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लंबी कानूनी लड़ाई का नतीजा: डॉक्टर की कोशिशों के बाद FSSAI ने ORS प्रतिबंधित किया

हैदराबाद एक हैदराबाद की बाल रोग विशेषज्ञ की सालों लंबी जद्दोजहद ने आखिरकार मीठे पेयों की झूठी मार्केटिंग पर शिकंजा कस ही दिया। डॉ. शिवरांजनी संतोष की सतत कानूनी मुहिम के चलते भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने बड़ा कदम उठाया है। अब कोई भी फूड या ड्रिंक प्रोडक्ट तब तक ‘ORS’ (ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्ट्स) नाम का इस्तेमाल नहीं कर पाएगा, जब तक वह विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के तय मानकों पर खरा न उतरे। FSSAI का नया आदेश: ‘ORS’ नाम पर फुल स्टॉप FSSAI ने 14 अक्टूबर को आदेश जारी कर स्पष्ट किया कि अब किसी भी ब्रांड को ‘ORS’ शब्द का प्रयोग अपने उत्पादों के नाम में करने की अनुमति नहीं है, जब तक वह WHO द्वारा अनुशंसित फॉर्मूले के अनुसार न बना हो। इसके साथ ही 14 जुलाई 2022 और 2 फरवरी 2024 के वे पुराने आदेश भी रद्द कर दिए गए, जिनमें ब्रांड नाम के साथ ORS का प्रयोग कुछ शर्तों के साथ मान्य किया गया था। ‘डिस्क्लेमर’ भी अब काम का नहीं पहले कुछ कंपनियों को यह छूट दी गई थी कि वे अपने उत्पाद पर “यह WHO द्वारा अनुशंसित ORS फॉर्मूला नहीं है” जैसे डिस्क्लेमर के साथ ORS शब्द का प्रयोग कर सकती हैं। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। 15 अक्टूबर को FSSAI ने इस संबंध में स्पष्टीकरण जारी कर दो टूक कहा कि कोई भी फल-आधारित, गैर-कार्बोनेटेड या रेडी-टू-ड्रिंक पेय जिसमें WHO मानक न हो, वह ‘ORS’ नहीं कहलाया जा सकता।FSSAI ने ऐसे नामकरण को “गुमराह करने वाला, भ्रामक, झूठा और उपभोक्ताओं को धोखा देने वाला” करार दिया है, जो फूड सेफ्टी एक्ट 2006 के तहत गैरकानूनी है। WHO के अनुसार क्या है असली ORS? WHO के अनुसार मानक ORS में कुल 245 mOsm/L की ऑस्मोलैरिटी होनी चाहिए। इसमें प्रति लीटर पानी में होना चाहिए: सोडियम क्लोराइड: 2.6 ग्राम पोटैशियम क्लोराइड: 1.5 ग्राम सोडियम साइट्रेट: 2.9 ग्राम डेक्सट्रोज़ (चीनी): 13.5 ग्राम कंपनियों के ‘झूठे ORS’ में क्या है? कई नामी फार्मा कंपनियों के पेय जिनमें ORS लिखा होता है, उनमें चीनी की मात्रा करीब 120 ग्राम प्रति लीटर होती है – जो WHO मानक से लगभग 9 गुना अधिक है। इन पेयों में: सोडियम: 1.17 ग्राम पोटैशियम: 0.79 ग्राम क्लोराइड: 1.47 ग्राम यह मात्रा WHO के ORS मानकों से मेल नहीं खाती। ज़्यादा शक्कर बच्चों और बीमार व्यक्तियों के लिए और अधिक खतरनाक साबित हो सकती है। एक डॉक्टर की जिद ने बदला सिस्टम डॉ. शिवरांजनी संतोष ने लगभग 8 साल पहले इन झूठे दावों के खिलाफ आवाज़ उठानी शुरू की थी। 2022 में उन्होंने तेलंगाना हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की, जिसमें इन नकली ORS उत्पादों की बिक्री को चुनौती दी गई थी। उन्होंने यह मुद्दा उठाया कि कैसे बच्चे और उनके माता-पिता इन पेयों को सही ORS समझकर इस्तेमाल करते हैं, जबकि ये शरीर को फायदा पहुंचाने की बजाय नुकसान पहुंचाते हैं। “यह एक जंग थी” – डॉ. शिवरांजनी FSSAI के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए डॉ. शिवरांजनी ने कहा, “यह सिर्फ मेरी जीत नहीं है, यह लोगों की ताकत की जीत है — सभी डॉक्टरों, वकीलों, माताओं और जागरूक लोगों की। मैंने कभी हार नहीं मानी, और आज सिस्टम ने सुनी। यह 8 साल की जंग थी, जिसमें 3 साल PIL में, और कई साल सिस्टम की चुप्पी से लड़ने में लगे। लेकिन अब एक बदलाव आया है।”

घी की शुद्धता को लेकर मध्यप्रदेश में एक बड़ा कदम, अधिकारी द्वारा लिए जाएंगे सैंपल, ब्यूटाइरो-रिफ्रैक्टोमीटर से गुणवत्ता को परखा जाएगा

ग्वालियर  घी की शुद्धता को लेकर मध्यप्रदेश में एक बड़ा कदम उठाया गया है। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के निर्देश पर जुलाई माह में पूरे प्रदेश में घी की गुणवत्ता की जांच का विशेष अभियान चलाया जा रहा है। खास बात यह है कि यह सैंपल सीधे भोपाल और इंदौर की जांच प्रयोगशालाओं में भेजे जाएंगे। हर जिले से लिए जाएंगे पैक्ड और लूज घी के सैंपल प्रदेश के हर जिले में खाद्य सुरक्षा अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे बाजार में बिक रहे घी के सैंपल लें। हर अधिकारी को कुल 5 सैंपल लेने हैं, जिनमें से दो पैक्ड घी यानी ब्रांडेड कंपनियों के और तीन लूज (बिना ब्रांड वाले) घी के होंगे। इन सैंपलों को भोपाल की CES लैब और इंदौर की चौकसी लैब में परीक्षण के लिए भेजा जाएगा। घी की जांच के लिए ब्यूटाइरो-रिफ्रैक्टोमीटर तकनीक का उपयोग किया जाएगा, जिससे यह पता लगाया जाएगा कि उसमें रिफाइंड ऑयल, पाम ऑयल या किसी अन्य सस्ती सामग्री की मिलावट तो नहीं की गई है। ग्वालियर-चंबल संभाग नकली घी के लिए बदनाम ग्वालियर-चंबल अंचल नकली घी, मावा और पनीर जैसी खाद्य सामग्रियों में मिलावट के लिए कुख्यात है। भिंड, मुरैना जैसे जिलों में सक्रिय मिलावट माफिया ना सिर्फ प्रदेश बल्कि उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे पड़ोसी राज्यों में भी माल सप्लाई करता है। त्योहारों के मौसम में यह मिलावट चरम पर होती है, जिससे आमजन की सेहत पर गंभीर खतरा मंडराता है। इसके बावजूद ग्वालियर में प्रस्तावित फूड टेस्टिंग लैब अब तक शुरू नहीं हो पाई है। ग्वालियर में अब तक शुरू नहीं हो सकी लैब ग्वालियर के हुरावली इलाके में फूड लैब के लिए 2019 में भूमिपूजन किया गया था। लेकिन छह साल बीतने के बाद भी यह प्रयोगशाला शुरू नहीं हो सकी है। अब जबकि ढाई करोड़ रुपये की स्वीकृति मिल गई है, उम्मीद जताई जा रही है कि लैब जल्द शुरू होगी और अंचल के जिलों को भोपाल या इंदौर पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। जुलाई भर चलेगा घी की जांच का अभियान ग्वालियर के खाद्य सुरक्षा अधिकारी सतीश कुमार शर्मा ने बताया कि यह अभियान पूरे जुलाई माह तक चलेगा। सैंपलिंग के बाद जैसे ही लैब रिपोर्ट आएगी, एफएसएसएआइ गुणवत्ता मानकों के आधार पर कार्रवाई करेगा। जिन घी उत्पादकों में मिलावट पाई जाएगी, उनके खिलाफ सख्त कानूनी कदम उठाए जाएंगे।