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छठ पूजा में पूजित छठी मैया: संतानों की सुख-समृद्धि की देवी की कथा

लोक आस्था का महापर्व ‘छठ पूजा’ जल्द ही शुरू होने वाला है. यह चार दिनों का त्योहार विशेष रूप से सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है. यह पर्व संतान के स्वास्थ्य, सफलता और लंबी उम्र की कामना के लिए रखा जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिनकी पूजा इस महापर्व में की जाती है, वह छठी मैया कौन हैं और संतान की रक्षा करने वाली इस देवी का महत्व क्या है? आइए जानते हैं.

कौन हैं छठी मैया?
छठी मैया को देवी षष्ठी कहा जाता है. हिंदू मान्यता के अनुसार, ये भगवान सूर्यदेव की बहन हैं और बच्चों की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सुरक्षा की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं. छठी मैया का नाम षष्ठी इसलिए पड़ा क्योंकि इनकी पूजा शिशु जन्म के छठे दिन की जाती है. पौराणिक कथा के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की, तब उन्होंने संतानों की रक्षा और वृद्धि के लिए देवी षष्ठी को सृजित किया. तभी से माता षष्ठी को हर नवजात की रक्षा करने वाली देवी के रूप में पूजा जाने लगा.

छठ पूजा और छठी मैया का संबंध
छठ पूजा में सूर्य देव के साथ-साथ छठी मैया की भी आराधना की जाती है. व्रती महिलाएं उपवास रखकर जल, फल और अर्घ्य अर्पित करती हैं. उनका मानना है कि छठी मैया की कृपा से संतानें निरोगी, दीर्घायु और भाग्यशाली बनती हैं. इस पर्व के दौरान सूर्य की ऊर्जा और प्रकृति के तत्वों की शुद्धता का संगम होता है, जो जीवन को नवचेतना देता है.

छठ पूजा के चार पवित्र दिन
    नहाय-खाय (25 अक्टूबर) व्रती सबसे पहले स्नान कर घर की शुद्धि करती हैं और सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं.
    खरना (26 अक्टूबर) दिनभर उपवास रखकर शाम को गुड़-चावल की खीर और रोटी का प्रसाद बनाकर छठी मैया को अर्पित किया जाता है.
    संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर) व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्यदेव और छठी मैया की आराधना करती हैं.
    उषा अर्घ्य (28 अक्टूबर) अंतिम दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और व्रत का समापन होता है.

 

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