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वैवाहिक दूरी बनी तलाक की वजह, कोर्ट ने पत्नी के व्यवहार को माना अमानवीय

बिलासपुर

हाईकोर्ट ने शादी से जुड़े एक मामले में पति की तलाक की अर्जी को स्वीकार करते हुए पत्नी को 15 लाख रुपए स्थायी गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि बिना पर्याप्त कारण वैवाहिक जीवन से दूरी बनाना पति के प्रति क्रूरता की श्रेणी में आता है.

मामला कोरबा जिले के कटघोरा क्षेत्र का है, जहां रहने वाले दंपती 2011 से अलग रह रहे थे. कोर्ट ने पति की अपील स्वीकार करते हुए फैमिली कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया और पति को तलाक की डिक्री प्रदान की. मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की डिवीजन बेंच में हुई.

कोर्ट ने कहा कि पत्नी वर्षों से अलग रह रही है, और उसने पति व ससुराल पक्ष पर दहेज प्रताड़ना समेत कई मुकदमे दर्ज कराए थे. कोर्ट ने पत्नी और बेटी के भविष्य को देखते हुए पति को आदेश दिया कि वह 15 लाख रुपये का स्थायी गुजारा भत्ता अदा करे.

दरअसल, एसईसीएल में माइनिंग सरदार के पद पर कार्यरत युवक की शादी 11 फरवरी 2010 को हुई थी. कुछ समय बाद उनके घर बेटी ने जन्म लिया. इसके बाद दंपती के बीच विवाद बढ़ने लगे. पति का आरोप था कि पत्नी ने वैवाहिक दायित्व निभाने से इनकार कर दिया और परिवार से अलग रहने का दबाव बनाया. वहीं पत्नी ने आरोप लगाया कि लड़की होने पर ससुरालवालों का व्यवहार बदल गया और उन्होंने पांच लाख रुपये की मांग करते हुए उत्पीड़न शुरू कर दिया.

पत्नी ने पति और ससुरालवालों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना (498ए), घरेलू हिंसा और भरण-पोषण के मामले दर्ज कराए. उसने यह भी कहा कि पति और परिवार वालों ने मारपीट की और जान से मारने का प्रयास किया. वहीं पति ने पत्नी पर झूठे मामले दर्ज करने और कोर्ट परिसर में हमला करने तक के आरोप लगाए.

सेशन कोर्ट ने 2019 में पति और उनके परिवार को सभी आपराधिक आरोपों से बरी कर दिया. इसके बावजूद पत्नी अलग ही रही. पति ने 2015 में तलाक की अर्जी लगाई थी, लेकिन 2017 में कटघोरा फैमिली कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा था कि पत्नी की ओर से की गई कथित क्रूरता को पति साबित नहीं कर सका. इसके बाद पति ने हाईकोर्ट में अपील दायर की.

हाई कोर्ट में जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की डिवीजन बेंच में दोनों पक्षों ने दलील पेश की. कोर्ट ने कहा कि दंपति 2011 से अलग रह रहे हैं. पत्नी ने कई आपराधिक शिकायतें कीं, जिनसे पति को मानसिक यातना झेलनी पड़ी. अलग रहने का कोई वाजिब कारण पत्नी साबित नहीं कर सकी.

कोर्ट ने माना कि अब दोनों के बीच पुनर्मिलन की संभावना पूरी तरह खत्म हो चुकी है. इसके साथ ही कोर्ट ने पति को आदेश दिया कि वह छह माह के भीतर पत्नी को 15 लाख रुपए स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में अदा करे. इस फैसले के साथ ही 14 साल से लंबित यह विवादित रिश्ता कानूनी रूप से समाप्त हो गया.

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