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सावधान! दिल्ली-NCR में ओजोन प्रदूषण बढ़ा, NGT ने लिया गंभीर नोटिस

नई दिल्ली केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की नवीनतम रिपोर्ट, जिसमें दिल्ली-एनसीआर समेत कई भारतीय राज्यों में ज़मीनी स्तर पर ओज़ोन प्रदूषण के स्तर का विश्लेषण किया गया है, ने चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए हैं। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने सीपीसीबी की रिपोर्ट में उजागर हुए खतरनाक ओज़ोन स्तरों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। सीपीसीबी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में 10 शहरों के 178 निगरानी केंद्रों पर ओज़ोन स्तरों का विश्लेषण किया गया। इसमें पता चला कि दिल्ली-एनसीआर के 57 निगरानी केंद्रों में से 25 में ओज़ोन प्रदूषण आठ घंटे की सीमा से अधिक पाया गया, जबकि 21 स्थानों पर गर्मियों के दौरान ओज़ोन प्रदूषण एक घंटे की सीमा से अधिक पाया गया। एनजीटी विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (सीएसई) की एक रिपोर्ट पर आधारित एक समाचार रिपोर्ट का संज्ञान लेने के बाद इस मामले की सुनवाई कर रहा है। 6 अगस्त, 2024 को प्रकाशित एक समाचार रिपोर्ट में कहा गया था कि सीएसई की रिपोर्ट में शहरी भारत में ओज़ोन प्रदूषण में खतरनाक वृद्धि दिखाई गई है। दिल्ली-एनसीआर के अलावा, मुंबई के 45 में से 22 स्टेशनों पर ओजोन प्रदूषण का स्तर आठ घंटे की सीमा से अधिक पाया गया। दिल्ली-एनसीआर और मुंबई के अलावा, सीपीसीबी ने ग्रेटर हैदराबाद में 14 निगरानी स्टेशनों, बेंगलुरु महानगर क्षेत्र में 11, चेन्नई महानगर क्षेत्र में सात, पुणे महानगर क्षेत्र में 12, ग्रेटर अहमदाबाद में 10 और ग्रेटर लखनऊ व ग्रेटर जयपुर में छह-छह निगरानी स्टेशनों का विश्लेषण किया। सीपीसीबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि अन्य क्षेत्रों की तुलना में दिल्ली-एनसीआर और मुंबई महानगर क्षेत्र में ओज़ोन का स्तर अधिक पाया गया। यह मुख्य रूप से परिवहन, बिजली संयंत्रों और औद्योगिक गतिविधियों से उत्सर्जित नाइट्रोजन ऑक्साइड के कारण था। रिपोर्ट में कहा गया है कि ओज़ोन मुख्य रूप से सूर्य के प्रकाश में वाहनों, उद्योगों और बिजली संयंत्रों से उत्सर्जित नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (VOCS) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) की रासायनिक प्रतिक्रिया से बनता है। विशेषज्ञ समिति के गठन का प्रस्ताव रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और सीपीसीबी ने ओज़ोन और उसके कारकों को नियंत्रित करने के उपायों की सिफारिश करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन का प्रस्ताव रखा है। इसमें यह भी कहा गया है कि एक अन्य मामले में दायर एक रिपोर्ट में ओजोन और उसके कारणों को नियंत्रित करने के लिए एक अध्ययन करने का सुझाव दिया गया है। सुनवाई के दौरान, सीपीसीबी ने अनुरोध किया कि इस मामले से संबंधित दो आवेदनों पर एक साथ सुनवाई की जाए। अनुरोध स्वीकार करते हुए, एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई 12 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी। ओजोन प्रदूषण क्या है? ओज़ोन तीन ऑक्सीजन परमाणुओं से बनी एक गैस है। आकाश में ऊपर, यह हमें सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाती है, लेकिन जमीन के पास, यह एक प्रदूषक बन जाती है। यह किसी भी स्रोत से सीधे उत्सर्जित नहीं होती, बल्कि वाहनों, उद्योगों और बिजली संयंत्रों द्वारा सूर्य के प्रकाश में उत्सर्जित नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (VOCS) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) की रासायनिक प्रतिक्रिया से बनती है। यह गैस अत्यधिक प्रतिक्रियाशील होती है और हवा के माध्यम से लंबी दूरी तक फैल सकती है। यह शहरों और गांवों को प्रभावित करती है। ओजोन हॉटस्पॉट और उनके प्रभाव हर शहर में कुछ विशिष्ट क्षेत्र होते हैं जहां ओजोन का स्तर सबसे अधिक होता है। इन हॉटस्पॉट में प्रदूषण का प्रभाव अधिक गंभीर होता है। ओजोन श्वसन तंत्र को नुकसान पहुंचाता है और अस्थमा व ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियों को बढ़ाता है। यह बच्चों, बुज़ुर्गों और श्वसन संबंधी समस्याओं वाले लोगों के लिए खतरनाक है। यह फसलों को भी नुकसान पहुंचाता है, जिससे खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है। ओजोन प्रदूषण के कारण ओजोन में वृद्धि मौसम और प्रदूषण के स्रोतों पर निर्भर करती है। गर्मी और सूरज की रोशनी इसकी रासायनिक प्रतिक्रिया को तेज करती है। वाहन, उद्योग, कचरा जलाना और ठोस ईंधन का उपयोग इसके मुख्य कारण हैं।

CSE की रिपोर्ट में शहरी भारत में ओजोन प्रदूषण में खतरनाक वृद्धि, स्वास्थ्य और खेती पर बुरा असर

नई दिल्ली भारत के बड़े शहरों जैसे कोलकाता, बेंगलुरु, मुंबई, हैदराबाद और चेन्नई में इस गर्मी (2025) में जमीन के स्तर पर ओजोन प्रदूषण ने खूब सिर उठाया है. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की नई रिपोर्ट के मुताबिक, इन शहरों में ओजोन का स्तर कई दिनों तक 8 घंटे के मानक से ज्यादा रहा. यह प्रदूषण इतना खतरनाक है कि यह लोगों के स्वास्थ्य और खेती पर बुरा असर डाल रहा है. इस समस्या को समझते हैं और जानते हैं कि क्या करना जरूरी है.  क्या है ओजोन प्रदूषण? ओजोन एक गैस है जो तीन ऑक्सीजन अणुओं से बनती है. ऊंचे आसमान में यह हमें सूरज की हानिकारक किरणों से बचाती है, लेकिन जमीन के पास यह प्रदूषण बन जाता है. यह सीधे किसी स्रोत से नहीं निकलता, बल्कि वाहनों, उद्योगों और बिजलीघरों से निकलने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOCs) और कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) के सूरज की रोशनी में रासायनिक प्रतिक्रिया से बनता है. यह गैस बहुत प्रतिक्रियाशील होती है. हवा में लंबी दूरी तक फैल सकती है, जिससे यह शहरों से लेकर गांवों तक को प्रभावित करती है. शहरों में ओजोन का हाल CSE की रिपोर्ट के मुताबिक, इस गर्मी (मार्च-मई 2025) में कई शहरों में ओजोन का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया. दिल्ली की रिपोर्ट पहले ही जारी हो चुकी है, इसलिए इस अध्ययन में उसे शामिल नहीं किया गया. आइए, बाकी शहरों की स्थिति देखें…     बेंगलुरु: इस गर्मी में 92 दिनों में से 45 दिन ओजोन का स्तर मानक से ज्यादा रहा, जो पिछले साल की तुलना में 29% की बड़ी बढ़ोतरी है. होमबेगोड़ा नगर सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र रहा.     मुंबई: 92 दिनों में 32 दिन ओजोन स्तर बढ़ा, जो पिछले साल की तुलना में 42% कम है. चकाला सबसे प्रभावित इलाका रहा.     कोलकाता: 22 दिन ओजोन स्तर बढ़ा, जो पिछले साल की तुलना में 45% कम है. रवींद्र सरोवर और जादवपुर हॉटस्पॉट बने.     हैदराबाद: 20 दिन ओजोन स्तर बढ़ा, जो पिछले साल की तुलना में 55% कम है. बोल्लारम सबसे ज्यादा प्रभावित रहा.     चेन्नई: 15 दिन ओजोन स्तर बढ़ा, जो पिछले साल शून्य था. आलंदुर सबसे प्रभावित क्षेत्र रहा. इन शहरों में ओजोन का स्तर सिर्फ गर्मियों में नहीं,बल्कि सर्दियों और अन्य मौसमों में भी बढ़ रहा है, खासकर गर्म जलवायु वाले इलाकों में. ओजोन के हॉटस्पॉट और असर हर शहर में कुछ खास इलाके हैं जहां ओजोन का स्तर सबसे ज्यादा बढ़ता है. इन हॉटस्पॉट्स में प्रदूषण का असर और गंभीर होता है. ओजोन सांस की नली को नुकसान पहुंचाता है. अस्थमा और दमा जैसी बीमारियों को बढ़ाता है. बच्चों, बुजुर्गों व सांस की बीमारी वालों के लिए खतरनाक है. यह फसलों को भी नुकसान पहुंचाता है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ता है. क्यों बढ़ रहा ओजोन प्रदूषण? ओजोन का बढ़ना मौसम और प्रदूषण स्रोतों पर निर्भर करता है. गर्मी और सूरज की रोशनी इसकी रासायनिक प्रतिक्रिया को तेज करती है. वाहन, उद्योग, कचरा जलाना और ठोस ईंधन का इस्तेमाल इसके मुख्य कारण हैं. दिलचस्प बात यह है कि जहां नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) ज्यादा होता है, वहां ओजोन कम बनता है, लेकिन साफ इलाकों में यह जमा हो जाता है . समाधान क्या हो? CSE की अनुमिता रॉयचौधरी कहती हैं कि अगर इसे नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह गंभीर स्वास्थ्य संकट बन सकता है.इसके लिए जरूरी कदम हैं…     सख्त कदम: वाहनों, उद्योगों और कचरा जलाने से निकलने वाली गैसों को कम करना होगा. शून्य उत्सर्जन वाहन और साफ ईंधन को बढ़ावा देना जरूरी है.     निगरानी बढ़ाएं: ओजोन के स्तर को मापने के लिए और स्टेशन लगाने चाहिए, ताकि हॉटस्पॉट्स की पहचान हो सके.     क्षेत्रीय योजना: ओजोन एक क्षेत्रीय प्रदूषण है, इसलिए स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर मिलकर काम करना होगा.     जागरूकता: लोगों को इस प्रदूषण के बारे में बताना और साफ हवा के लिए कदम उठाने के लिए प्रेरित करना जरूरी है. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि वर्तमान में, अपर्याप्त निगरानी, सीमित आँकड़े और अप्रभावी प्रवृत्ति विश्लेषण विधियों ने इस बढ़ते जन स्वास्थ्य जोखिम को समझने में बाधा डाली है। जमीनी स्तर पर ओज़ोन की जटिल रासायनिक संरचना इसे एक ऐसा प्रदूषक बनाती है जिसका पता लगाना और उसे कम करना मुश्किल है। ओज़ोन की अत्यधिक विषाक्त प्रकृति के कारण, राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक केवल अल्पकालिक जोखिम (एक घंटे और आठ घंटे के औसत) के लिए निर्धारित किया गया है, और अनुपालन इन मानकों से अधिक दिनों की संख्या के आधार पर मापा जाता है। शोधकर्ताओं ने रेखांकित किया कि इसके लिए शीघ्र कार्रवाई आवश्यक है। इस पत्र में कहा गया है कि वाहनों, उद्योगों और अन्य स्रोतों से निकलने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन को रोकने के लिए कड़े नियमों की आवश्यकता है। इसमें भारत में वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला गया है। इसमें कहा गया है, "कार्ययोजना के सह-लाभों को अधिकतम करने के लिए कण प्रदूषण, ओज़ोन और NOx जैसी इसकी पूर्ववर्ती गैसों के संयुक्त नियंत्रण हेतु कार्यनीति को तत्काल परिष्कृत किया जाना चाहिए।"