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तालिबान ने कहा — इस्लामिक स्टेट को NATO-अमेरिका ने पनपाया, हमने जड़ से मिटाया

तालिबान अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी ने दावा किया कि आतंकी संगठन ISIS को अफगान जमीन से पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद इस्लामिक अमीरात ने पूरे देश में सुरक्षा और नियंत्रण स्थापित कर लिया है। नई दिल्ली में पत्रकारों से बातचीत में सोमवार को मुत्तकी ने कहा, 'जब अमेरिका और नाटो की मौजूदगी थी, तब विभिन्न प्रांतों में आईएसआईएस के बड़े केंद्र थे। उस समय भी हमें संघर्षों का सामना करना पड़ा। लेकिन इस्लामिक अमीरात ने पूरे देश पर नियंत्रण स्थापित करने के बाद मजबूत अभियान चलाया। शुक्र है कि अब अफगानिस्तान की एक इंच जमीन पर भी ISIS या कोई अन्य समूह सक्रिय नहीं है।' आमिर खान मुत्तकी ने भारतीय उद्योग जगत को आश्वासन दिया कि तालिबान शासित देश में शांति स्थापित हो गई है। भारत के साथ आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं। भारतीय उद्योग प्रतिनिधियों ने कहा कि वीजा एक गंभीर समस्या बनी हुई है और दोनों पक्षों के व्यापारियों की सुगम आवाजाही के लिए इस मुद्दे का तुरंत समाधान करने जरूरत है। फिक्की ने अफगान मंत्री के हवाले से बयान में कहा, ‘अफगानिस्तान के विदेश मंत्री ने भारतीय उद्योग जगत को आश्वासन दिया कि आवश्यक शांति स्थापित हो गई है और दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को बढ़ाने के लिए अनुकूल परिस्थितियां तैयार की गई हैं।’ उन्होंने कहा कि द्विपक्षीय व्यापार पहले ही एक अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच चुका है। अमृतसर और काबुल-कंधार के बीच जल्द सीधी उड़ानें अफगान विदेश मंत्री मुत्तकी ने कहा कि अमृतसर और काबुल व कंधार के बीच जल्द ही सीधी उड़ानें शुरू होंगी। उन्होंने इसे व्यापार और लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने की दिशा में एक कदम बताया। राज्यसभा सांसद और वाणिज्य पर संसदीय स्थायी समिति के सदस्य डॉ. विक्रमजीत सिंह साहनी ने इस कदम को ऐतिहासिक बताया। उन्होंने कहा कि नई उड़ानें भारत और अफगानिस्तान के बीच तेज और सुरक्षित हवाई पुल बनाएंगी। वहीं, आमिर खान मुत्तकी ने कहा कि भारत को चाबहार बंदरगाह पर प्रतिबंध हटाने के लिए अमेरिका के साथ बातचीत करनी चाहिए। वह रणनीतिक रूप से स्थित चाबहार बंदरगाह के अधिकतम इस्तेमाल के पक्ष में हैं। उन्होंने अमेरिका के साथ अपनी बैठकों में प्रतिबंध हटाने का मुद्दा भी उठाया है।

अमेरिका को यूरोप का धोखा? स्पेन ने F-35 छोड़ तुर्की के KAAN फाइटर जेट में दिखाई दिलचस्पी

मैड्रिड अमेरिका के सुपर एडवांस्ड F-35 स्टील्थ फाइटर जेट को लेकर यूरोप का भरोसा अब डगमगा गया है. बढ़ती लागत, सॉफ्टवेयर देरी और लगातार हो रही तकनीकी गड़बड़ियों के बीच स्पेन ने अमेरिकी F-35 को ठुकरा दिया है. अब खबर है कि यूरोप का यह अहम देश तुर्की के KAAN फाइटर जेट को खरीदने पर गंभीरता से विचार कर रहा है. यह कदम न केवल यूरोप की रक्षा रणनीति को नया मोड़ देगा बल्कि अमेरिका के वर्चस्व पर भी सीधा झटका माना जा रहा है. स्पेन का यह फैसला ऐसे वक्त में आया है जब कई अन्य देश कनाडा, पुर्तगाल और स्विट्ज़रलैंड भी F-35 प्रोग्राम से दूरी बना रहे हैं. वजह वही: बढ़ते खर्चे, लगातार सॉफ्टवेयर फेलियर और अमेरिकी नियंत्रण को लेकर उठे सवाल. दरअसल, अमेरिका पर आरोप है कि F-35 का सोर्स कोड वह खुद तक सीमित रखता है. इससे यह जेट इस्तेमाल करने वाले देशों की डिजिटल निर्भरता उसी पर बनी रहती है. अब यूरोप ने “Rearm Europe Program” के तहत अमेरिका पर अपनी रक्षा निर्भरता घटाने का फैसला किया है. F-35 छोड़ अब स्पेन की नजर तुर्की के KAAN पर स्पेन ने अपने 2023 के रक्षा बजट में 6.25 बिलियन यूरो (करीब 7.24 अरब डॉलर) नए फाइटर जेट्स के लिए रखे थे. शुरुआत में माना जा रहा था कि स्पेन Eurofighter Typhoon या फिर Future Combat Air System (FCAS) में से किसी एक को चुनेगा. लेकिन अब स्पेनिश बिज़नेस डेली “El Economista” के मुताबिक मैड्रिड सरकार तुर्की के KAAN फाइटर जेट को खरीदने पर विचार कर रही है. जो फिलहाल विकास के दौर में है और 2030 के शुरुआती दशक में सेवा में आने की उम्मीद है. क्यों डगमगा रहा है यूरोप का FCAS प्रोजेक्ट? यूरोप का महत्वाकांक्षी Future Combat Air System (FCAS) प्रोजेक्ट अब गंभीर संकट में है. फ्रांस की Dassault Aviation और जर्मनी की Airbus Defence के बीच नियंत्रण को लेकर खींचतान ने इस कार्यक्रम की रफ्तार लगभग रोक दी है. पहले इसका परीक्षण उड़ान 2027-29 के बीच होने की उम्मीद थी, लेकिन अब यह टाइमलाइन पूरी तरह बिगड़ चुकी है. ब्रिटिश मीडिया द इकोनॉमिक टाइम्स और फाइनेंशियल टाइम्स ने रिपोर्ट किया है कि FCAS “पूरी तरह ध्वस्त” भी हो सकता है. इस बीच स्पेन को अगले दशक में अपने पुराने F-18 और F-5 विमानों को बदलने की जरूरत है. ऐसे में तुर्की का KAAN एक व्यावहारिक और तेजी से उपलब्ध विकल्प बन रहा है. स्पेन-तुर्की रक्षा साझेदारी गहराती दिख रही है स्पेन और तुर्की के बीच रक्षा सहयोग पिछले कुछ वर्षों में काफी मजबूत हुआ है. दिसंबर 2024 में दोनों देशों ने 24 Hürjet एडवांस्ड जेट ट्रेनर विमानों के लिए समझौता किया था. सितंबर 2025 में स्पेन के मंत्रिमंडल ने 45 Hürjet विमान खरीदने को मंजूरी दे दी. जिनकी कीमत 3.68 अरब यूरो बताई जा रही है. अब KAAN की संभावित डील इस रिश्ते को और आगे बढ़ाएगी. KAAN की ताकत- F-35 को टक्कर देने वाला जेट तुर्की का KAAN फाइटर जेट फरवरी 2024 में अपनी पहली उड़ान भर चुका है. इसे Turkish Aerospace Industries (TUSAŞ) ने तैयार किया है. तुर्की ने घोषणा की है कि 2028 तक 20 ऐसे विमान उसकी वायुसेना में शामिल हो जाएंगे. KAAN को “पांचवीं पीढ़ी” का जेट माना जाता है, जिसमें स्टील्थ डिजाइन, एयर-टू-एयर और एयर-टू-ग्राउंड कॉम्बैट क्षमता, और हाई-स्पीड एवियोनिक्स सिस्टम शामिल हैं. TUSAŞ के सीईओ Temel Kotil ने मई 2024 में दावा किया था, “KAAN, F-35 से बेहतर विमान है.” इंडोनेशिया बना पहला ग्राहक, स्पेन हो सकता है दूसरा इंडोनेशिया पहले ही 48 KAAN जेट्स खरीदने का करार कर चुका है, जिसकी डिलीवरी 10 साल में पूरी होगी. वहीं, अज़रबैजान, पाकिस्तान, सऊदी अरब और यूएई भी इसमें दिलचस्पी दिखा चुके हैं. अगर स्पेन यह डील साइन करता है, तो वह KAAN का दूसरा अंतरराष्ट्रीय ग्राहक बन जाएगा जो तुर्की की रक्षा क्षमता के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी.  

F-35 फाइटर जेट की बिक्री पर अमेरिका का बड़ा कदम, कनाडा को लेकर कड़ा रुख

न्यूयॉर्क कनाडा और अमेरिका के बीच रक्षा सौदे को लेकर तनाव बढ़ गया है. कनाडा अपने 88 F-35 फाइटर जेट्स खरीदने के प्लान की समीक्षा कर रहा है. 22 सितंबर तक फैसला आने की उम्मीद है. अगर कनाडा इस डील को रद्द करता है, तो अमेरिका ने गंभीर परिणामों की चेतावनी दी है. कनाडा स्वीडिश ग्रिपेन जेट को विकल्प के रूप में देख रहा है, लेकिन अमेरिका दो अलग-अलग फाइटर फ्लीट चलाने के खिलाफ है. यही विमान अमेरिका भारत को भी बेंचना चाहता है. लेकिन अभी तक भारत ने इस प्रस्ताव पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.   F-35 डील क्या है और कनाडा क्यों कर रहा है समीक्षा? F-35 अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन द्वारा बनाया गया एक एडवांस स्टील्थ फाइटर जेट है. यह पांचवीं पीढ़ी का विमान है, जो रडार से बचने की क्षमता रखता है. आधुनिक हथियारों से लैस है. कनाडा ने 2010 के दशक में 88 ऐसे जेट्स खरीदने का फैसला किया था, जिसकी अनुमानित लागत 19 बिलियन कनाडाई डॉलर (करीब 1.1 लाख करोड़ रुपये) है. यह सौदा कनाडा की पुरानी CF-18 फाइटर जेट्स को बदलने के लिए था. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की लिबरल सरकार ने इस साल मार्च में इस डील की समीक्षा शुरू की. कारण ये है कि F-35 प्रोग्राम में देरी और लागत में बढ़ोतरी हो रही है. अमेरिकी सरकारी संगठन GAO (गवर्नमेंट अकाउंटेबिलिटी ऑफिस) ने 3 सितंबर 2025 को रिपोर्ट जारी की, जिसमें बताया गया कि F-35 प्रोजेक्ट में और देरी और खर्च बढ़ रहा है. कनाडा के तत्कालीन डिफेंस मिनिस्टर (अब प्रधानमंत्री) मार्क कार्नी ने समीक्षा का आदेश दिया, ताकि यह देखा जा सके कि क्या यह सौदा देश के हित में है. कनाडा की सेना ने अगस्त 2025 में सिफारिश की कि F-35 ही खरीदना चाहिए, लेकिन सरकार अभी फैसला ले रही है. अमेरिका ने साफ कह दिया है कि अगर कनाडा F-35 डील रद्द करता है, तो गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे. अमेरिकी राजदूत पीट होकस्ट्रा ने मई 2025 में CTV को इंटरव्यू में कहा कि यह कनाडा-अमेरिका के संयुक्त NORAD (नॉर्थ अमेरिकन एयरोस्पेस डिफेंस कमांड) गठबंधन को खतरा पहुंचा सकता है. NORAD दोनों देशों की हवाई रक्षा के लिए है. इसके लिए दोनों को एक ही तरह के विमान उड़ाने चाहिए. होकस्ट्रा ने कहा कि अगर कनाडा एक विमान उड़ाएगा और हम दूसरा, तो वे एक-दूसरे के साथ बदलाव योग्य नहीं रहेंगे. अगस्त 2025 में होकस्ट्रा ने पॉडकास्टर जैस्मिन लेन को बताया कि कनाडा दो फाइटर प्रोग्राम नहीं चला सकता. होकस्टा ने कहा कि आपको फैसला करना चाहिए कि F-35 चाहिए या कोई और. लेकिन दोनों नहीं चला सकते. अमेरिकी अधिकारी मानते हैं कि F-35 डील रद्द करने से कनाडा को स्पेयर पार्ट्स, रखरखाव और ट्रेनिंग में दिक्कत होगी. इससे दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते भी प्रभावित हो सकते हैं.  डिफेंस इंडस्ट्री के सूत्रों के अनुसार, अमेरिका ने कनाडा को चेतावनी दी है कि यह सौदा रद्द करने से रक्षा सहयोग कमजोर हो जाएगा. ग्रिपेन: कनाडा का विकल्प क्यों? कनाडा स्वीडन की कंपनी साब द्वारा बनाए गए ग्रिपेन (JAS 39 Gripen) जेट को वैकल्पिक विकल्प के रूप में देख रहा है. ग्रिपेन एक हल्का, सस्ता और बहुमुखी फाइटर जेट है, जो F-35 से कम खर्चीला है. कनाडा को लगता है कि इससे पैसे बचेंगे और घरेलू उद्योग को फायदा होगा. लेकिन अमेरिका इसका विरोध कर रहा है, क्योंकि ग्रिपेन F-35 जितना उन्नत नहीं है और NORAD में एकरूपता बिगड़ जाएगी. कनाडा पहले से ही पुराने F-18 जेट्स चला रहा है. दो अलग फ्लीट चलाना महंगा और जटिल होगा. कनाडा का फाइटर जेट प्रोग्राम कनाडा की वायुसेना को नई फाइटर जेट्स की सख्त जरूरत है. पुराने CF-18 जेट्स 1980 के दशक के हैं और अब खराब हो रहे हैं. 2010 में कनाडा ने F-35 चुना लेकिन लागत और देरी की शिकायतें बढ़ीं. 2022 में कनाडा ने औपचारिक रूप से F-35 के लिए कॉन्ट्रैक्ट साइन किया, लेकिन अब समीक्षा हो रही है. यह विवाद दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव को दिखाता है, खासकर ट्रेड और डिफेंस में. दुनिया में F-35 प्रोग्राम एफ-35 कार्यक्रम में वर्तमान में 17 देश भाग ले रहे हैं. अब तक, 1870 से अधिक पायलटों और 13,500 रखरखाव कर्मियों को प्रशिक्षित किया गया है. एफ-35 बेड़े ने 602,000 से अधिक संचयी उड़ान घंटों को पार कर लिया है. क्रैश होने का खतरा  दुनिया का सबसे खतरनाक स्टेल्थ फाइटर जेट F-35 कई बार क्रैश हो चुका है. एक विमान गिरने पर अमेरिका को करीब 832 करोड़ रुपए का नुकसान होता. यह अमेरिका का सबसे महंगे जेट प्रोग्राम का विमान था. पिछले साल न्यू मेक्सिको के अल्बुकर्क इंटरनेशनल एयरपोर्ट से टेकऑफ करते ही अमेरिकी एयरफोर्स का F-35 लाइटनिंग-2 स्टेल्थ फाइटर जेट क्रैश हो गया.  इससे पहले साउथ कैरोलिना में ऐसा ही एक फाइटर जेट लापता हो गया था. जो बाद में एक घर के पीछे क्रैश मिला. इसका मलबा साउथ कैरोलिना के ज्वाइंट बेस चार्ल्सटन से 96 KM दूर विलियम्सबर्ग काउंटी में मिला. 

टैरिफ मुद्दे पर डोनाल्ड ट्रंप ने बार-बार कॉल किया, PM मोदी ने फोन रिसीव नहीं किया

नई दिल्ली भारत और अमेरिका के रिश्ते क्या बीते कुछ दशकों में सबसे निचले स्तर पर हैं? ऐसे कयास तेज हैं क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के ट्रेड टैरिफ का भारत ने भी सख्ती से जवाब दिया है। खबर है कि इस मामले पर बात करने के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने पीएम नरेंद्र मोदी को 4 बार कॉल किया, लेकिन उन्होंने रिसीव ही नहीं किया। माना जा रहा है कि भारत सरकार अब इस मामले में अमेरिका के दबाव में आने की बजाय सख्ती से ही जवाब देने की नीति पर विचार कर रही है। इसी पॉलिसी के तहत भारत ने चीन, रूस और ब्राजील जैसे देशों के साथ मिलकर एक नया गठजोड़ खड़ा करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। शायद इसी नीति के तहत अब मोदी सरकार नहीं चाहती कि डोनाल्ड ट्रंप को ज्यादा महत्व दिया जाए। जर्मन अखबार Frankfurter Allgemeine Zeitung ने अपनी एक विस्तृत रिपोर्ट में ऐसा दावा किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसा लगता है कि डोनाल्ड ट्रंप के रुख से परेशान भारत सरकार अब उनसे कोई आसान डील नहीं करना चाहती। अखबार के लिए हेंड्रिक अंकेनब्रांड, विनांड वॉन पीटर्सडॉर्फ, गुस्ताव थाइले ने लिखे अपने आर्टिकल में कहा कि यह भारत सरकार की बदली हुई नीति का प्रतीक है कि उसने उस चीन के साथ भी रिश्ते बेहतर करने शुरू किए हैं, जिससे 2020 में लद्दाख में सैन्य झड़प हुई थी और 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे। अखबार में लिखा गया है, 'अब दोनों देशों के बीच संबंधों को परिभाषित करना मुश्किल है। फरवरी में ही अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने मोदी को वाइट हाउस बुलाया था और उन्हें 'महान नेता' कहकर उनकी सराहना की थी। लेकिन जब फोटो खिंचवाने का वक्त आया तो मोदी मुस्कुराए नहीं। ट्रंप ने इस दौरान पीएम मोदी के साथ अपने रिश्तों की भी बात की, लेकिन मोदी ने इसे सिर्फ रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण यात्रा करार दिया था। यह दर्शाता है कि भारतीय नेतृत्व अमेरिकी इरादों को लेकर सतर्क रहता है।' यही नहीं अखबार का कहना है कि ट्रंप ने अमेरिका के लिए कृषि बाजारों को खोलने की मांग की, लेकिन मोदी ने इनकार कर दिया। इसके बजाय भारत ने रूस और ईरान से सस्ता तेल खरीदा। यहां तक कि भारत ने पश्चिमी प्रतिबंधों को भी नजरअंदाज कर दिया। अखबार लिखता है, ‘अमेरिका का मानना है कि चीन को अलग-थलग करने के लिए भारत को मजबूती से अपनी ओर खड़ा करना चाहिए। लेकिन भारत इससे सहमत नहीं है। भारत चाहता है कि अमेरिका के साथ दोस्ती पर बहुत भरोसा नहीं किया जा सकता। भारत का मानना है कि उसे चीन के साथ संबंध बिगाड़कर अमेरिका का मोहरा नहीं बनना चाहिए।’ गौरतलब है कि अमेरिका में होने वाले कुल निर्यात भारत की हिस्सेदारी 20 फीसदी के करीब है। खासकर कपड़े, गहने, दवाइयाँ और ऑटो पार्ट्स। लेकिन सीमा शुल्क की वजह से अब यह व्यापार घट सकता है। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि भारत की विकास दर 6.5 प्रतिशत के बजाय सिर्फ़ 5.5 प्रतिशत रह जाएगी। कहा जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप के अप्रत्याशित रुख को भारत सरकार ने अच्छे ढंग से नहीं लिया है। जून में ही एक सर्वे के अनुसार जर्मनी में 18% लोग ट्रंप पर भरोसा करते हैं, जबकि भारत में ट्रंप को सबसे कम भरोसेमंद राष्ट्रपति माना जाता है।