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महंगाई में बड़ी गिरावट, GST और बाजार ने मिलकर दी राहत — जानें किन चीज़ों के दाम घटे

नई दिल्ली आम आदमी को महंगाई (Inflation) के मोर्चे पर बड़ी राहत मिली है, सितंबर महीने में खुदरा महंगाई दर गिरकर 1.54 फीसदी पर पहुंच गई है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जून-2017 के बाद खुदरा महंगाई दर सितंबर में सबसे कम रही. यानी करीब 99 महीने में सबसे कम महंगाई दर सितंबर महीने में दर्ज की गई है.  दरअसल, सितंबर 2025 में खाने-पीने की चीजें सस्ती होने से खुदरा महंगाई दर (Retail Inflation) लुढ़क कर 1.54 फीसदी पर पहुंच गई. इससे पहले अगस्त महीने में मामूली बढ़ोतरी के साथ खुदरा महंगाई दर 2.07% पर पहुंच गई थी, जबकि जुलाई- 2025 में खुदरा महंगाई दर 1.55 फीसदी दर्ज की गई थी. आंकड़ों को देखें तो खाद्य मुद्रास्फीति लगातार चौथे महीने निगेटिव रही है. खुदरा महंगाई के बास्केट में करीब 50% योगदान खाने-पीने की चीजों का होता है, जो कि महीने-दर-महीने के आधार पर सितंबर में माइनस 0.64% से घटकर माइनस 2.28% रह गई. वहीं सितंबर महीने में ग्रामीण महंगाई दर 1.69% से घटकर 1.07% हो गई है. जबकि शहरी महंगाई 2.47% से घटकर 2.04% पर आ गई.  महंगाई में गिरावट के पीछे GST का भी योगदान खुदरा महंगाई दर में गिरावट के पीछे GST रिफॉर्म का भी बड़ा योगदान रहा है, जीएसटी रेट में बदलाव और खाने-पीने की चीजों पर जीएसटी रेट में कटौती से भी सामान सस्ते हुए हैं. बता दें, 22 सितंबर से देश में जीएसटी रिफॉर्म को लागू हो गया है. इन सबके बीच खुदरा महंगाई अब भी भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की 2-6% की आरामदायक सीमा के भीतर बनी हुई है. खुदरा महंगाई दर में बढ़ोतरी या गिरावट तब आती है, जब‍ फूड प्रोडक्‍ट्स खासकर आलू, प्‍याज, हरी सब्जियां, चावल, आटा और दाल वगैरह की कीमतें बढ़ती या घटती हैं. गौरतलब है कि RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने बीते महीने कहा था कि वित्त वर्ष-26 की अंतिम तिमाही में मुद्रास्फीति में तेजी आने की संभावना है, खासकर सब्जियों और अन्य खाद्य पदार्थों की कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण. वित्त वर्ष 26 के लिए RBI अब मुद्रास्फीति 3.1% रहने का अनुमान लगा रहा है, जो कि पहले 3.7% रहने का अनुमान लगाया गया था.  कैसे मापते हैं खुदरा महंगाई दर खुदरा महंगाई दर (Retail Inflation Rate) एक आर्थिक संकेतक है, जो उपभोक्ता स्तर पर वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में औसत बढ़ोतरी को मापता है. भारत में यह आमतौर पर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index – CPI) के आधार पर गणना की जाती है. CPI मुख्य तौर पर वस्तुओं और सेवाओं, जैसे खाद्य पदार्थ, ईंधन, कपड़े, आवास, स्वास्थ्य और परिवहन की कीमतों में बदलाव को ट्रैक करता है, जो सामान्य उपभोक्ता के दैनिक जीवन के लिए आवश्यक हैं. भारत में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) CPI डेटा जारी करता है. खुदरा महंगाई का आम आदमी पर असर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) महंगाई को काबू में करने के लिए रेपो रेट जैसे उपायों का उपयोग करता है. RBI का लक्ष्य खुदरा महंगाई को 4% (+/- 2%) के दायरे में रखना है. महंगाई बढ़ने से आम लोगों की क्रय शक्ति प्रभावित होती है. महंगाई दर निवेशकों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह रिटर्न की वास्तविक वैल्यू को प्रभावित करती है.

जुलाई के मुकाबले अगस्त में बढ़ी महंगाई, रिटेल इनफ्लेशन 1.61% से बढ़कर 2.07% पर पहुंची

नई दिल्ली अगस्त में रिटेल महंगाई दर जुलाई के 1.6% से थोड़ा बढ़कर 2.7% पर पहुंच गई है। इसकी वजह कुछ खाद्य वस्तुओं की कीमतों में हल्की बढ़ोतरी है।रिटेल महंगाई के आधिकारिक आंकड़े आज सरकार ने जारी किए हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया यानी, RBI का लक्ष्य महंगाई को 4% ±2% की सीमा में रखने का है। जुलाई में खाने-पीने के सामानों की कीमत घटी थीं महंगाई के बास्केट में लगभग 50% योगदान खाने-पीने की चीजों का होता है। इसकी महीने-दर-महीने की महंगाई माइनस 1.06% से घटकर माइनस 1.76% हो गई है। जून महीने में ग्रामीण महंगाई दर 1.72% से घटकर 1.18% हो गई है। वहीं शहरी महंगाई 2.56% से घटकर 2.05% पर आ गई है। RBI ने महंगाई का अनुमान घटाया 4 से 6 अगस्त तक हुई RBI मॉनीटरी पॉलिसी कमेटी की मीटिंग में भी वित्त वर्ष 2025-26 के लिए महंगाई का अनुमान 3.7% से घटाकर 3.1% कर दिया था। महंगाई कैसे बढ़ती-घटती है? महंगाई का बढ़ना और घटना प्रोडक्ट की डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करता है। अगर लोगों के पास पैसे ज्यादा होंगे तो वे ज्यादा चीजें खरीदेंगे। ज्यादा चीजें खरीदने से चीजों की डिमांड बढ़ेगी और डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं होने पर इन चीजों की कीमत बढ़ेगी। इस तरह बाजार महंगाई की चपेट में आ जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो बाजार में पैसों का अत्यधिक बहाव या चीजों की शॉर्टेज महंगाई का कारण बनता है। वहीं अगर डिमांड कम होगी और सप्लाई ज्यादा तो महंगाई कम होगी। सब्जियों और दालों की अच्छी पैदावार का असर रिपोर्ट के अनुसार, लगातार अच्छी पैदावार और सप्लाई में सुधार की वजह से सब्जियों और दालों के दाम कम हुए हैं. सितंबर में भी टमाटर, प्याज और आलू की कीमतों में गिरावट देखने को मिल रही है. यही वजह है कि जरूरी सामानों का दाम नियंत्रण में है. प्याज और आलू में सबसे तेज गिरावट बैंक ऑफ बड़ौदा ने कहा कि प्याज की खुदरा कीमतों में सालाना आधार पर 37.5% की गिरावट दर्ज की गई है, जो जनवरी 2021 के बाद सबसे बड़ी गिरावट है. आलू की कीमतें भी 44 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गई हैं. दालों की कीमतें भी घटीं दालों में भी लगातार गिरावट जारी है. अगस्त में तुअर/अरहर की कीमतों में 29% तक की कमी आई है. इसके अलावा उड़द में 8.9%, मूंग में 5.2% और मसूर में 1.4% की गिरावट देखी गई है. ग्लोबल मार्केट और सरकार के कदम से मदद वैश्विक स्तर पर भी खाद्य और ऊर्जा की कीमतें नियंत्रण में हैं. साथ ही, सरकार ने FMCG और टिकाऊ वस्तुओं पर GST दरें कम की हैं, जिससे महंगाई को और राहत मिली है. बैंक ऑफ बड़ौदा का अनुमान है कि इसका असर CPI पर 55-75 बेसिस प्वाइंट तक दिखेगा. खरीफ सीजन का समर्थन रिपोर्ट में कहा गया है कि इस खरीफ सीजन में दालों की बुवाई का क्षेत्र बढ़ा है. इसी वजह से उत्पादन अच्छा हुआ है और कीमतों पर दबाव कम हुआ है. अनाजों में भी चावल की कीमतें धीरे-धीरे नीचे आ रही हैं. CPI से तय होती है महंगाई एक ग्राहक के तौर पर आप और हम रिटेल मार्केट से सामान खरीदते हैं। इससे जुड़ी कीमतों में हुए बदलाव को दिखाने का काम कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स यानी CPI करता है। हम सामान और सर्विसेज के लिए जो औसत मूल्य चुकाते हैं, CPI उसी को मापता है। अमेरिका में बढ़ी महंगाई! गैस, ग्रॉसरी, होटल और हवाई टिकट सब कुछ हुआ महंगा अमेरिका में खुदरा महंगाई दर अगस्त 2025 में बढ़कर 2.9 प्रतिशत हो गई, जो इस साल जनवरी के बाद सबसे ऊंचा स्तर है। अमेरिकी श्रम विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, गैस, किराने का सामान, होटल के कमरे, हवाई किराया, कपड़े और पुरानी कारों की कीमतों में बढ़ोतरी इसके पीछे प्रमुख कारण रही। जुलाई में खुदरा महंगाई दर 2.7 प्रतिशत थी, यानी अगस्त में इसमें 0.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यह वृद्धि उस समय हुई है जब उपभोक्ता पहले से ही बढ़ती लागतों के दबाव में हैं, जिससे घरेलू बजट पर असर पड़ रहा है। कोर महंगाई भी बनी हुई है ऊंची न्यूज एजेंसी भाषा ने रिपोर्ट के अनुसार बताया कि अगर खाद्य और ईंधन की अस्थिर कीमतों को हटा दिया जाए, तो कोर महंगाई दर अगस्त में 3.1 प्रतिशत रही, जो जुलाई के समान है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि महंगाई का दबाव केवल अस्थायी कारकों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यापक रूप से अर्थव्यवस्था में फैला हुआ है। फेड की अगली बैठक पर टिकी नजरें यह डेटा ऐसे समय आया है जब फेडरल रिजर्व अगले सप्ताह अपनी मौद्रिक नीति की समीक्षा बैठक करने वाला है। अनुमान लगाया जा रहा है कि नीति निर्धारक प्रमुख ब्याज दर को मौजूदा 4.3 प्रतिशत से घटाकर लगभग 4.1 प्रतिशत कर सकते हैं। हालांकि, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दरों में कटौती का दबाव और बढ़ती महंगाई मिलकर फेड के सामने एक कठिन स्थिति उत्पन्न कर रहे हैं। उन्हें एक संतुलन साधना होगा। जहां आर्थिक विकास को समर्थन मिले, लेकिन महंगाई भी काबू में रहे।

जून में महंगाई छह साल के सबसे निचले स्तर पर, खाने-पीने के सामान सस्ते होने से राहत

नई दिल्ली जून महीने के रिटेल महंगाई घटकर 2.10% पर आ गई है। ये 77 महीने का निचला स्तर है। इससे पहले जनवरी 2019 में ये 2.05% रही थी। वहीं मई 2025 में ये 2.82% और अप्रैल 2025 में रिटेल महंगाई 3.16% पर थी। खाने-पीने के सामान की कीमतों में लगातार नरमी के कारण रिटेल महंगाई घटी है। आज यानी 14 जुलाई को रिटेल महंगाई के आंकड़े जारी किए हैं। रिटेल महंगाई फरवरी से RBI के लक्ष्य 4% से नीचे है। महंगाई (Inflation) के मोर्चे पर देश की जनता के लिए एक अच्छी खबर आई. सरकार की ओर से जून महीने में खुदरा महंगाई दर (Retail Inflation In June) का आंकड़ा जारी किया गया, जो राहत भरा है. दरअसल, मई के 2.82 फीसदी की तुलना में जून में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) गिरकर 2.10 फीसदी पर आ गई और ये आंकड़ा महंगाई का छह साल का निचला स्तर है. खाद्य पदार्थों की कीमतों में कमी का असर महंगाई पर देखने को मिला है. दूध, मसाले, दाल और सब्जियों समेत अन्य चीजों की कीमतों में गिरावट दर्ज की गई है.  खाद्य महंगाई घटने का असर सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की ओर से सोमवार को महंगाई दर के आंकड़े जारी करते हुए कहा गया है कि CPI में ये गिरावट खाद्य महंगाई दर (Food Inflation) में आई बड़ी कमी के चलते देखने को मिली है. जून महीने में खासतौर पर सब्जियों, दालों और इससे संबंधित उत्पादों के साथ ही मांस और मछली, अनाज, चीनी और मिठाई, दूध और दूध से बने प्रोडक्ट्स के अलावा मसालों की कीमतें घटी हैं.  जून में खाने-पीने के सामानों की कीमत घटी     महंगाई के बास्केट में लगभग 50% योगदान खाने-पीने की चीजों का होता है। इसकी महीने-दर-महीने की महंगाई 0.99% से घटकर माइनस 1.06% हो गई है।     जून महीने में ग्रामीण महंगाई दर 2.59% से घटकर 1.72% हो गई है। वहीं शहरी महंगाई 3.12% से घटकर 2.56% पर आ गई है। 2019 के बाद सबसे कम महंगाई सरकार की ओर से Inflation के आंकड़े जारी करते हुए बयाता गया मई की तुलना में जून महीने में खुदरा महंगाई दर 72 बेसिस पॉइंट कम हुई है और यह जनवरी 2019 के बाद सालाना आधार पर सबसे कम है और ये लगातार भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के 4 फीसदी के मध्यम अवधि टारगेट से नीचे बनी हुई है. ये लगातार पांचवां महीना है, जबकि Retail Inflation इस दायरे से नीचे है. वहीं देश में लगातार 8वें महीने खुदरा महंगाई दर सेंट्रल बैंक की अपर लिमिट 6% से नीचे रही है.इस बीच ग्रामीण महंगाई दर -0.92% और शहरी क्षेत्रों में महंगाई -1.22% है.  RBI ने जताया है ये अनुमान गौरतलब है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने इस साल की शुरुआत से अब तक लगातार तीन बार ब्याज दरों में कटौती (Repo Rate Cut) किया है और जून महीने में हुई एमपीसी बैठक के बाद इसमें 50 फीसदी कटौती का ऐलान किया गया था, जिसके बाद ये 5.5 फीसदी रह गया है. RBI ने रेपो रेट कट का ऐलान करते हुए कहा था कि महंगाई में उल्लेखनीय कमी आई है और उम्मीद है कि यह जारी रहेगी. इसके साथ ही रिजर्व बैंक ने FY26 के लिए अपने खुदरा महंगाई दर (CPI) पूर्वानुमान को अप्रैल के 4% से संशोधित करते हुए 3.70% फीसदी कर दिया था.  विश्लेषकों का मानना है कि जरूरी सामानों की बेहतर आपूर्ति और सरकार द्वारा खाद्य भंडार के बेहतर प्रबंधन ने कीमतों में बढ़ोतरी को कंट्रोल करने में मदद मिली है.  महंगाई कैसे बढ़ती-घटती है? महंगाई का बढ़ना और घटना प्रोडक्ट की डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करता है। अगर लोगों के पास पैसे ज्यादा होंगे तो वे ज्यादा चीजें खरीदेंगे। ज्यादा चीजें खरीदने से चीजों की डिमांड बढ़ेगी और डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं होने पर इन चीजों की कीमत बढ़ेगी। इस तरह बाजार महंगाई की चपेट में आ जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो बाजार में पैसों का अत्यधिक बहाव या चीजों की शॉर्टेज महंगाई का कारण बनता है। वहीं अगर डिमांड कम होगी और सप्लाई ज्यादा तो महंगाई कम होगी। CPI से तय होती है महंगाई एक ग्राहक के तौर पर आप और हम रिटेल मार्केट से सामान खरीदते हैं। इससे जुड़ी कीमतों में हुए बदलाव को दिखाने का काम कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स यानी CPI करता है। हम सामान और सर्विसेज के लिए जो औसत मूल्य चुकाते हैं, CPI उसी को मापता है। कच्चे तेल, कमोडिटी की कीमतों, मैन्युफैक्चर्ड कॉस्ट के अलावा कई अन्य चीजें भी होती हैं, जिनकी रिटेल महंगाई दर तय करने में अहम भूमिका होती है। करीब 300 सामान ऐसे हैं, जिनकी कीमतों के आधार पर रिटेल महंगाई का रेट तय होता है।