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ब्रेस्ट कैंसर: डर नहीं, जागरूकता जरूरी! जानें किन बातों का रखें ध्यान

नई दिल्ली कैंसर… जितना यह नाम डराता है, उतनी ही तेजी से यह दुनिया भर में अपने पैर भी पसार रहा है। तमाम तरह के कैंसर में से ब्रेस्ट कैंसर भारतीय महिलाओं को तेजी से अपना शिकार बना रहा है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2019 में ब्रेस्ट कैंसर के लगभग 200,218 मामले दर्ज हुए थे, जो 2023 में बढ़कर लगभग 221,579 हो गए। इस बीमारी से मौतों की संख्या भी 2023 में लगभग 82,429 तक पहुंच गई। ब्रेस्ट कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं। नब्बे के दशक से ही इस संदर्भ में जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाने के बावजूद भारत में लगभग 81 प्रतिशत महिलाएं इससे अनभिज्ञ हैं। स्तन कैंसर भारतीय महिलाओं को सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर है और आज प्रत्येक 28 में से 1 महिला इससे पीड़ित है। ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि आप इसके लक्षणों को समझें और दूसरों को भी इसके प्रति जागरूक करें, ताकि समय रहते जरूरी कदम उठाए जा सकें। इस मामले में किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज की ब्रेस्ट और एंडोक्राइन सर्जन डॉक्टर गीतिका नंदा सिंह कहती हैं कि पहले स्तन कैंसर का खतरा 40 से ज्यादा उम्र की महिलाओं को मुख्य रूप से होता था, लेकिन अब 24 साल की लड़कियां भी इस बीमारी की जद में आ रही हैं। सामान्य तौर पर अगर आपकी उम्र 29 साल की हो चुकी है, तो आपको अपने स्तन का परीक्षण खुद से ही करते रहना चाहिए। अगर किसी महिला के परिवार में स्तन कैंसर का इतिहास रहा है, तो कुछ खास प्रकार के स्तन कैंसर के होने की आशंका बढ़ जाती है। ऐसी महिलाओं को 30 की उम्र के बाद साल में एक बार मैमोग्राफी करवाते रहना चाहिए। ये हो सकती हैं वजहें अन्य कैंसर की तरह ही स्तन कैंसर का कारण अभी तक स्पष्ट नहीं है। न ही यह स्पष्ट है कि यह इतनी तेजी से पैर क्यों पसार रहा है। हालांकि कुछ चीजें बताई जाती हैं, जो इस बीमारी के खतरे को बढ़ा सकती हैं। वैज्ञानिक तौर पर यह पाया गया है कि खराब जीवनशैली, अस्वस्थ भोजन और तनाव कैंसर को बढ़ावा देते हैं। इसके साथ ही हेयर ट्रीटमेंट में इस्तेमाल किए जाने वाले केमिकल, सौंदर्य प्रसाधन और डिओडोरेंट में पाए जाने वाले कुछ घातक केमिकल भी इस तरह के कैंसर को बढ़ावा देते हैं। और कौन-सी चीजें स्तन कैंसर का खतरा बढ़ाती हैं, आइए जानें: बदली जीवनशैली: हम बदल रहे हैं और साथ ही हमारे जीने का तरीका भी बदल रहा है। हम सब कई-कई घंटे लगातार बैठकर काम करते हैं और बदले में अपनी शारीरिक गतिविधियों से समझौता करने लगे हैं। प्रदूषण, प्रोसेस्ड और जंक फूड का ज्यादा मात्रा में सेवन, फल-सब्जियों से बढ़ती दूरी, ज्यादा मीठा, ज्यादा वसा…ये सब साथ मिलकर शरीर में सूजन, मोटापा और हार्मोन असंतुलन को बढ़ावा देते हैं। ये सब कैंसर की वजह हो सकते हैं। शारीरिक बदलाव: दिनचर्या के साथ ही हमारे शरीर में भी बदलाव आ रहे हैं। बहुत कम उम्र में पीरियड शुरू हो रहा है, तो मेनोपॉज भी जल्दी दस्तक देने लगा है। स्तनपान न करवाना या कम समय तक करवाना भी स्तन कैंसर के खतरे को बढ़ाता है। यों करें ब्रेस्ट कैंसर की पहचान स्तन में गांठ: स्तन या स्तन के आसपास या बगल में गांठ महसूस हो तो उसे नजरअंदाज न करें। डॉक्टर गीतिका कहती हैं कि हर गांठ कैंसर नहीं होती है, लेकिन अगर स्तन में गांठ है तो उसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। कैंसर की गांठ आमतौर पर बिना दर्द वाली होती हैं। लेकिन आकार में वृद्धि के साथ इसमें दर्द महसूस हो सकता है। निप्पल से रिसाव: अगर आप नई मां नहीं हैं, फिर भी आपके निप्पल से रिसाव आ रहा है, तो आपको सचेत हो जाना चाहिए। रिसाव अलग-अलग रंगों का हो सकता है। कभी-कभी निप्पल से खून का भी रिसाव होता है। इसे कैंसर का लक्षण माना जाता है, इसलिए रिसाव होने पर चिकित्सक से तुरंत संपर्क करें। स्तन या निप्पल का आकार बदलना: दोनों स्तनों के आकार में हल्का फर्क होना सामान्य है। अगर आपको एक स्तन तुलनात्मक तौर पर ज्यादा असामान्य नजर आ रहा है, तो यह भी कैंसर का लक्षण हो सकता है। इसके अलावा स्तन की त्वचा का लाल होना, उसमें खुजली होना या स्तन में डिंपल या गड्ढे पड़ना स्तन कैंसर का लक्षण होता है। वहीं, आपको अपनी निप्पल पर भी गौर करना चाहिए। अगर निप्पल अंदर की ओर धंस रही है, तो आपको लापरवाही नहीं करनी चाहिए। संभव है स्तन कैंसर से उबरना समय रहते स्तन कैंसर को आसानी से मात दी जा सकती है। ऐसी स्थिति में आपकी मनोदशा आपका साथ देती है। स्तन कैंसर का पता चलने पर आपको घबराने की नहीं, बल्कि हिम्मत से सही कदम उठाने की जरूरत है। पहले और दूसरे स्टेज पर स्तन कैंसर को सौ फीसदी तक ठीक किया जा सकता है। स्तन कैंसर की जांच में मेमोग्राफी, एमआरआई, एफएमसीजी और कुछ खून की जांच शामिल हैं। आप घर पर ही इसके शुरुआती लक्षणों को परख सकती हैं। पीरियड के सातवें दिन आइने में अपने स्तन को गौर से देखना चाहिए। एक हाथ ऊपर करके दूसरे हाथ को स्तन पर गोलाकार घुमाते हुए यह टटोलें कि कहीं कोई गांठ तो नहीं बन रही है। आपकी सजगता आपको एक बड़ी मुसीबत से बचा सकती है। खानपान से बनाएं सुरक्षा चक्र हमारा खानपान न सिर्फ हमें कैंसर से बचाए रख सकता है, बल्कि खानपान में किया गया सुधार कैंसर के खिलाफ जंग में सफलता दिलाने में मददगार साबित हो सकता है। साबुत अनाज, बीन्स, हर्ब्स, मेवे जैसे खाद्य पदार्थ कैंसर होने या उससे बचाने में आपकी मदद कर सकते हैं। इस बाबत आहार सलाहकार डॉ़ भारती दीक्षित कहती हैं कि हरी पत्ती वाली सब्जियों में कैंसररोधी खूबियां होती हैं। सरसों, पालक, धनिया आदि में बीटा कैरोटीन और कई तरह के एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं। बंदगोभी, ब्रोकली और फूल गोभी आदि में आइसोथियोसाइनेट पाया जाता है, जो कैंसर के खतरे को कम करने का काम करता है। अदरक, लहसुन भी इस मामले में लाभकारी साबित होता है। विटामिन-सी यानी खट्टे फलों को भी पर्याप्त मात्रा में अपनी खुराक में शामिल कीजिए। अध्ययन बताते हैं कि सेब, नाशपाती भी कैंसर से … Read more

नई तकनीक से एम्स में ब्रेस्ट कैंसर का इलाज, महिलाओं को बच रहा स्तन; जागरूकता अब भी बड़ी चुनौती

भोपाल  राजधानी भोपाल के एम्स हॉस्पिटल में ब्रेस्ट कैंसर का नई तकनीकी से इलाज किया जा रहा है। इस तकनीकी में ब्रेस्ट कैंसर होने पर महिलाओं का स्तन हटाने की जरूरत नहीं पड़ रही है, बल्कि जिस हिस्से में बीमारी डिटेक्ट होती है उसी का इलाज किया जाता है। एम्स के चिकित्सकों का कहना है कि बीमारी की आधुनिक इलाज में बारे में जागरूकता की कमी है। अक्सर महिलाएं स्तन में गांठ महसूस होने पर भय और गलतफहमी के कारण समय पर चिकित्सकीय मदद लेने से हिचकिचाती हैं। इन तकनीकों का किया जा रहा है उपयोग  एम्स के डॉक्टरों ने बताया कि एक समय था जब स्तन कैंसर का मतलब पूरे स्तन को हटाना होता था। लेकिन अब समय बदल गया है। आज इसका इलाज बहु-आयामी पद्धति से किया जाता है। जिसमें कीमोथेरेपी, हार्मोनल थेरेपी, सर्जरी, इम्यूनोथेरेपी और रेडियोथेरेपी का संयोजन होता है। कई मामलों में केवल ट्यूमर को हटाकर और उन्नत ऑन्कोप्लास्टिक सर्जरी से पुनर्निर्माण करके स्तन को सुरक्षित रखा जा सकता है। एम्स के कैंसर सर्जरी विभाग के एचओडी डॉ. विनय कुमार ने बताया कि यह अत्याधुनिक तकनीक एम्स भोपाल में की जा रही है और इसके उक्तृष्ट परिणाम मिल रहे हैं। ये हैं उन्नत तकनीकें  – ऑन्कोप्लास्टिक सर्जरी: इस तकनीक के माध्यम से स्तन कैंसर के ट्यूमर को हटाकर स्तन को पुनर्निर्माण किया जा सकता है, जिससे स्तन को सुरक्षित रखा जा सकता है। – इंडोसाइनिन ग्रीन (ICG) डाई तकनीक: इस तकनीक के माध्यम से लसीका ग्रंथियों को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है और लिम्फेडेमा के खतरे को कम किया जा सकता है। – रेडियोथेरेपी: इस तकनीक के माध्यम से कैंसर कोशिकाओं को खत्म किया जा सकता है और ऑपरेशन की जरूरत को कम किया जा सकता है। – लीनियर एक्सेलेरेटर: यह एक आधुनिक मशीन है जो कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने के लिए उच्च ऊर्जा वाली एक्स-रे का उपयोग करती है ¹। सर्जरी के बाद होने वाली लिम्फेडेमा बड़ी परेशानी डॉ. विनय कुमार ने बताया कि स्तन कैंसर की सर्जरी के बाद होने वाली चुनौतियों में से एक लिम्फेडेमा है हाथ में एक दर्दनाक सूजन जो महीनों या साल बाद भी दिखाई दे सकती है। इस जोखिम को कम करने के लिए एम्स भोपाल में अब इंडोसाइनिन ग्रीन (ICG) डाई तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। इस डाई को ट्यूमर में इंजेक्ट किया जाता है और इन्फ्रारेड कैमरे से देखने पर यह उन लसीका ग्रंथियों (लिम्फ नोड्स) को स्पष्ट करता है, जो स्तन से बगल तक फैलते हैं। इन ग्रंथियों को निकालकर तुरंत फ्रोजन सेक्शन तकनीक से जांचा जाता है। यदि इनमें कैंसर कोशिकाएं नहीं पाई जातीं, तो हाथ की सामान्य लसीका नलिकाओं को सुरक्षित रखा जाता है जिससे लिम्फेडेमा का खतरा बहुत कम हो जाता है और जीवन की गुणवत्ता बेहतर होती है।  एम्स भोपाल की पहल – एम्स भोपाल ने स्तन कैंसर के इलाज के लिए एक विशेष टीम का गठन किया है, जिसमें अनुभवी डॉक्टर और विशेषज्ञ शामिल हैं। – अस्पताल में स्तन कैंसर के इलाज के लिए उन्नत तकनीकों और उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे मरीजों को बेहतर इलाज मिल सके।  

हेल्थ अलर्ट: दो शहरों में ब्रेस्ट कैंसर के केस सबसे ज्यादा, पूर्वोत्तर में लंग कैंसर बढ़ा

 नई दिल्ली हाल ही में एक रिसर्च स्टडी में यह दावा किया गया है कि देश के दक्षिणी राज्यों में कैंसर का खतरा बढ़ता जा रहा है। JAMA ओपन नेटवर्क में प्रकाशित राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम की एक स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक, तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद तो देश भर में स्तन कैंसर की राजधानी के रूप में उभरा है, जहाँ प्रति 100,000 महिलाओं में 54 इस असाध्य रोग के दंश से पीड़ित हैं जो देशभर में सर्वोच्च घटना दर है, जबकि बेंगलुरु का स्थान दूसरे नंबर पर आता है, जहां एक लाख महिलाओं में औसतन 46.7 महिलाएं ब्रेस्ट कैंसर की मार झेल रही हैं। स्टडी रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण भारत के महानगर न केवल ओवरऑल कैंसर संकट का सामना कर रहे हैं, बल्कि वहां विशिष्ट प्रकार का कैंसर महामारी के रूप में उभर रहा है। रिपोर्ट में इस पर कंट्रोल करने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत पर बल दिया गया है। स्तन कैंसर के मामले में टॉप पर साउथ के शहर वर्ष 2015 से 2019 के दौरान देशभर में 43 जनसंख्या-आधारित कैंसर रजिस्ट्रियों (PBCR) को कवर करने वाले इस स्टडी रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक स्तन कैंसर दर वाले शीर्ष छह क्षेत्रों में से चार दक्षिण भारत के हैं। इनमें चेन्नई क्षेत्र में प्रति 100,000 महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर की दर 45.4 है, जबकि केरल के अलाप्पुझा और तिरुवनंतपुरम में यह क्रमशः 42.2 और 40.7 है। यह पैटर्न दक्षिण भारत, विशेषकर इसके शहरी केंद्रों को भारत में स्तन कैंसर महामारी का केंद्र बनाता है। 2024 में राष्ट्रीय स्तर पर 238,085 महिलाओं के स्तन कैंसर से प्रभावित होने का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि यह भारतीय महिलाओं में सबसे आम कैंसर बन गया है। रिसर्च स्टडी के आंकड़ों से पता चलता है कि स्तन कैंसर दक्षिण भारतीय शहरों में तेजी से और व्यापक पैमाने पर पसरा है, जबकि देश के अन्य क्षेत्रों में दूसरे किस्म के कैंसर के मामले बढ़े हैं। रिपोर्ट में इन कैंसर मामलों के बढ़ने के पीछे विशिष्ट स्थानीय कारकों की ओर भी इशारा किया गया है। लंग्स कैंसर पर क्या रिपोर्ट? इस रिपोर्ट में कहा गया है कि स्तन कैंसर के मामले में जहां दक्षिण भारतीय शहर आगे हैं, वहीं फेफड़ों के कैंसर के मामले में पूर्वोत्तर के राज्य आगे हैं। स्टडी रिपोर्ट में कहा गया है कि फेफड़ों के कैंसर के मामलों में मणिपुर की राजधानी आइज़ोल में प्रति 100,000 महिलाओं में 33.7 इससे ग्रसित हैं जबकि इस राज्य का औसत दर 24.8 दर्ज किया गया है। हालांकि, दक्षिण भारतीय शहरों में भी लंग्स कैंसर की स्थिति चिंताजनक दिखाई देती हैं, जहाँ हैदराबाद में प्रति 100,000 पर 6.8 और बेंगलुरु में प्रति 100,000 में 6.2 केस दर्ज किए गए हैं। ओरल कैंसर के मामले में कौन सा शहर आगे? पुरुष फेफड़ों के कैंसर के पैटर्न के मामले में दक्षिण भारत में केरल सबसे आगे है, जहाँ को कई जिलों में यह दर बेहद ऊँची हैं। धरती पर का स्वर्ग कहलाने वाले कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में भी लंग्स कैंसर के मामले में उच्चतम दर (39.5 प्रति 100,000) पर हैं, जबकि केरल के जिले उसके बाद के स्थान पर हैं। केरल के कन्नूर में यह दर 35.4, मालाबार में 32.5, कासरगोड में 26.6, अलप्पुझा में 25.3 और कोल्लम में प्रति 100,000 पर 24.2 है।ओरल कैंसर के मामलों में भी हैदराबाद, बेंगलुरु सबसे आगे है, जबकि अहमदाबाद इस मामले में सबसे ऊपर है।