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नए Pakistan Census में खुलासा, मस्जिदों की संख्या स्कूलों और अस्पतालों से बहुत ज्यादा

कराची  अपने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली किसी से छुपी नहीं है. देश में हालात ऐसे हैं कि लोग दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं. राशन के लिए घंटों लंबी कतारों में खड़े रहना आम बात हो गई है, जबकि महंगाई आसमान छू रही है. इन विपरीत परिस्थितियों के बीच पाकिस्तान पर एक पुरानी कहावत सटीक बैठती है 'घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने.' अब इसी बदहाली की असली तस्वीर सामने आई है. हाल ही में पाकिस्तान ने पहली बार अपनी आर्थिक जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक किए हैं, और यह रिपोर्ट बहुत ही चौंकाने वाली है. आर्थिक रिपोर्ट से मिले आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि देश की अर्थव्यवस्था किस कदर चरमरा चुकी है. पाकिस्तान में 6,00,000 से ज्यादा मस्जिदें और 36,000 मदरसे हैं, जबकि मात्र 23,000 कारखाने हैं। पाकिस्तान की पहली आर्थिक जनगणना में ये बात सामने आई है। इसे पाकिस्तान के योजना मंत्री अहसान इकबाल ने जारी किया है। यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब नकदी संकट से जूझ रहा पाकिस्तान करीब 61 हजार करोड़ रुपए के बेलआउट पैकेज की दूसरी समीक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ बातचीत कर रहा है। मात्र 2.42 लाख स्कूल और 214 यूनिवर्सिटी रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में 2,42000 स्कूल, 11568 कॉलेज और मात्र 214 यूनिवर्सिटी हैं। कॉलेजों में प्राइवेट सेक्टर की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत ज्यादा है। इससे पता चलता है कि शिक्षा और कल-कारखानों की जगह देश ने मस्जिदों और मदरसों पर निवेश किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में 27 लाख रिटेल शॉप्स, 1.88 लाख होलसेल की दुकानें, 2.56 लाख होटल और 1.19 लाख अस्पताल हैं। 250 से ज्यादा रोजगार वाले मात्र 7086 प्रतिष्ठान पाकिस्तान के अंदर सबसे ज्यादा विकसित राज्य पंजाब है, जहाँ देश की 58 फीसदी प्रतिष्ठान हैं। इसके बाद सिंध में 20 फीसदी, खैबर पख्तूनख्वा में 15 फीसदी और बलूचिस्तान में 6 फीसदी हैं। राजधानी इस्लामाबाद में 1 फीसदी से कम प्रतिष्ठान हैं। पंजाब में मदरसे और मस्जिदें भी सबसे ज्यादा हैं। देश में छोटे कारोबार का बोलबाला हैं। यहाँ 71 लाख ऐसे बिजनेस हैं जहाँ 1 से 50 लोग काम करते हैं। जबकि 35351 ऐसे प्रतिष्ठान हैं जहाँ 50 से 250 लोग काम करते हैं। सिर्फ 7086 ऐसे बिजनेस यूनिट्स हैं जहां 250 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं। मस्जिदों- मदरसों की तुलना में फैक्ट्री काफी कम देश में कुल 400 लाख स्थाई यूनिट्स हैं जिनमें से 72 लाख रोजगार देती हैं। देश में 2023 तक 254 लाख लोग काम कर रहे थे। इनमें सबसे ज्यादा सर्विस सेक्टर में 113 लाख लोग हैं यानी करीब 45 फीसदी। 76 लाख लोग सोशल सेक्टर में हैं जो करीब 30 फीसदी हैं। जबकि 22 फीसदी लोग प्रोडक्शन सेक्टर में काम करते हैं। देश में करीब 6.04 लाख मस्जिदें हैं जबकि 36331 मदरसे हैं। पाकिस्तान के हालात को ये रिपोर्ट बयाँ कर रहा है। गंभीर आर्थिक संकट की एक अहम वजह पिछले कुछ दशकों में देश में इस्लामिक कट्टरता को माना जा रहा है। यही वजह है कि देश में मस्जिदों, मदरसों की संख्या, कारखानों से कहीं अधिक है। शिक्षण संस्थान कम हैं और जो हैं वहाँ की शिक्षा का स्तर भी विश्वस्तरीय नहीं है। जैसे राष्ट्रवादी विचारधारा के विरोधी वेबसाइट्स को कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें पाकिस्तान का हाल      देश भर में केवल 11,568 कॉलेज और 214 विश्वविद्यालय हैं। स्वास्थ्य सेवा भी लोगों के हिसाब से अपर्याप्त हैं। कुपोषण और बीमारी से जूझ रहे देश में 2,083 लोगों पर सिर्फ एक अस्पताल उपलब्ध है।     1.09 करोड़ लोग पशुपालन, सिलाई, खाद्य पैकेजिंग और ऑनलाइन सेवाओं जैसे क्षेत्रों में कार्यरत हैं, जो औपचारिक रोजगार के अवसरों की कमी को दर्शाता है।     आर्थिक जनगणना के अनुसार, 71.43 लाख व्यवसाय 253.44 लाख लोगों को रोजगार दे रहे हैं। इनमें केवल 2,50,000 ही औपचारिक रूप से प्रतिभूति और विनिमय आयोग में पंजीकृत हैं, जो अविकसित अर्थव्यवस्था की प्रकृति को दर्शाता है।     सूक्ष्म और लघु उद्यम व्यावसायिक पारिस्थितिकी तंत्र पर हावी हैं, जहां 95 प्रतिशत प्रतिष्ठान दस से कम लोगों को रोजगार देते हैं।     अकेले सेवा क्षेत्र में लगभग 58 प्रतिशत कार्यबल मौजूद है, जबकि उत्पादन और विनिर्माण क्षेत्र बहुत पीछे है। क्षेत्रीय असमानताएं भी उजागर हुई हैं, जहां आर्थिक प्रतिष्ठानों और सामाजिक बुनियादी ढांचे की संख्या के मामले में पंजाब और सिंध, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान से आगे हैं।  

पाकिस्तान: अल्पसंख्यक लड़कियों के जबरन विवाह और जबरन धर्मान्तरण, अपहरण, तस्करी, यूके की संसद में पाकिस्तान बेनकाब

लंदन  पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के खिलाफ धार्मिक उत्पीड़न का दौर जारी है। इस भयावह स्थिति को ब्रिटेन की संसद में आयोजित एक सत्र में उजागर किया गया। ऑल पार्टी पार्लियामेंट्री ग्रुप ऑन फ्रीडम ऑफ रिलीजन ऑर बिलीफ की ओर से यह सेशन बुलाया गया था। इसमें सांसदों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और समुदाय के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस दौरान हिंदुओं, ईसाइयों, शियाओं और अहमदियों के खिलाफ अत्याचारों को व्यवस्थित और राज्य प्रायोजित बताया गया। सबूतों से पता चला कि ये घटनाएं अलग-थलग नहीं, बल्कि पाकिस्तानी राज्य और सैन्य तंत्र के समर्थन से सुनियोजित रणनीति का हिस्सा हैं। सिंध प्रांत में हिंदू और ईसाई समुदायों की नाबालिग लड़कियों का अपहरण और जबरन धर्म परिवर्तन हो रहा है। इस गंभीर समस्या पर सत्र में विशेष रूप से प्रकाश डाला गया। अनुमान है कि हर साल 500 से 1,000 लड़कियों का अपहरण किया जाता है। ये अक्सर राजनीतिक रूप से प्रभावशाली मौलवियों की ओर से संचालित धार्मिक स्थलों के जरिए तस्करी की जाती हैं। इसके अलावा, हिंदू मंदिरों और धर्मशालाओं पर हमले सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को मिटाने की कोशिश का हिस्सा हैं। साल 2023 में कश्मीर में एक मंदिर पर रॉकेट हमला इसका उदाहरण है। पाकिस्तान को जवाबदेह ठहराने की मांग शिया और अहमदी समुदायों के खिलाफ जबरन गायब करने, सांप्रदायिक हिंसा और धार्मिक अधिकारों से वंचित करने की घटनाएं भी सामने आईं। सत्र में सिंध फ्रीडम मूवमेंट के अध्यक्ष सोहैल अबरो और दूसरे समुदायों के प्रतिनिधियों ने आवाज उठाई। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से पाकिस्तान को जवाबदेह ठहराने की मांग की। इसके अलावा, ब्रिटिश सांसदों फ्लेर एंडरसन और डेविड स्मिथ ने विस्तृत आंकड़े और प्रत्यक्षदर्शी डिटेल पेश किए। सत्र के अंत में अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इन अत्याचारों की स्वतंत्र जांच, जबरन धर्म परिवर्तन और धार्मिक संस्थानों पर हमलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की गई। साथ ही, इसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाने की भी चर्चा हुई।