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रणवीर-रैना को सुप्रीम कोर्ट की नसीहत, कहा- दूसरों की कीमत पर मत कमाओ

नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक लहजे में कहा है कि किसी को भी कमाई करने के मकसद से किसी का भी मजाक उड़ाने की आजादी नहीं दी सकती और उसे अभिव्यक्ति की आजादी के तहत संरक्षण नहीं दिया जा सकता है। कोर्ट ने इस मामले में तल्ख टिप्पणी की कि जब आप अपने भाषण का व्यवसायीकरण कर रहे हैं, तो आप इसके जरिए किसी समुदाय की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचा सकते। शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही कॉमेडिन समय रैना और अन्य हास्य कलाकारों को विकलांग व्यक्तियों का मज़ाक उड़ाने वाले चुटकुलों के लिए कड़ी फटकार लगाई।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ क्योर एसएमए फाउंडेशन ऑफ इंडिया की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी से प्रभावित मरीजों और परिवारों की मदद करता है। याचिका में विकलांग व्यक्तियों का मज़ाक उड़ाने वाले चुटकुलों की ओर अदालत का ध्यान आकृष्ट कराया गया था। अदालत ने जिन हास्य कलाकारों की आलोचना की है, उनमें समय रैना, विपुन गोयल, बलराज परमजीत सिंह घई, सोनाली ठक्कर और निशांत जगदीश तंवर शामिल हैं।

याचिका में आरोप लगाया गया था कि इन कॉमेडियन ने अपने शो में दिव्यांगों और दुर्लभ बीमारियों का मजाक उड़ाया है, जिससे पीड़ितों की भावनाएं आहत हुईं हैं। कोर्ट ने उन्हें दिव्यांगों (PwDs) और दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों का मजाक उड़ाने वाले असंवेदनशील चुटकुले सुनाने के लिए बिना शर्त माफी मांगने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि हर व्यक्ति की गरिमा की रक्षा की जानी चाहिए।
सद्बुद्धि की जीत हुई

इस याचिका को इंडियाज गॉट लेटेंट विवाद से जुड़े मामलों के साथ जोड़ दिया गया, जिसमें यूट्यूबर रणवीर इलाहाबादिया पर आरोप लगाए गए थे। फाउंडेशन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कहा कि "सद्बुद्धि की जीत हुई है" और सभी हास्य कलाकारों ने माफी मांग ली है। कोर्ट ने इन कलाकारों से कहा है कि वे अपने चैनल पर माफीनामा प्रसारित करें।

केंद्र को गाइडलाइंस बनाने का निर्देश

कोर्ट में सुनवाई के दौरान समय रैना समेत सभी कॉमेडियन मौजूद थे। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने अदालत को बताया कि सभी ने माफी मांग ली है।इस दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की, "मजाक जीवन का हिस्सा है और हम अपने ऊपर बने मजाक को स्वीकार कर सकते हैं लेकिन जब आप दूसरों का मजाक बनाना शुरू करते हैं, तो यह संवेदनशीलता का उल्लंघन है।" सुप्रीम कोर्ट ने उनसे यह भी पूछा है कि इस अमानवीय अपराध के लिए उन पर कितना जुर्माना लगाया जाना चाहिए? कोर्ट ने इस मामले में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को गाइडलाइंस बनाने का भी निर्देश दिया।

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