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खगोलशास्त्री महर्षि वाल्मीकि, जब ‘शोक’ से ‘श्लोक’ जन्मा और विज्ञान झुका श्रद्धा से

भोपाल भारतभूमि की यह विशेषता रही है कि यहाँ अध्यात्म और विज्ञान कभी परस्पर विरोधी नहीं रहे, ज्ञान के हर रूप का उद्गम ऋषियों के चिंतन से हुआ। इसी परंपरा में एक ऐसा नाम अमर है, महर्षि वाल्मीकि। वे केवल आदि कवि नहीं थे, बल्कि भारत के प्रथम खगोलशास्त्री भी थे, जिन्होंने आकाश की नक्षत्रीय गतियों को साहित्य के छंदों में पिरो दिया। वाल्मीकि जयंती के इस पावन अवसर पर यह जानना रोमांचक है कि ‘रामायण’ केवल धर्मग्रंथ नहीं, बल्कि खगोलीय दस्तावेज़ भी है, एक ऐसा दस्तावेज़ जिसमें हर ग्रह, नक्षत्र और तिथि वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ आज भी सत्य सिद्ध होती है। महर्षि वाल्मीकि का खगोलबोध, जब कविता बनी विज्ञान की भाषा ‘रामायण’ में श्रीराम के जन्म का वर्णन महर्षि वाल्मीकि ने जिस सटीकता से किया है, वह आधुनिक खगोलशास्त्र की कसौटी पर पूरी तरह खरी उतरती है। जब कौशल्या ने श्रीराम को जन्म दिया, उस समय सूर्य, मंगल, शनि, बृहस्पति और शुक्र, ये पाँचों ग्रह अपने-अपने उच्च स्थानों में थे, और लग्न में चंद्रमा बृहस्पति के साथ स्थित थे। भारतीय वेदों पर वैज्ञानिक शोध संस्थान की पूर्व निदेशक सुश्री सरोज बाला ने प्लैनेटेरियम गोल्ड सॉफ्टवेयर 4.1 के माध्यम से इस गणना की पुष्टि की। उन्होंने पाया कि यदि यह आकाशीय स्थिति 27° उत्तर और 82° पूर्व (अयोध्या के अक्षांश, रेखांश) पर डाली जाए, तो यह 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व, दोपहर 12 से 2 बजे के बीच का समय बताती है, अर्थात श्रीराम का जन्मकाल! विज्ञान ने दी वाल्मीकि को पुष्टता की मुहर सरोज बाला और उनके दल ने ‘रामायण की कहानी, विज्ञान की जुबानी’ शीर्षक से 16 वर्षों के गहन शोध में यह सिद्ध किया कि वाल्मीकि के खगोलीय संदर्भ पूर्णतः प्रामाणिक हैं। उन्होंने Stellarium, Sky Guide, और Planetarium Simulation जैसे सॉफ्टवेयरों से तुलना की, परिणाम अद्भुत रहे। हर ग्रह की गति, हर नक्षत्र की स्थिति और हर खगोलीय घटना, रामायण में बताए क्रम के अनुरूप मिली। इन सॉफ्टवेयर परीक्षणों के साथ-साथ पुरातत्व, भूविज्ञान, समुद्रविज्ञान, पुरावनस्पति विज्ञान और उपग्रह चित्रों ने भी वाल्मीकि के वर्णनों की पुष्टि की। यह अपने आप में एक अनूठा संगम है, जहाँ श्रद्धा और विज्ञान एक दूसरे को प्रमाणित करते हैं। सत्य का साक्ष्य, रामायण की कालगणना और भू-साक्ष्य महर्षि वाल्मीकि ने श्रीराम के वनवास के दौरान सूर्यग्रहण, चंद्रमा की कलाएँ, और ऋतुओं का सूक्ष्म वर्णन किया है। डॉ. राम अवतार शर्मा ने इन स्थलों का प्रत्यक्ष अध्ययन किया, अयोध्या से लेकर रामेश्वरम् तक। उन्होंने पाया कि हर स्थान, हर आकाशीय स्थिति, और हर ऋतु-वर्णन वास्तविक भू-परिस्थितियों से मेल खाता है। नासा द्वारा प्रकाशित पाक जलडमरूमध्य में डूबे मानव-निर्मित पुल के उपग्रह चित्र भी इस बात का समर्थन करते हैं कि रामसेतु एक वास्तविक संरचना थी, वही पुल जिसे रामायण में ‘सेतुबंध’ कहा गया है। वाल्मीकि, साहित्य से विज्ञान तक का सेतु वाल्मीकि केवल ‘रामायण’ के रचयिता नहीं थे, वे ज्ञान और सृजन के अद्वितीय संयोग थे। उन्होंने एक क्रौंच पक्षी के शोक से ‘श्लोक’ की रचना कर दी, और वहीं से काव्य का जन्म हुआ। यह वही संवेदना थी जो आकाश की गति और जीवन की गति को एक सूत्र में बाँध देती है। माता सीता उनके आश्रम में रही, लव-कुश उनके शिष्य बनकर बड़े हुए, यह दिखाता है कि समाज-व्यवस्था से परे ज्ञान का कोई जातिगत बंधन नहीं होता। शूद्र वर्ण से आने वाले इस महर्षि ने दिखा दिया कि महानता कर्म से होती है, जन्म से नहीं।  ऋषि का विज्ञान आज भी प्रासंगिक है आज जब आधुनिक विज्ञान जेम्स वेब टेलिस्कोप से ब्रह्मांड के रहस्य खोज रहा है, तब भी महर्षि वाल्मीकि का ज्ञान एक ज्योति-स्तंभ की तरह सामने आता है। वे हमें बताते हैं कि कविता केवल भावना नहीं, ब्रह्मांड की गति का अनुभव भी हो सकती है। ‘रामायण’ केवल कथा नहीं, बल्कि खगोलशास्त्र का काव्य है, जहाँ हर श्लोक में आकाश का सत्य निहित है। आदि कवि महर्षि वाल्मीकि को उनके प्राकट्य पर्व पर शत-शत नमन, जिन्होंने “शोक” को “श्लोक” में बदलकर यह दिखाया कि जब हृदय में वेदना हो और दृष्टि में ब्रह्मांड, तब कविता विज्ञान बन जाती है। आप सभी को महर्षि वाल्मीकि जयंती की सादर आत्मीय शुभकामनाएं   – *डॉ विश्वास चौहान ( प्राध्यापक विधि  , शासकीय स्टेट लॉ कॉलेज भोपाल )

महर्षि वाल्मीकि भारतीय संस्कृति के दिव्य ऋषि हैं: मुख्यमंत्री डॉ. यादव

महर्षि वाल्मीकि भारतीय संस्कृति के दिव्य ऋषि हैं: मुख्यमंत्री डॉ. यादव मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने महर्षि वाल्मीकि को बताया भारतीय संस्कृति का आलोक स्तंभ प्रदेशवासियों को महर्षि वाल्मीकि जयंती पर दी बधाई भोपाल  मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने महर्षि वाल्मीकि जयंती पर श्रद्धालु नागरिकों को बधाई एवं शुभकामनाएं दी हैं। उन्होंने कहा कि महर्षि वाल्मीकि का जीवन दृढ़ इच्छाशक्ति और मानवता की क्रूरता पर विजय का प्रतीक है। वे अद्वितीय विद्वान ऋषि एवं सहृदय कवि थे, जिन्होंने भारतीय समाज में पूजनीय स्थान अर्जित किया। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि सभ्यता, धर्म एवं आध्यात्म का अद्वितीय समन्वय भारत के अतिरिक्त और कहीं नहीं मिलता। यही कारण है कि 'विश्व गुरु' की उपाधि से सम्मानित भारत, सनातन धर्म की महानता का दिव्य प्रतीक है। महर्षि वाल्मीकि महिमामयी भारतीय सनातन परंपरा के प्रणेता, प्रहरी, प्रचारक ऋषि भारतीय संस्कृति के गौरव हैं। महर्षि वाल्मीकि के जीवन में परिवर्तन की शुरुआत तब हुई, जब उनकी भेंट महान ऋषि नारद से हुई। नारद जी ने उन्हें 'राम' नाम का जप करने की प्रेरणा दी। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि के महान कार्यों में से एक है। इसमें उन्होंने भगवान राम के जीवन से जुड़े आदर्शों को विस्तृत रूप में प्रस्तुत किया है। उनके रचित 23 हजार से अधिक श्लोकों से युक्त रामायण, भारतीय संस्कृति और आत्म संयम की शिक्षा प्रदान करता है। महर्षि वाल्मीकि ने न केवल रामायण की रचना की, बल्कि माता सीता को अपने आश्रम में शरण दी और उनके पुत्रों लव-कुश को ज्ञान प्रदान किया। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि ने बोध कराया कि जीवन को समझने की सबसे सुंदर यात्रा है रामायण का श्रवण करना। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण के माध्यम से यह दिखाया कि सच्चा धर्म सबको साथ लेकर चलता है क्योंकि इसमें करुणा, न्याय और समर्पण शामिल होता है। उन्होंने भगवान राम के जीवन के माध्यम से मानव समाज को मर्यादा, परिवार, समाज और कर्तव्य के महत्व का बोध कराया। महर्षि वाल्मीकि ने यह संदेश दिया कि यदि मनुष्य सच्चे मन से प्रयत्न करे, तो अंधकार से भी प्रकाश की राह बनाई जा सकती है। यही कारण है कि उन्हें आदिकवि कहा गया। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि का दर्शन बहुत सरल है — किसी के साथ अन्याय मत करो, और यदि किसी के जीवन में प्रकाश लाने का अवसर मिले तो पीछे मत हटो। यही भाव एक बेहतर समाज की नींव है। उन्होंने समाज के हर वर्ग को यह सिखाया कि सम्मान किसी जाति या स्थिति से नहीं, बल्कि कर्म और आचरण से मिलता है। यह शिक्षा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। उन्होंने यह सिखाया कि हर व्यक्ति के भीतर अच्छाई का दीप जल सकता है। यही कारण है कि उनका जीवन हर युग में मार्गदर्शक बना रहेगा। वाल्मीकि जी के आदर्शों से प्रेरित होकर हमें भी यह संकल्प लेना चाहिए कि हम समाज में किसी के साथ भेदभाव न होने दें। हर घर में शिक्षा, सम्मान और आत्मविश्वास का दीप जले। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि हमारे लिए केवल एक ऐतिहासिक या धार्मिक व्यक्तित्व ही नहीं, वे उस चेतना के प्रतीक हैं जो हर मनुष्य के भीतर मौजूद है। जब तक हम उनके आदर्शों को जीवन में उतारते रहेंगे, समाज आगे बढ़ता रहेगा और मानवता की यह ज्योति जलती रहेगी।