samacharsecretary.com

BPSC ASO Exam 2025: 10 सितंबर को प्रीलिम्स, देखें पूरा शेड्यूल

पटना बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) ने सहायक अनुभाग अधिकारी के पद हेतु प्रारंभिक प्रतियोगिता परीक्षा 2025 की तारीख घोषित कर दी है। आयोग के अनुसार, यह परीक्षा राज्य के 11 जिलों में स्थित विभिन्न परीक्षा केन्द्रों पर आयोजित की जाएगी। परीक्षा केंद्रों की विस्तृत सूची उम्मीदवारों को उनके एडमिट कार्ड में उपलब्ध कराई जाएगी। 10 सितंबर को होगी प्रारंभिक परीक्षा बीपीएससी सहायक अनुभाग पदाधिकारी (ASO) प्रारंभिक परीक्षा 2025 का आयोजन 10 सितंबर 2025 (बुधवार) को किया जाएगा। यह परीक्षा सामान्य ज्ञान (वस्तुनिष्ठ प्रकार) विषय पर आधारित होगी, जो दोपहर 12:00 बजे से अपराह्न 2:15 बजे तक चलेगी। यानी कुल परीक्षा अवधि 2 घंटे 15 मिनट की होगी। जल्द जारी होंगे एडमिट कार्ड परीक्षा के लिए एडमिट कार्ड जल्द ही बिहार लोक सेवा आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर जारी किए जाएंगे। अभ्यर्थियों को सलाह दी जाती है कि वे परीक्षा केंद्र पर परीक्षा समय से कम से कम एक घंटा पहले पहुंचें, ताकि समय पर आवश्यक जांच प्रक्रिया पूरी की जा सके। उम्मीदवारों के लिए यह अनिवार्य है कि वे परीक्षा में शामिल होते समय अपने साथ एक वैध फोटो पहचान पत्र (जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड आदि) अवश्य लाएं। इसके साथ ही, परीक्षा केंद्र में किसी भी प्रकार की इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जैसे मोबाइल फोन, स्मार्ट वॉच, कैलकुलेटर आदि ले जाने की कड़ाई से मनाही है। कुल 41 रिक्त पदों के लिए भर्ती इस भर्ती अभियान का उद्देश्य बिहार लोक सेवा आयोग में सहायक अनुभाग पदाधिकारी के कुल 41 रिक्त पदों को भरना है। इसके लिए ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया 29 मई से 23 जून 2025 तक आयोग की आधिकारिक वेबसाइट bpsc.bihar.gov.in पर आयोजित की गई थी। इतना मिलेगा वेतन चयन प्रक्रिया के अंतर्गत सफल उम्मीदवारों को वेतन स्तर-7 के अंतर्गत रखा जाएगा, जिसमें उन्हें प्रतिमाह ₹44,900 से ₹1,42,400 तक का वेतन प्रदान किया जाएगा। बीपीएससी एएसओ एडमिट कार्ड 2025: डाउनलोड करने के चरण     सबसे पहले बिहार लोक सेवा आयोग की आधिकारिक वेबसाइट bpsc.bihar.gov.in पर जाएं।     होमपेज पर दिए गए "ASO Admit Card 2025" लिंक पर क्लिक करें।     अब अपनी लॉगिन डिटेल्स (यूजरनेम और पासवर्ड) दर्ज करें और सबमिट करें।     स्क्रीन पर आपका एडमिट कार्ड दिखाई देगा, उसे ध्यानपूर्वक जांचें और डाउनलोड करें।     भविष्य में उपयोग के लिए उसका प्रिंटआउट निकालकर सुरक्षित रखें।

फलोद्यान बगिया विकास में स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने दिखाया विशेष उत्साह

एक बगिया मां के नाम परियोजना, MPSEDC ने किया ऐप का निर्माण फलोद्यान बगिया विकास में स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने दिखाया विशेष उत्साह 34 हजार से अधिक महिलाओं ने कराया ऐप पर रजिस्ट्रेशन, निजी भूमि पर विकसित की जाएगी बगिया भोपाल स्व सहायता समूह की महिलाओं को समृद्ध बनाने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। नवाचारों के माध्यम से महत्वाकांक्षी योजनाएं चलाई जा रही है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत प्रदेश में "एक बगिया मां के नाम" परियोजना शुरू की गई है। इसके अंतर्गत स्व-सहायता समूह की महिलाओं की निजी भूमि पर फलोद्यान की बगिया लगाई जाएगी। फलोद्यान की बगिया लगाने को लेकर समूह की महिलाओं ने विशेष उत्साह का दिखाया है। प्रदेश में निर्धारित लक्ष्य से अधिक 34 हजार 84 महिलाओं ने एक बगिया मां के नाम ऐप पर पंजीयन कराया है। परियोजना के अंतर्गत सरकार हितग्राहियों को पौधे, खाद, गड्ढे खोदने के साथ ही पौधों की सुरक्षा के लिए कटीले तार की फेंसिंग और सिंचाई के लिए 50 हजार लीटर का जल कुंड बनाने के लिए राशि प्रदान कर रही है। योजनान्तर्गत प्रदेश में फलदार पौधे लगाने का कार्य भी शुरू हो गया है। MPSEDC ने किया ऐप का निर्माण एक बगिया मां के नाम परियोजना का लाभ लेने वाली स्वयं सहायता समूह की महिलाओं का चयन एक बगिया मां के नाम ऐप से किया जा रहा है। ऐप का निर्माण मनरेगा परिषद द्वारा MPSEDC के माध्यम से कराया गया है। अन्य किसी माध्यम से हितग्राही का चयन नहीं किया जाएगा। चयनित महिला हितग्राही के नाम पर भूमि नहीं होने की दशा में उस महिला के पति-पिता-ससुर-पुत्र की भूमि पर उनकी सहमति के आधार पर पौधरोपण किया जा सकेगा। पहली बार अत्याधुनिक तकनीक से किया जा रहा पौधरोपण प्रदेश में पहली बार अत्याधुनिक तकनीक से पौधरोपण का कार्य किया जा रहा है। इसके लिए सिपरी सॉफ्टवेयर की मदद ली जा रही है। इस सॉफ्टवेयर के माध्यम से पौधरोपण के लिए जमीन का चयन वैज्ञानिक पद्धति (सिपरी सॉफ्टवेयर) के माध्यम से किया गया है। जमीन चिन्हित होने के बाद सॉफ्टवेयर की मदद से ही भूमि का परीक्षण किया गया है। जलवायु के साथ ही किस जमीन पर कौन सा फलदार पौधा उपयोगी है, पौधा कब और किस समय लगाया जाएगा, पौधों की सिंचाई के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी कहाँ पर उपलब्ध है, यह सब वैज्ञानिक पद्धति (सिपरी सॉफ्टवेयर) के माध्यम से पता लगाया जा रहा है। जमीन के उपयोगी नहीं पाए जाने पर पौधरोपण का कार्य नहीं होगा। पौधरोपण का कार्य बेहतर ढंग से हो इसके लिए संबंधित अधिकारियों एवं कर्मचारियों को प्रशिक्षण भी दिया गया है। प्रदेश में 31 हजार 300 महिलाओं को मिलेगा परियोजना का लाभ “एक बगिया माँ के नाम’’ परियोजना अंतर्गत प्रदेश की 31 हजार से अधिक स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को लाभ मिलेगा। इनकी निजी जमीन पर 30 लाख से अधिक फलदार पौधे लगाएं जाएंगे, जो समूह की महिलाओं की आर्थिक समृद्धि का आधार बनेंगे। हर एक ब्लॉक में 100 हितग्राहियों का किया जा रहा चयन एक बगिया मां के नाम परियोजना अंतर्गत प्रत्येक ब्लॉक में न्यूनतम 100 हितग्राहियों का चयन किया जा रहा है। चयनित हुई समूह की पात्र महिलाओं को बाकायदा प्रशिक्षित किया जाएगा। यह प्रशिक्षण महिलाओं को वर्ष में दो बार दिया जाएगा। न्यूनतम 0.5, अधिकतम 1 एकड़ जमीन होना अनिवार्य एक बगिया मां के नाम परियोजना का लाभ लेने के लिए चयनित हुई समूह की महिला के पास बगिया लगाने के लिए भूमि की सीमा भी निर्धारित की गई है। चयनित महिला के पास न्यूनतम 0.5 या अधिकतम एक एकड़ जमीन होना अनिवार्य है। प्रति 25 एकड़ पर 1 'कृषि सखी' की होगी तैनाती फलोद्यान की बगिया लगाने के लिए चयनित हितग्राहियों की सहायता के लिए कृषि सखी की तैनाती की जाएगी। ये कृषि सखी हितग्राहियों को खाद, पानी, कीटों की रोकथाम, जैविक खाद, जैविक कीटनाशक तैयार करने और अंतरवर्तीय फसलों की खेती के बारे में जानकारी प्रदान करेंगी। प्रत्येक 25 एकड़ पर एक कृषि सखी की तैनाती की जाएगी। ड्रोन-सैटेलाइट इमेज और डैशबोर्ड से निगरानी पौधरोपण का कार्य सही ढंग से हो रहा है या नहीं, पौधे कहाँ लगे हैं, कहाँ नहीं लगे, इसकी ड्रोन-सैटेलाइट इमेज से बकायदा निगरानी भी की जाएगी। साथ ही पर्यवेक्षण के लिए अलग से एक डैशबोर्ड भी बनाया गया है। प्रदर्शन के आधार पर प्रथम 3 जिले, 10 जनपद पंचायत व 25 ग्राम पंचायतों को पुरस्कृत भी किया जाएगा। हितग्राहियों के चयन में टॉप 5 जिले एक बगिया मां के नाम परियोजना के लिए हितग्राहियों के चयन में प्रदेश के 5 जिले सिंगरौली, देवास, खंडवा, निवाड़ी और टीकमगढ़ अग्रणी हैं।  

अब मातृत्व का सपना टाले बिना पूरा करें करियर गोल्स, जानें Egg Freezing से जुड़े जरूरी तथ्य

नई दिल्ली मातृत्व का सफर महिलाओं के लिए हमेशा से एक भावनात्मक और संवेदनशील मुद्दा रहा है. मां बनना, अपनी गोद में अपने अंश को देखना आज भी हर महिला के लिए सबसे अहम है लेकिन कई बार करियर की दौड़, परिवार की जिम्मेदारियां या सही साथी न मिल पाने की वजह से यह सपना पूरा नहीं हो पाता और समय की बाध्यताएं उनके मातृत्व के सपनों को चुनौती देती हैं. यहीं से आता है एग फ्रीजिंग का चलन. एक ऐसा आधुनिक समाधान जो महिलाओं को उनके सपनों को जीवित रखने का अवसर देता है. भारत में बढ़ा एग फ्रीजिंग का ट्रेंड हाल के वर्षों में, भारत में एग फ्रीजिंग का ट्रेंड काफी प्रचलित हुआ है. एग फ्रीजिंग को मेडिकल भाषा में Oocyte cryopreservation कहते हैं, एक ऐसी प्रक्रिया जिसमें महिलाएं अपने अंडों को भविष्य के लिए संरक्षित कर सकती हैं, ताकि जब वे तैयार हों, तब मां बनने का सपना पूरा कर सकें. यह तकनीक न केवल करियर और मातृत्व के बीच संतुलन लाने में मदद करती है, बल्कि महिलाओं को बिना किसी बंधन के, बिना किसी जल्दबाजी के, अपने समय पर मां बनने का अधिकार देती है. आसान हो रही है egg freezing की प्रक्रिया पिछले पांच सालों में भारत में एग फ्रीजिंग की मांग में काफी वृद्धि हुई है. Egg Preservation Institute of Asia (EIPA) जो भारत में शुरू हुआ एक लीडिंग फर्टिलिटी क्लिनिक है, उसने कुछ समय पहले एट-होम एग फ्रीजिंग की शुरुआत की है. यह सर्विस के जरिए लगभग पूरी एग फ्रीजिंग की प्रक्रिया को घर में ही निजता और आसानी से किया जा सकता है.   क्यों महिलाएं करा रहीं एग फ्रीज? अंडों को फ्रीज करने का विकल्प महिलाओं को आजादी देता है और उन्हें अपनी इच्छा के मुताबिक संतान पैदा करने का अधिकार देता है. लगातार महंगी हो रही एजुकेशन और करियर के दबाव की वजह से अधिकांश जोड़े आजकल देर से और करियर में सेटल होने के बाद ही मां-बाप बनने की प्लैनिंग कर रहे हैं ताकि संतान आने से पहले ही वो आर्थिक रूप से मजबूत हो जाएं.  Oocyte cryopreservation महिला की फर्टिलिटी क्लॉक, हेल्थ इश्यूज, मेनापॉस या लाइफस्टाइल से प्रभावित हुए बिना अंडों को संरक्षित रखने में मदद करता है जिसके बाद वो In vitro fertilization (IVF) के जरिए बाद में इन अंडों का उपयोग मां बनने के लिए कर सकती हैं.  कब तक करा लेनी चाहिए egg freezing दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल में सीनियर कंसल्टेंट ऑब्स्टेट्रिशियन गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. नीलम सूरी egg freezing (अंडे जमाना) के बारे में बात करते हुए 'आजतक डॉट इन' से कहती हैं, भारत समेत पूरी दुनिया में महिलाओं की प्रजनन शक्ति (fertility) पहले से कम हुई है. वहीं, 30-35 वर्ष के बाद महिलाओं के अंडाणु की संख्या और गुणवत्ता तेजी से गिरती है जिससे गर्भधारण के अवसर कम होते जाते हैं. इस वजह से महिलाएं अब अपने अंडों को लैब में फ्रीजिंग कर रही हैं ताकि उन्हें शादी या बच्चे की प्लानिंग के लिए बाद में उपयोग कर सकें. कैसे होता है egg freeze अमेरिका के ओहियो में हाल ही में 30 साल पुराने फ्रीज्ड अंडे से एक दम स्वस्थ बच्चा पैदा हुआ है. इस बारे में डॉ. नीलम बताती हैं कि अंडाणु जमा कराना एक सुरक्षित प्रक्रिया है जिसमें महिला के अंडाशय से अंडाणु निकालकर उन्हें -196 डिग्री सेल्सियस पर फ्रीज कर दिया जाता है जो 20 साल तक सुरक्षित रहते हैं. कैंसर जैसी बीमारियों में भी महिलाओं के लिए एग्स फ्रीजिंग जरूरी होती है क्योंकि रेडियोथेरेपी या कीमोथेरेपी से एग्स नष्ट हो सकते हैं. एग फ्रीजिंग का सक्सेस रेट क्या है इस सवाल के जवाब में डॉक्टर नीलम ने कहा, 'गर्भधारण की सफलता मुख्य रूप से अंडाणु की गुणवत्ता पर निर्भर करती है. 35 साल से पहले अंडा जमाने पर सक्सेस रेट करीब 60-70% होता है लेकिन उम्र बढ़ने के साथ यह घटता जाता है. इसलिए एग फ्रीजिंग जितना जल्दी हो उतना बेहतर होता है.  ज्यादातर मामलों में 20-30 वर्ष के बीच ही ऐसा कर लेना चाहिए.'  क्या कोई भी महिला एग फ्रीजिंग करा सकती है  डॉ. नीलम ने बताया कि भारत में एग फ्रीजिंग कानूनी रूप से वैध है और यह महिला के अपने शरीर की स्वतंत्रता के अंतर्गत आता है. इसलिए कोई भी इसे करा सकता है. हालांकि इसके लिए मेडिकल सलाह जरूरी है, खासकर अगर महिला को कोई गंभीर बीमारी है या उसकी फर्टिलिटी गिर रही है. एग फ्रीजिंग का फैसला महिला के व्यक्तिगत कारणों और मेडिकल इंडिकेटर्स पर आधारित होता है. आखिर में वो बताती हैं कि अंडाणु जमाने के बाद भ्रूण में कोई आनुवांशिक समस्या न हो, इसके लिए PGD (preimplantation genetic diagnosis) कराना चाहिए ताकि स्वस्थ बच्चे का जन्म हो सके. egg freezing एक सुरक्षित और प्रभावी तकनीक है. यह उनके लिए फायदेमंद है जो सही पार्टनर ना मिल पाने के कारण लेट मैरिज कर रही हैं, करियर को लेकर ज्यादा फोकस्ड हैं, या फिर किसी मेडिकल कंडीशन से जूझ रही हैं. महिलाएं सीमित अंडों के साथ पैदा होती हैं लखनऊ में सी के बिड़ला फर्टिलिटी एंड आईवीएफ की सेंटर हेड डॉक्टर श्रेया गुप्ता का कहना है कि पुरुषों की तरह महिलाओं में अंडों का उत्पादन पूरे जीवन भर नहीं होता है. महिलाओं के अंडाणु (Eggs) पहले से निश्चित संख्या में होते हैं जो जन्म के समय सबसे ज्यादा होते हैं लेकिन जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है उनकी संख्या और गुणवत्ता कम होती जाती है.   उदाहरण के लिए 30 के बाद लगभग बड़ी संख्या में एग्स खत्म हो जाते हैं और 37 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते यह करीब 90% तक कम हो जाते हैं. इस वजह से भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में एग फ्रीजिंग की मांग बढ़ी है. इन बीमारियों के इलाज से पहले करानी चाहिए एग फ्रीजिंग ऑटोइम्यून और कैंसर जैसी कई बीमारियों के इलाज से पहले भी अंडाणु फ्रीज कराए जा सकते हैं क्योंकि कैंसर की दवाएं अंडाणु को नुकसान पहुंचा सकती हैं.  आज के समय में 10 से 15 वर्षों तक अंडाणु सुरक्षित रखे जा सकते हैं. हालांकि अंडाणु में लंबी अवधि तक स्पर्म या भ्रूण (एंब्रियो) की तुलना में कम समय तक सुरक्षित रह सकते हैं.   कुछ महिलाओं के 50 की उम्र के बाद भी पीरियड्स आते हैं लेकिन वो … Read more

चांदी खरीदने वालों के लिए खुशखबरी! अब मिलेगी हॉलमार्किंग की गारंटी, धोखाधड़ी से बचेंगे ग्राहक

भोपाल  सोने के बाद अब चांदी खरीदने वालों को भी हॉलमार्क का लाभ मिलने वाला है। एक सितंबर से देश भर के साथ ही चांदी के गहनों और बर्तनों पर सरकार हॉलमार्क लागू करने जा रही है, हालांकि प्रारंभ में इसे स्वैच्छिक तौर पर लागू किया जा रहा है। चांदी पर 6 डिजिट वाली एचयूआईडी हॉलमार्किंग लागू होगी। यानी अब हर चांदी पर सोने की तरह ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (bureau of indian standards) की मुहर (BIS Seal) होगी, जो शुद्धता और असलियत की गारंटी देगी। 900, 800, 835, 925, 970 और 990 जैसी 6 ग्रेड चांदी पर हॉलमार्किंग लागू की जाएगी। इससे ग्राहकों को सही दाम मिलेगा और ईमानदार व्यापारियों का विश्वास बढ़ेगा। गहनों की मजदूरी बढ़ेगी, तो गहने भी होंगे महंगे एमपी के सराफा कारोबारियों की मानें तो इससे गहनों की मजदूरी पर 30 फीसदी का इजाफा होगा। इससे वर्तमान में एक हजार रुपए की मिलने वाली पायल के दाम 1500 रुपए तक हो जाएंगे। ग्वालियर में सालाना चांदी का 500 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार होता है। जाने क्या है 'हॉलमार्क' (What is Hallmark) हॉलमार्क एक सरकारी मान्यता प्राप्त प्रमाण है, जो धातु की शुद्धता बताता है। जैसे, सोने में 22 कैरेट या 18 कैरेट का हॉलमार्क होता है, वैसे ही अब चांदी पर भी एक खास निशान होगा, जो बताएगा कि उसमें चांदी की शुद्धता कितनी है। बीआईएस के तहत मान्यता प्राप्त अस्सेइंग और हॉलमार्किंग सेंटर में धातु की जांच के बाद यह मुहर लगाई जाती है। ग्राहकों को क्या फायदे? (Costumer Benefits) शुद्धता की गारंटी : हर हॉलमार्क चांदी पर बीआईएस का लोगो, शुद्धता का अंक और पंजीकरण नंबर। सही दाम : वजन और शुद्धता में धोखाधड़ी की संभावना कम। बेचने में आसानी : हॉलमार्क चांदी की पुनर्खरीद पर बेहतर रेट मिलेगा। व्यापारियों को क्या फायदे? साख में बढ़ोतरी – ग्राहकों का भरोसा मजबूत होगा। नकली बाजार पर रोक : मिलावटी चांदी बेचने वालों पर लगाम। बिक्री में वृद्धि : गुणवत्ता की गारंटी से ग्राहक वफादारी बढ़ेगी।

उपभोक्ता आयोग का काम प्रशंसनीय: 3.07 लाख से अधिक प्रकरण हुए निराकृत, 78 हजार का 90 दिन में निपटान

भोपाल  खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने बताया है कि उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग में उपभोक्ताओं के आवेदन पर लगातार कार्यवाही की जा रही है। जून 2025 तक कुल 3 लाख 7 हजार 536 प्रकरणों का निराकरण किया जा चुका है। कुल प्राप्त प्रकरण संख्या 3 लाख 31 हजार 789 हैं। राजपूत ने बताया है कि निराकृत प्रकरणों में से 78 हजार 20 प्रकरणों का निराकरण 90 दिन में किया गया। उपभोक्त विवाद प्रतितोषण आयोग अंतर्गत जिला अनूपपुर में 475, अशोकनगर में 2365, बड़वानी 1093, बालाघाट 3571, बैतूल 2228, भिंड 6175, भोपाल क्रं-एक 19 हजार 498, भोपाल क्रं-2 4395, बुरहानपुर 1739, छतरपुर 6579, छिंदवाड़ा 6479, दमोह 5634, दतिया 5821, देवास 3313, धार 4337, डिंडोरी 676, गुना 10 हजार 865, ग्वालियर 23 हजार 210, हरदा 3014, इंदौर क्रं-1 में 27 हजार 916, इंदौर क्रं-2 में 5863, जबलपुर क्रं-1 में 15 हजार 464, जबलपुर क्रं-2 में 3566, झाबुआ 1288, कटनी 3781, खंडवा 6081, मंडला 4785, मंडलेश्वर 4063, मंदसौर 7954, मुरैना 9162, नर्मदापुरम 5597, नरसिंहपुर 2536, नीमच 1995, पन्ना 1585, रायसेन 1193, राजगढ़ 5050, रतलाम 3999, रीवा 11 हजार 904, सागर 9297, सतना 11 हजार 65, सीहोर 6565, सिवनी 4051, शहडोल 1801, शाजापुर 3190, श्योपुर 2258, शिवपुरी 11 हजार 84, सीधी 2172, टीकमगढ़ 3428, उज्जैन 12 हजार 537, उमरिया 485 और विदिशा में 4354 प्रकरणों का निराकरण किया जा चुका है।  

शाही विरासत पर सुलगा विवाद: भोपाल में 15000 करोड़ की संपत्ति पर 20+ दावेदारों का दावा

भोपाल  शाही परिवार की संपत्ति का विवाद फिर से सुर्खियों में है। सुप्रीम कोर्ट ने MP हाई कोर्ट के एक आदेश पर रोक लगा दी है। यह आदेश भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह खान की संपत्ति से जुड़ा है। नवाब की बेटी साजिदा सुल्तान को 1962 में एकमात्र वारिस घोषित किया गया था। साजिदा सुल्तान, फिल्म अभिनेता सैफ अली खान की दादी हैं। अब नवाब के भाइयों और अन्य रिश्तेदारों के वंशज इस दावे का विरोध कर रहे हैं। नवाब ओबैदुल्लाह खान के वंशजों ने दी याचिका सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस पी एस नरसिम्हा और अतुल चन्दुरकर की बेंच ने 8 अगस्त को यह फैसला सुनाया। उन्होंने उमर फारूक अली और राशिद अली की याचिका पर नोटिस जारी किया। ये दोनों नवाब ओबैदुल्लाह खान के वंशज हैं। उनके वकील आदिल सिंह बोपराई ने बताया कि MP हाई कोर्ट ने 30 जून को फैसला सुनाया था। इसमें कहा गया था कि नवाब की संपत्ति का बंटवारा मुस्लिम पर्सनल लॉ के हिसाब से होना चाहिए। यह फैसला 'तलत फातिमा (रामपुर) केस' पर आधारित था। हालांकि, हाई कोर्ट ने मामले को फिर से विचार करने के लिए ट्रायल कोर्ट को भेज दिया। सुप्रीम कोर्ट में इसी फैसले को चुनौती दी गई है। ट्रायल कोर्ट ने सैफ की फैमिली के पक्ष में दिया था फैसला 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने 'तलत फातिमा रामपुर केस' में फैसला दिया था कि शाही संपत्ति का बंटवारा पर्सनल लॉ के हिसाब से होना चाहिए। MP हाई कोर्ट ने 2000 के ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया था। ट्रायल कोर्ट ने नवाब की बेटी साजिदा सुल्तान, उनके बेटे मंसूर अली खान (दिवंगत क्रिकेटर) और उनके कानूनी वारिसों (सैफ अली खान, सोहा अली खान, सबा सुल्तान और शर्मिला टैगोर) के अधिकारों को सही माना था। हाई कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट का फैसला 1997 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर आधारित था, जिसे 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया था। और भी हैं इस मामले में पेंच इस संपत्ति विवाद में एक और पेच है। 2015 में सरकार ने आबिदा सुल्तान की संपत्ति को जब्त कर लिया था। आबिदा सुल्तान, हमीदुल्लाह खान की सबसे बड़ी बेटी थीं। वह पाकिस्तान चली गई थीं। भारत में उनकी संपत्ति को 'शत्रु संपत्ति' घोषित कर दिया गया है। जबलपुर के वकील राजेश कुमार पंचोली के अनुसार, आबिदा सुल्तान 1972 के मूल मामले में शामिल थीं। इस मामले में भोपाल की शाही संपत्ति के लिए 20 से अधिक दावेदार थे। रामपुर केस की चर्चा क्यों हो रही है? 2019 का रामपुर केस इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि इसमें कहा गया था कि सभी वारिसों को, जिनमें महिलाएं भी शामिल हैं, संपत्ति में हिस्सा मिलना चाहिए। लेकिन पंचोली का कहना है कि यह मामला भोपाल पर पूरी तरह से लागू नहीं हो सकता। 1972 से नवाब की कई संपत्तियां, जो भोपाल, सीहोर और रायसेन में फैली हुई हैं, वो या तो बेची जा चुकी हैं या दूसरों के कब्जे में हैं। फिलहाल हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान किसी भी नई बिक्री या हस्तांतरण पर रोक लगा दी है।  

स्कूल शिक्षा मंत्री सिंह का निर्देश: सरकारी स्कूलों की पाठ्य पुस्तकों का मुद्रण हो उच्च गुणवत्ता का

भोपाल स्कूल शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह ने कहा है कि शैक्षणिक सत्र वर्ष 2026-27 में पाठ्य पुस्तक निगम द्वारा मुद्रित की जाने वाली किताबें उच्च गुणवत्ता की हों। उन्होंने कहा कि मुद्रण कार्य से जुड़ी सभी प्रक्रियाएं तय समय-सीमा में पूरी की जायें। उन्होंने कहा कि पाठ्य पुस्तकों का वितरण शैक्षणिक सत्र शुरू होते ही पूरा किया जाये। यह व्यवस्था सुनिश्चित की जाये। स्कूल शिक्षा मंत्री सिंह  मंत्रालय में पाठ्य पुस्तक निगम की गवर्निंग बॉडी की बैठक ली। बैठक में सचिव स्कूल शिक्षा डॉ. संजय गोयल, आयुक्त लोक शिक्षण श्रीमती शिल्पा गुप्ता, वित्त, माध्यमिक‍ शिक्षा मंडल के प्रतिनिधि भी मौजूद थे। बैठक में पाठ्य पुस्तक निगम के एमडी विनय निगम ने बताया कि शैक्षणिक सत्र 2026-27 में करीब 9 करोड़ पाठ्य पुस्तकों का मुद्रण होगा। इसके लिये ई-टेंडरिंग प्रक्रिया के तहत निविदा की प्रक्रिया होगी। निगम शैक्षणिक सत्र 2026-27 में 10 मार्च 2026 तक सभी पाठ्य पुस्तकों का मुद्रण कार्य पूरा कर लेगा। बैठक में बताया गया कि इस वर्ष अप्रैल 2025 में शैक्षणिक सत्र शुरू होते ही नि:शुल्क पाठ्य पुस्तकों का वितरण शुरू किया गया था। इस वर्ष अब तक लगभग सभी पाठ्य पुस्तकों का वितरण विद्यार्थियों को किया जा चुका है। बैठक में बताया गया कि निगम ने कुछ सरकारी स्कूलों को खेल-कूद मैदान, अतिरिक्त कक्ष और नवीन कक्ष निर्माण के लिये अनुदान राशि मंजूर की है। किताबों की पांडुलिपि डेढ़ माह में मिलेगी बैठक में भी बताया गया कि राज्य शिक्षा केन्द्र द्वारा अगले शैक्षणिक सत्र के लिये एनसीईआरटी और एससीईआरटी से किताबों की पांडुलिपि सितंबर 2025 अंत तक पाठ्य पुस्तक निगम को उपलब्ध करा दी जायेंगी। मध्यप्रदेश, देश के उन चुनिंदा राज्यों में है, जहां बच्चों को नि:शुल्क पाठ्य पुस्तकें सत्र शुरू होते ही वितरित की गयीं।   स्थानीय भाषा में सामग्री विकास स्कूल शिक्षा विभाग ने 8 स्थानीय भाषाओं- बुन्देली, बघेली, मालवी, निवाड़ी, गोंडी, भीली, बारेली और कोरकू भाषाओं में सामग्री का विकास किया है। विभाग का यह प्रयास बच्चों में स्थानीय भाषा के प्रति लगाव के उद्देश्य से किया गया है।

श्रम स्टाट रेटिंग की परिकल्पना, सुरक्षा प्रावधानों के अनुपालन को मिलेगी मजबूती

श्रम स्टाट रेटिंग की परिकल्पना के साथ श्रम सुरक्षा प्रावधानों का होगा बेहतर परिपालन श्रम स्टाट रेटिंग की परिकल्पना, सुरक्षा प्रावधानों के अनुपालन को मिलेगी मजबूती कर्मचारी सुरक्षा पर फोकस, श्रम स्टाट रेटिंग से बढ़ेगा नियमों का पालन भोपाल राज्य के उद्योग तथा व्यवसायों के लिए श्रम कानूनों के प्रमुख प्रावधानों एवं औद्योगिक स्वास्थ्य व सुरक्षा संबंधी प्रावधानों के परिपालन, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के सुचारू क्रियान्वयन करने वाले प्रबंधन हेतु श्रम स्टार रेटिंग की परिकल्पना की गई है। गत दिवस राज्य के उद्योग तथा व्यवसायों के प्रतिष्ठित संगठनों तथा प्रबंधकों से वीडियों कॉन्फ्रेंस के माध्यम से इस संबंध में चर्चा की गयी। श्रम विभाग के सचिव रघुराम एम राजेन्द्रन ने इस अवसर पर कहा कि सभी के सहयोग से श्रम सुरक्षा प्रावधानों का बेहतर परिपालन किया जायेगा। चर्चा के प्रारंभ में सचिव श्रम राजेन्द्रन द्वारा प्रस्ताव की प्रारंभिक रूप रेखा प्रस्तुत की और श्रम आयुक्त ने इसकी आवश्यकता और उपयोगिता पर प्रकाश डाला। श्रम स्टार रेटिंग की प्रस्तुति अपर श्रम आयुक्त प्रभात दुबे द्वारा की गयी। इस दौरान विभिन्न संगठनों तथा प्रबंधकों द्वारा एकमत से इस प्रस्ताव की सराहना करते हुए महत्वपूर्ण सुझाव प्रस्तुत किये। कहा गया कि सेल्फ असेसमेंट की प्रणाली में स्व-प्रबंधन को प्रस्तावित वेटेज अधिक प्रतीत होता है। यह प्रणाली अधिक युक्तियुक्त होना चाहिये। महिला सहभागिता के संबंध में उद्योग-वार पृथक-पृथक मापदण्ड होना चाहिए। कई उद्योगों में महिलाएँ अधिक और कहीं अत्यन्त न्यून हैं अतः इसके अनुरूप वेटेज होना चाहिए। दिव्यांग श्रमिकों की नियुक्ति पर भी वेटेज हो। रेटिंग के घटक उद्योगों की श्रेणी (वृहद/मध्यम/लघु/सूक्ष्म/खतरनाक/ गैर खतरनाक आदि), श्रमिक संख्या तथा उत्पादों की प्रकृति आदि के अनुसार तय होना चाहिए। वेटेज भी उद्योग/ व्यवसाय की प्रकृति के अनुसार हो। लघु एवं सूक्ष्म उद्योगों हेतु यह अनिवार्य नहीं होना चाहिए। स्वतंत्र इम्पेनल्ड एजेंसियों का चयन उद्योगों तथा विभाग की सहमति से तय किया जाना उचित होगा। उच्च रेटिंग के आधार पर शासकीय क्रय में प्राथमिकता तथा शासन से सब्सिडी और अन्य इन्सेंटिव मिलना चाहिए। श्रम कानूनों के किन प्रावधानों को सम्मिलित किया जायेगा, यह स्पष्ट होना चाहिए। अन्य प्रस्तावित मापदण्डों में भी सुस्पष्ट विवरण हो। रेटिंग जारी होने के बाद प्रभावशील होने की समय-सीमा नियत हो और रेटिंग कितनी समय अवधि में होगी इसकी फ्रीक्वेंसी तय हो। समस्त प्रणाली पारदर्शी हो तथा ऑन लाइन हो और अंतिम रूप दिये जाने के पूर्व नियमित रूप से स्टेक होल्डर्स से चर्चा की जावे। सचिव श्रम ने प्राप्त सुझावों पर विचार करने तथा नियमित चर्चा किये जाने हेतु आश्वस्त करते हुए स्पष्ट किया कि इसके पश्चात ही अंतिम योजना जारी की जायेगी। सुझाव e mail id – commlab@nic.in पर भेजे जा सकते हैं। साथ ही व्हाट्सएप ग्रुप बनाने का भी सुझाव दिया। उन्होंने योजना प्रारंभ करने आगामी 02 अक्टूबर, 2025 का लक्ष्य प्रस्तावित किया। उन्होंने जिलों में होने वाले युवा संगम, प्रधानमंत्री विकसित भारत रोजगार योजना (PMVBRY) तथा दुर्घटना रहित दिवस संबंधी योजनाओं की जानकारी देते हुए इनसे जुडने का आग्रह किया। उन्होंने Reducing the compliance burden, Decriminalization and Ease of Doing Business के प्रयासों की जानकारी देने और अन्य कार्यक्रम, योजनाओं की जानकारी ग्रुप पर देने का सुझाव दिया। श्रम आयुक्त् द्वारा सभी से ठेका श्रमिकों को निर्धारित वेतन, समय पर वेतन भुगतान तथा अन्य हितलाभ जैसे ईएसआइ तथा पीएफ आदि प्रदान करने का अनुरोध किया। उन्होंने ‘’एक पेड मां के नाम’’अभियान में भागीदारी का भी आग्रह किया। चर्चा में सचिव श्रम रघुराज एम. राजेन्द्रन, श्रम आयुक्त श्रीमती रजनी सिंह, विभागीय अधिकारी तथा राज्य के विभिन्न क्षेत्र के वृहद, मध्यम तथा लघु उद्योगों के विभिन्न प्रतिष्ठित औद्योगिक संगठन जैसे एसोसिएशन ऑफ इण्डस्ट्रीज, पीथमपुर, इंदौर, देवास, मालनपुर, ग्वालियर,सी.आइ.आइ., मध्यप्रदेश एसोसिएशन ऑफ टेक्सटाइल मिल्स आदि के पदाधिकारी तथा विभिन्न उद्योग तथा व्यवसायों के वरिष्ठ प्रबंधक शामिल हुए।  

मोटापा घटाने का नया विकल्प: गोलियां जल्द आएंगी, इंजेक्शन के मुकाबले असर कितना?

नई दिल्ली भारत में फिलहाल वजन कम करने वाली और डायबिटीज को कंट्रोल करने वाली 2 दवाएं औपचारिक रूप से लॉन्च हो चुकी हैं. इनमें अली लिली की मौनजारो और नोवो नॉर्डिस्क की वेगोवी शामिल हैं. दुनिया भर में ओजेम्पिक, मौनजारो और वेगोवी जैसी दवाएं कई देशों में इंजेक्शन के रूप में मौजूद हैं लेकिन अब खबर आई है कि एली लिली और नोवो नॉर्डिस्क कंपनी जल्द ही मोटापे के इलाज की गोलियां भी मार्केट में लॉन्च करने जा रही है. इन वजन कम करने वाली गोलियों की अमेरिका में कीमतें उनके वजन घटाने वाले इंजेक्शनों के बराबर होंगी. हालांकि दोनों ही कंपनियों ने इन दवाओं की कीमतों का अभी तक कोई खुलासा नहीं किया है. उनका कहना है आने वाली दवाओं को मंजूरी मिलने और लॉन्च होने में अभी कुछ महीनों का समय है इसलिए कीमतें बदल सकती हैं. कब लॉन्च होंगी गोलियां? डेनमार्क स्थित नोवो को इस साल के अंत में मंजूरी मिलने और उसके तुरंत बाद लॉन्च होने की उम्मीद है जबकि इंडियानापोलिस स्थित लिली को अगस्त 2026 तक लॉन्च होने की उम्मीद है. नोवो की वेगोवी और लिली की जेपबाउंड (टिरजेपेटाइड, टाइप 2 डायबिटीज और वजन घटाने के लिए इस्तेमाल होने वाली एक दवा) जो वीकली इंजेक्शन के रूप में दी जाती हैं. यह GLP-1 हार्मोन को टारगेट करने वाली एकमात्र अत्यधिक प्रभावी वजन घटाने वाली दवाएं हैं और इनका अमेरिका में सबसे बड़ा मार्केट है. अमेरिका में इनकी कीमत लगभग ₹83,000 से ₹85,000 प्रति माह या उससे अधिक है. दोनों कंपनियां हेल्थ इंश्योरेंस बीमा की जगह नकद भुगतान करने वाले ग्राहकों को ₹41,417 से ₹42,415 मासिक में दवा प्रदान करती है. अगर भारत की बात करें तो भारत में मौनजारो (Mounjaro) की 1 महीने (4 इंजेक्शन) की खुराक की कीमत लगभग 14,000 रुपये से 17,500 रुपये तक है, जबकि वेगोवी (Wegovy) की 1 महीने की खुराक की कीमत करीब 17,345 रुपये से 26,015 रुपये के बीच है. इंजेक्शन और गोली में से क्या अधिक इफेक्टिव? दोनों कंपनियों ने कहा है कि उन्होंने मरीजों की जरूरतों को पूरा करने और बाजार तक पहुंच बढ़ाने के लिए, मुंह से ली जाने वाली वजन घटाने वाली दवाएं विकसित की हैं, इस बात को ध्यान में रखते हुए कि कुछ लोग इंजेक्शन से परहेज करते हैं. हालांकि, गोलियां इंजेक्शन से अधिक असरदार नहीं हैं. लिली ने इस महीने कहा कि उसकी गोली ऑर्फोर्ग्लिप्रॉन ने एक परीक्षण में 72 हफ्तों के बाद 12.4 प्रतिशत वजन कम किया. वहीं इसकी तुलना नोवो की रोजाना ली जाने वाली सेमाग्लूटाइड से 15 प्रतिशत वजन कम होने से की जा सकती है. दोनों ही लिली के इंजेक्शन से 21 प्रतिशत तक पीछे हैं. यूबीएस के विश्लेषक ट्रुंग हुइन्ह ने कहा कि कीमत शायद आज की मौजूदा दवाओं के बराबर या थोड़ी कम होंगी. वहीं टीडी कोवेन के विश्लेषक माइकल नेडेलकोविच ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि नोवो की गोली वेगोवी की कीमत के आसपास ही शुरू होगी. उन्होंने अपनी डायबिटीज की गोली राइबेलसस की कीमत का उदाहरण देते हुए कहा कि उसकी डायबिटीज की गोली ओजेम्पिक जो वेगोवी का डायबिटिक-ट्रीटमेंट वैरिएंट है, उसके इंजेक्शन के बराबर कीमत रखी गई है. नोवो के अधिकारियों ने इस महीने विश्लेषकों को बताया कि वे नई गोली के लिए रियायती मूल्य निर्धारित करने की जल्दी में नहीं हैं. विश्लेषकों के अनुसार, ओरल जीएलपी-1 दवाएं इंजेक्शन की जगह लेने के बजाय एक विशिष्ट स्थान भरेंगी. टीडी कोवेन का अनुमान है कि 2030 तक मध्य किशोरावस्था में गोलियां ग्लोबल ओबेसिटी की दवा बाजार में 1 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल कर लेंगी, जो तब तक करीब 12.45 लाख करोड़ तक पहुंच सकती हैं.  

GST सुधार से छोटे वाहनों पर असर: कीमतें घटेंगी, राजस्व में 6 अरब डॉलर की कमी

नई दिल्ली स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री द्वारा जब गुड्स एंड सर्विस टैक्स में सुधार (GST Reforms) का ऐलान किया गया, जब से देश भर में कुछ ख़ास वस्तुओं और सर्विसेज के सस्ते होने की चर्चा हो रही है. पीएम मोदी ने लालकिले के प्राचरी से कहा कि, ये जीएसटी रिफॉर्म अक्टूबर में दिवाली से पहले किया जा सकता है, जो आम आदमी के लिए दिवाली गिफ्ट जैसा होगा. इस जीएसटी सुधार के दायरे में वाहन भी शामिल हैं, जिनकी कीमतों में भारी गिरावट की उम्मीद की जा रही है. एचएसबीसी की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वाहनों पर जीएसटी में संभावित कमी से छोटी कारों की कीमतों में उल्लेखनीय कमी आ सकती है. रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि अगर छोटी कारों पर जीएसटी की दर मौजूदा 28% से घटाकर 18% कर दी जाए, तो इन वाहनों की कीमतों में लगभग 8% की कमी देखने को मिल सकती है.  बताया जा रहा है केंद्र सरकार ने जीएसटी स्लैब में सुधार के लिए प्रस्ताव दिया है और यदि यह प्रस्ताव माना जाता है तो छोटी कारों की कीमत में तगड़ी कमी आएगी. इससे फेस्टिव सीजन के मौके पर ऑटो सेक्टर को तगड़ा लाभ मिल सकता है. बशर्ते जीएसटी सुधार में ये ऐलान दिवाली के पहले घोषित किया जाए. इस बार दिवाली 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी. भारत में ज्यादातर लोग इस धनतेरस और दिवाली के मौके पर अपने घर में नए वाहन लाते हैं. मौजूदा समय में, पैसेंजर व्हीकल्स पर 28% से 50% तक जीएसटी टैक्स लगाया जाता है, जो वाहन के साइज, फ्यूल टाइप और इंजन क्षमता पर निर्भर करता है. जीएसटी के अलावा इन वाहनों पर सेस (Cess) भी लगाया जाता है, जो 1% से 5% है. इससे वाहनों की कीमत में और भी इजाफा हो जाता है. ख़बर है कि, छोटी कारें, जिन पर वर्तमान में 28 प्रतिशत जीएसटी और 1-3 प्रतिशत की सेस (Cess) दरें लागू होती हैं, नए बदलाव के बाद ये 18 प्रतिशत टैक्स स्लैब में आ सकती हैं. रिपोर्ट में छोटी कारों की कीमतों में 8% की संभावित गिरावट का अनुमान लगाया गया है, जबकि बड़ी कारों की कीमतों में 3% से 5% तक की कमी की उम्मीद है. रिपोर्ट में जीएसटी में एकसमान कटौती की संभावना पर भी विचार करने की बात कही गई है. अगर सभी वाहन श्रेणियों पर जीएसटी 28% से घटाकर 18% कर दिया जाए, तो सभी कारों के लिए कीमतों में लगभग 6% से 8% का लाभ हो सकता है.  राजस्वर में 6 अरब डॉलर की कमी हालाँकि, वाहन के साइज के आधार पर मौजूदा उपकर यानी 'Cess' को बनाए रखने का मतलब है कि ऐसी स्थिति की संभावना कम है. रिपोर्ट में सरकार खजाने में होने वाले संभावित नुकसान की तरफ भी इशारा किया गया है. जिसके अनुसार इस तरह की किसी भी व्यापक टैक्स कटौती से सरकार को अनुमानित 5 अरब से 6 अरब अमेरिकी डॉलर के बीच राजस्व में गिरावट का सामना करना पड़ेगा. रिपोर्ट में एक रिवाइज़्ड टैक्सेशन मैकेनिज़्म का भी सुझाव दिया गया है, जिसके तहत छोटी कारों पर 18% की कम दर से कर लगाया जा सकता है, जबकि बड़े वाहनों पर 40% की "स्पेशल रेट" लागू हो सकती है, और मौजूदा उपकर समाप्त कर दिया जाएगा. इस प्रस्ताव का उद्देश्य यह है कि, वाहनों के साइज और टाइप के अनुसार टैक्सेशन के तरीके को अनुकूलित करना है. जिससे बाजार में संतुलन बना रहे. इस सेग्मेंट में सबसे बड़े खरीदार भारत में 1000 सीसी से लेकर 1500 सीसी (1.0 लीटर से 1.5 लीटर इंजन) वाली कारों की डिमांड सबसे ज्यादा है. जिसमें सबसे सस्ती कार मारुति ऑटो के10 से लेकर हुंडई क्रेटा जैसी एसयूवी शामिल हैं. बीते जुलाई की टॉप 10 बेस्ट सेलिंग कारों की लिस्ट से यदि केवल महिंद्रा स्कॉर्पियो को बाहर कर दें तो कुल 10 में से 9 कारें 1.0 लीटर से 1.5 लीटर इंजन क्षमता के बीच आती हैं. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि, जीएसटी में इस सुधार का आम आदमी को किस कदर लाभ मिलेगा. इस समय कारों पर कितना लगता है GST नए वाहनों के लिए, जीएसटी दरें कार के कैटेगरी और साइज के आधार पर अलग-अलग हैं. 1200 सीसी तक की इंजन क्षमता और 4 मीटर से कम लंबाई वाली छोटी पेट्रोल कारों पर 28% जीएसटी और 1% उपकर लगता है. जबकि छोटी डीजल कारों (1500 सीसी तक, 4 मीटर से कम) पर 3% उपकर के साथ 28% जीएसटी लगता है.  वहीं मिड-साइज की कारों पर कुल 43%, लग्ज़री कारों पर 48% और एसयूवी पर सबसे ज़्यादा 50% तक का टैक्स लगता है. दूसरी ओर, इलेक्ट्रिक वाहनों पर केवल 5% जीएसटी टैक्स लागू होता है. जिससे वे अधिक किफायती हो जाते हैं. जीएसटी से पहले के दौर की तुलना में, छोटी कारों और लग्ज़री कारों पर कर का बोझ कम हुआ है, जबकि मिड-साइज की कारें थोड़ी महंगी हुई हैं. वाहन कैटेगरी इंजन क्षमता और लंबाई GST रेट उपकर  टोटल टैक्स छोटी पेट्रोल कारें 1200 सीसी तक, 4 मीटर से कम 28% 1% 29% छोटी डीजल कारें 1500 सीसी तक, 4 मीटर से कम 28% 3% 31% मिड-साइज कारें 1200 सीसी (पेट्रोल) और 1500 सीसी (डीजल) 28% 15% 43% लग्ज़री कारें 1500 सीसी तक   28% 20% 48% एसयूवी वाहन  1500 सीसी तक, 4 मीटर से ज्यादा  28% 22% 50% इलेक्ट्रिक वाहन  सभी क्षमता वाले  5% 0% 5% संभल जाएगा छोटी कारों का बाजार पिछले कुछ सालों में एंट्री लेवल छोटी कारों का बिजनेस बुरी तरह प्रभावित हुआ है. 5 लाख रुपये से भी कम कीमत में आने वाली एंट्री लेवल कारें, जिनकी बिक्री वित्तीय वर्ष-16 में 10 लाख से ज्यादा यूनिट्स की थी वो वित्तीय वर्ष-25 में घटकर 25,402 यूनिट पर आ गिरी हैं. कुल कार बिक्री में हैचबैक कारों की हिस्सेदारी आधी रह गई है, जो 2020 में 47 प्रतिशत से घटकर 2024 में 24 प्रतिशत हो गई है. ऐसे में यदि छोटी कारों पर टैक्स का बोझ कम होता है तो लोग इन कारों की तरफ मुखर होंगे और इनकी बिक्री बढ़ने की उम्मीद है.