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सेमीकंडक्टर में नई क्रांति: ‘मेक इन इंडिया’ के तहत भारत में लॉन्च हुआ नया मिशन

नई दिल्ली  भारत ने अगली पीढ़ी की सेमीकंडक्टर तकनीक में ऐतिहासिक कदम रखा है। बेंगलुरु में ब्रिटिश कंपनी एआरएम (ARM) का नया डिजाइन ऑफिस 2 नैनोमीटर (nm) चिप तकनीक पर काम शुरू करेगा, जिससे भारत उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हो गया है जो इस अत्याधुनिक तकनीक पर काम कर सकते हैं। यह कदम भारत को ग्लोबल सेमीकंडक्टर हब बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। बेंगलुरु में बनेंगे 2nm चिप केंद्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने घोषणा की कि भारत अब 2nm चिप डिजाइन और निर्माण की दिशा में पूरी तरह तैयार है। बेंगलुरु में स्थापित एआरएम के नए डिजाइन सेंटर में ये अत्याधुनिक चिप डिजाइन किए जाएंगे। 16 सितंबर को मंत्री ने इस सेंटर का उद्घाटन किया, जो भारत की तकनीकी प्रगति में एक नया अध्याय जोड़ता है। इससे पहले मई 2025 में नोएडा और बेंगलुरु में 3nm चिप डिजाइन सेंटर खोले जा चुके हैं। 2nm चिप क्या है और क्यों है खास? सेमीकंडक्टर चिप्स में लाखों ट्रांजिस्टर होते हैं, जो बिजली के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं। ट्रांजिस्टर का आकार जितना छोटा होता है, चिप उतनी ही तेज और ऊर्जा-कुशल होती है। 2nm तकनीक के ट्रांजिस्टर अत्यंत छोटे होते हैं, जो स्मार्टफोन्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) डिवाइसेज और सुपरकंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन प्रदान करते हैं। अब तक केवल ताइवान, दक्षिण कोरिया, अमेरिका, चीन और जापान ही इस तकनीक के करीब थे। भारत की इस क्षेत्र में एंट्री उसे वैश्विक तकनीकी नेताओं की कतार में लाकर खड़ा करती है। वर्तमान में फ्लैगशिप स्मार्टफोन्स जैसे iPhone और सैमसंग गैलेक्सी में 3nm चिप वाले प्रोसेसर का उपयोग हो रहा है, लेकिन अगले एक-दो साल में 2nm चिप्स का इस्तेमाल शुरू हो सकता है। भारत के लिए क्यों जरूरी है 2nm चिप? वैश्विक सेमीकंडक्टर मार्केट का आकार 2030 तक 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है, जिसमें भारत 100-110 अरब डॉलर का योगदान दे सकता है। 2nm तकनीक की दिशा में यह कदम ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की पहल को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा। यह भारत को वैश्विक चिप सप्लाई चेन में एक मजबूत विकल्प के रूप में स्थापित करेगा, जिससे देश की तकनीकी और आर्थिक ताकत बढ़ेगी।   सेमीकंडक्टर मिशन के तहत तेजी से प्रगति भारत सरकार के इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन के तहत 6 राज्यों में 10 प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी गई है, जिनमें कुल 1.6 लाख करोड़ रुपये का निवेश होगा। इसके लिए 76,000 करोड़ रुपये की सरकारी सहायता भी आवंटित की गई है। पिछले 11 वर्षों में देश में इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग 6 गुना बढ़ी है, जिससे सेमीकंडक्टर की मांग में तेजी आई है। सरकार का लक्ष्य केवल असेंबली तक सीमित नहीं है, बल्कि चिप डिजाइन और मैन्युफैक्चरिंग में आत्मनिर्भरता हासिल करना है।  

रक्षा और एयरोस्पेस में मध्यप्रदेश की अगुवाई, मेक इन इंडिया को मिलेगा नया आयाम

भोपाल  मध्यप्रदेश रक्षा और एयरोस्पेस मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत के विजन को साकार करने के लिए नई पहचान बना रहा है। अनुकूल औद्योगिक माहौल, मजबूत बुनियादी ढांचा और अग्रणी नीतियों के बल पर राज्य रक्षा उत्पादन और तकनीकी नवाचार का नया केंद्र बनता जा रहा है। इसी उद्देश्य से रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने और नए अवसरों पर चर्चा के लिए रक्षा इंडस्ट्री इंटरेक्शन प्रोग्राम का आयोजन किया गया। रक्षा उत्पादन विभाग, भारत सरकार की संयुक्त सचिव डॉ. गरिमा भगत ने कहा कि मध्यप्रदेश में रक्षा और एयरोस्पेस निर्माण का हब बनने की अपार संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि एमएसएमई और स्टार्टअप को मजबूत सहयोग देकर उन्हें राष्ट्रीय रक्षा आपूर्ति श्रृंखला में महत्वपूर्ण भागीदार बनाया जाए। उद्योग, अकादमिक संस्थानों और अनुसंधान संगठनों के बीच निरंतर सहयोग ही इस क्षेत्र में नवाचार को गति देगा और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को आगे बढ़ाएगा। संयुक्त सचिव डॉ. भगत ने कहा कि ऐसे कार्यक्रम एमएसएमई को रक्षा पीएसयू और बड़े प्राइवेट सेक्टर से सीधे जोड़ते हैं जिससे टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, जॉइंट वेंचर और महत्वपूर्ण प्रणालियों के सह-विकास के अवसर बढ़ते हैं। उन्होंने बताया कि एसआरआईजन पोर्टल पर अब तक 39 हजार से अधिक प्रोडक्ट स्वदेशीकरण के लिए सूचीबद्ध हैं, जो निवेशकों और स्टार्टअप के लिए बड़े अवसर पैदा करते हैं। कार्यक्रम के दौरान जबलपुर के रक्षा उद्योग के मजबूत ईकोसिस्टम और वेंडर बेस पर विशेष चर्चा हुई। डॉ. गरिमा भगत ने बताया कि जबलपुर में 300 करोड़ रु. की लागत से एक मैन्युफैक्चरिंग, रिपेयर एंड ओवरहाल (एमआरओ) सुविधा स्थापित की जा रही है, जिससे स्थानीय उद्योगों के लिए बड़े अवसर तैयार होंगे। औद्योगिक नीति एवं निवेश प्रोत्साहन प्रमुख सचिव राघवेंद्र सिंह ने कहा कि मध्यप्रदेश अपनी भौगोलिक स्थिति और अनुकूल औद्योगिक वातावरण के कारण रक्षा निर्माण में निवेश के लिए देश का सबसे स्वाभाविक और सर्वोत्तम स्थान है। राज्य में ऑटो क्लस्टर, ड्रोन टेक्नोलॉजी, तकनीकी वस्त्र और इलेक्ट्रॉनिक्स सैक्टर रक्षा क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने के लिए तेजी से विकसित हो रहे हैं। राज्य की एयरोस्पेस एंड डिफेंस पॉलिसी 2025 के अंतर्गत भूमि रियायती दरों पर उपलब्ध कराई जा रही है, साथ ही पूंजीगत निवेश पर 40 प्रतिशत तक की सब्सिडी और आरएंडडी, टेस्टिंग जैसी सुविधाओं पर आकर्षक प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं। मध्यप्रदेश अपनी प्रगतिशील नीतियों, सुदृढ़ औद्योगिक ढांचे और भारत सरकार के साथ मजबूत साझेदारी के माध्यम से रक्षा उत्पादन और नवाचार का अग्रणी केंद्र बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। आयुक्त एमएसएमई सुप्रीति मैथिल ने भी एमएसएमई में डिफेंस सैक्टर के संबंध में जानकारी साझा की। कार्यक्रम में 100 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें रक्षा पीएसयू, निजी क्षेत्र की अग्रणी कंपनियां, एमएसएमई, स्टार्टअप, शिक्षाविद और शोध संस्थान शामिल थे। प्रतिभागियों में अदाणी डिफेंस, बीईएल, हिंदुस्तान शिपयार्ड, गन कैरिज फैक्ट्री, ऑर्डनेंस फैक्ट्रीज, फोर्स मोटर्स, एचईजी, जेबीएम, विनायक इंजीनियरिंग, सीआईपीईटी भोपाल, आईआईएसईआर भोपाल और सीएसआईआर-एएमपीआरआई जैसी अग्रणी इकाइयां शामिल रहीं। संवाद सत्र में उद्योग प्रतिनिधियों ने वाहनों, पुर्जों, प्रोटेक्टिव गियर, टेलीकॉम सिस्टम, एम्युनिशन और एडवांस मटेरियल्स के क्षेत्र में सहयोग के अवसरों पर बातचीत की।