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छिंदवाड़ा में मानवीय चेहरा: छात्रा की मदद को आगे आए थाना इंचार्ज, एक्सीडेंट में टूटी साइकिल की जगह दिलाई नई

छिंदवाड़ा   छिंदवाड़ा में एक पुलिस अधिकारी का मानवीय चेहरा सामने आया है. 12वीं में पढ़ने वाली एक छात्रा की साइकिल को एक स्कार्पियो वाहन ने टक्कर मार दी. इस हादसे में साइकिल बुरी तरह तहस नहस हो गई. इससे दुखी छात्रा शिकायत करने सिटी कोतवाली पहुंची और उसने पुलिस को पूरी घटना बताई.  दरअसल, छात्रा बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखती है और वह साइकिल से ही रोज स्कूल आना-जाना करती है. उसने कोतवाली टीआई आशीष धुर्वे को बताया कि कार की टक्कर से साइकिल टूट गई है, अब वह सुधरेगी भी नहीं, ऐसे में स्कूल कैसे जाऊंगी?  छात्रा स्कूल जाने से वंचित न रह जाए, यह देखते हुए टीआई आशीष धुर्वे ने अविभावक बनकर एक नई साइकिल छात्रा को दिला दी. बच्ची नई साइकिल मिलने से खुश हो गई.  सिटी कोतवाली टीआई आशीष धुर्वे ने बताया, ''ये छोटी बच्ची स्कूल आती है. इसकी साइकिल को एक वाहन ने टक्कर मार दी थी. साइकिल पीछे से टूट गई थी. मेरे पास आई. बोली कि साइकिल टूट गई है, अब कैसे स्कूल आना जाना करूंगी? मेरा परिवार बहुत गरीब है.यह सुनकर मैंने एक साइकिल खरीदकर दे दी ताकि उसका स्कूल न छूट जाए. नई साइकिल पाकर बच्ची बेहद खुश है और अब वह अपनी पढ़ाई जारी रख पाएगी.''

जंगलों से लेकर सात फेरों तक: आत्मसमर्पित नक्सली ने पुलिस थाना में किया विवाह

पखांजुर छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल से एक ऐसी खबर आई है जो उम्मीद, बदलाव और नई शुरुआत की मिसाल पेश करती है. कभी जंगलों में बंदूक थामे घूमने वाले नक्सली अब समाज की मुख्यधारा में लौट आए हैं, और अब उन्हीं हाथों में मेहंदी और रिश्तों की डोर सजी है. कांकेर जिले का पखांजुर थाना परिसर रविवार को एक अनोखे और प्रेरणादायक विवाह का साक्षी बना. यहां आत्मसमर्पित नक्सली सागर हिरदो और सचिला मांडवी ने एक-दूसरे का हाथ थामकर नई जिंदगी की शुरुआत की. फूलों से सजे मंडप में मंत्रोच्चार के बीच दोनों ने सात फेरे लिए और जीवनभर साथ निभाने का वादा किया. थाना परिसर में हुआ यह विवाह किसी फिल्मी दृश्य से कम नहीं था. जहां कभी बंदूक और हिंसा का साया था, वहां अब प्रेम, शांति और विश्वास का संदेश गूंज रहा था. पुलिस अधिकारी, ग्रामीण और समाज के लोग इस नए जीवन की शुरुआत के गवाह बने. जानकारी के अनुसार, सागर हिरदो वर्ष 2014 में नक्सल संगठन से जुड़ा था और दिसंबर 2024 में पखांजुर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया. वहीं, सचिला मांडवी ने वर्ष 2020 में नक्सल संगठन का दामन छोड़ा और उसी वर्ष पुलिस के समक्ष सरेंडर किया. आत्मसमर्पण के बाद दोनों पुनर्वास योजना के तहत समाज की मुख्यधारा में शामिल हुए. इसी दौरान दोनों की पहचान हुई और यह रिश्ता विवाह के रूप में परिणित हुआ. इस सकारात्मक पहल में पखांजुर थाना प्रभारी लक्ष्मण केवट और गोण्डाहुर थाना प्रभारी रामचंद्र साहू की अहम भूमिका रही, जिन्होंने समाज में लौटे इन युवाओं को नई शुरुआत के लिए प्रेरित किया. कभी जिन हाथों में बंदूक थी, अब उनमें मेहंदी सजी है. जंगलों की राह छोड़ अब ये जोड़ा समाज की नई राह पर बढ़ चला है. इस जोड़े ने यह साबित कर दिया है कि नक्सलियों के लिए भी हिंसा की अंधेरी राह से नए जीवन का सूरज निकल सकता है, अगर वे मुख्यधारा से जुड़ जाएं. यह विवाह सिर्फ एक रिश्ता नहीं, बल्कि शांति, विश्वास और प्रेम से भरे नए बस्तर की तस्वीर है.