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बच्चों के संग ऐसे बना रहेगा प्यारा का गहरा रिश्ता

हम सभी ऐसा मानते हैं कि बच्चे अपने पैरेंट्स से, अपने घर से, बाहरी दुनिया से सीखते हैं। यह सौ फीसदी सच भी है। लेकिन हममें से कितने प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जो अपने बच्चों से सीखते हैं, या उनके कहे अनुसार खुद को बदलने की कोशिश करते हैं। जिस दिन आपको ऐसा महसूस होगा कि सिर्फ आप ही अपने बच्चे को नहीं सिखा सकतीं, आपके बच्चे भी आपको सिखाने की ताकत रखते हैं। उस दिन से आप दोनों के बीच के रिश्ते एकदम सहज और सरल हो जाएंगे।   बच्चों को समझें बच्चे को भले ही हम बच्चा समझें, लेकिन यह हकीकत है कि वह जो कुछ भी बाहर की दुनिया से सीखता है, उसे अपने घर में भी आजमाना चाहता है। इस तरह से देखा जाए, तो एक बच्चा बाहरी दुनिया की तरह ही अपने घर में भी बदलाव लाना चाहता है। यही कारण है कि वह अपनी इच्छा से वह सारी अच्छी बातें अपने घर वालों को बताता है कि उसके साथ बाहर क्या हो रहा है, वह क्या नया सीख रहा है।   कई परिवारों में बच्चों की इन बातों को नजरअंदाज कर दिया जाता है, जबकि कुछ परिवारों में उन्हें बेहद अहमियत दी जाती है। वे सभी परिवार बड़े खुश माने जाते हैं, जो अपने बच्चों के साथ बढ़ते तथा विकसित होते हैं। उनकी यही बातें उन्हें रोज बदलने वाली दुनिया और समाज में बड़ा बनाती हैं। उन्हें समाज की बदलती गति के साथ चलने की सीख देती हैं। अपने बच्चों को सावधानी से सुनने का, उनकी सोच और शब्दावली को समझने का माद्दा हम सब में होना चाहिए। जब ऐसा होगा, तभी हम बच्चों पर अपने विचार और सोच थोपने की बजाय उनके अनुसार सोचेंगे और उनके जीवन मूल्यों को भी तरजीह देंगे। निरंतर प्रक्रिया है सीखना अपने माता-पिता की उम्र तक आते-आते हम जीवन के कई सबक सीख चुके होते हैं। यह सबक हमें घर और बाहर दोनों ही वातावरण से मिलते हैं। जब हम किसी चीज को देखते हैं या जो अनुभव करते हैं, वो चीजें स्वाभाविक रूप से हमारे जेहन में बैठ जाती हैं। इस तरह हम सीखते जाते हैं। सीखने की हमारी प्रक्रिया सबसे ज्यादा माता-पिता, विशेषकर मां से जुड़ी होती है, क्योंकि उनके साथ हमारा ज्यादा समय गुजरता है। सीखने की यह प्रक्रिया पशुओं पर भी लागू होती है। लेकिन मनुष्य और पशु में जो सबसे बड़ा अंतर है वह यह कि मनुष्य अपने जीवन में आगे बढ़ने के बाद वापस पीछे मुड़कर देखते हैं और वापस आते हैं, अपने वृद्ध माता-पिता का हाथ पकड़ने के लिए। यह सब कुछ हम अपने पैरेंट्स से ही सीखते हैं। इस तरह देखा जाए तो सीखना एक निरंतर प्रक्रिया है, जिसे हम जीवन के अलग-अलग चरणों में सीखते हैं। बच्चे भी सिखा सकते हैं हमें बच्चों का पालन-पोषण, शिक्षा, दूसरों से संवाद करने की उनकी योग्यता और उनके व्यक्तित्व पर पड़ने वाले बाहरी प्रभाव, यह सभी हमको उम्र बढ़ने के साथ-साथ सुधार की ओर ले आते हैं। उसे आगे बढ़ने में मदद करते हैं। इसी क्रम में एक समय ऐसा भी आता है, जब माता-पिता अपने बच्चे से सीखते हैं। अपने बच्चों के साथ जीवन में आगे बढ़ते हैं। अपने बच्चे से भावनात्मक रूप से ज्यादा जुड़ाव होने के कारण, एक मां पिता की बनिस्पत अपने बच्चे के ज्यादा नजदीक होती है। असल में पिता हमेशा बच्चे को अनुशासित रखने के लिए चिंतित रहते हैं। यही वजह है कि हम अपने इर्द-गिर्द ऐसी मांओं को देखते हैं, जो अपने बच्चों के साथ न केवल अच्छे से संवाद करती हैं, बल्कि उनके साथ कंप्यूटर, आईपैड, स्मार्टफोन जैसी नवीनतम टेक्नोलॉजी का यूज भी करती हैं और उसमें भी निपुण हो जाती हैं। इसके ठीक उलट, एक पिता को अपने बढ़ते बच्चों से संवाद करने में मुश्किल पेश आती है। समय के साथ बदलाव जरूरी वे पैरेंट्स, जो जमाने के साथ चलते हैं और समाज के बदलते चलन के साथ खुद में बदलाव करते हैं, अपनी जानकारी में इजाफा करते हैं, वे अपने बच्चों के साथ बेहतर रिश्तों को निभा पाने में सक्षम होते हैं। ऐसे पैरेंट्स जो इस नए समाज से अपने आपको अलग रखते हैं, वे अपना समय का सही उपयोग नहीं कर रहे होते हैं। जो समय के साथ अपने में बदलाव नहीं करते, अपने में कुछ जोड़ते या घटाते नहीं हैं, वे बच्चों के साथ अपने बेहतर रिश्ते नहीं बना पाते। वे बढ़ते बच्चों के साथ तकनीक, मीडिया, नई तकनीक के साथ नहीं चल पाते। उनके लिए बच्चों के साथ अपने सहज रिश्ते बना पाना मुश्किल होता है। अगर आप चाहती हैं कि आप अपने बच्चों के करीब रहें, ताकि वे ज्यादा से ज्यादा अपना समय आपके साथ गुजारें, तो उनके कहे अनुसार खुद में थोड़ा बदलाव लाएं, जमाने के साथ चलें। इसके लिए जरूरी है कि आप अपनी रुचियों को हमेशा जिंदा रखें और गतिशील रहते हुए अपना जीवन गुजारें। अपने दोस्तों और अपनी हॉबीज के लिए समय निकालें। इससे आपको खुशी मिलेगी। बन जाएं बच्चों के दोस्त अपने बढ़ते बच्चों के साथ अच्छे रिश्ते बनाने के लिए यह जरूरी है कि आप उनके समकक्ष खड़े होने की योग्यता अपने भीतर पैदा करें। उनके टीचर न बनें बल्कि उनके दोस्त बनें। उनकी बातों और कामों को गलत-सही की तराजू में तोलने की बजाय उनके प्रति सहानुभूति रखें। उनकी आलोचना करने की जगह उन्हें उत्साहित करने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहें। इस बात को समझें और स्वीकार करें कि आपका कर्तव्य था उन्हें सिखाना और उन्हें अनुशासित करना। जिसका खाका आपने पहले से तैयार कर रखा है। अब यह समय आ चुका है, जब आपको दुबारा अपने बचपन में लौटकर जाना होगा और खुद बच्चे बनकर अपने बच्चों का दोस्त बनना होगा और उनके साथ नए सिरे से अपना रिश्ता बनाना होगा। जब आपको इस बात का अहसास हो जाएगा कि आपके बड़े बच्चे आपको सिखा सकते हैं, सिखाने का यह काम सिर्फ आप ही नहीं कर सकते तो इसका अर्थ यह है कि अब आप दोनों के बीच बेहतर रिश्ते बन सकते हैं। बेहतर रिश्ते वही होते हैं, जहां परिवार द्वारा एक दूसरे के साथ हिस्सेदारी की जाती है। जहां पैरेंट्स अपने बड़े होते बच्चों का सम्मान करते हैं … Read more

इंडस्ट्री रेडी दक्ष मानव संसाधन तैयार करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी रिश्ता योजना

भोपाल  उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा एवं आयुष मंत्री श्री इन्दर सिंह परमार ने कहा कि "रिश्ता" योजना न केवल युवाओं के कौशल को निखारने का माध्यम है, बल्कि प्रदेश एवं देश की अवसंरचना विकास यात्रा में उनके योगदान को सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास भी है। यह योजना, इंडस्ट्री रेडी दक्ष एवं प्रशिक्षित मानव संसाधन तैयार करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका सुनिश्चित करेगी। मंत्री श्री परमार ने रविवार को शुजालपुर स्थित मां शारदा सांदीपनि विद्यालय में, युवाओं को रोज़गारोन्मुखी कौशल प्रदान करने के उद्देश्य से आरंभ किए गए "रिश्ता (RISHTA : Recruiting Industries Supporting Holistic Training with Alignment)" योजना के पोस्टर का विमोचन किया। योजना का उद्देश्य : युवाओं को रोजगारपरक और व्यवहारिक प्रशिक्षण प्रदान करना “रिश्ता” योजना का पूरा नाम, "रिक्रूटिंग इंडस्ट्रीज सपोर्टिंग हॉलिस्टिक ट्रेनिंग विथ एलाइनमेंट" (RISHTA : Recruiting Industries Supporting Holistic Training with Alignment) है। यह योजना, युवाओं को रोज़गारोन्मुखी कौशल (Skill Development) देने के उद्देश्य से शुरू की गई है। रिश्ता योजना, एक उद्योग-आधारित कौशल विकास योजना है, जिसका उद्देश्य युवाओं को रोजगारपरक और व्यवहारिक प्रशिक्षण प्रदान करना है। इसका मुख्य लक्ष्य उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुके विद्यार्थियों को उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप प्रशिक्षित कर, उन्हें "हाईवे कंस्ट्रक्शन एवं इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर" में अवसर दिलाना है। यह योजना "एसजीएसआईटीएस, इंदौर" और "PATH India Ltd" के संयुक्त सहयोग से संचालित की जा रही है। इसके अंतर्गत "सिविल इंजीनियरिंग" छात्रों के लिए सर्वेइंग (Surveying) एवं , क्वॉलिटी एश्योरेंस/क्वॉलिटी कंट्रोल (Quality Assurance/Quality Control) (QA/QC) जैसे पाठ्यक्रम और "मैकेनिकल इंजीनियरिंग" छात्रों के लिए कंस्ट्रक्शन मैकेनिकल स्किल्स (Construction Mechanical Skills) पर केंद्रित प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा। प्रत्येक पाठ्यक्रम की अवधि 225 घंटे (75 दिन) होगी और कक्षाएँ शाम के समय आयोजित की जाएँगी, ताकि अधिक से अधिक विद्यार्थी इसमें सम्मिलित हो सकें। प्रशिक्षण पूर्ण करने वाले विद्यार्थियों को प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा। साथ ही उन्हें उद्योग में इंटर्नशिप, प्रायोगिक अनुभव और 50% से अधिक प्लेसमेंट सहायता भी उपलब्ध होगी। "रिश्ता योजना की मुख्य बातें, लाभ एवं प्रभाव" रिश्ता योजना के अंतर्गत विद्यार्थियों को तकनीकी, व्यावसायिक और उद्यमिता (Technical, Vocational & Entrepreneurship Training) प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। प्रशिक्षण के बाद युवाओं को उद्योगों, स्टार्टअप्स और सरकारी योजनाओं से जोड़ने की व्यवस्था रहती है। विद्यार्थियों को इंटर्नशिप, प्रोजेक्ट वर्क और प्रैक्टिकल लैब्स के अवसर मिलते हैं ताकि वे केवल सैद्धांतिक नहीं, बल्कि व्यावहारिक ज्ञान भी प्राप्त कर सकें। योजना में विशेष ध्यान ग्रामीण एवं वंचित वर्गों पर भी दिया गया है ताकि उन्हें भी समान अवसर मिल सकें।। इस योजना में विद्यार्थियों एवं युवाओं को, निःशुल्क या कम शुल्क पर प्रशिक्षण, प्रमाणपत्र और रोजगार के अवसर मिलते हैं। शैक्षणिक संस्थानों का, उद्योगों से जुड़ाव बढ़ता है और विद्यार्थियों की प्लेसमेंट दर सुधरती है। उद्योग जगत को, प्रशिक्षित एवं दक्ष मानव संसाधन मिलता है। बेरोज़गारी घटती है और आर्थिक प्रगति होती है, इससे समाज एवं देश को प्रत्यक्ष रूप से लाभ मिलता है। “रिश्ता योजना” का लाभ मुख्य रूप से युवाओं को है, लेकिन इसका सकारात्मक प्रभाव उद्योग, शिक्षा संस्थान और पूरे समाज पर पड़ता है। इस अवसर पर एसजीएसआईटीएस इंदौर के निदेशक डॉ. नितेश पुरोहित, आईआईटी इंदौर के प्रोफेसर डॉ. संतोष विश्वकर्मा, होलकर साइंस कॉलेज इंदौर के एचओडी डॉ प्रदीप शर्मा, जवाहरलाल नेहरू स्मृति शासकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय शुजालपुर के प्राचार्य डॉ. राजेश शर्मा, माँ शारदा सांदीपनि विद्यालय शुजालपुर के प्राचार्य डॉ. रजनीश त्रिवेदी एवं डॉ. शिवपाल मेवाड़ा सहित विभिन्न प्रशिक्षक, शिक्षकगण, विद्यार्थी, स्थानीय जनप्रतिनिधिगण एवं अन्य गणमान्य जन उपस्थित थे।