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ट्रंप के दबाव के बावजूद अमेरिकी दिग्गजों का भारत पर दांव कायम

नई दिल्ली भारत और अमेरिका के बीच शुल्क विवाद को शुरू हुए तीन महीने से ज्यादा का समय हो गया है। विवाद सुलझाने को लेकर दोनों सरकारों के बीच विमर्श का दौर जारी है, लेकिन कोई अंतिम फैसला नहीं हो सका है। खास बात यह है कि अमेरिकी कंपनियों पर इस अनिश्चितता का कोई असर नहीं है और वह भारत में निवेश योजना को परवान चढ़ाने में जुटी हैं। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, एमेजोन, एपल जैसी दिग्गज आईटी कंपनियों से लेकर ऑर्डिनरी थ्योरी जैसी इंटेलीजेंस हार्डवेयर कंपनी या भारतीय शेयर बाजार में निवेश करने वाले अमेरिकी वित्तीय फंड्स की भावी योजनाओं पर कोई असर नहीं पड़ा है। इस बारे में दैनिक जागरण ने कुछ अमेरिकी कंपनियों के साथ दिग्गज उद्योग संगठनों फिक्की, सीआईआई से बात की और इन सभी का कहना है कि अभी तक अमेरिकी कॉरपोरेट सेक्टर से इस तरह का कोई संकेत नहीं मिला है कि टैरिफ विवाद से उनकी भारत में भावी गतिविधियों पर असर होगा। गूगल ने किया 10 अरब डॉलर निवेश करने का फैसला भारतीय इकोनमी के प्रति अमेरिकी कंपनियों के मजबूत भरोसे का ही प्रतीक है कि गूगल ने 10 अरब डॉलर का भारी भरकम निवेश विशाखापत्तनम में डाटा सेंटर हब बनाने के लिए करने का फैसला किया है। वर्ष 2024 में भी कंपनी ने बताया था कि वह छह अरब डालर का निवेश करने जा रही है, लेकिन अब कंपनी की योजना तैयार है और इसके लिए इसी महीने नई दिल्ली में समझौता होने जा रहा है। कंपनी ने अब कुल निवेश सीमा की राशि बढ़ाकर 10 अरब डालर (88,730 करोड़ रुपये) कर दी है। माइक्रोसॉफ्ट भी कतार में इसी तरह से माइक्रोसॉफ्ट के प्रमुख सत्य नडेला ने जनवरी, 2025 में अपने भारत दौरे में यहां तीन अरब डालर की राशि दो वर्षों में निवेश करने की घोषणा की थी। सूत्रों का कहना है कि जुलाई महीने में जब शुल्क विवाद चरम पर था तब माइक्रोसॉफ्ट की भारतीय टीम ने इस निवेश योजना को अंतिम रूप दिया। इस निवेश से माइक्रोसॉफ्ट भारत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सेंटर स्थापित करेगी। कंपनी का इस उद्देश्य से भारत में किया गया यह प्राथमिक निवेश होगा। भारत सरकार भी माइक्रोसॉफ्ट की इस योजना से काफी उत्साहित है क्योंकि इससे भारत को ग्लोबल एआई लीडर बनाने में मदद मिलेगा। भारतीय फर्मों के साथ संयुक्त उद्यम भी स्थापित कर रहीं अमेरिकी कंपनियां अमेरिका से नए निवेश का भारत आने का सिलसिला भी जारी है। पिछले दिनों अमेरिकी कंपनी ऑर्डिनरी थ्योरी ने भारतीय कंपनी ऑप्टीमस इन्फ्राकॉम के साथ संयुक्त उद्यम स्थापित किया है, जिसे भारत के इलेक्ट्रानिक मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में विदेशी कंपनियों के बढ़ते भरोसे के तौर पर देखा जा रहा है। यह संयुक्त उद्यम भारत में दूरसंचार क्षेत्र में स्मार्ट हार्डवेयर मैन्यूफैक्चरिंग के साथ ही इस क्षेत्र की कंपनियों को कई तरह की दूसरी समस्याओं को दूर करने का समाधान बताएगा। ऑप्टीमस के चेयरमैन अशोक कुमार गुप्ता का कहना है, 'मेड इन इंडिया हार्डवेयर मैन्यूफैक्चरिंग का दौर अब शुरु हो रहा है। हमारी कोशिश मेक इन इंडिया के साथ ही आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करना है।' दूसरी अमेरिकी कंपनियां भी निवेश को रफ्तार देने में जुटीं भारत में बने आइफोन के निर्यात का आंकड़ा 10 अरब डालर को पार कर गया है। पहले दस महीनों में एपल निर्मित आईफोन का निर्यात 75 प्रतिशत बढ़ा है। ऐसे में कंपनी की मंशा है कि वर्ष 2027 तक उसके वैश्विक उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत हो जाए। सूत्रों के मुताबिक ट्रंप टैरिफ के बावजूद एपल की भारत को लेकर योजनाएं अपरिवर्तित हैं। बोइंग, अमेजन जैसी दूसरे क्षेत्र की दिग्गज अमेरिकी कंपनियों के बारे में भी यहीं सूचना है कि वह अपनी निवेश को और रफ्तार देंगी। ट्रंप टैरिफ के बावजूद जिस तरह से एसएंडपी और जापानी रेटिंग कंपनी आरएंडआई ने भारत की साख में सुधार किया है, उससे भी अमेरिकी कंपनियों का भरोसा मजबूत हुआ है।  

ट्रंप का बड़ा कदम: अमेरिका के शत्रु पर सशस्त्र कार्रवाई का आदेश, दस्तावेज़ों में उजागर हुई रणनीति

वाशिंगटन  अमेरिका के सबसे बड़े दुश्मन -ड्रग कार्टेल- के खिलाफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सशस्त्र युद्ध का ऐलान कर दिया है। एक गोपनीय दस्तावेज़ में खुलासा हुआ है कि ट्रंप ने ड्रग तस्करों को ‘गैरकानूनी योद्धा’ बताते हुए पेंटागन को निर्देश दिए हैं कि वे इन कार्टेल्स के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें। इस रणनीति के तहत कैरेबियन सागर में पहले ही तीन ड्रग तस्करों वाली नावों पर हमले किए जा चुके हैं, जिससे राजनीतिक और कानूनी विवाद भी छिड़ गए हैं। वाशिंगटन से आई खबर के मुताबिक, यह घोषणा कैरेबियन सागर में अमेरिकी सेना के हाल के हमलों के बाद आई है, जहां ड्रग तस्करों के तीन नावों को निशाना बनाया गया। इनमें से दो नावें वेनेजुएला से थीं, जिन पर अमेरिकी सेना ने गोलियां चलाईं और कई लोगों की मौत हुई। ट्रंप ने इन हमलों को आत्मरक्षा का एक जरूरी कदम बताया और कहा कि यह ड्रग्स की तस्करी को रोकने के लिए किया गया सैन्य अभियान है। हालांकि, इस ‘ड्रग्स के खिलाफ युद्ध’ ने अमेरिका के अंदर कानूनी और राजनीतिक विवाद भी खड़ा कर दिया है। कई सांसदों का कहना है कि ऐसी सशस्त्र कार्रवाई के लिए पहले कांग्रेस की मंजूरी लेना जरूरी था। वहीं, पेंटागन ने सीनेट को हमलों की जानकारी दी, लेकिन यह स्पष्ट नहीं कर पाया कि कौन-कौन से कार्टेल निशाने पर हैं, जिससे राजनीतिक हलकों में नाराजगी फैल गई है। ट्रंप ने मैक्सिकन गैंग्स और वेनेजुएला के ट्रेन डे अरागुआ जैसे कार्टेल्स को आतंकी संगठन घोषित किया है और कहा है कि ये गैंग पश्चिमी गोलार्ध में ड्रग तस्करी कर अमेरिका को नष्ट करने की साजिश रच रहे हैं। राष्ट्रपति की इस नई रणनीति से स्पष्ट है कि ड्रग्स के खिलाफ अमेरिकी लड़ाई अब सिर्फ कानून या पुलिस की कार्रवाई नहीं बल्कि सैन्य और सशस्त्र संघर्ष का रूप लेने जा रही है।   ट्रंप का यह कदम ‘अमेरिका फर्स्ट’ के एजेंडे के तहत विदेशों में सैन्य हस्तक्षेप से दूरी बनाने के बावजूद अब एक नए युद्ध की शुरुआत की तरह दिखता है, जिसने देश में राजनीतिक बहस और कानूनी सवालों को जन्म दिया है। अमेरिकी प्रशासन की यह रणनीति ड्रग तस्करी के खिलाफ कड़े कदम उठाने के उद्देश्य से है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता और कानूनी वैधता अभी विवादों में है।  

ट्रंप का हमास को संदेश: शांति प्रस्ताव न स्वीकार किया तो गंभीर परिणाम होंगे

वाशिंगटन  अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को कहा कि हमास को उनकी गाजा शांति प्रस्ताव पर जवाब देने के लिए करीब 3-4 दिनों का वक्त दिया गया है। उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि हमास इस प्रस्ताव को मानने से इनकार करता है, तो इसका बेहद दर्दनाक परिणाम निकलेगा। ट्रंप ने कहा कि हमास या तो इसे स्वीकार करेगा या नहीं, लेकिन अगर नकार दिया तो नतीजा बहुत ही दुखद होगा। इस दौरान उन्होंने कहा कि इस प्रस्ताव पर चर्चा करने की कोई खास गुंजाइश नहीं बची है। इस प्रस्ताव को इजरायल और अरब देशों के नेताओं ने पहले ही हरी झंडी दे दी है, और अब हमास के फैसले का इंतजार है। वहीं जब अमेरिकी राष्ट्रपति से पूछा गया कि क्या इस प्रस्ताव पर सौदेबाजी की गुंजाइश है, तो ट्रंप ने कहा कि ज्यादा नहीं। क्या है ट्रंप का प्रस्ताव? बता दें कि सोमवार को अमेरिकी राष्ट्रपति ने इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से बात की। इसके बाद वाइट हाउस ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उस प्रस्तावित योजना को जारी किया है, जिसके माध्यम से गाजा में जारी इजरा.ल-हमास युद्ध को समाप्त करने का प्रयास किया गया है। सोमवार को वाइट हाउस में राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात के बाद इजराजल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इस योजना का समर्थन किया है। हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि हमास इस प्रस्ताव को स्वीकार करेगा या नहीं। ट्रंप की योजना के प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं..     गाजा को कट्टरपंथ से मुक्त और आतंकवाद-मुक्त क्षेत्र बनाया जाएगा, जो अपने पड़ोसियों के लिए कोई खतरा नहीं होगा।     गाजा का पुनर्निर्माण वहां के नागरिकों के हित में किया जाएगा, जिन्होंने लंबे समय से पीड़ा सही है।     दोनों पक्षों की सहमति पर युद्ध तत्काल समाप्त होगा; इजरायली सेना पीछे हटेगी और बंधकों की रिहाई की तैयारी की जाएगी। इस दौरान सभी सैन्य गतिविधियां स्थगित रहेंगी।     इजरायल द्वारा समझौता सार्वजनिक रूप से स्वीकार किए जाने के 72 घंटे के भीतर सभी बंधकों ( जीवित और मृत ) को वापस किया जाएगा।     सभी बंधकों की रिहाई के बाद इजरायल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे 250 कैदियों और 1700 गाजा वासियों को रिहा करेगा, जिनमें महिलाएं और बच्चे शामिल होंगे। मृत इजरायली बंधकों के बदले मृत गाजावासियों के शव भी लौटाए जाएंगे। प्रत्येक इजरायली बंधक के अवशेष की रिहाई के बदले इजराइल 15 मृत गाजावासियों के अवशेष जारी करेगा।     जो हमास सदस्य शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को स्वीकार करेंगे और अपने हथियार त्यागेंगे, उन्हें माफी दी जाएगी। जो सदस्य गाजा छोड़ना चाहेंगे, उन्हें सुरक्षित निकासी दी जाएगी।     समझौते के तहत गाजा में तुरंत पूर्ण मानवीय सहायता भेजी जाएगी, जिसमें आधारभूत ढांचे का पुनर्निर्माण भी शामिल होगा।     सहायता का वितरण संयुक्त राष्ट्र, रेड क्रीसेंट और अन्य अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की निगरानी में होगा। राफा क्रॉसिंग को खोलने का निर्णय 19 जनवरी 2025 के समझौते के तहत तय तंत्र के अनुसार होगा।     गाजा का प्रशासन एक अस्थायी, तकनीकी और गैर-राजनीतिक फिलस्तीनी समिति को सौंपा जाएगा, जिसकी निगरानी 'बोर्ड ऑफ पीस' करेगा। इस निकाय के अध्यक्ष राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप होंगे और इसमें पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर सहित अन्य वैश्विक नेता सदस्य बनाए जाएंगे।     गाजा के पुनर्निर्माण और आर्थिक विकास के लिए एक विशेष योजना बनाई जाएगी, जिसमें पश्चिम एशिया की आधुनिक शहर परियोजनाओं में योगदान देने वाले विशेषज्ञ शामिल होंगे।     एक विशेष आर्थिक क्षेत्र की स्थापना की जाएगी जिसमें व्यापारिक रियायतें और विशेष शुल्क दरें निर्धारित की जाएंगी।     किसी को गाजा छोड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा, और जो लोग जाना या लौटना चाहें, उन्हें स्वतंत्रता दी जाएगी।     हमास और अन्य गुटों को गाजा के शासन में किसी भी प्रकार की भागीदारी की अनुमति नहीं होगी। पूरे क्षेत्र का पूर्ण निरस्त्रीकरण स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की निगरानी में किया जाएगा।     क्षेत्रीय साझेदार गारंटी देंगे कि हमास और अन्य गुट इस समझौते का उल्लंघन नहीं करेंगे और गाजा किसी के लिए खतरा नहीं बनेगा।     अमेरिका, अरब देशों और अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के साथ मिलकर गाजा में एक अंतरराष्ट्रीय स्थिरीकरण बल (आईएसएफ) तैनात करेगा, जो स्थानीय फिलस्तीनी पुलिस बलों को प्रशिक्षित करेगा और सुरक्षा बनाए रखेगा।     इजरायल गाजा पर कब्जा नहीं करेगा और न ही उसे अपना हिस्सा बनाएगा। आईएसएफ द्वारा स्थिरता सुनिश्चित किए जाने के बाद, इजरायली रक्षा बल (आईडीएफ) चरणबद्ध रूप से क्षेत्र से हटेंगे, सिवाय उन सीमावर्ती इलाकों के जो अंतिम सुरक्षा सुनिश्चित होने तक नियंत्रण में रहेंगे।     यदि हमास इस प्रस्ताव को अस्वीकार करता है, तो सहायता और अन्य उपाय उन क्षेत्रों में लागू किए जाएंगे जिन्हें आईडीएफ ने आईएसएफ को सौंप दिया है।     शांति, सह-अस्तित्व और सहिष्णुता पर आधारित एक अंतरधार्मिक संवाद प्रक्रिया शुरू की जाएगी।  

अमेरिकी कंपनियों में टेंशन: ट्रंप की वीज़ा पॉलिसी से खुद अमेरिका को झटका!

वॉशिंगटन डोनाल्ड ट्रंप सरकार की ओर से एच-1बी वीजा की फीस को बढ़ाकर एक लाख डॉलर कर दिया गया है। इससे दुनिया भर के उन लोगों को झटका लगेगा, जो नौकरी या फिर अन्य स्किल्ड कामों के लिए अमेरिका जाते हैं। ऐसे लोगों में भारतीयों की संख्या सबसे अधिक है, जो अब तक 6 से 7 लाख रुपये तक की फीस अदा करते थे। अब उन्हें लगभग 80 लाख रुपये की फीस चुकानी होगी। ऐसे में ज्यादातर लोगों के लिए अमेरिका में काम करना मुश्किल होगा। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप सरकार का यह फैसला जितना भारतीयों की चिंता बढ़ाने वाला है, उतना ही अमेरिका को भी नुकसान पहुंचाएगा। हालात यह हैं कि सिलिकॉन वैली में स्थापित कंपनियां अलर्ट मोड में आ गई हैं। हालात यह हैं कि कंपनियों का अपने कर्मचारियों से कहना है कि वे अमेरिका छोड़कर ना जाएं। ऐसा इसलिए क्योंकि वे निकल गए तो फिर वापस आने में मुश्किल होगी और उन्हें नए वीजा नियमों के तहत फीस चुकानी होगी। इन चिंताओं का असर वाइट हाउस तक दिखा और अंत में उसने एक स्पष्टीकरण जारी किया है, जिसमें उसने बताया कि यह फीस नए वीजा आवेदनों पर ही लागू होगी और एक बार ही भुगतान होगा। दरअसल चिंता अमेरिकी अर्थशास्त्रियों के बीच भी है। उनका कहना है कि भारत जैसे देशों पर इसका असर कम ही दिखेगा। इसका सीधा नुकसान तो सबसे पहले अमेरिकी अर्थव्यवस्था को ही उठाना पड़ेगा। एक्सपर्ट्स का कहना है कि अमेरिकी टेक कंपनियां एच-1बी वीजा पर निर्भर रही हैं। इसी के तहत भारत और अन्य देशों के इंजीनियरों, साइंटिस्ट और कोडर्स को ये कंपनियां हायर करती रही हैं। अब यदि वीजा महंगा हो रहा है तो इन कंपनियों के लिए विदेशी टैलेंट की भर्ती करना मुश्किल होगा। इन्वेस्टमेंट बैत बेरेनबर्ग से जुड़े एक अर्थशास्त्री अटकन बाकिस्कन ने कहा कि यह अमेरिकी कंपनियों को ही मुश्किल में डालने वाला फैसला है। इससे अमेरिका में ब्रेन ड्रेन के हालात पैदा होंगे। उन्होंने कहा कि यह फैसला तो एंटी-ग्रोथ पॉलिसी मेकिंग वाला है। अमेरिकी ग्रोथ ही घटने का अनुमान, दिखेगा सीधा असर विश्लेषक फर्म बेरनबर्ग ने अमेरिकी आर्थिक वृद्धि का अनुमान 2% से घटाकर 1.5% कर दिया है और चेतावनी दी है कि यदि ऐसी ही वीजा पॉलिसी जारी रही तो इतनी ग्रोथ रेट भी मुश्किल होगी।बेरनबर्ग के अर्थशास्त्री अटकन बाकिस्कन ने कहा कि संशोधित एच-1बी वीज़ा नीति के कारण अमेरिकी श्रमबल में कमी आ सकती है, जिससे नवाचार और दीर्घकालिक आर्थिक उत्पादन प्रभावित होगा। बाकिस्कन ने कहा, 'नई एच-1बी नीति के कारण श्रमबल के बढ़ने की बजाय घटने की संभावना अधिक है।' नामी कंपनियां चुका सकती हैं फीस, पर छोटे संस्थान होंगे बेहाल ब्रोकरेज फर्म XTB की रिसर्च डायरेक्टर कैथलीन ब्रूक्स ने बताया कि Amazon, Microsoft, Meta, Apple, और Google जैसी प्रमुख टेक कंपनियां एच-1बी वीज़ा पर सबसे अधिक कर्मचारियों को नियुक्त करती हैं। ये कंपनियां वीज़ा लागत वहन कर सकती हैं। लेकिन अन्य कंपनियों को मुश्किल होगी, जैसे हेल्थ सर्विसेज में काम करने वाली कंपनियां और एजुकेशन सेक्टर से जुड़े संस्थानों को परेशानी होगी। ऐसी संस्थाओं को भविष्य में कर्मचारियों की नियुक्ति करने में ही मुश्किल आएगी। बता दें कि एच-1बी वीजा पर काम करने वाले कर्मचारियों में भारतीयों की संख्या 70 फीसदी है।  

ट्रंप का बदलता रुख: पाकिस्तान को पुचकारा, भारत से टकराव की नई चाल?

वाशिंगटन  अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान में बिजनेस की खातिर भारत के साथ संबंधों की बली चढ़ा दी। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने सोमवार को ऐसा दावा किया है। हालांकि, मौजूदा हालात इन दावों को मजबूती भी दे रहे हैं, क्योंकि ट्रंप लगातार पाकिस्तान के साथ संबंध बढ़ाते नजर आ रहे हैं। जबकि, अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने पाकिस्तान पर झूठ और धोखे के आरोप लगाए थे। पाकिस्तान के बारे में क्या सोचते थे ट्रंप साल 2018 में ट्रंप ने कहा था, 'अमेरिका ने बेवकूफों की तरह पाकिस्तान को बीते 15 सालों में 33 बिलियन डॉलर से ज्यादा की सहायता दे दी, लेकिन उन लोगों ने हमें झूठ और धोखे के अलावा कुछ नहीं दिया। हमारे नेताओं को बेवकूफ समझा। जिन आतंकवादियों की हम अफगानिस्तान में तलाश कर रहे थे, उन्हें पाकिस्तान में पनाह दी गई।' अब बदल गए विचार जून में पहली बार पाकिस्तानी सेना के प्रमुख को अमेरिकी राष्ट्रपति ने न्योता दिया। इतना ही नहीं ट्रंप ने पाकिस्तान के फील्ड मार्शल आसिम मुनीर से मुलाकात कर खुशी जाहिर की। साथ ही कहा कि दोनों ने ईरान मुद्दे पर चर्चा की, जिसे पाकिस्तान अन्य लोगों से ज्यादा बेहतर ढंग से जानता है। ट्रंप ने तब पत्रकारों से कहा था कि उन्होंने भारत के साथ युद्ध खत्म करने के लिए मुनीर का धन्यवाद किया था। पाकिस्तानी सेना ने कहा था कि राष्ट्रपति ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ लाभकारी व्यापारिक रिश्ते बनाने में दिलचस्पी दिखाई है। अमेरिका के सेंट्रल कमांड के प्रमुख जनरल माइकल कुरिया ने पाकिस्तान को बड़ा साझेदार करार दिया था। कुरिया ने साल 2021 में काबुल एयरपोर्ट पर हुए हमले के मास्टरमाइंड मोहम्मद शरीफुल्लाह को पकड़ने और प्रत्यर्पित करने की पेशकश के लिए मुनीर की तारीफ की थी। पाकिस्तान में कौन से बिजनेस जुलाई में ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में कहा, 'हमने अभी-अभी पाकिस्तान के साथ एक समझौता किया है, जिसके तहत अमेरिका पाकिस्तान के विशाल तेल भंडार को विकसित करने के लिए मिलकर काम करेगा।' उन्होंने कहा, 'हम उस तेल कंपनी को चुनने की प्रक्रिया शुरू कर चुके हैं जो इस साझेदारी का नेतृत्व करेगी। कौन जानता है, शायद वे किसी दिन भारत को तेल बेचेंगे!' पाकिस्तान लंबे समय से अपने अपतटीय क्षेत्र पर बड़े तेल भंडार होने का दावा करता रहा है, लेकिन इन भंडारों का दोहन करने में कोई प्रगति नहीं हुई है। वह इन भंडारों का दोहन करने के लिए निवेश आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है। देश फिलहाल अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पश्चिम एशिया से तेल आयात करता है। क्रिप्टो फैक्टर अप्रैल में पाकिस्तान ने वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल कंपनी के साथ ब्लॉकचेन तकनीक से जुड़ी शुरुआती डील की थी। खास बात है कि इस कंपनी में 60 फीसदी हिस्सेदारी ट्रंप परिवार की है। वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के हवाले से इकोनॉमिक टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा कि अमेरिकी अधिकारियों की नजर पाकिस्तान के दुर्लभ खनिजों पर है, जो इलेक्ट्रॉनिक्स और डिफेंस के लिए बेहद अहम हैं। चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच अमेरिका के लिए इस्लामाबाद बेहतर विकल्प हो सकता है। अप्रैल में पाकिस्तान मिनरल इन्वेस्टमेंट फोरम में अमेरिकी अधिकारी भी शामिल हुए थे। सुलिवन क्या बोले सुलिवन ने कहा, पर अब ट्रंप के परिवार के साथ व्यापार करने की पाकिस्तान की इच्छा के लिए ट्रंप ने भारत के साथ अपने संबंधों को नजरअंदाज कर दिया है। यह बहुत ही बड़ा रणनीतिक झटका है, क्योंकि भारत और अमेरिका के रिश्ते हमारे हित में हैं।' उन्होंने कहा, 'सोचिए कि जर्मनी, जापान या कनाडा ये सब होते हुए देख रहे हैं। और वे सोचेंगे कि ऐसा हमारे साथ भी हो सकता है।' उन्होंने कहा, 'अगर हमारे सहयोगी इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि वे किसी भी तरह से हमारे ऊपर निर्भर नहीं हो सकते, तो यह अमेरिकी लोगों के हित में नहीं है।' उन्होंने कहा, 'भारत के साथ जो हो रहा है, उसका हमारे दुनियाभर के संबंधों और रिश्तों पर सीधा असर पड़ेगा।'  

ट्रंप के फैसले से वैश्विक संकट? रिपोर्ट में दावा– 2030 तक करोड़ों की जान जा सकती है

वॉशिंगटन/न्यूयॉर्क अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में विदेशी मानवीय सहायता में की गई जबरदस्त कटौती ने पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल The Lancet में प्रकाशित एक नई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अगर अमेरिका ने विदेशी सहायता में मौजूदा स्तर की कटौती जारी रखी, तो साल 2030 तक दुनियाभर में 1.4 करोड़ अतिरिक्त मौतें हो सकती हैं। हर साल लाखों बच्चों की जान पर संकट रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि इस अनुमानित मौतों में से करीब 45 लाख मौतें 5 साल से कम उम्र के बच्चों की हो सकती हैं। यानी हर साल औसतन 7 लाख मासूमों की जान जा सकती है – वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि दुनिया की सबसे बड़ी ताकत ने अपना मानवीय समर्थन पीछे खींच लिया है। USAID की योजनाएं 80% तक रद्द, सबसे ज्यादा असर गरीब देशों पर ट्रंप प्रशासन ने अमेरिका की विकास सहायता एजेंसी USAID की 80% से अधिक योजनाएं रद्द कर दी हैं, जिससे अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के गरीब व मध्यम आय वर्ग के देशों में स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने इस कटौती की पुष्टि की थी। रिपोर्ट की बड़ी चेतावनी   The Lancet की रिपोर्ट के सह-लेखक और ग्लोबल हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. डेविड रासेला ने कहा, “इतने बड़े पैमाने पर सहायता में कटौती का असर किसी महामारी या युद्ध जैसा विनाशकारी हो सकता है। इससे दो दशकों की प्रगति एक झटके में रुक सकती है।”   भूख और कुपोषण से हाहाकार कटौती का सीधा असर उन देशों पर पड़ा है, जहां पहले से ही संसाधनों की भारी कमी है। केन्या के काकुमा शरणार्थी कैंप में हालात इतने खराब हो चुके हैं कि बच्चे भूख से तड़प रहे हैं। एक रिपोर्ट में एक बच्ची का ज़िक्र किया गया है जिसकी हालत इतनी गंभीर थी कि वह हिल भी नहीं पा रही थी, और उसकी त्वचा गिरने लगी थी। UN की चेतावनी  संयुक्त राष्ट्र (UN) ने भी ट्रंप प्रशासन की इस नीति को लेकर गहरी चिंता जताई है। अधिकारियों का कहना है कि यह स्थिति एक "गंभीर मानवीय आपदा" जैसी है, जिसमें लाखों लोगों की जानें जोखिम में हैं।