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गबन या व्यवस्थापन की कमी? 31 करोड़ खर्च के बावजूद पौधरोपण फेल, हरियाली रह गई सपनों में

दौसा दौसा जिले को हरा-भरा बनाने के लिए सरकार ने जो महत्त्वाकांक्षी पौधशाला योजना शुरू की थी, वह जिले में असफल साबित होती नजर आ रही है। योजना पर करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद जिले की कई ग्राम पंचायतों में पौधशालाएं बनी ही नहीं, और जहां बनीं भी वहां देखभाल के अभाव में पौधे सूख गए। पंचायती राज विभाग ने महात्मा गांधी नरेगा योजना के तहत जिले की 261 ग्राम पंचायतों में पौधशाला व नर्सरी विकसित करने का लक्ष्य रखा गया था। इन पंचायतों को 31 करोड़ रुपए की स्वीकृति दी गई। योजना का उद्देश्य था कि हर ग्राम पंचायत मुख्यालय पर दो हजार पौधे तैयार हों और अगले पांच साल में हरियाली का ऐसा जाल बिछे कि जिले का चेहरा बदल जाए। लेकिन परिणाम करोड़ों खर्च होने के बाद भी उम्मीदों के विपरीत नजर आ रहे हैं। शुरुआत से ही कमजोर रही योजना योजना की शुरुआत में ही कई कमियां नजर आईं। जिन पंचायतों को बजट मिला, उनमें से अधिकांश ने न तो जगह का सही चयन किया और न ही पानी की व्यवस्था। कुछ पंचायतों ने खेतों के बीच या सुनसान मैदानों में पौधशालाएं बना दीं, जहां न बाड़बंदी थी और न ही कोई देखभाल करने वाला। लवान पंचायत समिति की कवरपूरा, हिगोटिया, दौसा की सूरजपुरा ग्राम पंचायत में बजट स्वीकृति के बाद भी पौधशाला तक तैयार नहीं की। वहीं सिगवाड़ा ग्राम पंचायत में तो हाल और भी खराब रहे। यहां पौधशाला तो बनाई गई, लेकिन देखभाल के अभाव में पौधे सूख गए। हालात इतने बिगड़े कि कई जगह पौधों के ढेर ही जला दिए गए। ग्रामीणों का कहना है कि अगर शुरुआती समय में देखभाल और सिंचाई की व्यवस्था होती तो हजारों पौधे आज हरे-भरे होते। सिंगवाड़ा ग्राम पंचायत की पौधशाला पर लाखों खर्च होने के बाद भी कागजों पर ही हरी-भरी दिख रही है। वास्तविकता यह है कि वहां आज सिर्फ 2000 पौधों की जगह मात्र 100-200 पौधे ही दिखाई दे रहे हैं। पौधशाला का पूरा परिसर वीरान पड़ा है। ग्रामीणों के अनुसार शुरुआती बरसात में पौधे लगाए तो गए थे, लेकिन बाद में किसी ने ध्यान नहीं दिया। न तो पानी का इंतजाम हुआ और न ही देखभाल की गई। निगरानी का तंत्र भी नाकाम जिले में इस योजना की निगरानी के लिए ग्राम विकास अधिकारी से लेकर अधीक्षण अभियंता तक को नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है। काम की समीक्षा के लिए प्लांटेशन आईडी तक बनाकर ट्रैकिंग सिस्टम बनाया गया। लेकिन यह पूरा तंत्र केवल कागजों तक सीमित रहा। पंचायतों को बजट मिला, काम का रिकॉर्ड तैयार हुआ, लेकिन स्थलीय निरीक्षण और देखभाल में लापरवाही होती रही। क्या कहा जिम्मेदारों ने विकास अधिकारी लवान का कहना है कि हाँ, सिगवाड़ा ग्राम पंचायत में पोधारोपण तो कराया था, लेकिन पौधे पानी में डूब गए जिसके चलते पौधे गल गए, इसलिए पौधे जीवित नहीं हैं। वहीं दौसा जिला परिषद के अधिशाषी अभियंता सीताराम मीणा ने बताया कि ग्राम पंचायतों में पौधशालाएं स्थापित की गई थीं, लेकिन उनकी वर्तमान में कुछ पौधे की बढ़िया नहीं है। उनका यह बयान साफ बताता है कि मॉनिटरिंग व्यवस्था कितनी लचर रही। सूख गए पौधे, गांव के लोग मायूस योजना की विफलता का असर सीधे गांवों पर पड़ा। गांवों के लोगों ने उम्मीद की थी कि पौधशालाओं से उन्हें औषधीय और फलदार पौधे आसानी से मिलेंगे। लेकिन ज्यादातर पंचायतों में सूखे पौधों और खाली गड्ढों के अलावा कुछ नहीं बचा। सूरजपुरा ग्राम पंचायत के ग्रामीणों का कहना है कि सरकार ने बड़े-बड़े दावे किए थे, लेकिन ग्राम पंचायत में लाखों खर्च दर्शाने के बाद भी पौधरोपण तक नहीं हुआ। सरपंच सविता मीणा का कहना है कि पौधरोपण के लिए गड्डे खुदवा दिए गए थे और लाखों रूपये खर्च कर पौधों की सुरक्षा के लिए तारबंदी करवा दी गई थी, लेकिन दौसा वीडियो ने पौधरोपण नहीं करने दिया। इसके चलते पौधशाला में दो हजार पौधे तैयार होने थे, लेकिन एक भी पौधा नहीं लगा। अब वहां खाली गड्डे ही नजर आ रहे हैं। गांव की महिलाओं ने बताया कि बच्चों के लिए फलदार पौधे लगाने का सपना अधूरा रह गया। हिगोटिया पंचायत के लोग भी मायूस हैं। उनका कहना है कि जिस जगह पौधशाला बनाई गई थी, वहां आज खरपतवार और झाड़ियां उग आई हैं। न पौधे हैं, न पानी की टंकी और न ही कोई चौकीदार। शुरुआत में मजदूरों से गड्ढे खुदवाए गए, पौधे लगाए गए, फोटो खिंचवाई गई और फिर सब कुछ ठप हो गया। बीज बैंक का वादा भी अधूरा योजना का एक अहम हिस्सा था, ग्राम पंचायत स्तर पर बीज बैंक बनाना। ग्रामीणों से कहा गया था कि वे आम, जामुन, पपीता जैसे फलों के बीज दान करें और उनसे पौधे तैयार हों। लेकिन जिले में एक भी पंचायत में यह बीज बैंक धरातल पर नहीं बन पाया। ग्रामीण बताते हैं कि बीज बैंक का नाम तो कई बार सुना, लेकिन कभी किसी को बीज जमा कराते नहीं देखा। जली हुई टहनियां और खाली थेलियां सूखी हुई टहनियां और खाली गड्डे पंचायत में पौधशाला योजना की असफलता की गवाही हैं। पैसे खर्च, पर काम अधूरा. प्रत्येक पंचायत को लाखों रुपए का बजट दिया गया था। शर्त यह थी कि पौधे कम से कम तीन साल तक सुरक्षित रहें। लेकिन जब जगह का सही चयन, पानी की आपूर्ति और सुरक्षा व्यवस्था ही नहीं हो पाई, तो बजट का फायदा जमीन पर दिखाई नहीं दिया। पंचायतों में बजट का उपयोग गड्ढे खुदवाने, पौधे खरीदने और नर्सरी बैग भरने तक ही सिमट गया। बाद की देखभाल के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई। नतीजतन, पौधशालाएं शुरू होते ही सूख गईं। हरियाली का सपना अधूरा जिले के लिए हरियाली केवल सुंदरता नहीं बल्कि जीवन का आधार है। खेती, पशुपालन और पर्यावरण संतुलन सब कुछ हरियाली पर टिका है। पौधशाला योजना का उद्देश्य था कि गांव आत्मनिर्भर हों और पौधों की कमी कभी न हो। लेकिन करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद यह सपना अधूरा रह गया।

नया टीएंडसीपी नियम: अब कॉलोनी प्लानिंग में खुला क्षेत्र छोड़ना अनिवार्य

भोपाल   भोपाल शहर की हरियाली अब और बढ़ेगी। मप्र भूमि विकास अधिनियम और कालोनी विकास की शर्तो में संशोधन के बाद ऐसा हो सकेगा। टीएंडसीपी ने शहर में ग्रीन कॉलोनी बनाने के लिए नए नियम जारी किए जा रहे हैं। अब नयी कॉलोनियों के कुल क्षेत्रफल का दस फीसदी ग्रीन व खुला स्पेस रखना होगा। यानी दस हेक्टेयर की कॉलोनी है तो वहां एक हेक्टेयर क्षेत्रफल सिर्फ पार्क व मैदान के तौर पर होगा। इसके लिए नई पॉलिसी में प्रावधान किए जा रहे हैं। अक्टूबर में ये पॉलिसी लागू होगी। कोई भी डेवलपर सिर्फ मकान, सड़क बनाकर काम पूरा नहीं कर पाएगा। कॉलोनी विकास की अनुमति देते समय ही ग्रीन एरिया का क्षेत्रफल आरक्षित करने का प्रावधान किया गया है। यह नियम 10 हेक्टेयर की कॉलोनी में लागू किया जाएगा। – श्रीकांत बानोट, संचालक टीएंडसीपी ऐसे समझें नए नियम -10 से 40 हेक्टेयर की कॉलोनी है तो 60 फीसदी विकसित किया जा सकेगा। -60 फीसदी विकसित किए जाने वाले क्षेत्र का 80 फीसदी आवासीय विक्रय होगा। -20 फीसदी वर्क सेंटर यानि दुकानों के तौर पर विक्रय किया जाएगा। -10 फीसदी कुल क्षेत्र का कम से कम पार्क व खुला क्षेत्र रखना होगा। -25 फीसदी क्षेत्र वनीकरण के तौर पर यानी छायादार पेड़ लगाने होंगे। -5 फीसदी क्षेत्र में सामाजिक अधोसंरचनाएं विकसित करनी होंगी। -15 फीसदी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आवासीय इकाईयों में आरक्षित होंगी। शहर में अभी यह स्थिति इस समय राजधानी में 1200 से अधिक कॉलोनियां ऐसी हैं, जिनमें लोगों को खुला क्षेत्र नहीं दिया गया है। गुलमोहर में ही 30 से अधिक ऐसी कॉलोनियां हैं। कोलार में सबसे अधिक परेशानी है। यहां 600 से अधिक कॉलोनियों में पार्क और खुला क्षेत्र नहीं है। बच्चों को पार्क के लिए स्वर्ण जयंती या फिर शाहपुरा जाना पड़ता है।

राज्य की हरियाली संवारने में अहम भूमिका निभा रही हैं जीविका दीदियां

-2019 में शुरू जल-जीवन-हरियाली अभियान को दीदियों ने दिया जनांदोलन का रूप – ग्रामीण अर्थव्यवस्था और पर्यावरण संरक्षण दोनों को मिल रही मजबूती पटना, बिहार में सामाजिक परिवर्तन की अग्रदूत बनीं जीविका दीदियां, जिन्होंने शराबबंदी, दहेज प्रथा और बाल-विवाह जैसी बुराइयों के खिलाफ जागरूकता फैलाकर गांव-गांव में नई सोच जगाई है, अब पर्यावरण बचाने की मुहिम में भी सक्रिय हो गई हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा वर्ष 2019 में आरंभ किया गया जल-जीवन-हरियाली अभियान आज पूरे राज्य में जनांदोलन के रूप में खड़ा है। इस अभियान को सफल बनाने में जीविका दीदियों ने हरित जीविका-हरित बिहार कार्यक्रम के अंतर्गत करोड़ों पौधे लगाकर पर्यावरण संरक्षण की ऐतिहासिक पहल की है। चार करोड़ से ज्यादा पौधे लगाए राज्य के ग्यारह लाख से अधिक स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी एक करोड़ चालीस लाख से अधिक दीदियों ने अब तक चार करोड़ से ज्यादा पौधे लगाए हैं। पौधों की लगातार बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए दीदी की नर्सरी की शुरुआत की गई। आज जीविका दीदियों द्वारा संचालित नर्सरियों के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था, पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ महिलाओं की श्रम भागीदारी को बढ़ाने की दिशा में भी नेतृत्व का कार्य कर रही हैं। 987 दीदी की नर्सरी संचालित जीविका, मनरेगा और वन एवं पर्यावरण विभाग के सहयोग से पूरे राज्य में अब तक 987 दीदी की नर्सरियां संचालित हो चुकी हैं। इनमें 677 नर्सरियां जीविका व मनरेगा की साझेदारी से और 310 नर्सरियां वन विभाग के सहयोग से चल रही हैं। गौर करने वाली बात है कि 2019-20 में इनकी संख्या मात्र 350 थी, जो पांच साल में करीब तीन गुना बढ़ गई है। लाखों पौधों की आपूर्ति और करोड़ों की आय दीदी की नर्सरी से विभिन्न प्रजातियों के औसतन 20 हजार पौधे उपलब्ध कराए जाते हैं। हर वर्ष जून से अक्टूबर के बीच बड़े पैमाने पर पौधों का वृक्षारोपण होता है। वर्तमान में नर्सरियों में तीन फीट से अधिक ऊंचाई वाले 68 लाख 80 हजार पौधे और तीन फीट से कम ऊंचाई वाले एक करोड़ 19 लाख 48 हजार से अधिक पौधे उपलब्ध हैं। वित्तीय वर्ष 2024-25 में कुल 95.32 लाख पौधों की बिक्री से 18.27 करोड़ रुपये की आय हुई थी।अबतक कुल 67 करोड़ रुपये की आमदनी नर्सरी संचालक दीदियों को हुई है। 97 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य वित्तीय वर्ष 2024-25 में हरित जीविका-हरित बिहार अभियान के तहत 82 लाख पौधे लगाए गए। वहीं, वर्ष 2025-26 के लिए जीविका दीदियों ने 97 लाख पौधारोपण का लक्ष्य तय किया है। जून माह से चल रहे अभियान में अब तक 23 लाख से अधिक पौधे लगाए भी जा चुके हैं। गौरतलब है कि जीविका दीदियों के प्रयास से न केवल बिहार का पर्यावरण और हरियाली बढ़ रही है, बल्कि ग्रामीण महिलाओं की सतत आजीविका भी सुदृढ़ हो रही है। जल-जीवन-हरियाली अभियान के साथ अब बिहार की महिलाएं पर्यावरण संरक्षण की सबसे बड़ी भागीदार बन चुकी हैं।