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MP में स्वास्थ्य लापरवाही का मामला, NHRC ने नवजात मौत पर भेजा नोटिस

भोपाल  राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने मध्य प्रदेश के एक अस्पताल के अंदर ‘चूहों के हमले’ के कारण एक नवजात शिशु की मौत के मामले को गंभीरता से लिया है। एनएचआरसी ने इस बारे में मिली शिकायत पर संज्ञान लेते हुए राज्य के स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव और इंदौर के जिलाधिकारी को नोटिस जारी किया है। अधिकारियों ने बताया कि शिकायत में आरोप लगाया गया है कि मध्य प्रदेश के एक अस्पताल के अंदर ‘चूहों के हमले’ के कारण एक नवजात शिशु की मौत हो गई और अन्य घायल हो गए। एनएचआरसी के अनुसार, कथित घटना से संबंधित शिकायत के बाद आयोग ने 4 सितंबर को मामला दर्ज किया था। एनएचआरसी ने अपने नोटिस में अधिकारियों को निर्देश दिया है कि शिकायत में लगाए गए आरोपों की जांच कर 10 दिनों के भीतर ऐक्शन टेकन रिपोर्ट पेश करने को कहा है। मामले की कार्यवाही के अनुसार शिकायत का शीर्षक ‘न्याय तक पहुंच के लिए नेटवर्क’ है। कार्यवाही में कहा गया है, ‘‘आयोग को प्राप्त शिकायत के अनुसार शिकायतकर्ता ने इंदौर के एमवाय अस्पताल में हुई एक बेहद हैरान और परेशान करने वाली घटना की सूचना दी है, जहां अस्पताल परिसर के अंदर चूहों के हमले के कारण एक नवजात शिशु की मृत्यु हो गई और अन्य घायल हो गए।’’ इसके अलावा, हाल में सरकारी महाराजा यशवंतराव अस्पताल के आईसीयू में चूहों के काटने से दो नवजात बच्चियों की मौत की खबर भी मिली है। अधिकारियों ने बताया कि शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि यह भयावह घटना घोर चिकित्सा लापरवाही और बुनियादी स्वच्छता एवं रोगी सुरक्षा सुनिश्चित करने में पूर्ण विफलता को उजागर करती है। कार्यवाही में कहा गया है कि इस तरह की ‘चूक’ न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा में नागरिकों के विश्वास का उल्लंघन करती है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वास्थ्य के अधिकार का भी गंभीर उल्लंघन है। शिकायत में यह भी कहा गया है कि राज्य भर के सरकारी अस्पतालों में स्वच्छता, कीट नियंत्रण और समग्र सुरक्षा मानकों में सुधार के लिए तत्काल उपाय किए जाने चाहिए। एनएचआरसी ने कहा कि शिकायत में लगाए गए आरोप प्रथमदृष्टया पीड़ितों के मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन प्रतीत होते हैं। कार्यवाही में कहा गया है, ‘‘रजिस्ट्री को निर्देश दिया जाता है कि वह प्रमुख सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, मध्य प्रदेश सरकार, भोपाल और इंदौर के डीएम को नोटिस जारी करके शिकायत में लगाए गए आरोपों की जांच करवाएं और आयोग के अवलोकन के लिए 10 दिनों के भीतर एक ऐक्शन टेकन रिपोर्ट पेश करें।’’

CMHO की सख्ती: हथाईखेड़ा अस्पताल के 25 स्वास्थ्यकर्मियों पर गिरी गाज, कारण बताओ नोटिस भेजा

भोपाल  राजधानी के सिविल अस्पताल हथाईखेड़ा में लापरवाही और अनुशासनहीनता का गंभीर मामला सामने आया है। जिला स्वास्थ्य विभाग द्वारा 1 अगस्त 2025 को कराए गए आकस्मिक निरीक्षण में अस्पताल के 25 स्वास्थ्यकर्मी अपनी ड्यूटी से अनुपस्थित पाए गए। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी भोपाल मनीष शर्मा ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सभी अनुपस्थित कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है और 3 कार्यदिवस के भीतर स्पष्टिकरण मांगा है। जवाब नहीं मिलने की स्थिति में अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी गई है। डॉक्टर्स से लेकर टेक्नीशियन तक शामिल प्राप्त जानकारी के अनुसार, सुबह 9:45 बजे तक अस्पताल में कोई नर्सिंग स्टाफ या डॉक्टर मौजूद नहीं था, जिससे मरीजों को तत्काल स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भटकना पड़ा। अनुपस्थित पाए गए कर्मचारियों में वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारियों से लेकर तकनीकी स्टाफ तक शामिल हैं। अनुपस्थित पाए गए प्रमुख स्वास्थ्यकर्मी: चिकित्सा अधिकारी 1. डॉ. योगेश सिंह कुरव 2. डॉ. सुनन्दा जैन 3. डॉ. अब्दुल हाफीज 4. डॉ. मनीष मुकाती 5. डॉ. दानिष पटेल 6. डॉ. दयाशंकर त्रिमूर्ति 7. डॉ. भावना मालवीया 8. डॉ. हर्षिता शर्मा 9. डॉ. सुरती शर्मा नर्सिंग ऑफिसर  10. संध्या नारीया 11.  रजनी मोवाडे 12. भाग्यश्री फाटेगाओंकर 13. मोनीका बोबड़े 14.  मेघा सोनी 15.  लीना जाटव 16.  रेखा गुप्ता 17. श्रष्टि खसदेव (प्रशिक्षक) 18.मीना वाडकेले 19. पायल भास्कर और ये भी पढ़े     फार्मासिस्ट और तकनीकी स्टाफ 20.ममता माजोका 21. ललीता साह 22. एन.एन. वर्मा 23. ज्ञान सिंह बोरेला (लैब टेक्नीशियन) 24. लोकेश जैन (लैब टेक्नीशियन) 25. जयदीप माजोका (एक्स-रे टेक्नीशियन) नोटिस में कहा गया है कि इन कर्मचारियों की समय पर गैर-मौजूदगी से मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल सका, जो कि सेवा अनुशासन और नैतिक जिम्मेदारी का उल्लंघन है। CMHO ने स्पष्ट किया है कि आपकी अनुपस्थिति से हितग्राहियों को स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित होना पड़ा है। यह घोर लापरवाही है। 3 दिन के भीतर जवाब दें, अन्यथा कार्रवाई की जाएगी। जिला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के अनुसार, यह निरीक्षण भविष्य में भी जारी रहेंगे ताकि समयपालन, जिम्मेदारी और मरीजों को गुणवत्ता वाली सेवा सुनिश्चित की जा सके।  

भर्ती के बाद मरीजों की सुध नहीं, हाई कोर्ट ने निजी अस्पतालों को बताया ‘ATM मशीन चलाने वाला

 इलाहाबाद निजी अस्पताल मरीजों का एटीएम की तरह इस्तेमाल करते हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक केस की सुनवाई के दौरान गुरुवार को यह टिप्पणी की। अदालत ने लापरवाही के एक मामले में डॉक्टर के खिलाफ आपराधिक केस हटाने की मांग को खारिज करते हुए यह बात कही। जस्टिस प्रशांत कुमार की बेंच ने पाया कि डॉ. अशोक कुमार ने एक गर्भवती महिला को सर्जरी के लिए एडमिट कर लिया था, जबकि उनके पास एनेस्थिटिस्ट की कमी थी। वह काफी देर से पहुंचा और तब तक गर्भ में पल रहे भ्रूण की मौत हो गई थी। अदालत ने कहा कि यह सामान्य हो गया है कि अस्पताल पहले मरीजों को भर्ती कर लेते हैं और फिर संबंधित डॉक्टर को बुलाया जाता है। अदालत ने कहा, 'यह एक सामान्य प्रैक्टिस देखी जा रही है कि निजी अस्पताल मरीजों को इलाज के लिए एडमिट कर लेते हैं। भले ही उनके पास संबंधित बीमारी के इलाज के लिए डॉक्टर न हो। मरीजों को भर्ती करने के बाद ही ये डॉक्टर को कॉल करते हैं। एक बार मरीज को एडमिट करने के बाद ये लोग डॉक्टरों को कॉल करना शुरू करते हैं। यह सामान्य धारणा बन गई है कि निजी अस्पतालों की ओर से मरीजों का इस्तेमाल एक एटीएम की तरह किया जाता है, जिनसे पैसों की उगाही होती है।' बेंच ने कहा कि ऐसे मेडिकल प्रोफेशनल्स को संरक्षण मिलना ही चाहिए, जो पूरी गंभीरता के साथ काम करते हैं। अदालत ने कहा कि ऐसे लोगों पर ऐक्शन जरूरी है, जो बिना पर्याप्त सुविधा के ही अस्पताल खोल लेते हैं। ऐसा सिर्फ इसलिए ताकि वे मरीजों से मनमाने पैसे कमा सकें। अदालत ने सुनवाई के दौरान डॉक्टर के उस दावे को खारिज कर दिया कि उस समय महिला के परिजन ऑपरेशन के लिए तैयार ही नहीं थे। बेंच ने कहा कि यह मामला पूरी तरह से लापरवाही और अवैध कमाई करने का है। अदालत ने कहा कि डॉक्टर ने महिला को एडमिट कर लिया। परिवार से यह मंजूरी मिल गई कि ऑपरेशन किया जाए, लेकिन उसे टाला जाता रहा क्योंकि सर्जरी के लिए डॉक्टर ही उपलब्ध नहीं था। परिजनों से परमिशन के बाद भी ऑपरेशन में हुई लेट, क्योंकि डॉक्टर नहीं था बेंच ने कहा कि डॉक्टर ने ऑपरेशन के लिए 12 बजे अनुमति ले ली थी। इसके बाद भी सर्जरी नहीं हो सकी क्योंकि असप्ताल में डॉक्टर ही नहीं था। अदालत ने कहा कि एक डॉक्टर का संरक्षण उसी स्थिति में किया जाना जरूरी है, जब वह पूरे मन से काम कर रहा हो। फिर भी गलती हो तो उसे ह्यूमन फैक्टर मानकर नजरअंदाज किया जा सकता है। लेकिन लापरवाही के ऐसे मामलों में इस चीज को स्वीकार नहीं किया जा सकता।

राज्य के सिर्फ 1 मेंटल अस्पताल की बदहाली पर हाईकोर्ट सख्त, स्वास्थ्य सचिव से मांगा जवाब

बिलासपुर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में बना एकमात्र मेंटल हॉस्पिटल फिलहाल खुद अच्छी हालत में नहीं है, क्योंकि यहां न तो मरीजों को टोकन मिल रहे हैं और न ही समय से डॉक्टर पहुंच रहे हैं, जबकि अस्पताल परिसर में साफ-सफाई की भी पर्याप्त व्यववस्था नहीं है. इस मामले को लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई थी, जिस पर सुनवाई करने के बाद छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य के हेल्थ सेक्रेटरी से जवाब मांगा है. बताया जा रहा है कि अस्पताल के ओपीडी में हर दिन करीब 150 मरीज आते हैं, लेकिन टोकन सिस्टम नहीं होने की वजह से मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है.  छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में लगी थी याचिका  दरअसल, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में बिलासपुर में बने मेंटल हॉस्पिटल को लेकर एक जनहित याचिका लगाई गई थी, जो अस्पताल की अव्यवस्था पर थी, जिसकी सुनवाई हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच हो रही है. बताया जा रहा है कि इस मामले में चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की डिवीजन बेंच ने सुनवाई की थी, जिसमें एडवोकेट ऋषि राहुल सोनी को कोर्ट की तरफ से कमिश्नर नियुक्त कर अस्पताल की पूरी निरीक्षण रिपोर्ट देने के लिए कहा गया था, इसके बाद उन्होंने बिलासपुर के मेंटल हॉस्पिटल का निरीक्षण किया था, जिसके बाद उन्होंने अपनी रिपोर्ट कोर्ट कमिश्नर को पेश कर दी थी, बताया जा रहा है कि अब जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट अपना शपथ पत्र देने को कहा है, मामले की अगली सुनवाई 16 जुलाई को होनी है.  मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम के तहत निर्धारित प्रावधानों और सुविधाओं का अभाव होने पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट लीगल सर्विस कमेटी और एक अन्य ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. जिसपर सुनवाई लगातार चल रही है. पिछली सुनवाई में मुख्य सचिव ने व्यक्तिगत शपथ पत्र में यह बात लिखी थी कि उनके निर्देश पर आयुक्त सह निदेशक स्वास्थ्य सेवाएं, छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य नोडल अधिकारी (एनएमएचपी) के साथ 01/04/2025 को मानसिक अस्पताल सेंदरी का दौरा कर निरीक्षण किया और रिपोर्ट पेश किया. इसके अलावा सचिव स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, छत्तीसगढ़ शासन ने खुद 08 अप्रैल 2025 को मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सालय सेंदरी का भ्रमण कर निरीक्षण किया और कमियों को दूर करने और सुधारात्मक उपाय करने के निर्देश दिए गए. राज्य मानसिक चिकित्सालय सेंदरी के अधीक्षक ने 17/04/2025 को प्रकाशित समाचार पत्र के संदर्भ में बिन्दुवार जवाब पत्र जारी किया था. जिसमें कहा गया "समाचार निराधार है. अस्पताल में उपलब्ध स्टाफ ड्यूटी रोस्टर और निर्धारित ड्यूटी के अनुसार काम कर रहा है. मरीजों को सुरक्षा स्टाफ पर्याप्त सुरक्षा प्रदान कर रहा है. अस्पताल में फार्मासिस्ट की कोई कमी नहीं है." लेकिन सोमवार को हुई इस जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट कमिश्नर ऋषि राहुल सोनी ने बताया "उन्होंने कोर्ट के निर्देश पर 4 जून से लेकर 6 जून तक अस्पताल का निरीक्षण किया. स्टाफ से लेकर सभी व्यवस्थाओं पर गंभीरता से जांच की. अस्पताल की स्थिति ठीक नहीं है. अस्पताल में फिलहाल डॉक्टर उपलब्ध कराए गए हैं. हालांकि वह शासकीय सेटअप के हिसाब से कम हैं." महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि सेंदरी अस्पताल को लेकर शासन गंभीर है और नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किए गए हैं. कोर्ट कमिश्नर ने सुनाई के दौरान बताया कि डॉक्टर और स्टाफ एक से डेढ़ घंटे अस्पताल में रहते हैं, जबकि उन्हें सुबह 8:00 से 2:00 बजे तक रहना चाहिए. इस बात की तस्दीक रजिस्टर और CCTV फुटेज से होती है. उन्होंने बताया कि वाटर कूलर सही नहीं है, साथ ही हाइजिन का भी ध्यान नहीं रखा जाता है. जिस पर कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई है. वहीं अगली सुनवाई 16 जुलाई 2025 को तय करते हुए सचिव स्वास्थ्य से जवाब मांगा है.