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मां बगलामुखी का पीला वस्त्र और सामग्री: इसका रहस्य और महत्व

हिंदू धर्म में, प्रत्येक देवी-देवता का एक विशेष रंग होता है, जो उनकी शक्ति और स्वरूप को दर्शाता है. लेकिन जब बात मां बगलामुखी की आती है, तो उनके जीवन और पूजा में पीले रंग का महत्व अतुलनीय हो जाता है. मां के वस्त्र से लेकर हर पूजा सामग्री तक, सब कुछ पीला होता है. उन्हें पीतांबरा देवी के नाम से भी जाना जाता है. देवभूमि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के बनखंडी में स्थित मां बगलामुखी का सिद्धपीठ, पीले रंग के इसी अद्भुत महत्व को दर्शाता है. यह एक ऐसा पवित्र स्थल है, जहां हर वर्ष देश-विदेश से भक्त अपने कष्टों के निवारण और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए आते हैं. आइए जानते हैं कि मां बगलामुखी और पीले रंग का यह गहरा संबंध क्यों है और इस रंग की महत्ता क्या है. मां बगलामुखी और पीले रंग का पौराणिक रहस्य मां बगलामुखी दस महाविद्याओं में से आठवीं हैं. उन्हें ‘स्तंभन शक्ति’ की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है, यानी वे अपने भक्तों के शत्रुओं की बुद्धि और बल को स्तम्भित (रोक) कर देती हैं. मां को पीला रंग अत्यंत प्रिय होने के पीछे मुख्य रूप से दो पौराणिक मान्यताएं हैं: उत्पत्ति का रहस्य: पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां बगलामुखी की उत्पत्ति हल्दी के रंग वाले जल से हुई थी. चूंकि हल्दी का रंग पीला होता है, इसलिए उन्हें पीताम्बरा देवी कहा गया और यह रंग उनकी पहचान बन गया. उनका संपूर्ण स्वरूप स्वर्ण के समान पीला और दिव्य है, जो समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक है. स्वरूप और शक्ति: पीला रंग ज्ञान, प्रकाश, दिव्यता और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. मां का यह स्वर्ण-सा पीला रंग न केवल उनके अलौकिक सौंदर्य को दर्शाता है, बल्कि उनकी शक्ति को भी प्रदर्शित करता है, जो भक्त को हर क्षेत्र में विजय दिलाती है. बनखंडी मंदिर में पीले रंग का महत्व हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में रानीताल-देहरा सड़क के किनारे बनखंडी में स्थित मां बगलामुखी का भव्य मंदिर देश के दो मुख्य सिद्ध शक्तिपीठों में से एक है. इस मंदिर की वास्तुकला और वातावरण में पीला रंग हर जगह दिखाई देता है: पीले वस्त्र और आभूषण: मंदिर में मां बगलामुखी पीले वस्त्र, पीले आभूषण और पीले पुष्पों की माला धारण करती हैं. पीली पूजा सामग्री: मां की पूजा में मुख्य रूप से पीले वस्त्र, हल्दी की माला, पीले फूल और पीले रंग के फल एवं मिठाई (नैवेद्य) का इस्तेमाल किया जाता है. पीले रंग के आसन और पंडाल: हवन और अनुष्ठान के लिए हवन कुंड से लेकर आसन और पंडाल तक, सब कुछ पीले रंग का ही रखा जाता है. पीले वस्त्र में साधक: मां की आराधना करने वाले साधकों को भी अनिवार्य रूप से पीले वस्त्र ही धारण करने चाहिए. यह नियम पूजा में एकाग्रता और शुभता बनाए रखने के लिए आवश्यक माना जाता है. पूजा से मिलती है सफलता और समृद्धि मां बगलामुखी की साधना शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने, कोर्ट-कचहरी के मामलों में सफलता पाने, व्यापार में वृद्धि और जीवन को निष्कंटक बनाने के लिए की जाती है. मां की पूजा-पाठ और मंत्र जप (जैसे “ॐ ह्लीं बगलामुखी नमः”) सच्चे मन से करने पर भक्त को कई विशेष लाभ मिलते हैं: शत्रु नाश: मां भक्तों के भय को दूर कर उनके शत्रुओं और उनकी बुरी शक्तियों का नाश करती हैं. यहाँ ‘शत्रुओं’ से आशय काम, क्रोध, लोभ, मद और मोह जैसे आंतरिक विकारों से भी है. अखंड सफलता: माता अपने भक्तों को विद्या, लक्ष्मी, यश, कीर्ति, ऐश्वर्य और संतान सुख प्रदान करती हैं. उनकी कृपा से भक्त जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है. हवन का विशेष महत्व: बनखंडी धाम में हवन का विशेष महत्व है. मान्यता है कि यहां किया गया हवन कभी निष्फल नहीं होता और माता भक्तों को 36 दिनों के भीतर ही फल प्रदान कर देती हैं. मां बगलामुखी का पीला रंग सिर्फ एक रंग नहीं है, बल्कि यह उनकी दिव्य शक्ति, शुभता और समृद्धि का प्रतीक है. यही कारण है कि इस सिद्धपीठ में हर वस्तु और हर विधान में पीले रंग को सबसे अधिक महत्व दिया जाता है.

कन्या पूजन 2025: अष्टमी और नवमी का सही समय और पूजा विधि

शारदीय नवरात्रि 2025 का पर्व 22 सितंबर से 2 अक्टूबर तक मनाया जाएगा. इस साल अष्टमी और नवमी तिथियों का विशेष संयोग बन रहा है, जो कन्या पूजन के लिए बेहद शुभ माना जाता है. इस पवित्र दिन का महत्व सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि घर में सुख, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिए भी है. जानिए इस साल कब और किस समय करें कन्याओं का पूजन, साथ ही पूजा की पूरी विधि और जरूरी टिप्स. अष्टमी और नवमी का शुभ मुहूर्त अष्टमी तिथि: 29 सितंबर शाम 4:31 बजे से 30 सितंबर शाम 6:06 बजे तक. नवमी तिथि: 30 सितंबर शाम 6:06 बजे से 1 अक्टूबर रात 7:01 बजे तक. कन्या पूजन का ब्रह्म मुहूर्त अष्टमी: सुबह 4:37 बजे से 5:25 बजे तक नवमी: सुबह 4:37 बजे से 5:26 बजे तक विशेषज्ञों के अनुसार, अष्टमी और नवमी के शुभ मुहूर्त में कन्या पूजन करने से माता दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त होती है. अष्टमी के दिन शक्ति का विशेष संचार होता है और नवमी के दिन विजयदशमी के साथ इसका फल और भी अधिक प्रभावशाली माना जाता है. कन्या पूजन की विधि और महत्व कन्या पूजन देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक है. घर में इस दिन कन्याओं का सम्मान करना केवल परंपरा नहीं बल्कि माता के प्रति श्रद्धा और भक्ति का वास्तविक रूप है. कन्याओं का स्वागत: घर में 9 कन्याओं को आमंत्रित करें और उनका हृदय से स्वागत करें. पैर धोकर सम्मान: कन्याओं के पैरों को धोकर साफ करें और चरणामृत ग्रहण करें. इसे करने से घर में पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा आती है. भोजन और प्रसाद: हलवा, चना, पूरी, मिठाइयां आदि परोसें. भोजन भले ही साधारण हो, लेकिन सच्चे मनोभाव से किया गया पूजन अत्यंत फलदायी होता है. दान करते समय शुभ मुहूर्त का ध्यान रखें. आरती और प्रार्थना: कन्याओं की आरती करें और माता दुर्गा से आशीर्वाद प्राप्त करें. यह घर में सुख, शांति और समृद्धि लाने का सबसे सरल उपाय है. क्यों है यह खास कन्या पूजन में नौ कन्याओं का पूजन, देवी के नौ रूपों की पूजा के समान माना जाता है. अष्टमीनवमी का पूजन न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि घर और परिवार के लिए सकारात्मक ऊर्जा और सौभाग्य का स्रोत भी है. विशेषज्ञों का कहना है कि अष्टमीनवमी के शुभ समय में किया गया पूजन बच्चों और कन्याओं के लिए भी आशीर्वाद लेकर आता है. पूजन का आध्यात्मिक महत्व अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन करने से माता दुर्गा के शक्ति-संपन्न रूप का आशीर्वाद मिलता है. यह विशेष दिन देवी की कृपा से घर में समृद्धि, शांति और खुशहाली लाता है. साथ ही यह परिवार में सद्भाव और आपसी प्रेम को भी बढ़ाता है. इस वर्ष 2930 सितंबर और 1 अक्टूबर को अष्टमीनवमी के शुभ मुहूर्त में कन्या पूजन करना अत्यंत फलदायी माना गया है, इस दिन कन्याओं का सम्मान, दान और आरती करने से माता दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और घर में सुखशांति और समृद्धि आती है. इस अवसर को अवश्य अपनाएं और माता की असीम कृपा का अनुभव करें.

पूजा में सफलता के लिए वास्तु के सही तरीके से जलाएं दीपक

पूजा-पाठ के दौरान दीपक जलाना काफी शुभ होता है, जिसके बिना पूजा अधूरी होती है। प्रत्येक देवी-देवता की पूजा में अलग-अलग तरह के दीपक जलाएं जाते हैं, जिससे साधक पर उनका आशीर्वाद बना रहता है। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि पूजा के दौरान दीपक जलाते समय आपको किन वास्तु नियमों का ध्यान रखना चाहिए। इस तरह जलाये दीपक वास्तु शास्त्र में माना गया है कि देवी-देवताओं के ठीक सामने दीपक नहीं जलाना चाहिए। आप इसे मूर्ति या चित्र के थोड़ा बाईं ओर करेक जला सकते हैं। इसके साथ ही देवी-देवताओं के बिल्कुल पास भी दीपक को नहीं रखना चाहिए, इसे थोड़ा-सा दूरी पर रखें। वास्तु शास्त्र में दीपक जलाने के लिए ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा को सबसे उत्तम माना गया है, क्योंकि इस दिशा में देवी-देवताओं का वास होता है। इसके साथ ही दीपक को भी दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर नहीं रखना चाहिए। पूजा के दौरान दीपक जलाते समय इस बात का भी जरूर ध्यान रखना चाहिए कि आपकी दीपक एकदम साफ हो। इसके साथ ही पूजा के दीपक को सीधा नीचे न रखें, इसके लिए पूजा थाली का इस्तेमाल करें। दीपक कहीं से भी खंडित नहीं होना चाहिए। इन सभी बातों का जरूर ध्यान रखना चाहिए, अन्यथा इससे आपको पूजा के अच्छे परिणाम नहीं मिलते। कर सकते हैं ये काम वास्तु शास्त्र में माना गया है कि आप मंदिर के साथ-साथ घर के कुछ खास स्थानों पर रोजाना दीपक जला सकते हैं। इससे सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और अच्छे परिणाम मिलते हैं। इसके लिए रोजाना शाम के समय घर के मुख्य द्वार और तुलसी के पास भी दीपक जरूर जलाना चािहए। इस बात का ध्यान रखें कि घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाते समय उसकी लौ उत्तर दिशा की ओर होनी चाहिए।  

छठे दिन की पूजा: मां कात्यायनी को अर्पित करें प्रिय भोग व पुष्प, जानें संपूर्ण विधि

शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व इस बार 9 नहीं बल्कि 10 दिनों तक धूमधाम से मनाया जाएगा। नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्रि का छठा दिन मां कात्यायनी को समर्पित है। मान्यता है कि नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा-अर्चना करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है और मनवांछित फल मिलता है। मां भगवती के इस स्वरूप को सफलता व यश का प्रतीक माना जाता है। जानें मां कात्यायनी का स्वरूप, प्रिय भोग, पुष्प, शुभ रंग, मंत्र, आरती व पूजा विधि। मां कात्यायनी का स्वरूप: मां कात्यायनी सिंह पर सवार हैं। मां की चार भुजाएं हैं। दो भुजाओं में मां भगवती कमल और तलवार धारण करती हैं। एक भुजा वर मुद्रा और दूसरा भुजा अभय मुद्रा में हैं। मां कात्यायनी पूजा विधि: सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा स्थल को साफ करें। अब मां दुर्गा की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं। इसके बाद मां को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें। मां भगवती को रोली, चंदन, कुमकुम, इलायची, श्रृंगार का सामान, फल व मिठाई अर्पित करें। मां कात्यायनी को शहद का भोग लगाएं। इसके बाद मां कात्यायनी के मंत्रों का जाप करें और उनकी आरती उतारें। मां कात्यायनी का प्रिय पुष्प: मान्यता है कि मां कात्यायनी को लाल रंग के पुष्प अतिप्रिय हैं। मान्यता है कि नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा को लाल गुलाब या लाल गुड़हल को अर्पित करने से साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मां कात्यायनी का भोग: मां कात्यायनी को शहद का भोग अतिप्रिय है। मान्यता है कि नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा को शहद का भोग लगाने से उनका आशीर्वाद मिलता है। इसके अलावा मां को मिठाई, हलवा, गुड़ या मीठे पान का भोग भी लगाया जा सकता है। नवरात्रि के छठे दिन का शुभ रंग: मां कात्यायनी को पीला रंग अतिप्रिय है। कहते हैं कि मां कात्यायनी की पूजा करते समय पीले रंग के वस्त्र धारण करना अत्यंत शुभ होता है। मां कात्यायनी मंत्र: मां कात्यायनी के मंत्र इस प्रकार हैं: मुख्य मंत्र: कात्यायनी महामाये, महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।। स्तुति के लिए मंत्र- या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।। मां कात्यायनी जी की आरती- जय जय अंबे जय कात्यायनी। जय जग माता जग की महारानी॥ बैजनाथ स्थान तुम्हारा। वहावर दाती नाम पुकारा॥ कई नाम है कई धाम है। यह स्थान भी तो सुखधाम है॥ हर मंदिर में ज्योत तुम्हारी। कही योगेश्वरी महिमा न्यारी॥ हर जगह उत्सव होते रहते। हर मंदिर में भगत है कहते॥ कत्यानी रक्षक काया की। ग्रंथि काटे मोह माया की॥ झूठे मोह से छुडाने वाली। अपना नाम जपाने वाली॥ बृहस्पतिवार को पूजा करिए। ध्यान कात्यानी का धरिये॥ हर संकट को दूर करेगी। भंडारे भरपूर करेगी॥ जो भी मां को भक्त पुकारे। कात्यायनी सब कष्ट निवारे॥