकी से चेक कर रहे हैं कि उसमें कोई खाद्य पदार्थ तो नहीं है। इसके अलावा परिसर के बाहर, जहां सार्वजनिक पार्किंग और अस्पताल के बगीचे हैं, वहां किसी भी जूठन या अन्य वेस्ट खाद्य पदार्थ तो नहीं है, उस पर भी कड़ी नजर रखी जा रही है।

सीढ़ियों और 6 लिफ्टों में चूहों पर नजर मुख्य सीढ़ियों सहित छह लिफ्टों में चूहो नजर आते हैं तो इसकी जानकारी तुरंत इंचार्ज को देने के लिए कहा गया है। इसे लेकर हर फ्लोर और अन्य स्थानों पर पर्चे चिपकाए गए हैं, जिनमें लिखा है कि यदि किसी स्टाफ को चूहे दिखें तो वे तुरंत इन नंबरों पर सूचना दें।

आखिरी तक झूठ बोलते रहे जिम्मेदार केस में जिम्मेदार कहते रहे कि चूहों ने मामूली काटा है। मौत का कारण नवजात का हीमोग्लोबिन कम होना और अंदरूनी अंगों का पूरी तरह से विकसित न होना बताया गया। इन सारे झूठों का खुलासा शनिवार को तब हुआ, जब धार निवासी मंजू के नवजात का शव लेकर परिवार अपने गांव पहुंचा। वहां रात को लाइट नहीं थी, तो उन्होंने मोबाइल की रोशनी में शव की पैकिंग खोली। देखा तो एक हाथ की चारों उंगलियां गायब थीं और घाव देखकर सभी सिहर उठे।

दरअसल, चूहों के लिए भोजन के रूप में नवजातों की उंगलियां ही सबसे पहले रहती हैं। वहां से वे धीरे-धीरे शरीर का बड़ा हिस्सा कुतर सकते हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है कि चूहों ने दो दिनों में उसे कितना जख्मी किया होगा।

सीसीटीवी कैमरों से 24 घंटे मॉनिटरिंग चूहों की धरपकड़ के लिए हर कॉरिडोर, वार्ड और यूनिट में लगे सीसीटीवी कैमरों से भी नजर रखी जा रही है। हालांकि अस्पताल में चूहों का ज्यादातर मूवमेंट फ्लोर पर ही रहा है। साथ हा वे पलंग, स्लाइन बोतलों के स्टैंड, वार्डों में मरीजों और ड्यूटी रूम में रखी भोजन की छोटी आलमारियों और बड़ी टेबलों तक पहुंच जाते हैं। वे टेबलों और अलमारियों में रखी दवाइयां तक खा जाते हैं।

खाने का लालच देकर घेराबंदी कर रहे चूहों की घेराबंदी के लिए सरकारी कैंसर और चाचा नेहरू अस्पताल की सीमा तक प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए टीमें उन्हें बिस्किट, केक और दानों का लालच देकर पास बुला रही हैं। हालांकि दिन में सक्रियता कम रहती है। कई स्थानों पर रात में रोडेंट ग्लू ट्रैप में अनाज के दाने रखे गए, जिससे चूहे लालच में आकर चिपक गए और मर गए। अलसुबह इन रोडेंट ग्लू ट्रैप में चिपके मृत चूहों को तुरंत उठाकर ठिकाने लगाया जा रहा है। ऐसे में बाहर और सड़कों पर मृत चूहे देखे जा रहे हैं।

बड़े स्तर पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं दूसरी ओर, डीन द्वारा एजाइल कंपनी को हटाकर उसे ब्लैकलिस्टेड करने के लिए भोपाल पत्र लिखा गया है। इस मामले में एजाइल कंपनी पर सिर्फ एक लाख रुपए जुर्माना लगाकर खानापूर्ति कर दी गई, जबकि हटाने संबंधी अधिकृत पत्र की पुष्टि नहीं की गई। जिम्मेदार वरिष्ठ अधिकारियों पर भी अब तक कोई एक्शन नहीं लिया गया।

इन डॉक्टर्स को कारण बताओ नोटिस मंगलवार को उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल ने मंत्रालय, भोपाल में इस मामले की कार्रवाई की समीक्षा की। उन्होंने निर्देश दिए कि पूरी कार्यवाही निष्पक्षता, पारदर्शिता और तथ्यों के आधार पर की जाए। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की घटनाएं स्वास्थ्य सेवाओं की छवि को धूमिल करती हैं, दोषी व्यक्तियों की पहचान कर कठोर कार्रवाई की जाएगी।

उन्होंने निर्देश दिए कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए प्रभावी रोकथाम उपाय तुरंत लागू किए जाएं। उन्होंने कहा कि अस्पताल सुपरिटेंडेट डॉ. अशोक यादव, डॉ. बृजेश लाहोटी (HOD, PIC), प्रो. डॉ. मनोज जोशी और सहायक प्रभारी नर्सिंग अधिकारी कलावती भलावी को घटना के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं।

डॉ. मुकेश जायसवाल (असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट और भवन प्रभारी), प्रवीणा सिंह (प्रभारी नर्सिंग ऑफिसर), नर्सिंग ऑफिसर आकांक्षा बेंजामिन और श्वेता चौहान को सस्पेंड किया गया है। नर्सिंग सुपरिटेंडेंट मार्गरेट जोसफ को पद से हटाया गया है। साथ ही नर्सिंग ऑफिसर प्रेमलता राठौर का मानसिक चिकित्सालय, बाणगंगा में ट्रांसफर किया गया है।

न कार्रवाई और न ही MOU निरस्त चौंकाने वाली बात यह है कि मुख्य कंपनी एचएलएल इंफ्राटेक सर्विसेज (HITES), जिसने एजाइल कंपनी को पेस्ट कंट्रोल का ठेका दिया था, उसे न तो ब्लैकलिस्ट किया गया और न ही एमओयू (MOU) खत्म किया गया। जबकि कंपनी को हर साल 20 करोड़ रुपए से ज्यादा का भुगतान किया जाता है। चालू वित्तीय वर्ष 2025-26 में ही सितंबर तक 11 करोड़ रुपए जारी हो चुके हैं।

कंपनी के रिकॉर्ड में भी जनवरी से अब तक अस्पताल परिसर में डेढ़ सौ चूहों को पकड़ने और मारने की जानकारी है। इसमें हर माह 2 लाख रुपए से ज्यादा कीटनाशक दवाओं पर खर्च का दावा किया गया है।

कंपनी की लापरवाही के मामले में दिसंबर 2023 में तत्कालीन कमिश्नर ने कंपनी पर 20 हजार रुपए का जुर्माना लगाया था। इसके बाद बार-बार चेतावनी देने के बावजूद भी लापरवाही का सिलसिला नहीं रुका। खास बात यह है कि एमओयू में शर्तें स्पष्ट हैं कि लापरवाही पाए जाने पर डीन द्वारा अनुबंध निरस्त किया जा सकता है। इसके बावजूद ठोस कदम नहीं उठाए गए।

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