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इंदौर में सोनोग्राफी सेंटर केस में दो डॉक्टरों को सजा, गर्भवती व डॉक्टरी साइन नहीं होने का मामला

इंदौर 

इंदौर में जिला कोर्ट ने 2 डॉक्टरों को प्री कंसेप्शन एंड प्री नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक एक्ट (PCPNDT) के उल्लंघन करने के मामले में एक-एक साल के कारावास की सजा सुनाई है। मामला 14 साल पुराना है। इसमें अखबारों की खबरों के आधार पर जिला प्रशासन ने जांच कराई। 

घोषणापत्र पर न तो गर्भवती महिला के हस्ताक्षर थे। न ही इस गंभीर एक्ट के पालन के फॉर्म पर दोनों जिम्मेदार डॉक्टरों के हस्ताक्षर किए थे। इसके सहित कई गड़बड़ियां पाई गई।

इस पर जिला प्रशासन ने स्नेह नगर स्थित आइडियल मेडिकल सेंटर (सोनोग्राफी सेंटर) के 2 डॉक्टरों के खिलाफ कोर्ट की शरण ली थी। 14 साल बाद जिला कोर्ट ने दोनों डॉक्टरों को दोषी पाया।

आरोपियों के नाम डॉ. राजू प्रेमचंदानी (62) निवासी निवास सर्वोदय नगर और डॉ. अजय मोदी (63) निवासी केसरबाग हैं। इन्हें एक-एक साल के कारावास के साथ, PCPNDT एक्ट की एक अन्य धारा में 3-3 माह का कारावास और 6-6 हजार रुपए के अर्थदंड से दंडित किया है।

जानिए क्या है मामला 1 जून 2011 को इंदौर के अखबारों में एक महिला की सोनोग्राफी की गड़बड़ियों को लेकर खबर प्रकाशित थी। इसके बाद महिला ने आत्महत्या कर ली थी।

तत्कालीन एडीएम नारायण पाटीदार द्वारा टीआई को एक पत्र लिखकर जानकारी मांगी कि महिला की सोनोग्राफी किस सेंटर पर हुई।

7 जून 2011 को डीएसपी मुख्यालय इंदौर द्वारा यह जानकारी दी गई कि महिला तिल्लौर बुजुर्ग की है और उसने 5 अप्रैल 2011 को आइडियल मेडिकल सेंटर पर सोनोग्राफी कराई थी। इसमें जानकारी के साथ सोनोग्राफी की रिपोर्ट्स भी भेजी।

इसके बाद जिला प्रशासन ने 11 जून 2011 को वहां टीम भेजकर निरीक्षण कराया। तब टीम ने सेंटर के डायरेक्टर डॉ. राजू प्रेमचंदानी और डॉ. अजय मोदी की उपस्थिति में महिलाओं की सोनोग्राफी संबंधी रजिस्टर की जांच की गई जिसका पंचनामा बनाया गया। इस दौरान दोनों डॉक्टरों द्वारा सोनोग्राफी रजिस्टर पेश किए गए जिन्हें जब्त किया गया।

ये मिली बड़ी गड़बड़ियां

    जांच में पाया कि सेंटर PCPNDT एक्ट के तहत रजिस्टर्ड है और प्रत्येक माह की 5 तारीख तक गर्भवती महिलाओं की अल्ट्रा सोनोग्राफी रिपोर्ट और फॉर्म-F सक्षम प्राधिकारी PCPNDT एक्ट में कलेक्टर कार्यालय में प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है।
    इसमें आइडियल मेडिकल सेंटर की रिपोर्ट पेश की गई रिपोर्ट और फॉर्म-F नंबर 68,71 और 79 पर गर्भवती महिलाओं के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर नहीं थे।
    ऐसे ही फॉर्म-F नंबर 103 104 और 112 से 126 तक पर डॉ. राजू प्रेमचंदानी के हस्ताक्षर नहीं पाए गए।
    एडीएम ने सेंटर को कारण बताओ सूचना नोटिस जारी किया था। 23 जून 2011 को दोनों डॉक्टरों ने जवाब पेश किया था।
    24 जून 2011 को गठित जिला सलाहकार समिति की बैठक में सर्व समिति से निर्णय लिया कि महिला की जांच डॉ. अजय मोदी ने की थी लेकिन एक्ट के तहत का फॉर्म-F नहीं भरा गया।
    इस कारण गर्भधारण पूर्व और निदान 1996 के नियम 9,10(01) का उल्‍लघंन पाया गया।
    इसी प्रकार गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम के अनुसार ANC रजिस्टर मेंटेन नहीं किया जो धारा 29, 23 और 25 के तहत तहत दंडनीय अपराध पाया है।
    दोनों डॉक्टरों के खिलाफ गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम 1994 की धारा 23 और 25 के तहत जिला कोर्ट में परिवाद लगाया गया।
    लंबी सुनवाई चली जिसमें कोर्ट ने दोनों डॉक्टरों को एक-एक साल के कारावास की सजा सुनाई।
    तत्कालीन एडीएम नारायण पाटीदार द्वारा टीआई को एक पत्र लिखकर जानकारी मांगी कि महिला की सोनोग्राफी किस सेंटर पर हुई।

अब जानिए कब, क्या-क्या हुआ…

    अप्रैल–मई 2011: तितलौर बुजुर्ग की एक गर्भवती महिला ने इंदौर के एक सोनोग्राफी सेंटर पर जांच करवाई थी, जिसमें संभवतः लिंग परीक्षण हुआ था।
    1 जून 2011: इंदौर के अखबारों में महिला की आत्महत्या की खबर प्रकाशित हुई। खबर में उल्लेख था कि महिला ने एक सोनोग्राफी सेंटर में जांच करवाई थी, जिसके बाद वह तनाव में रहने लगी थी।
    इसके बाद, जिला प्रशासन हरकत में आया और पुलिस से यह जानकारी मांगी गई कि महिला की सोनोग्राफी किस सेंटर पर हुई थी।
    7 जून 2011: डीएसपी मुख्यालय ने बताया कि महिला ने 8/47, स्नेह नगर स्थित आइडियल मेडिकल सेंटर में सोनोग्राफी करवाई थी।
    11 जून 2011: प्रशासन की टीम ने सेंटर का निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान डायरेक्टर डॉ. राजू प्रेमचंदानी और डॉ. अजय मोदी की उपस्थिति में सोनोग्राफी रजिस्टर की जांच कर पंचनामा बनाया गया। रजिस्टर व अन्य दस्तावेज जब्त किए गए और दोनों डॉक्टरों से दस्तखत भी करवाए गए।
    24 जून 2011: जिला सलाहकार समिति की बैठक में पाया गया कि महिला की जांच डॉ. अजय मोदी ने की थी, लेकिन PCPNDT एक्ट के तहत अनिवार्य फॉर्म-F नहीं भरा गया था। जांच में एक्ट के कई उल्लंघन पाए गए और दोनों डॉक्टरों की भूमिका स्पष्ट हुई।
    25 सितंबर 2011: प्रशासन ने कोर्ट में परिवाद दायर कर सख्त कार्रवाई की मांग की और सभी दस्तावेज पेश किए।
    23 जून 2017: 6 साल बाद, कोर्ट ने दोनों डॉक्टरों के खिलाफ आरोप तय किए और इसी दिन से साक्ष्य (इविडेंस) की प्रक्रिया शुरू हुई।
    2 सितंबर 2025: कोर्ट ने बहस पूरी कर फैसला आरक्षित रखा।
    16 सितंबर 2025: जिला अभियोजन अधिकारी (DPO) राजेंद्रसिंह भदौरिया ने फैसले की आधिकारिक जानकारी दी।

साक्ष्यों और बयानों के आधार पर सजा तय

    केस में 9 प्रमुख गवाह थे, जिनमें आईएएस अफसर, अपर कमिश्नर (राजस्व), कार्यकारी डायरेक्टर, डीएसपी, स्वास्थ्य विभाग के रिटायर्ड डायरेक्टर, उप सचिव (मप्र शासन) आदि शामिल थे।
    पेश किए गए दस्तावेजों में शामिल थे
    PCPNDT एक्ट से जुड़े आदेश,
    कारण बताओ नोटिस व उत्तर,
    दस्तावेजों का जब्ती व जांच पंचनामा,
    सोनोग्राफी रिपोर्ट,
    फॉर्म-F संबंधित रिकॉर्ड,
    सेंटर का पंजीयन सर्टिफिकेट (2006–2011),
    रैफरल स्लिप,
    मशीन सील करने का पंचनामा,
    राशि भुगतान की रसीदें आदि।

डॉक्टरों ने पहले यह स्वीकार नहीं किया कि मृतक महिला ने उनके सेंटर पर सोनोग्राफी करवाई थी। अखबारों में प्रकाशित खबर में यह भी उल्लेख था कि महिला की यह दूसरी बेटी थी, जबकि ससुराल पक्ष बेटे की चाह में उस पर मानसिक दबाव डाल रहा था। कोर्ट ने केवल PCPNDT एक्ट की दो धाराओं के उल्लंघन को आधार बनाकर सजा सुनाई।

कोर्ट ने कहा- बख्शा तो समाज पर पड़ेगा विपरीत असर

सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि यह डॉक्टरों का पहला अपराध है, इसलिए न्यूनतम सजा दी जाए। वहीं, अभियोजन पक्ष की ओर से एडीपीओ आकृति गुप्ता ने मांग की कि दोषियों को कठोरतम दंड दिया जाए।

कोर्ट ने माना कि यह अपराध गंभीर है और इसका समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसलिए, अपराधी परिवीक्षा अधिनियम 1958 के अंतर्गत छूट देना न्यायोचित नहीं है। ऐसे में कोर्ट ने दोनों डॉक्टरों को PCPNDT एक्ट की दो धाराओं में दोषी मानते हुए, एक-एक साल और तीन-तीन महीने के कारावास और 6-6 हजार रुपए के अर्थदंड से दंडित किया।

 

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