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ओवैसी के उम्मीदवार और एनडीए की चुनौती: अमौर सीट पर रोमांचक मुकाबला

पूर्णिया
बिहार के सीमांचल क्षेत्र की अमौर विधानसभा सीट का जिला पूर्णिया और लोकसभा क्षेत्र किशनगंज लगता है। यह विधानसभा काफी पिछड़ी है जिसका प्रमुख कारण इस क्षेत्र की भौगोलिक दशा है। यह विधानसभा चारों तरफ से नदियों से घिरी है। उतर दिशा में जहां कनकई नदी, पूर्व में कनकई के साथ महानंदा नदी, दक्षिण में दास नदी, वहीं पश्चिम दिशा में परमान नदी है। इन नदियों के जलस्तर में अप्रत्याशित वृद्धि के कारण हर साल आने वाली बाढ़ एवं नदी कटाव के कारण नदियों के किनारे बसे दर्जनों गांव के लोग न चाहते हुए दोहरी मार को वर्षों से सहते आ रहे हैं।

हालांकि, नदियों के जाल के बीच अब विकास ने भी चाल पकड़ ली है। दशकों के इंतजार के बाद रसेली घाट और खाड़ी पुल पर काम जोर शोर से चल रहा है। रसेली घाट पर पुल बन रहा है। जनवरी में आवागमन शुरू होने की संभावना है। खाड़ी पुल पर भी आवाजाही अगले मॉनसून से पहले शुरू हो जाएगी। अभयपुर में महानंदा ब्रिज बन रहा है। इसका फायदा लाखों लोगों को होगा।

अमौर विधानसभा सीट 1951 में अस्तित्व में आई था। पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी मोहम्मद ताहिर ने जीत हासिल की थी। 1957 में हुए चुनाव में अमौर सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार मोहम्मद इस्माइल को जनता का समर्थन मिला। 1962 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर मोहम्मद अलीजान ने विरोधियों को शिकस्त दी। 1967 और 1969 के चुनाव में यहां से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर हसीबुर रहमान चुनाव जीते। 1972 में निर्दलीय हसीबुर रहमान ने एक बार फिर अमौर में चुनावी बाजी मारी। 1977 में अमौर सीट पर जनता पार्टी के टिकट पर चंद्रशेखर झा चुनाव जीते।

1980 में कांग्रेस से मोईजुद्दीन मिंशी ने अमौर सीट पर विरोधियों को शिकस्त दी। 1985 में अमौर सीट पर ए जलील ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल की। 1990 में कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर ए जलील ने जीत का सिलसिला बरकरार रखा था। 1995 के चुनाव में समाजवादी पार्टी से मुजफ्फर हुसैन ने विरोधियों को शिकस्त दी। 2000 और 2005 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के अब्दुल जलील मस्तान ने अमौर सीट पर लगातार दो बार जीत का परचम लहराया था। 2010 के विधानसभा चुनाव से भाजपा से सबा जफर ने जीत हासिल कर सबको चौंका दिया था। वहीं 2015 के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस के टिकट पर अब्दुल जलील मस्तान ने जीत हासिल की।
बिहार में AIMIM के इकलौते विधायक अमौर से

2020 में एआईएमआईएम प्रत्याशी अख्तरुल ईमान को जीत मिली। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का राज्य में इकलौता विधायक अभी यहीं से है। वर्तमान में वह पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। इस बार एआईएमआईएम के अलावा जदयू, कांग्रेस और जन सुराज के नेता इस क्षेत्र में सरगर्म हैं। चर्चा है कि 2025 के विधानसभा चुनाव में एनडीए से अख्तरुल ईमान को कड़ी चुनौती मिलेगी।

AIMIM विधायक अख्तरुल ईमान का दावा है कि अब तक की सरकारों ने सीमांचल की अनदेखी की है तो क्षेत्र में समस्या है। मगर उन्होंने अमौर समेत सीमांचल की बातों को मजबूती के साथ सदन में रखा है। अमौर विधानसभा क्षेत्र में पांच वर्षों में 800 करोड़ की योजनाओं को धरालत पर उतारकर नया अध्याय जोड़ा गया है। खाड़ी पुल, रसेली पुल, अभयपुर में ब्रिज समेत बांकी पुल-पुलिया का निर्माण हो रहा है। नदियों के कटाव को रोकने के लिए मजबूती के साथ काम करवाए गए हैं।

वहीं, जेडीयू नेता सबा जफर का दावा है कि अमौर विधानसभा क्षेत्र में जो भी विकास हुआ है, वह राज्य और केंद्र सरकार की बदौलत। दोनों सरकारों के प्रयास से विधानसभा क्षेत्र में रसेली और खाड़ी में पुल का निर्माण हो रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि AIMIM विधायक ने अपने प्रयास से क्षेत्र के लिए कुछ नहीं किया है। यहां जो भी विकास हो रहा है, वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की देन है। क्षेत्र के लोग भी इस बात को भली भांति समझते हैं।
अमौर में चाय की खेती शुरू

किशनगंज के बाद पूर्णिया जिले में अमौर विधानसभा क्षेत्र पहला क्षेत्र बन गया है जहाँ चाय की खेती शुरू हो गयी है। विधानसभा क्षेत्र के चंदवार से शुरू हुई चाय की खेती आज आधा दर्जन से अधिक जगहों पर किसान करने लगे हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में अमौर का लगभग तीन सौ वर्ष पुराना माँ दुर्गा मंदिर व विष्णुपुर का माँ काली मंदिर के समीप बरगद का पेड़ सनातनियों के लिए आस्था का केंद्र है।

वहीं कई मजार भी हैं जो आस्था का केंद्र है। इस विधानसभा क्षेत्र में गंगा-जमुना संस्कृति की झलक देखते ही बनती है। जहाँ हिन्दू भाई ईद,शबे बारात आदि की बधाइयां देने के लिए मुस्लिम भाइयों के घर जाकर बड़े चाव के साथ सेवई का आनंद लेते हैं। वहीं मुस्लिम लोग भी दुर्गा पूजा, दीपावली व होली पर बधाई देने घर पहुँच घर में बने स्वादिष्ट पकवान का भरपूर आनंद लेते है।

 

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