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शैक्षणिक सत्र में बदलाव पर सवाल, 2 महीने में परीक्षा, रिजल्ट और नामांकन चुनौतीपूर्ण: शिक्षक प्रतिक्रिया

जयपुर   राजस्थान के शिक्षा महकमे ने आगामी शैक्षणिक सत्र 1 अप्रैल 2026 से शुरू करने का प्रस्ताव रखा है. इससे सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ेगा. प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए स्कूलों के अधिग्रहण से छात्रों की बाधित होने वाली पढ़ाई की भरपाई होगी. साथ ही सरकारी स्कूल प्राइवेट स्कूलों से प्रतिस्पर्धा भी कर पाएंगे. हालांकि, शिक्षक इससे इत्तेफाक नहीं रखते. उनका मानना है कि राजस्थान में 1 अप्रैल से शिक्षा सत्र शुरू करने की कवायत राजस्थान की भौगोलिक स्थिति के हिसाब से ठीक नहीं है. पहले भी इस तरह के प्रयोग किए गए हैं, जो फेल हुए हैं. मार्च तक परीक्षा और रिजल्ट : शिक्षक संघ शेखावत के प्रदेश अध्यक्ष महावीर सिहाग ने बताया कि 1 अप्रैल से शुरू करने का संदर्भ ही यही है कि परीक्षा और रिजल्ट का काम मार्च तक पूरा करना पड़ेगा, जो संभव नहीं है. इस सत्र में सितंबर खत्म होने को आ गया है, लेकिन अब तक छात्रों को किताबें प्राप्त नहीं हुई हैं और यदि मार्च में सत्र खत्म होगा तो छात्रों तक किताबें पहुंचना भी एक चुनौती होगी. इसलिए सरकार की ये सोच राजस्थान की भौगोलिक दृष्टि के हिसाब से ठीक नहीं है. पहले भी ये अनुभव किया जा चुका है, बावजूद इसके बार-बार प्रयोग करके शिक्षा विभाग को बर्बाद करने का प्रयास किया जा रहा है. ये सरकार को बंद करना चाहिए. कम से कम इस विषय में शिक्षा से जुड़े हुए शिक्षक संगठनों से बातचीत करके कोई निर्णय करना चाहिए. तानाशाही तरीके से जो भी निर्णय लिए जाते हैं, वो कभी भी शिक्षा के लिए फलदाई नहीं रहे और फिर सरकार को बाद में बदलाव करना पड़ता है. किसने क्या कहा, सुनिए. बोर्ड और स्थानीय परीक्षाओं में रखना होगा तारतम्य : हालांकि, शिक्षकों का एक धड़ा इस पहल का स्वागत भी कर रहा है. राजस्थान प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष विपिन प्रकाश शर्मा ने बताया कि राजस्थान में प्राइवेट स्कूल 1 अप्रैल या उससे भी पहले से एडमिशन शुरू कर देते हैं. जबकि सरकारी स्कूल 1 जुलाई से प्रवेश उत्सव शुरू करते हैं. इससे सरकारी स्कूल पीछे रह जाते हैं और नामांकन में संतोषजनक वृद्धि नहीं होती. यदि सत्र 1 अप्रैल से सत्र शुरू होगा, तो सरकारी स्कूलों का नामांकन निश्चित रूप से बढ़ेगा. साथ ही शहरी क्षेत्र में लगभग 35 से 40 दिन प्रतियोगी परीक्षाओं के कारण जो पढ़ाई के दिन कम हो रहे हैं, उनकी भरपाई भी होगी. हालांकि, उन्होंने इसके साथ ही चुनौतियां गिनाते हुए कहा कि विभाग को इसके लिए विशेष तैयारी करनी होगी. सबसे बड़ी चुनौती परीक्षाओं के टाइम टेबल को लेकर रहेगी. बोर्ड और स्थानीय परीक्षाओं को पहले आयोजित करना जरूरी होगा. शिक्षा मंत्री का दावा- छात्रों और अभिभावकों को राहत : हालांकि, शिक्षा मंत्री इस प्रयोग से आश्वस्त हैं. मंत्री मदन दिलावर ने कहा कि ये अभी प्रस्ताव है. अंतिम मोहर लगनी बाकी है, लेकिन यदि सत्र 1 अप्रैल से शुरू होता है तो गरीब बच्चों को भी लाभ मिलेगा और सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ेगा. निजी स्कूल फीस के मामले में कभी-कभी अनुचित तरीके अपनाते हैं. ऐसे में ये नई व्यवस्था अभिभावकों को भी राहत देगी. दिलावर ने ये भी स्पष्ट किया कि ग्रीष्मकालीन अवकाश से पहले एक से डेढ़ महीने की पढ़ाई का टेस्ट लिया जाएगा. विभाग ये सुनिश्चित करेगा कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को उनका कोर्स अप्रैल के पहले सप्ताह में ही मिल जाए, ताकि परीक्षा में छात्र अच्छा प्रदर्शन कर सकें. उन्होंने बताया कि 1 अप्रैल से 15 मई तक शिक्षक घर-घर जाकर एडमिशन लेंगे, जिससे जुलाई में प्रवेश उत्सव की आवश्यकता नहीं होगी. इसके अलावा, ड्रॉपआउट छात्रों को प्रोत्साहित कर उनका भी संबंधित कक्षा में दाखिला कराया जाएगा. शिक्षा विभाग की होगी बड़ी 'परीक्षा' : बहरहाल, 1 अप्रैल से सत्र शुरू होने से कक्षा 1 से 12 तक की परीक्षाएं 31 मार्च तक खत्म कर रिजल्ट जारी करना होगा. अप्रैल के पहले सप्ताह में किताबें, वर्क बुक छात्रों तक पहुंचानी होगी, क्योंकि यदि सामग्री अप्रैल तक नहीं पहुंचती है तो ग्रीष्मावकाश में इसे छात्रों को उपलब्ध कराना आसान नहीं होगा. वहीं, यदि इसे मूर्त रूप मिलता है तो इसका सीधा लाभ सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों और उनके अभिभावकों को मिलेगा.  

लड़कियों की पढ़ाई, ब्यूटी पार्लर और अब इंटरनेट भी बैन: अफगानिस्तान में तालिबान की सख्ती

काबुल  तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान में टेलीकॉम सर्विसेज और इंटरनेट सेवा को बंद करने का आदेश दे दिया है. ग्लोबल इंटरनेट निगरानी संस्था नेटब्लॉक्स की मानें तो पूरे देश में बीते दिन कनेक्टिविटी सामान्य से एक फीसदी के भी कम रह गई है. संस्था का कहना है कि यह इंटरनेट शटडाउन पूरी तरह से ब्लैकआउट के बराबर है. हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है, जब तालिबान ने अफगानिस्तान में किसी चीज पर बैन लगाया हो. इससे पहले भी जब तालिबान अफगानिस्तान में सत्ता में आया था, तब भी कई चीजों पर रोक लगाई गई है. चलिए जानें. सत्ता में आया तालिबान, घर में सिमटीं महिलाएं अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता आने के बाद से महिलाओं की जिंदगी तो बिल्कुल सिमट गई है. अगस्त 2021 में तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया और तब से अब तक महिलाओं और लड़कियों पर तरह-तरह की पाबंदियां लगाई जा चुकी हैं. शिक्षा, रोजगार और सामाजिक जीवन से जुड़े अधिकार उनसे धीरे-धीरे छीन लिए गए हैं. यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बार-बार तालिबान की नीतियों की आलोचना होती रही है, लेकिन हालात में कोई सुधार नहीं दिख रहा है. लड़कियों की पढ़ाई हुई बैन तालिबान के आने के बाद सबसे पहला असर लड़कियों की पढ़ाई पर पड़ा. तालिबान ने 2021 में लड़कियों के लिए छठी कक्षा से आगे की पढ़ाई पर रोक लगा दी. धीरे-धीरे विश्वविद्यालयों में भी उनका प्रवेश बंद कर दिया गया. आज स्थिति यह है कि अफगानिस्तान की लाखों लड़कियां और युवतियां स्कूल-कॉलेज जाने से वंचित हैं. शिक्षा का यह अधिकार उनसे पूरी तरह छीन लिया गया है. रोजगार के अवसरों पर लगी पाबंदी केवल शिक्षा ही नहीं, महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर भी बंद कर दिए गए. तालिबान सरकार ने कई क्षेत्रों में महिलाओं के काम करने पर रोक लगाई, जिनमें गैर-सरकारी संगठन (NGOs) और संयुक्त राष्ट्र से जुड़े प्रोजेक्ट भी शामिल हैं. इसके चलते हजारों महिलाएं जो पहले समाज में सक्रिय भूमिका निभा रही थीं, अब घरों में कैद होकर रह गई हैं. ब्यूटी पार्लर भी कर दिए गए बंद महिलाओं की सार्वजनिक उपस्थिति को भी सीमित कर दिया गया है. उनके लिए पार्क, जिम और पब्लिक बाथहाउस जैसी जगहों पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है. यहां तक कि यात्रा करने के लिए भी महिलाओं को अब पुरुष अभिभावक यानी उनके पिता या पति की जरूरत पड़ती है. यह नियम उनकी स्वतंत्रता को पूरी तरह खत्म कर देता है. जुलाई 2023 में तालिबान ने महिलाओं के लिए ब्यूटी पार्लर बंद करने का भी आदेश जारी किया था. अफगानिस्तान में हजारों महिलाएं ब्यूटी पार्लर में काम करती थीं और यह उनका रोजगार का साधन भी था.  तालिबान में सामान्य जीवन नहीं जी सकते लोग इन तमाम पाबंदियों के बीच तालिबान का तर्क यही रहता है कि ये फैसले उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक व्याख्या पर आधारित हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि तालिबान की नीतियां सीधे तौर पर महिलाओं के बुनियादी अधिकारों का हनन हैं. आज अफगानिस्तान में हालात ऐसे हैं कि लड़कियों की किताबें छिन चुकी हैं, कामकाजी महिलाओं की रोजी-रोटी खत्म हो चुकी है और सामान्य जीवन जीने के मौके भी लगातार सीमित किए जा रहे हैं.