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27 % आरक्षण होल्ड हटाने का मामला: सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई नवंबर तक टाली, केंद्र ने मांगा और वक्त

भोपाल   एक बार फिर मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण दिए जाने के मामले पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई टाल दी गई है. पहले इस मुद्दे पर 8 अक्टूबर से नियमित सुनवाई होने वाली थी लेकिन सुनवाई नहीं हो सकी. MP सरकार की तरफ से तुषार मेहता ने इस मामले की सुनवाई को 9 अक्टूबर से  किए जाने का आग्रह किया था, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था. लेकिन एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से इस सुनवाई के लिए वक्त मांगा है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर पहले ही नोटिस जारी कर चुका है. वहीं कांग्रेस इस मामले में लगातार सरकार की मंशा पर सवाल उठाती आयी है. शुरू होते ही मांग ली तारीख सुनवाई के लिए सुबह 10.30 बजे जैसे ही बेंच शुरू हुई, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसमें समय देने की मांग की। उन्होंने कहा कि अभी कुछ मुद्दों पर आपस में चर्चा करना है, इसलिए छुट्टियों के बाद इसमें समय दे सकें। अनारक्षित पक्ष ने कहा कि बेहतर होगा इसे खत्म किया जाए। इस पर ओबीसी वेलफेयर कमेटी की ओर से कहा गया कि इसे सुना जाए। इस पर मेहता ने कहा कि आगे बढ़ा दिया जाए। अब इस तारीख को होगी सुनवाई सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में जज के सामने ओबीसी आरक्षण के मामले में और वक्त देने की मांग रखते हुए कहा कि "इसमें कई तकनीकी पक्ष हैं, जिनको समझने के लिए थोड़े और वक्त की जरूरत है. वहीं अब इस मामले की सुनवाई अगले महीने (नवंबर) के पहले हफ्ते में होगी." ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा फाइनल हियरिंग होगी सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इस पर कहा कि ठीक है, अभी छुट्टियां लग जाएंगी तो आप बताइए क्या संभावित समय बताएं। मेहता ने कहा कि नवंबर पहले या दूसरे सप्ताह में। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दूसरे सप्ताह नवंबर रख रहे हैं लेकिन यह फाइनल हियरिंग होगी। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट में केस वापस करने को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई। दो मिनट की सुनवाई में डेट आगे बढ़ गई। ओबीसी कमेटी ने कहा कि हाईकोर्ट के स्टे हटा दीजिए इस पर ओबीसी वेलफेयर कमेटी के अधिवक्ता वरूण ठाकुर ने कहा कि कम से कम हाईकोर्ट के स्टे को हटा दीजिए, एक्ट कहीं भी चैलेंज नहीं है। स्टे हटा दीजिए ताकि एक्ट के तहत भर्ती हो सके। लेकिन इस पर बेंच ने कोई जवाब नहीं दिया। 87 और 13 फीसदी का मामला उलझा मध्यप्रदेश की सियासत में कहा जाता है कि OBC समुदाय जिसके साथ रहेगा सत्ता की चाबी उसके पास रहेगी. यही वजह है कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों पिछड़ा वर्ग का हितैषी बनने की कोशिश करती हैं. विपक्ष का आरोप है सरकार गुमराह कर रही है, और सरकार कहती है — हम तो OBC के साथ हैं. दूसरी तरफ मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ऐसे आरोपों को सिरे नकारते हैं. वे कहते हैं कि हमारी सरकार का रुख साफ है. हम ओबीसी को 27℅ आरक्षण देने के स्टैंड पर हम कायम हैं.  मध्यप्रदेश में OBC की आबादी 50 फीसदी से अधिक है, लेकिन ओबीसी वर्ग 27% आरक्षण के पेंच में उलझ गया है.यही आरक्षण युवाओं की गले की फांस बनता जा रहा है.दरअसल मध्यप्रदेश में हो रही भर्ती परीक्षाओं में 87:13 का फॉर्मूला लागू है, इसके तहत 87% रिजल्ट जारी हो रहे हैं जबकि 13% रिजल्ट होल्ड पर हैं आलम ये है कि कई युवा सरकारी नौकरी की राह देखते-देखते ओवर एज हो चुके हैं तो कुछ ने पढ़ाई ही छोड़ दी है. एमपी हाईकोर्ट जाएगा या नहीं यह तय नहीं यह केस अब हाईकोर्ट में वापस जाएगा या नहीं यह तय नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर गुरुवार को कोई बात नहीं हुई। इसके पहले बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि क्यों ना केस को हाईकोर्ट भेज दें, क्योंकि आरक्षण स्थानीय मुद्दे, टोपोग्राफी, जनसंख्या इन सभी से जुड़ा होता है और यह हाईकोर्ट बेहतर समझ सकता है। इस पर बात आई थी कि हाईकोर्ट ने कई याचिकाओं में स्टे दे दिया है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम स्टे वेकेट करके इसे रिवर्ट कर देते हैं। इस पर अनारक्षित पक्ष को आपत्ति थी क्योंकि स्टे हटने का मतलब था कि मप्र में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण (27 percent OBC reservation case) लागू हो जाएगा। पांच मिनट की सुनवाई के बाद तय हुआ कि इस मुद्दे को प्रैक्टिकली देखा जाएगा और 9 अक्टूबर को सुनेंगे, लेकिन फिर सरकार ने समय मांग लिया। सरकार लगातार समय मांग रही है मध्य प्रदेश सरकार इस मामले में लगातार समय मांग रही है। यह मामला साल 2019 से चल रहा है। पहले हाईकोर्ट ने इसमें ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण (27 percent OBC reservation) देने पर रोक लगाई और फिर इसमें सुनवाई की जगह शासन ने ट्रांसफर याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर कर दी। इसके बाद इन्हें खारिज किया गया और हाईकोर्ट फिर भेजा गया लेकिन फिर वहां से सुप्रीम कोर्ट में दूसरी ट्रांसफर याचिकाएं लगाई गई। हाईकोर्ट में हर बार शासन ने यह कहा कि एपेक्स कोर्ट में केस है, इसलिए सुनवाई नहीं हो सकती है। इसके बाद मामला फिर सुप्रीम कोर्ट में सुना गया और सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती से कहा कि सरकार 6 साल से सो रही थी, अब अंतरिम राहत नहीं देंगे अंतिम फैसला देंगे। लेकिन 8 अक्टूबर की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने अचानक कहा कि क्यों ना इसे हाईकोर्ट भेज दिया। लेकिन 9 अक्टूबर को हाईकोर्ट भेजने पर कोई चर्चा नहीं हुई। ओबीसी कमेटी के आरोप: चुनाव के कारण राजनीति हुई ओबीसी वेलफेयर कमेटी की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर ने मीडिया से कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कल कहा था कि स्टे वेकेट करते हुए केस हाईकोर्ट को रिमांड करेंगे। आज (9 अक्टूबर)  सुनवाई के दौरान उम्मीद थी कि स्टे हटकर हाईकोर्ट में केस जाएगा, लेकिन सुबह सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहताजी ने मेंशन लेकर मामले की फाइनल सुनवाई का निवेदन किया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने इसे मानते हुए दूसरे सप्ताह नवंबर में रखा गया है, फाइनल सुनवाई के लिए कहा है। अधिवक्ता वरुण ठाकुर ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि … Read more

सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण मामले में कहा- हाईकोर्ट को वापस भेजने का फैसला कल हो सकता है

भोपाल  मध्य प्रदेश में 27% OBC आरक्षण के मुद्दे को लेकर राज्य सरकार ने एक नई टीम बनाई है। सरकार ने सीनियर एडवोकेट और डीएमके सांसद पी विल्सन (senior advocate P Wilson) को हटाकर अब सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखने के लिए एक और टीम नियुक्त की है। पहले, विल्सन को सरकार की ओर से हर सुनवाई पर 5.5 लाख रुपए देने थे, क्योंकि वे OBC आरक्षण पर सरकार का पक्ष रख रहे थे। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने टिप्पणी की है कि क्यों न इन मामलों को अंतिम बहस के लिए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय को वापस भेज दिया जाए। यह सामान्य वर्ग के छात्रों के लिए एक बड़ी राहत है, जिनका प्रतिनिधित्व आज सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता आदित्य सांघी ने किया। इसका अर्थ है कि ओबीसी आरक्षण पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा 19/3/2019 को आशिता दुबे मामले में wp 5901/19 में दी गई ओबीसी आरक्षण बढ़ाने पर रोक जारी रहेगी। मध्य प्रदेश सरकार ने आरक्षण के प्रकरणों को फिर बहस के लिए समय के लिए निवेदन किया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए प्रकरणों को 9 अक्टूबर को पुनः सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया ! सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना राज्य के 42 परसेंट रिजर्वेशन की याचिकाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि विधान सभा के बनाए गए कानून का उस राज्य की जनसंख्या,भूगोलिक,सामाजिक परिस्थितियों के अंतर्गत परीक्षण हाईकोर्ट करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि समस्त अंतरिम आदेश वैकेट करके मामलो को हाईकोर्ट रिमांड करेंगे। ओबीसी वर्ग की ओर से पक्ष रखने वाले वरिष्ठ ओबीसी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व अन्य उपस्थित हुए। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होते ही सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मैटर को मेंशन किया। मेहता ने कहा- इसमें बहुत सारे टेक्निकल पक्ष हैं। इसलिए कहीं न कहीं इसकी सुनवाई में समय लग सकता है। इसके समाधान के लिए क्या तरीका निकाला जाए? क्यों न कुछ और तरह का सॉल्यूशन निकाला जाए। कोर्ट ने कहा- और वक्त मांगेंगे तो दिक्कतें बढ़ेंगी इस पर कोर्ट ने कहा कि आप फिर वक्त मांगेंगे तो और समय जाएगा। दिक्कतें बढ़ेंगी। अगले हफ्ते दीवाली है, छुट्टियां हैं। कोर्ट ने कहा, हम ये चाहते हैं कि ये मैटर हाईकोर्ट के फैसले के बाद हमारे पास आए। सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर पिटीशन पहुंची हैं। इस मामले में हाईकोर्ट का कोई फैसला नहीं हैं। छत्तीसगढ़ की तरह अंतरिम राहत दे सकता है SC सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जिस तरह छत्तीसगढ़ में अंतरिम लाभ दिया गया था। हो सकता है कि मप्र के मामले में भी अंतरिम राहत दे दें। इस पर याचिकाकर्ताओं ने आपत्ति जताई तो कोर्ट ने कहा कि इस मामले पर जो उपयुक्त समाधान हो सकता है उस पर कल विवेचना करके सुनवाई करेंगे। मामले को वापस हाईकोर्ट भी भेज सकता है सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आप सभी लोग अपने पक्ष बताएं, हो सकता है कि अंतरिम लाभ दे दें या लाभ नहीं भी दें तो हम हाईकोर्ट को डायरेक्ट कर दें। कल आप सब लोग इस बात पर अपने तर्क दें कि इस मामले का कैसे जल्दी समाधान कर सकते हैं। हम इस मामले को हाईकोर्ट भेज दें या अंतरिम राहत देकर हाईकोर्ट भेज दें। क्योंकि हाईकोर्ट को अपने राज्य के बारे में अच्छे से जानकारी होती है। ये रिजर्वेशन का मामला है, इसमें इंदिरा साहनी की कड़ी जरूर है लेकिन ये राज्य से संबंधित मामला है। इसलिए इस मामले में जो सबसे उपयुक्त समाधान हो सकता है उस पर कल सुनवाई करेंगे। कोर्ट ने कहा हम तो चाहते हैं कि कल इस मामले को निपटा ही दें।

मध्यप्रदेश सरकार का स्पष्टीकरण: ओबीसी आरक्षण पर दाखिल हलफनामे की स्थिति स्पष्ट

भोपाल     राज्य शासन के संज्ञान में यह आया है कि कतिपय शरारती तत्वों द्वारा सोशल मीडिया पर यह कहते हुए कुछ टिप्पणियां/सामग्री वायरल की जा रही है कि वह टिप्पणियां माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत मध्यप्रदेश शासन के ओबीसी आरक्षण से संबंधित प्रकरण के हलफनामे का भाग है।     शासन द्वारा उक्त शरारती सामग्री का गंभीरता से परीक्षण कराया गया है I माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष पिछड़ा वर्ग आरक्षण के प्रचलित प्रकरण में अभिलेख के प्रारंभिक परीक्षण से यह तथ्य सामने आया है कि उल्लेखित सोशल मीडिया की टिप्पणियां एवं कथन पूर्णतः असत्य, मिथ्या एवं भ्रामक है एवं दुष्प्रचार की भावना से किए गए हैं।     यह स्पष्ट किया जाता है कि वायरल की जा रही सामग्री मध्यप्रदेश शासन के हलफनामे में उल्लेखित नहीं है एवं ना ही राज्य की किसी घोषित या स्वीकृत नीति अथवा निर्णय का भाग हैं ।     प्रथम दृष्टया यह ज्ञात हुआ है कि वस्तुतः उल्लेखित सामग्री मध्यप्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग, अध्यक्ष श्री रामजी महाजन द्वारा प्रस्तुत अंतिम प्रतिवेदन (भाग-1) का हिस्सा हैं। उक्त आयोग का गठन दिनांक 17-11-1980 को किया गया था। आयोग द्वारा दिनांक 22-12-1983 को अपना अंतिम प्रतिवेदन तत्कालीन राज्य शासन को प्रेषित किया था।     राज्य शासन ने माननीय उच्चतम न्यायालय में ओबीसी आरक्षण संबंधित प्रकरण में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के विभिन्न प्रतिवेदन भी प्रस्तुत किए हैं, जो शासन के अभिलेखों में सुरक्षित हैं। इन प्रतिवेदनों में महाजन आयोग की रिपोर्ट के साथ-साथ 1994 से 2011 तक के वार्षिक प्रतिवेदन तथा वर्ष 2022 का राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग का प्रतिवेदन भी सम्मिलित है।     महाजन आयोग का उक्त प्रतिवेदन माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष भी अभिलेख का भाग रहा है। अतः माननीय उच्चतम न्यायालय में भी उक्त प्रतिवेदन स्वतः ही न्यायिक अभिलेख का हिस्सा है।     मध्यप्रदेश सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ एवं सामाजिक सद्भावना के प्रति पूर्णतः प्रतिबद्ध है। शासन स्पष्ट करता है कि वायरल की जा रही सामग्री शासन के हलफनामे में उल्लेखित नहीं है एवं ना ही राज्य शासन के किसी स्वीकृत या आधिकारिक नीति या निर्णय का हिस्सा है। यह उल्लेखनीय है कि महाजन रिपोर्ट में 35% आरक्षण की अनुशंसा की गई थी, जबकि राज्य शासन ने 27% आरक्षण लागू किया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि राज्य शासन का निर्णय महाजन रिपोर्ट पर आधारित नहीं है।     भारतवर्ष में आरक्षण को लेकर विभिन्न विशेषज्ञ समितियों के प्रतिवेदन, समय-समय पर गठित आयोग के रिपोर्ट एवं वार्षिक प्रतिवेदन तथा अन्य आधिकारिक सामग्री जो पूर्व से ही शासकीय अभिलेखों का भाग है एवं विभिन्न प्रकरणों में अभिलेखों का भी भाग है, माननीय न्यायालय के समक्ष हमेशा से प्रस्तुत की जाती रही हैं I     ऐसे एकेडमिक विश्लेषण एवं समय-समय पर गठित विभिन्न विशेषज्ञ समितियों के अत्यंत विस्तृत प्रतिवेदनों एवं रिपोर्ट के किसी एक भाग को, बिना किसी संदर्भ के स्पष्ट किए सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार के रूप में प्रस्तुत किया जाना एक निंदनीय प्रयास है I इसके संबंध में राज्य शासन द्वारा गंभीरता से जांच कर आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।    

ओबीसी पक्ष तैयार करेगा पैनल, दो वरिष्ठ अधिवक्ताओं के नाम जाएंगे कोर्ट में

भोपाल  मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा सर्वदलीय बैठक बुलाए जाने के बाद नई दिल्ली स्थित मध्यप्रदेश भवन में राज्य शासन के अधिवक्ताओं और ओबीसी महासभा के अधिवक्ताओं की संयुक्त बैठक हुई। बैठक में तय किया गया कि मप्र शासन द्वारा नियुक्त वरिष्ठ अधिवक्ता के साथ-साथ अन्य वरिष्ठ अधिवक्ताओं को भी मामले में शामिल किया जाएगा। इस उद्देश्य से ओबीसी महासभा के अधिवक्ताओं ने दो दिनों के भीतर अतिरिक्त वरिष्ठ अधिवक्ताओं के लिए दो नामों का पैनल देने की सहमति दी है। बैठक में आगामी सुनवाई के दौरान ओबीसी वर्ग के हितों की सुरक्षा के लिए साझा पैरवी पर सकारात्मक चर्चा हुई। इसमें मप्र शासन के महाधिवक्ता प्रशांत सिंह, पूर्व महाधिवक्ता अनूप जॉर्ज चौधरी, वरिष्ठ अधिवक्ता  जून चौधरी, रामेश्वर ठाकुर, वरुण ठाकुर, विनायक शाह,  शशांक रतनू, रामकरण, हनुमत लोधी सहित कई अधिवक्ता उपस्थित रहे। सरकार और ओबीसी महासभा के प्रतिनिधियों का मानना है कि इस समन्वय और साझा पैरवी से आगामी सुनवाई में प्रदेश का पक्ष और अधिक मजबूत होगा। सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है मामला  बता दें मध्य प्रदेश में ओबीसी वर्ग को फिलहाल 14 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा है। 2019 से 27 प्रतिशत आरक्षण देने का कानून बनने के बाद से सरकारी भर्तियों के 87 प्रतिशत पदों पर ही नियुक्ति दी जा रही है, जबकि 13 प्रतिशत पद कोर्ट का फाइनल निर्णय आने तक होल्ड कर दिए गए हैं। इसके खिलाफ ओबीसी वर्ग के छात्रों और ओबीसी महासभा ने कोर्ट में याचिका दायर की है। यह मामला हाईकोर्ट के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं।  

OBC आरक्षण पर भोपाल में बड़ी बैठक, कांग्रेस-सपा-आप समेत कई दल हुए शामिल

भोपाल  मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण मामले में 6 साल पहले कानून बन गया था। लेकिन अभी तक नौकरी में 27 फीसदी आरक्षण नहीं मिल पा रहा है। वहीं, आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट में घिरने के बाद सरकार ने इस समस्या का हल निकालना शुरू कर दिया है। ओबीसी आरक्षण पर हल खोजने के लिए सीएम हाउस में सर्वदलीय बैठक बुलाई गई। सभी पार्टी के नेताओं के बीच शुरू हुई चर्चा खत्म हो गई है। गुरुवार की सुबह मुख्यमंत्री निवास के समत्व भवन में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की अध्यक्षता में प्रदेश में ओबीसी के सदस्यों को आरक्षण के संबंध में सर्वदलीय बैठक हुई। इस बैठक में सभी दलों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। साथ ही ओबीसी आरक्षण मुद्दे पर खुलकर चर्चा की। सर्वदलीय बैठक में ये नेता हुए शामिल इस बैठक में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव, कमलेश्वर पटेल और सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट रामेश्वर ठाकुर, वरुण ठाकुर, समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. मनोज यादव, आम आदमी पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष रानी अग्रवाल मंत्री प्रहलाद पटेल जैसे मध्य प्रदेश ओबीसी आयोग के अध्यक्ष रामकृष्ण कुसुमरिया मंत्री कृष्णा गौर जैसे दिग्गज नेता मौजूद रहे। चिंताएं और आवश्यकताएं हुई स्पष्ट इस बैठक में सभी नेताओं ने अपने-अपने मत सरकार को दिए। बैठक के दौरान विभिन्न दलों ने अपनी चिंताओं और आवश्यकताओं को स्पष्ट किया। इसके चलते मुद्दे पर दलों के बीच गहन विचार विमर्श हुआ। सीएम की अध्यक्षता में हुई इस बैठक से आरक्षण मुद्दे में आगे की नीतिगत दिशा तय करने में सहायता मिलेगी। इस बैठक का मूल उद्देश्य ही सभी दलों के विचारों को सुनना और सामंजस्यपूर्ण समाधान निकालना था। सीएम डॉक्टर मोहन यादव ने कहा कि हमारी सरकार तो हमेशा से ही ओबीसी को 27% आरक्षण देना चाहती है लेकिन सुप्रीम कोर्ट में मामला होने की वजह से कुछ समस्याएं आ रही थी। मुख्यमंत्री ने कहा कि इस मुद्दे का हाल सभी दल मिलकर निकालेंगे। इससे समन्वय की स्थिति बनेगी और ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की राह आसान हो जाएगी। जीतू पटवारी ने किए तीखे सवाल बैठक शुरू होने से पहले मीडिया से बात करते हुए जीतू पटवारी ने कहा कि जिन लोगों ने गड़बड़ की, क्या उनको सजा मिलेगी? पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव, बीजेपी सरकार ने कांग्रेस द्वारा दिए आरक्षण को क्यों रोका? नेता प्रतिपक्ष उमार सिंघार का तंज वहीं, नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने कहा कि 6 साल पहले कमल नाथ की सरकार में आदेश हुआ था। अध्यादेश भी आया था। इस तरह से पुराने घर में नारियल फोड़कर 27 प्रतिशत आरक्षण का गृह प्रवेश कर रहे हैं। सर्वदलीय बैठक की आवश्यकता तब पड़ती है जब विवाद हो, आपस में समन्वय न हो। कांग्रेस तो पहले से ही तैयार है। कांग्रेस ही अध्यादेश और कानून लेकर आई थी। क्या बोले अन्य पार्टी के नेता समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ मनोज यादव ने कहा पिछड़े वर्ग को आबादी के हिसाब से 52 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए। लेकिन सरकार 14 प्रतिशत दे रही है। 13 प्रतिशत होल्ड आरक्षण तत्काल प्रभाव से लागू करें। वहीं, आम आदमी पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष रानी अग्रवाल ने कहा कि 27 प्रतिशत आरक्षण तो प्रदेश में लागू हो गया था। यह ओबीसी का हक है और उसे मिलना ही चाहिए। केंद्र-राज्य में बीजेपी सरकार है। चाहे तो 27 प्रतिशत आरक्षण हो सकता है पर वह लटकाए हुए हैं।