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CGMSC घोटाला: जेल में बंद अधिकारियों को राहत नहीं, हाईकोर्ट ने जमानत याचिका ठुकराई

बिलासपुर

हाईकोर्ट में रीएजेंट घोटाले में संलिप्त अधिकारियों की नियमित जमानत याचिका खारिज कर दी गई. वही इस मामले में मुख्य सूत्रधार और मोक्षित कार्पोरेशन के संचालक शशांक चोपड़ा की नियमित जमानत याचिका सुप्रीम कोर्ट से आठ सितंबर को खारिज हो चुकी है. सुनवाई में सीजी एमएससी के डिप्टी डायरेक्टर डॉक्टर अनिल परसाई और असिस्टेंट ड्रग कंट्रोलर बसंत कौशिक की जमानत याचिका खारिज की गई.

मोक्षित कार्पोरेशन द्वारा किए गए रीएजेंट घोटाले में संचालक शशांक चोपड़ा सहित 6 आरोपी जेल में है. रीएजेंट घोटाले की ईडी के अलावा एसीबी और ईओडब्ल्यू भी जांच कर रही है. यह पूरा घोटाला 400 करोड़ रुपए का माना गया है. इसमें गिरफ्तार आरोपियों के खिलाफ विवेचना पूरी कर चालान पेश हो चुका है. जबकि अन्य आरोपियों के खिलाफ विवेचना जारी है. गिरफ्तारी के बाद नियमित जमानत के लिए मोक्षित कार्पोरेशन के संचालक शशांक चोपड़ा सहित सीजीएमएससी और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने याचिका लगाई थी. मोक्षित कारपोरेशन के संचालक शशांक चोपड़ा की नियमित जमानत याचिका हाईकोर्ट से खारिज होने के बाद उसने सुप्रीम कोर्ट में जमानत के लिए याचिका लगाई थी.

वहीं सीजीएमएसी के डिप्टी डायरेक्टर डॉक्टर अनिल परसाई और असिस्टेंट ड्रग कंट्रोलर बसंत कौशिक ने हाईकोर्ट में नियमित जमानत याचिका दाखिल की थी. जमानत याचिका पर हुई पिछली सुनवाई में उनके अधिवक्ताओं ने अदालत से निवेदन किया था कि मुख्य आरोपी शशांक चोपड़ा की जमानत की याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. उसकी जमानत याचिका की सुनवाई आठ सितंबर को होगी. आठ सितंबर को जमानत याचिका की सुनवाई के बाद यहां सुनवाई की जाए. आठ सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में मोक्षित कारपोरेशन के संचालक शशांक चोपड़ा की नियमित जमानत याचिका खारिज हो गई.

हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की सिंगल बेंच में छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन के डिप्टी डायरेक्टर डॉक्टर अनिल परसाई और असिस्टेंट ड्रग कंट्रोलर वसंत कौशिक की जमानत याचिका पर सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं ने बताया कि ईओडब्लू की जांच में और सत्यापन में पाया गया कि मार्केट में डेढ़ रुपए से लेकर साढ़े आठ रुपए तक मिलने वाला ईडीटीए ट्यूब 352 रुपए प्रति ट्यूब के हिसाब से खरीदा गया है. एफआईआर में इसका जिक्र है. जबकि एफआईआर के बाद हुई विवेचना में 2352 रुपए में ट्यूब खरीदने के बात कही गई है. दोनों बातों में परस्पर विरोधाभास है और इस हिसाब से चार सौ करोड़ रुपए से ज्यादा का यह घोटाला है.

इसके अलावा डॉक्टर अनिल परसाई को विभाग द्वारा जारी वर्किंग डिस्ट्रीब्यूशन के अनुसार उन्हें केवल आहरण एवं संवितरण का अधिकार दिया गया था ना कि खरीदी का. यह काम सीजीएमएमएसी के संचालक के पद पर बैठे अधिकारी करते थे उन्हें कुछ नहीं किया. जबकि उनके द्वारा बिना बजट की व्यवस्था और अनुमान के इस तरह का कार्य किया गया. डॉ अनिल परसाई के क्षेत्राधिकार में ना तो खरीदी का अधिकार था ना खरीदी के स्वीकृति देने का और ना ही भुगतान का.

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