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महाकाल की नगरी में भजनों की गूंज! दिवाली से शुरू होगा ‘महाकाल बैंड’, 30 कलाकार शामिल

उज्जैन  भगवान श्री महाकाल का धाम करोड़ों भक्तों की आस्था का खास केंद्र है. मंदिर में लगभग 300 वर्ष पुरानी सिंधिया परंपरा के साथ अब मंदिर समिति नया अध्याय जोड़ने जा रही है. मंदिर समिति खुद का एक बैंड तैयार करने में जुटी है, जिसे बाबा महाकाल की होने वाली सभी आरती व अन्य आयोजनों के दौरान उपयोग में लिया जाएगा. सिंधिया शासन काल के वक़्त से शहनाई और नगाड़े आरती के दौरान बजाने की परंपरा शुरू हुई, जो आज भी जारी है. मंदिर समिति अब भगवान महाकाल की पांचों आरतियों के दौरान विशेष बैंड तैयार करवा रही है. मंदिर प्रशासक प्रथम कौशिकका कहना है "विशेष प्रकार का बैंड तैयार करने के प्रयास किए जा रहे हैं, जैसे ही काम पूरा हो जाएगा तो सभी को जानकारी साझा की जायेगी कि इसे कब-कहां, कैसे उपयोग में लाया जाना है." अभी मंदिर में दो बार होता है शहनाई वादन श्री महाकाल मंदिर में हर रोज आरती के दौरान नगाड़े बजते हैं तो वहीं सुबह भस्म आरती के बाद 06 बजे करीब और शाम में 07 बजे करीब संध्या आरती के आसपास शहनाई वादन की परंपरा है, जोकि लगभग 300 साल पुरानी सिंधिया शासन काल के दौरान शुरू की गई थी. मंदिर समिति के अनुसार जिस बैंड को तैयार किया जाना है, उसके लिए वाद्य यंत्रों की दानदाताओं के माध्यम से खरीदारी शुरू कर दी गई है. साथ ही मंदिर समिति बैंड बजाने के लिए वाद्य वादकों की भर्ती प्राक्रिया भी शुरू करने की तैयारी में है, जिसके लिए संभवतः आउटसोर्स के माध्यम से प्रयास होगा. बैंड पूरी तरह से धार्मिक परंपरा का हो श्री महाकाल मंदिर के महेश पुजारीका कहना है "शिव तो आदि अनादि हैं. उन्हें पौराणिक कथाओं में वाद्यों का रचयिता भी कहा गया है. वे नटराज हैं, कलाधर हैं. अगर मंदिर समिति बैंड पर विचार कर रही है और आरती के दौरान व अन्य आयोजन के लिए तो यह एक अच्छा प्रयास है. पुरानी परंपराओं के साथ नई परंपराओं को भी जोड़ना अच्छा है. बस सब कुछ धर्मसंवत् होना चाहिए. बैंड धार्मिक और सांस्कृतिक उपयोग के लिए ही हो."  

भारत की पेंशन व्यवस्था संकट में, श्रमिकों के केवल एक-चौथाई को ही कवरेज

नई दिल्ली सेवानिवृत्ति के बाद आर्थिक स्थिरता और सम्मान बनाए रखने के लिए पेंशन आवश्यक है। सेवानिवृत्त लोगों को अक्सर कम होती कमाई क्षमता, बढ़ती स्वास्थ्य देखभाल लागत और मुद्रास्फीति के कारण वित्तीय अस्थिरता का सामना करना पड़ता है, जिसके लिए पेंशन के रूप में सुरक्षा कवच की आवश्यकता होती है। आर्थिक सर्वेक्षण 2025-26 के अनुसार, भारतीय पेंशन परिसंपत्तियाँ सकल घरेलू उत्पाद का केवल 17% हैं, जबकि कई उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में यह 80% तक है। वर्तमान में, भारत के केवल लगभग 12% कार्यबल ही औपचारिक पेंशन योजनाओं के अंतर्गत आते हैं। यह कवरेज भी असंगत है, क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र और संगठित निजी क्षेत्र के श्रमिकों को कई समानांतर योजनाओं के तहत सुरक्षा प्रदान की जाती है। इसके विपरीत, अनौपचारिक क्षेत्र के लिए एकमात्र सुरक्षा राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली और अटल पेंशन योजना के तहत स्वैच्छिक रूप से अपनाना है। वित्त वर्ष 2024 में इन दोनों योजनाओं का कुल जनसंख्या में लगभग 5.3% हिस्सा था। अनौपचारिक क्षेत्र को एकीकृत करें उल्लेखनीय है कि अनौपचारिक श्रम शक्ति का लगभग 85% देश के सकल घरेलू उत्पाद के आधे से ज़्यादा का उत्पादन कर रहा है। जैसे-जैसे बाज़ार विकसित होंगे, गिग अर्थव्यवस्था का और विस्तार होगा। पेंशन ढाँचे से उनका बहिष्कार न केवल एक नीतिगत खामी है, बल्कि एक आसन्न वित्तीय संकट भी है। 2050 तक, भारत का वृद्धावस्था निर्भरता अनुपात बढ़कर 30% हो जाएगा। परिणामस्वरूप, 2047 तक विकसित अर्थव्यवस्था का दर्जा प्राप्त करने का भारत का मार्ग, काफी हद तक, वृद्धावस्था गरीबी के विरुद्ध भविष्य को सुरक्षित करने के हमारे प्रयासों पर निर्भर करेगा। वर्तमान में, पेंशन कवरेज का विस्तार उन मुद्दों के कारण बाधित है जो मापनीयता, संवेदनशीलता और स्थिरता से जुड़े हैं। पेंशन ढांचे से अनौपचारिक श्रमिकों को बाहर रखने का प्राथमिक कारण पेंशन योजनाओं की खंडित प्रकृति है। हालाँकि सरकार ने गिग श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा शुरू की है, जो आंशिक रूप से एग्रीगेटर्स द्वारा वित्त पोषित है, यह अनौपचारिक क्षेत्र के केवल एक अंश को ही संबोधित करता है और पहले से ही जटिल जाल में एक और समानांतर योजना जोड़ता है। इसके विपरीत, अधिकांश परिपक्व अर्थव्यवस्थाओं में कई स्तरों वाला एक सुव्यवस्थित पेंशन पारिस्थितिकी तंत्र होता है जो पूरी आबादी की विविध आवश्यकताओं को पूरा करता है। उदाहरण के लिए, जापान 20 से 59 वर्ष की आयु के सभी निवासियों के लिए एक अनिवार्य फ्लैट-रेट अंशदायी योजना संचालित करता है, जिसमें स्व-नियोजित, किसान, सार्वजनिक और निजी कर्मचारी और उनके आश्रित शामिल हैं। इसी तरह, न्यूजीलैंड 65 वर्ष और उससे अधिक आयु के निवासियों को 10 साल की निवास आवश्यकता के अधीन एक सार्वभौमिक, फ्लैट-रेट सार्वजनिक पेंशन प्रदान करता है

दिवाली पर बड़वानी में हिंगोट पर पाबंदी, ड्रोन से चेकिंग, पुलिस मुस्तैद

बड़वानी  दिवाली की रात कुछ जगहों पर 'आग के गोले' बरसने की पुरानी परंपरा देखने को मिलती है. इस बार बड़वानी प्रशासन और पुलिस ने इसे रोकने के लिए कड़े कदम उठाए हैं. जिले में हिंगोट के निर्माण, भंडारण, क्रय-विक्रय और चलाने पर दो माह के लिए रोक लगा दी गई है. पुलिस को आदेश दिए गए हैं कि नियमों का कड़ाई से पालन कराए जाए. शहर-गांव की सड़कों पर जगह-जगह तैनात पुलिस अब हिंगोट चलाने वालों की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहती. कई जगह डंडे लेकर खड़ी टीमें नजर आ रही हैं और निगरानी के लिए सीसीटीवी व ड्रोन कैमरों का उपयोग भी किया जा रहा है. क्यों उठाया यह कदम, चोटें और जान-माल की आशंका हिंगोट जिसे कुछ स्थानों पर 'दीपावली युद्ध' का हिस्सा माना जाता है, असल में एक फल होता है, जिसे खाली करके उसमें बारूद और विस्फोटक सामग्री भरी जाती है. युद्ध की तरह खेले जाने पर यह तेज रफ्तार से उड़ता हुआ किसी के भी शरीर में घातक चोट पहुंचा सकता है. पिछले कुछ वर्षों में बड़वानी जिले में हिंगोट खेलने के दौरान कई गंभीर दुर्घटनाएं हुई हैं. पिछले साल एमजी रोड पर एक 8 वर्षीय बच्चे को गंभीर सिर की चोट लगी. अस्पताल में जांच में उसकी खोपड़ी में फ्रैक्चर व दिमाग पर असर पाया गया और लाखों रुपये खर्च कर उसकी जान बचाई गई थी. इसी तरह दर्ज घटनाओं व संभावित जान-माल के जोखिम को देखते हुए प्रशासन ने आपात कदम उठाने का निर्णय लिया. प्रशासनिक आदेश, दो माह का पूर्ण प्रतिबंध कलेक्टर व जिला दंडाधिकारी जयति सिंह ने हिंगोट के निर्माण, भंडारण, विक्रय और उपयोग पर दो माह के लिए प्रतिबंध आदेशित किया है. एसडीएम भूपेंद्र रावत ने निर्देशों का पालन कराने और उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी. आदेश में उल्लंघन करने वालों के खिलाफ विस्फोटक अधिनियम 1884, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम 1908, विस्फोटक नियम 2008 तथा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 208 समेत अन्य प्रावधानों के तहत कानूनी कार्रवाई करने की बात कही गई है. पुलिस की तैयारी, पेट्रोलिंग, ड्रोन, सीसीटीवी और मुकदमे एडिशनल एसपी धीरज सिंह बबर ने बताया कि, ''एसपी के निर्देशानुसार पुलिस हिंगोट चलाने वालों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई कर रही है. जिलेभर में कई संदिग्धों के खिलाफ मामले दर्ज किए जा चुके हैं. दिन-रात पेट्रोलिंग, संदिग्ध व्यक्तियों व विक्रेताओं की निगरानी, मुखबिर नेटवर्क को सक्रिय करने के साथ-साथ जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं और ड्रोन कैमरों से भी निगरानी की जा रही है. मुहल्लों में जाकर टीमों द्वारा लोगों को समझाया जा रहा है कि यह खतरनाक प्रथा क्यों बंद होनी चाहिए और इसे रोकना किस तरह समुदाय की सुरक्षा के लिए आवश्यक है. पुलिस ने स्पष्ट किया है कि प्रतिबंध के उल्लंघन करने वालों के साथ सख्ती होगी. न केवल एफआईआर दर्ज की जाएगी, बल्कि आवश्यकतानुसार संपत्तियों व भंडारण पर भी कार्रवाई की जाएगी. जिला प्रशासन ने आमजन से अपील की है कि वे किसी भी संदिग्ध गतिविधि या व्यक्ति की तुरंत सूचना पुलिस कंट्रोल रूम पर दें.      समाज का समर्थन और चेतावनी कई वार्डों व मोहल्लों के लोगों ने प्रशासन के निर्णय का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि पिछले वर्षों में हुई दुर्घटनाओं ने सबको हिलाया है और युवा वर्ग को इस तरह की खतरनाक रस्मों से दूर रखना चाहिए. वहीं कुछ परंपरावादी समुदायों में अभी भी यह रस्म जारी रखने की जिद दिखाई देती है, जिससे प्रशासन चौकन्ना है. एसडीएम भूपेंद्र रावत ने कहा, 'हमारा लक्ष्य केवल कानूनी कार्रवाई नहीं, बल्कि इस खतरनाक कुप्रथा को जड़ों से खत्म करना है ताकि आने वाले वर्षों में कोई भी परिवार इस तरह की त्रासदी का सामना न करे.'' हिंगोट क्या है, जानें खतरनाक प्रक्रिया हिंगोट मूल रूप से जंगलों से कच्चा तोड़ा जाने वाला फल है. इसे भीतर से खोखा कर लिया जाता है और फिर उसमें बारूद व विस्फोटक सामग्री भर दी जाती है. दीपावली के दिन ग्रामीण व युवा इसे एक खेल की तरह आपस में उछालते हैं, इस दौरान तेज धमाके व उड़ान के कारण गंभीर चोटें, आँखों व चेहरे पर आघात, हाथ-पैर कटने व यहाँ तक कि जान जाने तक की घटनाएं देखने को मिली हैं. इसलिए प्रशासन के लिए इसे नियंत्रित करना अनिवार्य हो गया है.