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नवरात्रि में मां का भवन सजाने के वास्तु नियम, घर में आएगी सुख-समृद्धि

आप नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के मंदिर को न केवल सुंदरता से सजा सकते हैं, बल्कि सकारात्मक ऊर्जा और शक्ति का भी संचार कर सकते हैं। नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के मंदिर की सजावट करने के लिए वास्तु शास्त्र के अनुसार कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए जा रहे हैं। इन उपायों से आप नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के मंदिर को सुंदरता और भक्ति के साथ सजा सकते हैं, जिससे वातावरण में विशेष ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार होगा: स्थान का चयन: मंदिर को घर के उत्तर-पूर्व दिशा में सजाना शुभ माना जाता है। यह दिशा सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है। साफ-सफाई: सबसे पहले मंदिर को अच्छे से साफ करें। धूल और गंदगी को हटाएं ताकि वातावरण पवित्र और सुगंधित हो। पवित्रता बनाए रखने के लिए नियमित रूप से सफाई करें। फूलों की सजावट: मां दुर्गा की प्रतिमा को ताजे फूलों से सजाएं। लाल, पीला और सफेद फूल शुभ माने जाते हैं। आप फूलों की माला भी बना सकते हैं। दीप जलाना: तेल अथवा गाय के शुद्ध देसी घी के दीये जलाएं। यह रोशनी और ऊर्जा का प्रतीक हैं। सुबह और शाम दीयों को जलाने का विशेष महत्व है। रंगोली: मंदिर के सामने रंगोली बनाएं। यह स्वागत का प्रतीक है और वातावरण को खुशनुमा बनाता है। भोग और प्रसाद: मां को भोग के लिए फल, मिठाइयां और अन्य खाद्य पदार्थ रखें। इसे सुंदर तरीके से सजाकर अर्पित करें। ताम्बूल और वस्त्र: देवी को ताम्बूल (पान, सुपारी) अर्पित करें। नए वस्त्र और आभूषण भी अर्पित करना शुभ होता है। लाइटिंग: मंदिर में रंग-बिरंगी लाइट्स लगाएं। इससे वातावरण में उत्सव का रंग छा जाएगा। संगीत और मंत्र: देवी के भजन या मंत्र का जाप करें। इससे सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।

भगवान विष्णु के दशावतारों का संयुक्त पूजन दशावतार व्रत

भारतीय परंपरा व सनातन धर्म में विभिन्न देवताओं के अवतार की मान्यता है। विष्णु, शिव और अन्य देवी-देवताओं के कई अवतार माने गये हैं। मान्यतानुसार धर्म की हानि और अधर्म का उत्थान होने पर सज्जनों के परित्राण और दुष्टों के विनाश के लिए इनका अवतरण होता है। त्रिदेवों में से एक भगवान विष्णु ब्रह्मांड के निर्माण के बाद उसके विघटन तक उसका संरक्षण, पालन- पोषण करते हैं। मानवता को अन्याय व अधर्म के गर्त से निकालकर उसे सत्य मार्ग प्रदर्शन हेतु अवतरित होने वाले भगवान विष्णु के आमतौर पर दस अवतार माने गये हैं। भगवान विष्णु के इन दस अवतारों को संयुक्त रूप से दशावतार कहा जाता है। पौराणिक मान्यतानुसार भगवान विष्णु के अब तक सतयुग में मत्स्य, कूर्म, वराह, त्रेतायुग में नरसिंह, वामन, परशुराम, राम और द्वापर युग में बलराम, श्रीकृष्ण अवतार हो चुके हैं, और दुष्टों को दंडित, भलों को पुरस्कृत, धर्म व सत्य के प्रतिस्थापन और सतयुग का उद्घाटन करने के लिए वर्तमान कलियुग के अन्त में श्रीविष्णु के दशम अवतार कल्कि का प्रकटन होगा। और उनके द्वारा आततायी राक्षस कलि का वध होगा। कलि का वध करने के कारण ही इन्हें कल्कि (कल्किं/ कल्की) संज्ञा अभी से ही प्राप्त है। कतिपय पौराणिक ग्रन्थों में विष्णु के दस अवतारों में बलराम को नहीं शामिल कर उनके स्थान पर वेंकटेश्वर अथवा बुद्ध को शामिल किया गया है। और बलराम को श्रीकृष्ण के पूर्व तथा वेंकटेश्वर को श्रीकृष्ण के पश्चात अवतरित होना बताया गया है। दशावतार के संबंध में विभिन ग्रन्थों में अंकित सूचियों में अंतर अथवा भिन्नता भी है। एक मान्यतानुसार श्रीकृष्ण ही परमात्मा हैं और दशावतार श्रीकृष्ण के ही दस अवतार हैं। इसलिए उनकी सूची में श्रीकृष्ण नहीं, बल्कि उनके स्थान पर बलराम होते हैं। कुछ लोग बलराम को एक अवतार मानते हैं, बुद्ध को नहीं। सामान्यतः बलराम को आदिशेष अर्थात विष्णु के विश्राम के आधार का अवतार माना जाता है। वैदिक मतानुसार सर्वत्र व्यापक, सर्वशक्तिमान, निराकार परमात्मा का अवतरण संभव नहीं, लेकिन पौराणिक मान्यताओं में अवतार का अर्थ प्रायः उतरना माना जाता है। पौराणिक  मान्यतानुसार पंचम भूमि असंसक्ति अवस्था है। इस अवस्था में योगी समाधिस्थ हों अथवा उससे उठे हों, वह ब्रह्मभाव से कभी विचलित नहीं होते अथवा संसार के दृश्यों को देखकर विमुग्ध नहीं होते। यही शुद्ध, पक्की योगारूढ़ावस्था है। इस अवस्था में रहकर सब काम किया भी जा सकता है और नहीं भी किया जा सकता है। साधारणतः महायोगीश्वर पुरूष तथा अवतारी पुरुष इसी अवस्था में रहते हैं और इसी अवस्था में रहकर समस्त जगत लीला का संपादन करते हैं। भागवत पुराण के अनुसार समस्त जगत लीला का संपादन करने के लिए विष्णु के असंख्य अवतार हुए हैं, किन्तु उनके दस अवतारों अर्थात दशावतार को प्रमुख अवतार माना जाता है। भागवत पुराण, अग्निपुराण और गरुड़पुराण में उल्लिखित विष्णु के दस अवतार से संबंधित सूची में मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, वेंकटेश्वर, कल्कि नाम शामिल हैं। भागवत पुराण की भविष्यवाणी के अनुसार इस युग के अंत में कल्कि अवतार होगा। इससे अन्याय और अनाचार का अंत होगा तथा न्याय का शासन होगा जिससे सत्य युग की फिर से स्थापना होगी। पुराणों के अतिरिक्त आम भारतीयों में सर्वप्रचलित ग्रंथ सुखसागर के अनुसार भगवान विष्णु के चौबीस अवतार हैं- सनकादि ऋषि, वराहावतार, नारद मुनि, हंसावतार, नर-नारायण, कपिल, दत्तात्रेय, यज्ञ, ऋषभदेव, पृथु, मत्स्यावतार, कूर्म अवतार, धन्वन्तरि, मोहिनी, हयग्रीव, नृसिंह, वामन, श्रीहरि गजेंद्रमोक्ष दाता, परशुराम, वेदव्यास, राम, कृष्ण, वेंकटेश्वर, कल्कि। सिखों के दशम गुरु गुरु गोविन्द सिंह द्वारा रचित दशम ग्रंथ में विष्णु के चौबीस अवतारों में मछ (मत्स्य), कच्छ (कच्छप या कूर्म), नारायण, महा मोहिनी (मोहिनी), बैरह (वाराह), नर सिंह (नृसिंह), बावन (वामन), परशुराम, ब्रह्म, जलन्धर, बिशन (विष्णु), शेशायी (शेष), अरिहन्त देव, मनु राजा, धन्वन्तरि, सूरज, चन्दर, राम, बलराम, कृष्ण, नर (अर्जुन), बुद्ध. कल्कि शामिल हैं। भारतीय संस्कृति व परंपरा में अवतारवाद की व्याख्या कई प्रकार से की गई हैं। आध्यात्मिक, पौराणिक ढंग से तो इनकी व्याख्या पौराणिक ग्रंथों व रामायण, महाभारत आदि महाकाव्यों में की ही गई है, अन्य ढंग से इनकी व्याख्या समय-समय पर की जाती रही है, उनमें पस्पर असमानताएं, विषमताएं व विरोधाभास भी है। एक मत के अनुसार भगवान विष्णु के दस अवतार की कथाएं सृष्टि की जन्म प्रक्रिया को दर्शाते हैं। इस मतानुसार जल से ही सभी जीवों की उत्पति हुई। इसलिए भगवान विष्णु सर्वप्रथम जल के अन्दर मत्स्य रूप में प्रगट हुए। फिर कूर्म बने। तत्पश्चात वराह रूप में जल तथा पृथ्वी दोनों का जीव बने। नरसिंह, आधा पशु- आधा मानव, पशु योनि से मानव योनि में परिवर्तन का जीव है। वामन अवतार बौना शरीर है, तो परशुराम एक बलिष्ठ ब्रह्मचारी का स्वरूप है, जो राम अवतार से गृहस्थ जीवन में स्थानांतरित हो जाता है। कृष्ण अवतार एक वानप्रस्थ योगी, और बुद्ध पर्यावरण के रक्षक हैं। पर्यावरण के मानवी हनन की दशा सृष्टि को विनाश की ओर धकेल देगी। अतः विनाश निवारण के लिए कलंकि अवतार की भविष्यवाणी पौराणिक ग्रन्थों में पूर्व से की गई है। एक अन्य मतानुसार दस अवतार मानव जीवन के विभिन्न पड़ावों को दर्शाते हैं। मत्स्य अवतार शुक्राणु है, कूर्म भ्रूण, वराह गर्भ स्थति में बच्चे का वातावरण, तथा नर-सिंह नवजात शिशु है। आरम्भ में मानव भी पशु जैसा ही होता है। वामन बचपन की अवस्था है, परशुराम ब्रह्मचारी, राम युवा गृहस्थी, कृष्ण वानप्रस्थ योगी तथा बुद्ध वृद्धावस्था का प्रतीक है। कलंकि मृत्यु पश्चात पुनर्जन्म की अवस्था है। दशावतार को विकासवादी डार्विन के सिद्धान्त से जोड़ने की कोशिश करते रहे हैं। इस विचार के अनुसार अवतार जलचर से भूमिवास की ओर बढ़ते क्रम में हैं, फिर आधे जानवर से विकसित मानव तक विकास का क्रम चलते गया है। इस प्रकार दशावतार क्रमिक विकास का प्रतीक अथवा रूपक की तरह है। भारतीय संस्कृति में भगवान विष्णु के इन दशावतारों के स्वतंत्र व संयुक्त रूप से पूजन- अर्चन की भी परंपरा है। स्वतंत्र रूप से पृथक-पृथक अवतरण दिवस तथा संयुक्त रूप से दशावतार व्रत विधि- विधान से मनाए जाने का वृहत उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में हुआ है। भगवान विष्णु के दस अवतारों को समर्पित दशावतार व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को किए जाने की पौराणिक परिपाटी है। यह व्रत समस्त पाप नाश, सम्पूर्ण कष्ट निवारण और मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से किया जाता है। मान्यता है कि इस तिथि को भगवान विष्णु … Read more

कब है अनंत चतुर्दशी? जानें दिन और गणेश विसर्जन का सही समय

अनंत चतुर्दशी हिंदू धर्म का एक बड़ा खास त्योहार है, जो भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की खास पूजा होती है और गणेश उत्सव का भी समापन होता है. यानी इस दिन गणेश जी का विसर्जन किया जाता है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और अनंत भगवान की पूजा करने से सारे दुख-दर्द खत्म हो जाते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है. इस बार अनंत चतुर्दशी का पर्व 6 सितंबर, शनिवार को मनाया जाएगा.  अनंत चतुर्दशी 2025 महत्व  अनंत चतुर्दशी के दिन पूजा के लिए एक खास धागा होता है जिसे अनंत सूत्र कहते हैं. ये धागा चौदह गांठों वाला होता है, जो भगवान विष्णु के चौदह लोकों का प्रतीक है. जो कोई भी इस व्रत को विधि-पूर्वक रखता है और अनंत सूत्र को पहनता है, उसे जीवन में सब कामयाबी और खुशहाली मिलती है. साथ ही, गणेश उत्सव का समापन भी अनंत चतुर्दशी को ही होता है. इस दिन सारे भक्त बड़े शौर्य के साथ 'गणपति बप्पा मोरया' कहते हुए गणेश जी को विदा करते हैं. अनंत चतुर्दशी 2025 शुभ मुहूर्त  अनंत चतुर्दशी की तिथि 6 सितंबर को सुबह 3 बजकर 12 मिनट से शुरू होगी और तिथि का समापन 7 सितंबर को अर्धरात्रि 1 बजकर 41 मिनट पर होगा.  अनंत चतुर्दशी का पूजन मुहूर्त 6 सितंबर को शाम 6 बजकर 02 मिनट से लेकर 7 सितंबर की अर्धरात्रि 1 बजकर 41 मिनट तक रहेगा.  गणेश विसर्जन का मुहूर्त  अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन के 5 पांच मुहूर्त हैं, जो कि चौघड़िया मुहूर्त में बन रहे हैं- प्रातः मुहूर्त (शुभ) – सुबह 7 बजकर 36 मिनट से लेकर सुबह 9 बजकर 10 मिनट तक अपराह्न मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) – दोपहर 12 बजकर 19 मिनट से लेकर शाम 05 बजकर 02 मिनट तक सायाह्न मुहूर्त (लाभ) – शाम 06 बजकर 37 मिनट से लेकर रात 08 बजकर 02 मिनट तक रात्रि मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) – रात 09 बजकर 28 मिनट से लेकर अर्धरात्रि 1 बजकर 45 मिनट तक 7 सितंबर को उषाकाल मुहूर्त (लाभ) – सुबह 4 बजकर 36 मिनट से लेकर सुबह 06 बजकर 02 मिनट तक 7 सितंबर को अनंत चतुर्दशी 2025 पूजन विधि  पूजा की शुरुआत सुबह स्नान करके साफ-सुथरे कपड़े पहनकर होती है. फिर घर के साफ जगह पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर रखकर पूजा की जाती है. पूजा में रोली, चावल, फूल, फल, मिठाई और तांबे के पात्र का इस्तेमाल होता है. अनंत सूत्र को पूजा के बाद हाथ में बांधा जाता है, महिलाएं इसे बाएं हाथ में पहनती हैं. पूजा के बाद अनंत चतुर्दशी की कथा सुनी जाती है और अंत में आरती करके प्रसाद बांटा जाता है.

ये 5 मंत्र, मन को रखगें शांत, जीवन होगा खुशहाल

भले ही इस आधुनिक युग में मनुष्य कितनी भी तरक्की क्यों ना कर लें, लेकिन वो इस बात से कभी इनकार नहीं कर सकता है कि व्यक्ति एक दूसरे की ऊर्जा से निरंतर प्रभावित होता रहता है, जो एक-दूसरे के व्यवहार और भावनाओं को भी प्रभावित कर सकती है। यह एनर्जी पॉजिटिव भी हो सकती है और नेगेटिव भी। अगर आप खुद को कुछ लोगों के संपर्क में आने के बाद थका हुआ, कंफ्यूज और मायूस महसूस कर रहे हैं तो आप यकीनन टॉक्सिक लोगों के साथ हैं। जबकि पॉजिटिव लोग हर स्थिति में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर जीवन के प्रति आशावादी बने रहते हैं। सकारात्मकता उन्हें तनाव, चिंता और डिप्रेशन से दूर रखती है। लेकिन नेगेटिव लोग आपकी हर चीज में कमियां ढूंढकर आलोचना करते रहते हैं। ऐसे लोग किसी भी तरह के बदलाव का विरोध करते हैं और उन्हें खुश रहने वाले लोगों से जलन होती है। अगर आप खुद को रियल लाइफ में ऐसे ही टॉक्सिक लोगों के बीच घिरा हुआ महसूस करते हैं तो ये 5 हिंदू मंत्र आपके मन को शांत रखने के साथ हर तरह की नेगेटिविटी से दूर रखने में मदद करेंगे। दुर्गा मंत्र ॐ दुम् दुर्गायै नमः मंत्र माता दुर्गा की शक्ति का प्रतीक है, जो बुराई और नकारात्मकता को नष्ट करती हैं। अगर आपको लगता है कि आप नेगेटिव लोगों से घिरे हुए हैं, जो आपको नुकसान पहुंचा सकते हैं तो इस मंत्र का जाप आपकी ढाल बन सकता है। यह मंत्र आपको याद दिलाता है कि खुद को याद दिलाते हैं कि किसी को भी आपको मानसिक और भावनात्मक रूप से नुकसान पहुंचाने का अधिकार नहीं है। गायत्री मंत्र 'ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्'। यह मंत्र मन को शुद्ध करके नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने में मदद करता है। इस मंत्र के जाप से आप सत्य को भ्रम से अलग कर पाते हैं, और डर की जगह जीवन में समझदारी से निर्णय ले पाते हैं। महामृत्युंजय मंत्र 'ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्'। यह मंत्र भगवान शिव को समर्पित है और सभी प्रकार के भय, नकारात्मकता और बुरे प्रभावों से रक्षा करता है। हनुमान चालीसा हनुमान चालीसा का नियमित पाठ नकारात्मक ऊर्जा और बुरे प्रभावों से रक्षा करता है। यह भगवान हनुमान की भक्ति को समर्पित है, जो शक्ति और सुरक्षा के प्रतीक हैं। नृसिंह मंत्र 'ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्। नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु-मृत्युं नमाम्यहम्'। भगवान नृसिंह का यह मंत्र शत्रुओं और नकारात्मक लोगों से रक्षा करता है।  

श्राद्ध पक्ष में भूलकर भी न करें ये काम, पितरों की तस्वीर से जुड़ी अहम सावधानियाँ

हिंदू धार्मिक शास्त्रों के अनुसार दादा-दादी, माता-पिता आदि जो इस दुनिया से जा चुके हैं, वह पितर या पूर्वज कहलाते हैं। कहते हैं जिस तरह देवी-देवताओं की पूजा अनिवार्य मानी जाती है, उसी तरह पूर्वजों की तृप्ति करना भी बेहद जरूरी माना जाता है नहीं तो घर में पितृ दोष पैदा होता है। जिससे घर में कलह, पैसों की तंगी आदि रहना शुरू हो जाती है। ऐसे में पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध कर्म से उन्हें प्रसन्न करते हैं तो वहीं कुछ लोग अपने पूर्वजों की तस्वीर घर में लगाकर नियमित रूप से पूजा अर्चना भी करते हैं। शास्त्रों के अनुसार, पूर्वजों की तस्वीर को घर में रखने से उनका आशीर्वाद परिवार पर हमेशा बना रहता है लेकिन कई बार लोग जाने-अनजाने में पितरों की तस्वीर के साथ कुछ ऐसी गलतियां कर बैठते है जिसके कारण उन्हें पितृदोष के अशुभ परिणामों का सामना करना पड़ता है। तो आइए जानते हैं पितरों की तस्वीर घर में लगाते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए- अक्सर देखा जाता है लोग अपने पूर्वजों की तस्वीर घर के मंदिर में लगाकर देवी देवताओं के साथ पूजा करते हैं। शास्त्रों में घर के मंदिर में पितरों की तस्वीर लगाना वर्जित बताया है। पितरों की तस्वीरों को देवी-देवताओं के साथ रखने से देवतागण नाराज होते हैं और देव दोष भी लगता है। शास्त्रों में पितर और देवताओं के स्थान अलग-अलग बताए गए हैं क्योंकि पितर देवताओं के समान ही समर्थवान और आदरणीय हैं। एक जगह दोनों को रखने से किसी के आशीर्वाद का शुभ फल नहीं प्राप्त होता है। वास्तु के अनुसार, पितरों की तस्वीर को भूलकर भी घर के ब्रह्म अर्थात मध्य स्थान पर, बेडरूम या फिर किचन में नहीं लगानी चाहिए। ऐसा करने से पूर्वजों का अपमान होता है और घर में पारिवारिक कलह बढ़ जाती है, साथ ही सुख-समृद्धि में कमी आती है। इसके अलावा, पितरों की तस्वीर को ऐसी जगह पर भी नहीं लगाना चाहिए जहां आते-जाते उस फोटो पर नजर पड़े। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि घर में पितरों की अधिक तस्वीरें न हों। दक्षिण दिशा को यमराज के साथ-साथ पितरों की भी दिशा माना गया है। ऐसे में आप घर की दक्षिण दिशा में अपने पितरों की तस्वीर लगा सकते हैं। ऐसा करने से आपके ऊपर पितरों का आशीर्वाद बना रहेगा। आगे आपको बता दें अगर आप पितृदोष को सामना कर रहे हैं तो उससे मुक्ति के लिए पितृपक्ष के दौरान जरूरतमंदों और ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें क्षमता के अनुसार दक्षिणा दें। इसके साथ ही पीपल के पेड़ को दोपहर में जल का अर्घ्य दें और जल में काले तिल मिलाकर दक्षिण दिशा में अर्घ्य दें।

वास्तु शास्त्र: सही दिशा में तुलसी लगाने से कभी नहीं होगी अन्न-धन की कमी

धार्मिक मान्यता के अनुसार, रोजाना तुलसी की पूजा-अर्चना करने से साधक को मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही घर में सुख-शांति का वास होता है। इस पौधे को साफ जगह और उत्तम दिशा में लगाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस पौधे को सही दिशा में लगाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। अगर आप भी घर में मां लक्ष्मी का आगमन चाहते हैं, तो ऐसे में चलिए जानते हैं कि इस पौधे को किस दिशा में लगाने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। इस दिशा में लगाएं तुलसी वास्तु शास्त्र में तुलसी को लगाने के नियम के बारे में विस्तार से बताया गया है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में तुलसी का पौधा उत्तर या पूर्व दिशा में लगाना उत्तम माना गया है। माना जाता है कि इस दिशा में तुलसी लगाने से घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है और परिवार के सदस्यों पर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। इस दिन लगाएं तुलसी वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में तुलसी का पौधा लगाने के लिए गुरुवार और शुक्रवार का दिन बेहद शुभ माना जाता है। अगर महीने की बात करें, तो कार्तिक और चैत्र के महीने में तुलसी को लगाने के लिए उत्तम माना जाता है। तुलसी लगाने के लिए नियम का पालन करने से घर में धन की देवी मां लक्ष्मी का वास होता है और आर्थिक तंगी की समस्या से छुटकारा मिलता है और हमेशा धन से तिजोरी भरी रहती है। इन बातों का रखें ध्यान जिस स्थान पर आप तुलसी का पौधा लगा रहे हैं। उस जगह की साफ-सफाई का खास ध्यान रखें, क्योंकि मां लक्ष्मी साफ-सफाई वाली जगह पर ही वास करती हैं। इसके अलावा पौधे के पास जूठे बर्तन भी नहीं रखने चाहिए। ऐसी गलती करने से मां लक्ष्मी नाराज हो सकती हैं। तुलसी से जुड़े नियम रोजाना दीपक जलाकर तुलसी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए और भोग में तुलसी के पत्ते शामिल करने चाहिए। लेकिन एक बात का खास ध्यान रखें कि एकादशी और रविवार को तुलसी में जल अर्पित नहीं करना चाहिए। धार्मिक मान्यता के अनुसार, एकादशी के दिन तुलसी में जल देने और पत्ते तोड़ने से एकादशी माता का व्रत खंडित हो जाता है।  

01 सितम्बर सोमवार 2025, सूर्य की तरह चमकेगा इन राशियों का भाग्य

मेष राशि- मेष राशि वालों के लिए आज का दिन सामान्य रहेगा। यात्रा के योग बनेंगे। निवेश सोच-समझकर ही करें। धन-दौलत में वृद्धि के योग बनेंगे। प्रोफेशनल लाइफ में वातावरण अनुकूल रहेगा। नई प्रॉपर्टी या वाहन की खरीदारी के योग बनेंगे। आज साथी से अपनी फीलिंग्स को शेयर करने में संकोच न करें। इससे रिश्तों में प्यार और रोमांस बरकरार रहेगा। कुछ लोगों के रिलेशनशिप में एक्स-लवर की वापसी होगी। लेकिन मैरिड लोग ऐसा न करें। इससे वैवाहिक जीवन में दिक्कतें बढ़ सकती हैं। वृषभ राशि- वृषभ राशि वालों के लिए आज का दिन अच्छा रहेगा। आज आपकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी। विभिन्न स्त्रोतों से धन लाभ होगा। करियर में नए मौके मिलेंगे। वेकेशन का प्लान बना सकते हैं। नौकरी और व्यापार में लाभ होगा। मेहनत का फल मिलेगा। विद्यार्थियों को शैक्षिक कार्यों में अच्छे परिणाम मिलेंगे। पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा। मिथुन राशि- मिथुन राशि वालों के लिए आज का दिन सामान्य रहेगा। शैक्षिक कार्यों में सुखद परिणाम मिलेंगे। सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे। कार्यस्थल में काम का तनाव रहेगा। निवेश के नए विकल्पों पर नजर रखें। आज सोच-समझकर किए गए निवेशों से भविष्य में अच्छा रिटर्न मिलेगा। आज के दिन वाद-विवाद से दूर रहें। कर्क राशि- कर्क राशि वालों के लिए आज का दिन शुभ रहेगा। आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। लाभ के कई अवसर मिलेंगे। ऑफिस में मान-सम्मान बढ़ेगा। हर कार्य में सफलता मिलेगी। परिवार के साथ अधिक समय व्यतीत करेंगे। करियर में सफलता मिलेगी। सामाजिक पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। नई प्रॉपर्टी या वाहन की खरीदारी करेंगे। आज आप आनंददायक जीवन गुजारेंगे। सिंह राशि- सिंह राशि वालों के लिए आज का दिन अच्छा रहने वाला है। परिवार का सपोर्ट मिलेगा। भौतिक सुख-सुविधाओं में वृद्धि होगी। नई प्रॉपर्टी खरीदने के योग भी हैं। परिजनों के साथ मौज-मस्ती भरे पलों को एंजॉय करेंगे। नौकरीपेशा वालों का प्रमोशन या अप्रेजल हो सकता है। प्रोफेशनल लाइफ में नई उपलब्धियां हासिल होगी। कार्यों के मनचाहे परिणाम मिलेंगे। कन्या राशि- कन्या राशि वालों को आज थोड़ा सावधान रहने की आवश्यकता है। आर्थिक मामलों में सतर्क रहें। धन का खर्च सोच-समझकर ही करें। नौकरी और व्यापार में किसी पर भी आंख मूंदकर भरोसा न करें। बिजनेस डील साइन करने से पहले डॉक्यूमेंट्स को अच्छे पढ़ लें, वरना नुकसान हो सकता है। लव लाइफ में साथी की प्राइवेसी का ध्यान रखें और उन्हें थोड़ा पर्सनल स्पेस दें। तुला राशि- तुला राशि वालों को मिलेजुले परिणाम मिलेंगे। इस समय अपना विशेष ध्यान रखें। धन खर्च सोच-समझकर ही करें। आज पार्टनर के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करें। उनसे अपनी फीलिंग्स शेयर करें। लेकिन पास्ट इश्यूज को ज्यादा डिस्कस न करें और साथी से ऐसी बात का जिक्र न करें, जिससे रिश्तों में मनमुटाव बढ़े। करियर में भी काम का तनाव रह सकता है। वृश्चिक राशि- वृश्चिक राशि वालों के लिए आज का दिन वरदान के समान साबित होगा। आज ऑफिस में आपकी क्रिएटिविटी और लीडरशिप स्किल की प्रशंसा होगी। आज धन लाभ के योग भी बन रहे हैं। भौतिक सुख-सुविधाओं में वृद्धि होगी। प्रोफेशनल लाइफ अच्छी रहेगी। नौकरी में प्रमोशन या अप्रेजल के चांसेस बढ़ेंगे। धनु राशि- धनु राशि वालों को आज महत्वपूर्ण कार्यों की जिम्मेदारी मिलेगी। दिन सुखद रहेगा। पारिवारिक जीवन में सुख-शांति बनी रहेगी। सामाजिक कार्यों में रुचि बढ़ेगी। प्रोफेशनल लाइफ में क्रिएटिविटी और इनोवेटिव आइडियाज के साथ किए गए कार्यों के अच्छे रिजल्ट मिलेंगे। लव लाइफ के रोमांचक पलों को एंजॉय करेंगे। मकर राशि- मकर राशि वालों के दिन सामान्य रहेगा। ऑफिस में नए कार्य कि जिम्मेदारी मिलेगी। शैक्षिक कार्यों में नई उपलब्धि हासिल होगी। फैमिली या फ्रेंड्स के साथ कहीं घूमने का प्लान बना सकते हैं। आर्थिक मामलों में सोच-समझकर फैसला लें। बिना रिसर्च किए इनवेस्ट न करें, वरना नुकसान हो सकता है। आय में वृद्धि के नए विकल्पों की तलाश करें। इससे आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा। कुंभ राशि- कुंभ राशि वालों के जीवन में आज बड़े बदलाव हो सकते हैं। प्रोफेशनल लाइफ में नए अवसर मिलेंगे। आर्थिक स्थिति अच्छी रहेगी। कानूनी मामलों में जीत हासिल होगी। फैमिली के साथ ट्रिप का प्लान बना सकते हैं। आज आपको फैमिली का सपोर्ट मिलेगा। करियर की बाधाओं से मुक्ति मिलेगी। लव लाइफ में प्यार और रोमांस बढ़ेगा। मीन राशि- मीन राशि वालों के लिए दिन शुभ रहेगा। सभी सपने साकार होंगे। रुके हुए कार्य चल पड़ेंगे। पारिवारिक जीवन में सुख-शांति बनी रहेगी। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। ऑफिस में आपकी परफॉर्मेंस शानदार रहेगी। जीवन में ऊर्जा और उत्साह भरपूर होगा। आय के नए साधनों से धन लाभ होगा। आज आपकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी। लव लाइफ भी अच्छी रहेगी।

राधा अष्टमी पर करें ये सरल उपाय, जीवन में प्रेम और सुख-समृद्धि का होगा वास

हिंदू धर्म में राधा अष्टमी का दिन अत्यंत पावन और दिव्य माना जाता है। यह तिथि श्रीकृष्ण की अनन्य प्रेमिका, आध्यात्मिक शक्ति और भक्ति की सर्वोच्च मूर्ति श्रीमती राधारानी के जन्मदिवस के रूप में मनाई जाती है। राधा अष्टमी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को आती है और इस दिन राधा रानी की पूजा करने से जीवन में प्रेम, शांति, सुख और समृद्धि आती है। ब्रजभूमि में राधा रानी को भगवान श्रीकृष्ण की आत्मा माना गया है। राधा के बिना कृष्ण अधूरे हैं और कृष्ण के बिना राधा। दोनों का प्रेम लौकिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक मिलन का प्रतीक है। इसीलिए राधा अष्टमी पर यदि श्रद्धा से कोई भक्त घर में कृष्ण के नाम का दीपक जलाता है, तो राधा रानी की विशेष कृपा उस पर बरसती है। इस दिन भक्तजन व्रत रखते हैं, राधा-कृष्ण की मिलन लीला का स्मरण करते हैं और भजन-कीर्तन के माध्यम से राधा रानी को प्रसन्न करते हैं। घर के मध्य भाग में दीपक जलाने की परंपरा राधा अष्टमी पर एक विशेष उपाय अत्यधिक फलदायक माना गया है। घर के बीचो-बीच मुख्य स्थान पर कृष्ण नाम का दीया जलाना। घर में आता है सौभाग्य और सुख मान्यता है कि राधा अष्टमी के दिन यह दीपक जलाने से घर में सौभाग्य, धन-धान्य, और मन की शांति बनी रहती है। रिश्तों में मिठास आती है और जीवन में प्रेम का संचार होता है। पूजा विधि: राधा अष्टमी के दिन सुबह स्नान आदि करके शुद्ध वस्त्र पहनें। घर के बीचों बीच को साफ करें। वहां पर एक छोटा सा चौक बनाएं और दीया रखें। दीये में तेल या घी डालें और बाती लगाएं। अब श्रीकृष्ण नाम का कागज या लिखी हुई पर्ची दीये के नीचे रखें। फूल और रोली अर्पित करें और दीया जलाएं।

सावधान! जिंदगी को संवारने के साथ बर्बाद भी कर सकती हैं ये 2 आदतें

आम आदमी अपने दिन का पूरा समय इन दो जगहों पर बिताता है वो है घर या फिर दफ्तर में। जैसी व्यक्ति की संगति होती है वैसी ही उसकी मति हो जाती है। इसलिए जरूरी होता है कि व्यक्ति हमेशा अपने लिए सही वातावरण चुनना चाहिए, जिससे वह सही पथ पर चले। आचार्य प्रशांत के अनुसार, एक व्यक्ति किस आधार पर विवाह करता है या फिर कैसी संगति चुनता है। यह महत्व की बात है कि वह व्यक्ति किसके साथ रह रहा है। आप चाहे विवाह करके रह रहे हो या फिर बिना विवाह करके अपनी जीवन व्यय कर रहा हो। ऐसे में व्यक्ति को जरूर हमेशा याद रखना चाहिए कि वह अपने जीवनसाथी  का चयन किस आधार पर कर रहा है। हर एक छोटी बात जैसे कि वह व्यक्ति अब से लगातार मेरे कमरे में रहेगा? किसके शब्द लगातार पड़ने लग गए हैं तुम्हारे कानों में? इन चीजों को याद करके ही निर्णय लेना चाहिए। क्योंकि इसी बात पर तुम्हारी जिंदगी या तो बन जाएगी या बिल्कुल बर्बाद हो जाएगी। आचार्य प्रशांत आगे कहते हैं कि यहीं बात दफ्तर के लिए है कि दिन के आठ से दस घंटे आप किन लोगों की शक्लें देखते हैं या आर अपना बॉस बोलते हो, वो यूं ही है कोई सड़क का आदमी जो तुम्हारी जिंदगी पर अब अधिकार रखने लग गया है तो तुम बर्बाद हो जाओगे। यही बात दफ्तर के माहौल पर और धंधे की प्रकृति पर लागू होती है। तुम्हारी संस्था किस तरह का व्यवसाय करती है और तुम्हारे काम में किस तरह के लोग लगे हुए हैं?  ये कोई छोटी बात है क्या? यही तो जिंदगी है । एक व्यक्ति दिनभर की रोजमर्रा वाली जिंदगी में क्या देख रहा है? क्या सुन रहे हो? क्या खा रहा है? क्या पी रहे हो? क्या सोच रहे हो? किस दिशा में कर्म कर रहे हो? कहां से तुम्हारी प्रेरणाएं आ रही हैं? हर एक चीज को व्यक्ति को साधारण लेना चाहिए। किसी भी चीज को ज्यादा महत्व देने से बचना चाहिए। क्योंकि अगर व्यक्ति इन दो मुद्दों शादी और नौकरी के प्रति अति गंभीर रहेगा।  अगर आपने दोनों परीक्षाएं पार कर लीं वो जीवन में उत्तीर्ण हो गया। ऐसे में व्यक्ति को हर काम में सफलता पाने के साथ तनावमुक्त जीवन जिएंगा।  

खाटू श्याम जाने का बना रहे हैं मन, तो जरूर ध्यान रखें ये बातें

आज हम आपको खाटू श्याम मंदिर से जुड़ी कुछ जरूरी बातें बताने जा रहे हैं। इन बातों का ध्यान रखते हुए अगर आप खाटू श्याम जी के दर्शन के लिए जाते हैं, तो इससे आपको दर्शन का पूरा लाभ मिलता है। चलिए जानते हैं इस बारे में। इस जगहों पर जरूर लगाएं हाजिरी कई भक्त खाटू श्याम मंदिर जाते समय रिंगस निशान उठाकर मंदिर तक पैदल यात्रा करते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से खाटू श्याम जी अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इसके साथ ही खाटू श्याम मंदिर से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी श्याम कुंड स्थापित है, जिसमें स्नान करने का विशेष महत्व है। इस कुंड में स्नान किए बिना खाटू श्याम मंदिर की यात्रा अधूरी मानी जाती है। ऐसे में अगर आप खाटू श्याम जी के मंदिर जा रहे हैं, तो इस स्थानों के भी दर्शन जरूर करने चाहिए। किस दिन दर्शन करना है शुभ हर महीने की एकादशी और द्वादशी तिथि पर खाटू श्याम जी के दर्शन करना काफी शुभ माना गया है। विशेषकर फाल्गुन माह में आने वाली आमलकी एकादशी के दिन खाटू श्याम मंदिर में दर्शन करने से विशेष फलों की प्राप्ति होती है, क्योंकि भक्त इस दिन को खाटू श्याम जी के जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं। वहीं कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक महीने में आने वाली देवउठनी एकादशी को भी खाटू श्याम जी के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। ऐसे में आप इन खास दिनों पर बाबा के दर्शन के लिए जा सकते हैं। खाटू श्याम जी को अर्पित करें ये चीजें खाटू श्याम जी को गुलाब, इत्र और नारियल अर्पित करने की परंपरा है। ऐसे में आप मंदिर में दर्शन के लिए जाते समय ये चीजें चढ़ा सकते हैं। इसी के साथ भोग के रूप में आप खाटू श्याम जी को गाय के दूध से बनी मिठाई, खीर और चूरमा जरूर अर्पित करें। ये भोग खाटू श्याम जी को बहुत प्रिय हैं। साथ ही यह भी मान्यता है कि श्याम बाबा को खिलौने अर्पित करने से साधक को संतान सुख की प्राप्ति हो सकती है।