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किसानों के लिए खुशखबरी! MP में तीन जगह बनेंगे Oil Seed Hub, बढ़ेगी पैदावार

ग्वालियर प्रदेश में खेती को बढ़ावा देने के लिए लगातार नए प्रयोग किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में अब प्रदेश के तीन जिले ऑयल सीड हब बनने की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय से संबद्ध प्रदेश के तीन कृषि विज्ञान केन्द्रों में यह सीड हब स्थापित किए जाएंगे। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) ने इसके लिए साढ़े सात करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। ये हब अलीराजपुर, शिवपुरी और ग्वालियर में शुरू किए जाएंगे। फसलों के बीज तैयार किए जाएंगे सीड हब के जरिए किसानों को तिलहन फसलों के उन्नत बीज उपलब्ध कराए जाएंगे। यहां मूंगफली, सरसों, तिल और सोयाबीन जैसी प्रमुख तिलहन फसलों के बीज तैयार किए जाएंगे। यह कदम किसानों को बेहतर पैदावार के साथ-साथ अतिरिक्त कमाई का भी जरिया बनेगा। मूंगफली का बढ़ रहा रकबा पिछले कुछ वर्षों में मालवा क्षेत्र के अलावा चंबल के शिवपुरी इलाके में भी किसानों ने मूंगफली की खेती शुरू कर दी है। यहां मूंगफली का रकबा लगातार बढ़ रहा है, लेकिन मांग के अनुरूप बीज उपलब्ध नहीं हो पा रहे। किसानों को मिलेगा फायदा ऐसे में नई किस्मों की मूंगफली बीज उत्पादन की दिशा में यह सीड हब किसानों की बड़ी जरूरत पूरी करेगा। अलीराजपुर में तिल सीड हब और ग्वालियर में सोयाबीन, सरसों, तिल और मूंगफली सीड हब बनेगा। सीड हब से किसानों को समय पर और पर्याप्त मात्रा में गुणवत्तापूर्ण बीज मिलेंगे। इससे उनकी उपज बढ़ेगी और आय में भी इजाफा होगा। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यह पहल न केवल प्रदेश को तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाएगी, बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत करेगी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने आयल सीड हब बनाने के लिए राशि मंजूरी कर दी है। यह हब किसानों के लिए फायदेमंद साबित होंगे। उन्हें बाजार से बीज नहीं खरीदना पड़ेगा इससे उनकी लागत कम होगी।   

गरीब बच्चों की शिक्षा खतरे में, ग्वालियर के प्राइवेट स्कूलों को दो साल से नहीं मिला फंड

ग्वालियर आरटीई के तहत प्राइवेट स्कूलों में गरीब व वंचित वर्ग के बच्चों को नि:शुल्क प्रवेश दिया जाता है। इन छात्रों की फीस शासन की ओर से स्कूलों को दी जाती है। जिले के प्राइवेट स्कूलों को आरटीई की फीस प्रतिपूर्ति दो साल से नहीं मिली है। प्राइवेट स्कूलों का शासन के पास करीब 20 करोड़ की राशि अटकी हुई है। ऐसे में आगामी समय में आरटीई के तहत स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों पर असर पड़ सकता है। आरटीई के तहत हर प्राइवेट स्कूल को अपने स्कूल की पहली कक्षा में 25 प्रतिशत सीटों पर गरीब व वंचित वर्ग के छात्रों काे प्रवेश देना होता है। इन छात्रों की फीस शासन स्तर से सीधे स्कूलों को दी जाती है। सत्र 2023-24 की प्रक्रिया पूरी, खातों में नहीं पहुंची राशि जिला शिक्षा केंद्र से सत्र 2023-24 की आरटीई फीस की प्रतिपूर्ति के लिए 796 प्रपोजल बनाए गए और भुगतान के लिए राज्य शिक्षा केंद्र भोपाल भेजे गए हैं। इन प्रपोजल की राशि करीब 11 करोड़ है। लेकिन राज्य शिक्षा केंद्र से इस सत्र की फीस प्रतिपूर्ति स्कूलों के खातों में नहीं पहुंची है। सत्र 2024-25 के भुगतान के लिए प्रकिया धीमी आरटीई के तहत 2024.25 के लिए फीस की प्रतिपूर्ति के लिए प्रक्रिया तो चल रही है, लेकिन अभी तक प्रपोजल सत्यापित नहीं हो पाए हैं। इस साल के लिए भी करीब 10 करोड़ की राशि प्राइवेट स्कूलों को मिलना है। प्रस्तावों का सत्यापन करने के लिए नोडल अफसरों की नियुक्ति न होने की वजह से प्रक्रिया काफी धीमी चल रही है। जबकि अब सत्र 2025-26 भी शुरू हो चुका है।   किस तरह होती है प्रक्रिया? राज्य सरकार निजी स्कूलों को उस बच्चे की फीस का भुगतान करती है जो आरटीई के तहत प्रवेश लेता है। यह राशि या तो स्कूल द्वारा ली जाने वाली वास्तविक फीस होती है या सरकारी स्कूल में प्रति बच्चे होने वाला खर्च होता है, जो भी कम हो, वही स्कूल को दिया जाता है। इसके लिए स्कूलों को अपने यहां पढ़ने वाले बच्चाें की फीस प्राप्त करने के लिए प्रपोजल बनाकर जिला शिक्षा कार्यालय देना होता है। प्रपोजल आने के बाद नोडल अधिकारी या दूसरे शब्दों में क्षेत्र के बीआरसी इन प्रपोजलों का सत्यापन करते हैं। सत्यापन होने के बाद ही प्रपोजल राज्य शिक्षा केंद्र भेजे जाते हैं। लेकिन वर्तमान में स्कूलों के प्रपोजलों का सत्यापन ही नहीं हो पा रहा है। क्या कहते हैं स्कूल संचालक? प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष राजकरन सिंह भदौरिया का कहना है कि सरकार निजी स्कूलों से मान्यता या अन्य किसी चीज के लिए फीस जमा कराना हो तो करा लेती है और उसके लिए समय भी नहीं देती है। लेकिन जब स्कूलों को फीस प्रतिपूर्ति आदि देने की बात आती है तो ध्यान नहीं देती है। समय पर फीस प्रतिपूर्ति न होने से स्कूलों को आर्थिक समस्याओं से जूझना पड़ता है। इसका असर छात्रों की पढ़ाई की व्यवस्था पर भी पड़ता है। पंकज पाठक, एपीसी, जिला शिक्षा केंद्र, ग्वालियर ने बताया सत्र 2023-24 की प्रतिपूर्ति के लिए 796 प्रपोजल राज्य शिक्षा केंद्र को भेजे गए हैं। भुगतान राज्य शिक्षा केंद्र से ही स्कूलों के खातों में होना है। सत्र 2024-25 की फीस प्रतिपूर्ति के लिए प्रक्रिया चल रही है। 

नया टोल प्लाजा लॉन्च, रुकावट के बिना होगा सफर

नई दिल्ली  अगर आप टोल प्लाजा पर लंबे जाम से परेशान हैं, तो आपके लिए एक बड़ी खुशखबरी है। नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने देश का पहला 'मल्टी-लेन फ्री फ्लो' (MLFF) टोल सिस्टम शुरू करने का फैसला किया है। इसके तहत अब टोल प्लाजा पर आपको रुकने या बैरियर पर इंतजार करने की ज़रूरत नहीं होगी। देश का पहला टोल प्लाजा NHAI की इंडियन हाईवे मैनेजमेंट कंपनी लिमिटेड ने ICICI बैंक के साथ मिलकर एक समझौता किया है। इसके तहत गुजरात के NH-48 पर स्थित चोरयासी टोल प्लाजा देश का पहला ऐसा टोल प्लाजा बनेगा, जहाँ बिना किसी रुकावट के टोल वसूला जाएगा। इसके अलावा, हरियाणा के NH-44 पर घरौंडा टोल प्लाजा में भी यह सिस्टम लागू किया जाएगा। क्या है यह नया सिस्टम? मल्टी-लेन फ्री फ्लो (MLFF) सिस्टम एक ऐसी तकनीक है, जिसमें गाड़ी को टोल प्लाजा पर रुकने की ज़रूरत नहीं होती। हाई-टेक कैमरे: इस सिस्टम में खास तरह के RFID रीडर और ANPR कैमरे लगे होते हैं। ऑटोमैटिक टोल कलेक्शन: ये कैमरे आपकी गाड़ी के FASTag और रजिस्ट्रेशन नंबर को स्कैन करके अपने आप टोल काट लेते हैं। फायदे: इससे टोल प्लाजा पर लगने वाला जाम खत्म होगा, यात्रा का समय बचेगा, ईंधन की बचत होगी और प्रदूषण भी कम होगा। 25 टोल प्लाजा पर लागू होगी यह तकनीक NHAI ने बताया कि उनकी योजना है कि वित्त वर्ष 2025-26 में लगभग 25 टोल प्लाजा पर इस नई MLFF तकनीक को लागू किया जाएगा। NHAI के चेयरमैन संतोष कुमार यादव ने इस समझौते को भारत की टोलिंग व्यवस्था के आधुनिकीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम बताया है। उन्होंने कहा कि यह तकनीक टोल वसूली को और भी पारदर्शी और सुविधाजनक बनाएगी।  

एमपी के 3 जिलों में बनेंगे ऑयल सीड हब, उत्पादन और रोजगार को मिलेगी रफ्तार

ग्वालियर प्रदेश के तीन जिलों- अलीराजपुर, शिवपुरी और ग्वालियर में आयल सीड हब स्थापित किए जाएंगे। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने इसके लिए साढ़े सात करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। सीड हब के जरिये किसानों को तिलहनी फसलों के उन्नत बीज उपलब्ध कराए जाएंगे। यहां मूंगफली, सरसों, तिल और सोयाबीन जैसी प्रमुख तिलहन फसलों के बीज तैयार किए जाएंगे। यह कदम किसानों को बेहतर पैदावार के साथ-साथ अतिरिक्त कमाई का भी जरिया बनेगा। तीनों कृषि विज्ञान केंद्र राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं। मूंगफली का बढ़ रहा रकबा पिछले कुछ वर्षों में मालवा क्षेत्र के अलावा चंबल के शिवपुरी इलाके में किसानों ने मूंगफली की खेती शुरू कर दी है। यहां मूंगफली का रकबा लगातार बढ़ रहा है, लेकिन मांग के अनुरूप बीज उपलब्ध नहीं हो पा रहे। ऐसे में नई किस्मों की मूंगफली बीज उत्पादन की दिशा में यह सीड हब किसानों की बड़ी जरूरत पूरी करेगा।   अलीराजपुर में तिल सीड हब और ग्वालियर में सोयाबीन, सरसों, तिल और मूंगफली सीड हब बनेगा। किसानों को ऐसे मिलेगा फायदा-सीड हब से किसानों को समय पर और पर्याप्त मात्रा में गुणवत्तापूर्ण बीज मिलेंगे। इससे उनकी उपज बढ़ेगी और आय में भी इजाफा होगा। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यह पहल न केवल प्रदेश को तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाएगी, बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत करेगी।