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प्रशांत किशोर किस सीट से उतरेंगे मैदान में—सासाराम या राघोपुर?

पटना

बिहार की सियासत में हलचल मचाने वाले जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने अब खुद चुनाव लड़ने के संकेत दे दिए हैं। लंबे समय से यह सवाल उठ रहा था कि क्या रणनीति के मास्टरमाइंड अब मैदान में उतरेंगे? इस बार उन्होंने साफ तौर पर कहा कि अगर नीतीश कुमार चुनाव लड़ते हैं तो वह भी जरूर लड़ेंगे। इतना ही नहीं उन्होंने यह भी बताया कि अगर चुनाव लड़ना पड़ा तो अपनी जन्मभूमि या कर्मभूमि से ही लड़ेंगे। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या पीके सासाराम, करगहर या फिर राघोपुर से ताल ठोक सकते हैं?

अब तक दूसरों के लिए चुनावी रणनीति बनाने वाले प्रशांत किशोर अब खुद सियासी मैदान में उतरने को तैयार दिख रहे हैं। बिहार के हर जिले का दौरा कर चुके पीके ने दो साल तक जन संवाद और जन सुराज पदयात्रा के जरिए लोगों से सीधा संवाद किया है। अब वह केवल पार्टी के चेहरे नहीं बल्कि उसके उम्मीदवार भी बन सकते हैं।

नीतीश कुमार पर डाली गेंद
प्रशांत किशोर से जब पूछा गया कि वह खुद चुनाव लड़ेंगे या नहीं तो उन्होंने सीधे तौर पर नीतीश कुमार का नाम लिया। उन्होंने कहा "मैंने पहले भी कहा है कि अगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनाव लड़ते हैं तो निश्चित तौर पर मैं भी चुनाव लड़ूंगा।" इस बयान से साफ है कि पीके चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं लेकिन उन्होंने अंतिम फैसला नीतीश कुमार की चुनावी भागीदारी पर टाल दिया है। गौरतलब है कि नीतीश कुमार पिछले करीब 20 वर्षों से खुद कोई चुनाव नहीं लड़ रहे हैं।

तेजस्वी यादव से भी मुकाबले के संकेत
प्रशांत किशोर ने तेजस्वी यादव को लेकर भी बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि अगर उनकी पार्टी चाहे तो वह तेजस्वी यादव के खिलाफ भी चुनाव लड़ सकते हैं। उन्होंने तर्क दिया कि "अगर विपक्ष के मुख्य चेहरे के खिलाफ लड़ना है तो लड़ने में कोई हर्ज नहीं है, लेकिन सिर्फ किसी के खिलाफ लड़ने का फायदा नहीं है।" यह बयान उनके आत्मविश्वास को दिखाता है और यह भी कि वह राजनीतिक चुनौतियों से भागने वाले नहीं हैं।

जन्मभूमि बनाम कर्मभूमि – कौन सी सीट होगी चुनौतियों भरी?
प्रशांत किशोर ने अपने आगामी चुनाव लड़ने को लेकर दो अहम विकल्पों की ओर इशारा किया है – उनकी जन्मभूमि और कर्मभूमि। उन्होंने स्पष्ट कहा कि अगर उन्हें चुनाव लड़ना पड़ा, तो वह या तो अपनी जन्मभूमि या फिर कर्मभूमि से चुनाव मैदान में उतरेंगे। जन्मभूमि के आधार पर दो संभावित सीटों के नाम सामने आए हैं – सासाराम और करगहर। वहीं, कर्मभूमि के रूप में उन्होंने राघोपुर का नाम लिया, जहां उन्होंने सबसे अधिक समय बिताया और जन सुराज की नींव मजबूत की। पीके ने यह भी कहा कि वह खुद लोगों को सलाह देते हैं कि अगर चुनाव लड़ना है तो एक सीट जन्मभूमि से और दूसरी कर्मभूमि से लड़नी चाहिए। उनके इस बयान से यह भी संकेत मिलता है कि वे पार्टी की अनुमति मिलने पर दो सीटों से चुनाव लड़ सकते हैं, जिससे उनकी राजनीतिक मौजूदगी और असर दोनों और अधिक मजबूत हो सकते हैं।

जन सुराज पार्टी की तैयारी और पीके की भूमिका
जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने पहले ही एलान कर दिया है कि उनकी पार्टी बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या पार्टी का चेहरा बने प्रशांत किशोर खुद मैदान में उतरेंगे या केवल प्रचार तक सीमित रहेंगे। उन्होंने कहा "हम पार्टी के ऊपर नहीं हैं, पार्टी जो तय करेगी वही होगा।" इस बयान से यह साफ है कि वह एक लोकतांत्रिक ढंग से पार्टी चला रहे हैं और व्यक्तिगत निर्णयों से ऊपर संगठनात्मक निर्णयों को महत्व दे रहे हैं।

प्रशांत किशोर की तरफ से यह अब तक का सबसे मजबूत संकेत है कि वह चुनाव लड़ने को लेकर गंभीर हैं। सियासी गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि अगर पीके चुनाव लड़ते हैं तो वह सीट "वीआईपी" सीट बन जाएगी। चाहे वह सासाराम हो, करगहर हो या राघोपुर – वहां मुकाबला दिलचस्प और हाई-प्रोफाइल हो जाएगा।

 

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