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मिग-21 का गौरवपूर्ण अंत, एयर चीफ मार्शल अमरप्रीत सिंह ने भरी आखिरी उड़ान

    चंडीगढ़ भारतीय वायुसेना में शामिल पहले सुपरसोनिक फाइटर जेट मिग-21 का आज चंडीगढ़ एयरबेस पर भव्य विदाई समारोह आयोजित किया गया। इस जेट में आखिरी उड़ान एयर चीफ मार्शल अमरप्रीत सिंह ने भरी। अब यह ऐतिहासिक विमान आसमान के बजाय म्यूजियम में स्थायी रूप से रखा जाएगा। इस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह मौजूद रहे। इस दौरान उन्होंने कहा कि मिग-21 विमान ने 62 वर्षों तक भारत और रूस के बीच गहरे सैन्य सहयोग को दर्शाया है। उन्होंने बताया कि यह जेट 1971 के युद्ध से लेकर कारगिल संघर्ष, बालाकोट एयर स्ट्राइक और ऑपरेशन सिंदूर तक भारत की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा। मिग-21 की पहली लैंडिंग 1963 में चंडीगढ़ एयरफोर्स स्टेशन पर हुई थी और उसी वर्ष अम्बाला में इसकी पहली स्क्वॉड्रन भी बनी थी। इसका निकनेम 'पैंथर' या 'तेंदुआ' था।  25 अगस्त 2025 को बीकानेर से भरी थी आखिरी उड़ान  रूसी मूल के इस विमान ने 25 अगस्त को राजस्थान के बीकानेर स्थित वायुसैनिक अड्डे से अपनी आखिरी उड़ान भरी। छह दशकों तक भारतीय वायुसेना का अभिन्न हिस्सा रहे मिग-21 का ‘बाइसन संस्करण’ आधुनिक तकनीक से लैस था। मिग-21 के हादसों का काला इतिहास: ‘उड़ता ताबूत’ के नाम से विख्यात मिग-21 के आखिरी वर्षों में हुए 300 से अधिक हादसों में 170 से अधिक भारतीय पायलट और 40 नागरिक मारे गए। इसे ‘फ्लाइंग कॉफिन’ यानी ‘उड़ता ताबूत’ भी कहा गया। 1966 से 1984 के बीच बने 840 विमानों में से आधे से अधिक हादसों में खो गए। पिछले चार वर्षों में भी सात मिग-21 दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें कई पायलटों की जान गई। प्रमुख दुर्घटनाएं     5 जनवरी 2021, सूरतगढ़ (राजस्थान) – पायलट सुरक्षित     17 मार्च 2021, ग्वालियर (मध्य प्रदेश) – ग्रुप कैप्टन की मौत     20 मई 2021, मोगा (पंजाब) – पायलट की मृत्यु     25 अगस्त 2021, बाड़मेर (राजस्थान) – पायलट सुरक्षित     25 दिसंबर 2021, राजस्थान – पायलट की मृत्यु     28 जुलाई 2022, बाड़मेर (राजस्थान) – दो पायलटों की मौत     8 मई 2023, हनुमानगढ़ (राजस्थान) – पायलट सुरक्षित मिग-21 की विदाई भारतीय वायुसेना के एक युग के समापन का प्रतीक है और यह विमान हमेशा वीरता, साहस और देशभक्ति का प्रतीक बना रहेगा।

MIG-21 का आखिरी सलाम: ग्वालियर से जुड़ी यादें और 2004 में US एयरफोर्स को दिखाया दम

ग्वालियर  भारतीय वायुसेना का जंगी लड़ाकू विमान मिग-21 ग्वालियर एयरबेस के आसमान से लेकर जमीन तक जांबाजी का साक्षी रहा है। देश के सबसे महत्वपूर्ण एयरबेस में शामिल ग्वालियर एयरफोर्स स्टेशन पर मिग-21 बाइसन वर्ष 2004 में भारतीय वायुसेना और यूएस एयरफोर्स के संयुक्त कोप इंडिया अभ्यास में शामिल रहा। 62 वर्ष के गौरवशाली इतिहास के साथ आज भारतीय वायुसेना से विदाई लेने वाले इस लड़ाकू विमान का ग्वालियर से गहरा नाता रहा है। ग्वालियर में 2022 के बाद से मिग-21 की गूंज सुनाई नहीं दी। ग्वालियर एयरबेस के जांबाज अधिकारियों ने मिग-21 में उड़ान भरकर देश को गौरवान्वित किया है। ग्वालियर एयरबेस पर मिग-21 ने लंबे समय तक उड़ान भरी साथ ही युद्धों से लेकर विभिन्न वायुसेना के आयोजनों में भी सहभागिता की है। एयरबेस पर तैनात रहे अफसरों ने मिग-21 के जरिए कौशल भी दिखाया है। बता दें कि यह विमान 1963 में पहली बार भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया था। आखिरी बार मिग-21 ने प्रयागराज में कुंभ मेले में एयरशो में भाग लिया था। मिग-21 की अधिकतम गति लगभग 2,200 किलोमीटर प्रति घंटा है। यह 17,500 मीटर की ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है। हवा से हवा में मार करने वाली और हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलें लगाई जाती थीं। विमान का डिजाइन छोटा पर शक्तिशाली था, जो तेज हमलों व हवाई युद्ध के लिए आदर्श माना गया। 2004 में ग्वालियर में हुआ था कोप इंडिया अभ्यास ग्वालियर में कोप इंडिया अभ्यास के दौरान मिग-21 बाइसन ने अपनी युद्ध क्षमता का बखूबी प्रदर्शन किया। इस अभ्यास में भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों को संयुक्त राज्य वायुसेना के एफ-15 जैसे विमानों के खिलाफ खड़ा किया गया था। घने विद्युत चुंबकीय माहौल में अच्छे प्रदर्शन के कारण इसे अमेरिकी फोर्स की भी सराहना मिली। इस पूरे अभ्यास में बाइसन अपनी धैर्यता व क्षमता के कारण नेतृत्व की भूमिका में रहा। देश में अहम है ग्वालियर एयरबेस ग्वालियर का महाराजपुरा एयरफोर्स स्टेशन 1942 में बना था और अब तक हुए युद्धों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुका है। वर्ष 1965, 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में इसी एयरफोर्स स्टेशन से लड़ाकू विमानों ने उड़ान भरी थी। ये स्टेशन देश का एकमात्र एयरबेस है, जहां फाइटर प्लेन में हवा में ईंधन भरा जा सकता है। अगर युद्ध के दौरान उड़ान के वक्त किसी फाइटर प्लेन को ईंधन की जरूरत पड़ी तो इस एयरबेस पर तुरंत दूसरा जेट प्लेन हवा में जाकर ही उसे रिफ्यूल कर सकता है।

60 साल की सेवा के बाद मिग-21 रिटायर, भारतीय वायुसेना का ऐतिहासिक अध्याय होगा समाप्त

नई दिल्ली  मिग-21 के रिटायर होने के साथ भारतीय वायुसेना ने भारतीय सैन्य विमानन में एक ऐतिहासिक अध्याय समाप्त कर दिया है. यह विमान अपने पीछे बेजोड़ सेवा और एक ऐसी विरासत छोड़ गया है जिसे भारत द्वारा लड़ाकू विमानों की नई पीढ़ी में बदलाव के दौरान याद रखा जाएगा. भारतीय वायुसेना मिग-21 की जगह तेजस हल्के लड़ाकू विमान (एलसीए) मार्क 1ए को शामिल कर सकती है. भारतीय वायुसेना की रीढ़ कहे जाने वाले मिग-21 की लगभग 60 साल की सेवा भारत की वायु शक्ति को आकार देने में महत्वपूर्ण रही है. वायुसेना 26 सितंबर को मिग-21 लड़ाकू विमान को चरणबद्ध तरीके से हटाने की तैयारी कर रही है. भारतीय वायु सेना (आईएएफ) ने अपने प्रतिष्ठित मिग-21 लड़ाकू जेट को छह दशकों की शानदार सेवा का जश्न मनाते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की. एक्स पर एक पोस्ट में भारतीय वायुसेना ने विमान की सराहना करते हुए कहा कि यह एक ऐसा युद्धक घोड़ा है जिसने राष्ट्र के गौरव को आसमान में पहुंचाया.' जारी वीडियो में मिग-21 के उत्कृष्ट इतिहास को दर्शाया गया है. 1963 में शामिल किया गया मिग-21 लगभग छह दशकों से सेवा दे रहा है और भारत की वायु शक्ति का आधार रहा है. चंडीगढ़ में स्थापित इसकी पहली स्क्वाड्रन, 28 स्क्वाड्रन को भारत के पहले सुपरसोनिक लड़ाकू विमान के रूप में 'फर्स्ट सुपरसोनिक्स' उपनाम दिया गया था. मिग-21 विमान ने कई अभियानों में व्यापक भूमिका निभाई है. इनमें 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध भी शामिल है, जहाँ इसने अपनी युद्धक क्षमता साबित की. दशकों से इसने लड़ाकू पायलटों की कई पीढ़ियों को प्रशिक्षित किया है, जिनमें से कई इसे चुनौतीपूर्ण और लाभप्रद मानते हैं. 1971 के युद्ध में मिग-21 विमानों ने ढाका स्थित राज्यपाल के आवास पर हमला किया था. इसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान को आत्मसमर्पण करना पड़ा था. इस विमान ने दुश्मन के कई लड़ाकू विमानों को मार गिराया है. 1971 में F-104 से लेकर 2019 में F-16 तक—जिससे यह भारतीय वायुसेना के इतिहास में सबसे अधिक युद्ध-परीक्षणित जेट विमानों में से एक बन गया है. मिग-21 को कारगिल युद्ध में भी इस्तेमाल किया गया था. प्रेस ब्यूरो ऑफ इनफॉर्मेशन के अनुसार यह अक्सर कमांडरों की पहली पसंद होता था, क्योंकि इसकी उच्च चपलता, तेज गति और त्वरित वापसी जैसी अनूठी विशेषताओं के कारण यह बेजोड़ परिणाम देता था. मिग-21 के सभी प्रकारों की बहुमुखी प्रतिभा ने दशकों से भारतीय वायुसेना के संचालन दर्शन को व्यापक रूप से आकार दिया है. मिग-21 को उड़ाने और उसका रखरखाव करने वाले पायलट, इंजीनियर और तकनीशियन इसकी असाधारण युद्ध क्षमता के प्रबल समर्थक रहे हैं. प्रमुख परिचालन उपलब्धियां हासिल करने के अलावा, मिग-21 ने स्वदेशी एयरोस्पेस उद्योग की तकनीकी और विनिर्माण क्षमताओं में क्रांतिकारी वृद्धि भी की. मिग-21 एफएल के चरणबद्ध तरीके से बाहर होने के साथ अथक प्रदर्शन, सटीक डिलीवरी और डराने वाले प्रदर्शन का युग भी समाप्त हो जाएगा.

भारतीय वायुसेना का गौरव मिग-21 हो रहा रिटायर, छह दशक की सेवा को सलाम

नई दिल्ली  हिंदुस्तान के आसमान में 60 और 70 के दशक में अपनी बादशाहत कायम रखने वाला फाइटर जेट मिग-21 सिंतबर में रिटायर हो रहा है। पैंथर्स के नाम से मशहूर 23 स्क्वाड्रन ने भारत के हर छोटे-बड़े युद्ध में हिस्सा लिया। 60 वर्षों से अधिक समय तक भारतीय वायुसेना का हिस्सा रहने के बाद इसे अब 19 सितंबर को चंडीगढ़ एयरबेस पर एक समारोह में विदाई दे दी जाएगी। जानते हैं 1963 में भारतीय वायुसेना में शामिल होने के बाद कैसा रहा मिग-21 का सफर… मिग-21 लड़ाकू विमान का इतिहास मिला-जुला रहा। इस फाइटर जेट को भारत ने सोवियत संघ से खरीदा था। इसके बाद इसे 1963 में भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया। भारतीय वायुसेना में शामिल होने के बाद हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने इसके कई विमान भारत में बनाए। 1960 और 70 के दशक में मिग-21 स्क्वाड्रन की आकाश में मौजूदगी से उस समय भारतीय वायुसेना को रणनीतिक बढ़त मिली। 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध, 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति, 1999 में कारगिल युद्ध और 2019 में बालाकोट स्ट्राइक में मिग-21 का अहम योगदान रहा। अभी चल रहे ऑपरेशन सिंदूर में भी मिग-21 स्क्वाड्रन अलर्ट मोड में है। हादसों के बाद दिया गया 'उड़ता ताबूत' नाम जहां एक तरफ 60-70 के दशक में आकाश में अपनी मौजूदगी से भारतीय वायुसेना को मिग-21 ने सशक्त किया। वहीं दूसरी ओर समय के साथ इसकी टेक्नोलॉजी कमजोर पड़ने लगी। कई हादसों के कारण इसे 'उड़ता ताबूत' भी नाम दिया गया। आप के दौर में लेटेस्ट टेक्नोलॉजी के विमानों के सामने मिग-21 कुछ खास नहीं रह गया। हालांकि 60-70 के दशक में इसकी गिनती बेहतरीन फाइटर जेटों में होती थी। इसकी पुरानी तकनीक और हादसों के बाद उठ रहे सवाल को लेकर अब इसे 62 वर्षों बाद 19 सितंबर को रिटायर कर दिया जाएगा। वहीं पैंथर्स स्क्वाड्रन की विदाई के बाद भारतीय वायुसेना में लड़ाकू स्क्वाड्रनों की संख्या घटकर 29 हो जाएगी। जो कि 1960 के दशक के बाद सबसे कम है। यहां तक की 1965 में 32 लड़ाकू स्क्वाड्रनों की संख्या थी। हर युद्ध में मिग-21 ने किया कमाल एविएशन एक्सपर्ट अंगद सिंह ने कहा, 'कोई और फाइटर जेट भारतीय वायुसेना के साथ इतने लंबे समय तक नहीं जुड़ा रहा। वायुसेना के 93 साल के इतिहास में दो-तिहाई समय तक यह जेट रहा है। इसने 1965 से लेकर ऑपरेशन सिंदूर तक हर मोर्चे पर अपना अहम योगदान दिया है। आज हर भारतीय फाइटर पायलट के करियर में इसका योगदान है। इसमें कोई शक नहीं कि यह भारतीय आसमान के एक महान विमान को भावुक विदाई होगी।' सूत्रों के अनुसार, मिग-21 के विदाई समारोह में वायुसेना के बड़े अधिकारी और पुराने सैनिक शामिल होंगे। इस मौके पर फ्लाईपास्ट और विमानों की प्रदर्शनी भी होगी। मिग-21 ने सबसे लंबे समय तक वायुसेना में सेवा देने का रिकॉर्ड बनाया है। भारत ने मिग-21 के 850 से अधिक विमान खरीदे थे, जिनमें ट्रेनर विमान भी शामिल थे। लगभग 600 विमान हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने भारत में बनाए थे। स्वदेशी विमानों की डिलीवरी में देरी दुनियाभर में इन विमानों का इस्तेमाल अब खत्म हो चुका है, लेकिन वायुसेना इनकी समय सीमा बढ़ाती रही है। क्योंकि इनकी जगह लेने के लिए आधुनिक लड़ाकू विमान अभी तक नहीं मिल पाए हैं। पहले यह तय हुआ था कि मिग-21 स्क्वाड्रन की जगह लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट लेंगे, लेकिन इन स्वदेशी विमानों की डिलीवरी में देरी हो गई है।