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राजस्थान में सियासी हलचल, बिहार के स्टार प्रचारकों की घोषणा से मची खलबली

 जयपुर

बीजेपी ने बिहार विधानसभा चुनावों के लिए स्टार प्रचारकों की जो सूची जारी की है उसने राजस्थान की सियासत में हडकंप मचा दिया है। पार्टी ने गुरुवार शाम बिहार चुनावों के लिए 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित कई दिग्गजों को शामिल किया गया है। इस सूची में उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, असम और दिल्ली के मुख्यमंत्रियों को भी जगह दी गई है। लेकिन इस बार राजस्थान से किसी भी केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, पूर्व सीएम वसुंधरा राजे या वरिष्ठ नेता को स्टार प्रचारक नहीं बनाया गया, जिससे राजनीतिक हलकों में अटकलों का दौर शुरू हो गया है। प्रदेश में गुरुवार शाम से ही कयासों के दौर चल पड़े हैं क्या गुजरात पेटर्न पर राजस्थान में भी कुछ बड़ा बदलाव होने वाला है।

 क्यों अहम है राजस्थान की भागीदारी?
बिहार में राजस्थानी मूल के वोटर्स और व्यापारिक समुदाय का अच्छा खासा प्रभाव है। राज्य के हर बड़े शहर में मारवाड़ी व्यापारी समुदाय सक्रिय है। पूर्व में भाजपा राजस्थान के नेताओं को बिहार में प्रचार के लिए भेजती रही है। पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ सहित कई नेता पूर्व चुनावों में प्रचार में सक्रिय रहे हैं। वसुंधरा राजे को स्टार प्रचारकों में शामिल नहीं किए जाने को लेकर भी काफी चर्चाएं हैं। हालांकि राजे इन दिनों राजस्थान में पूरी तरह सक्रिय नजर आ रही हैं। वे न सिर्फ राजस्थान के दौरे कर रही हैं बल्कि सोशल मीडिया पर अपने कार्यकाल की योजनाओं का प्रचार भी कर रही हैं।

 स्टार प्रचारक नहीं, लेकिन ग्राउंड पर मौजूद हैं राजस्थानी नेता
हालांकि इस बार किसी नेता को स्टार प्रचारक नहीं बनाया गया है, लेकिन सूत्रों के अनुसार, राजस्थान बीजेपी के कई नेता और कार्यकर्ता बिहार में सक्रिय हैं। राजेंद्र राठौड़ सहित कई वरिष्ठ नेता पिछले दो हफ्तों से बिहार में चुनावी प्रचार, जनसंपर्क और संगठनात्मक काम में जुटे हुए हैं।

सियासी संकेत और अटकलें
राजस्थान को पूरी तरह नजरअंदाज किए जाने पर सियासी विश्लेषक इसे पार्टी के भीतर बदलते समीकरणों से जोड़ कर देख रहे हैं। कुछ इसे केंद्रीय राजनीति में राजस्थान नेताओं के कम होते प्रभाव की ओर भी इशारा मान रहे हैं। जबकि राजस्थान से कई वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री भाजपा के संगठनात्मक ढांचे में प्रभावी भूमिका निभाते हैं। अब देखना यह होगा कि चुनावी रणनीति में इस बदलाव के पीछे पार्टी का क्या तर्क सामने आता है और क्या राजस्थान की अनदेखी का कोई असर बिहार चुनाव में देखने को मिलेगा।

 

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