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उत्तराखंड सरकार का ऐलान: मदरसा बोर्ड होगा भंग, लागू होगा नया अल्पसंख्यक शिक्षा कानून

देहरादून

उत्तराखंड सचिवालय में  मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में कुल पांच प्रस्तावों पर मुहर लगी है. इनमें एक फैसला उत्तराखंड अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान अधिनियम, 2025 से जुड़ा है. कैबिनेट ने इस विधेयक को मंजूरी दे दी है और इसे आज से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में पेश किया जाएगा.

राज्य सरकार के मुताबिक, अब तक राज्य में अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान का दर्जा केवल मुस्लिम समुदाय को दिया जाता था, लेकिन प्रस्तावित अधिनियम के लागू होने के बाद सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी समुदायों को भी यह सुविधा मिलेगी. सरकार का दावा है कि इस कदम के साथ उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन जाएगा जिसने सभी अल्पसंख्यक समुदायों के शैक्षिक संस्थानों को मान्यता देने के लिए एकाकीकृत और पारदर्शी प्रक्रिया तैयार की है.

अधिनियम लागू होने के बाद 1 जुलाई 2026 से उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड और उससे जुड़े अरबी-फारसी मदरसा मान्यता नियम, 2019 को भंग कर दिया जाएगा. बोर्ड की जगह अब उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण का गठन किया जाएगा. यह नया प्राधिकरण राज्य के सभी अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों की मान्यता और निगरानी करेगा.

मदरसा बोर्ड के अंतर्गत 452 मदरसे पंजीकृत

वर्तमान में राज्य में मदरसा बोर्ड के अंतर्गत 452 मदरसे पंजीकृत हैं. अधिनियम लागू होने के बाद इन्हें भी नए प्राधिकरण से मान्यता लेनी होगी. सरकार का कहना है कि यह नया ढांचा शिक्षा में क्वालिटी और ट्रांसपेरेंसी सुनिश्चित करेगा और संस्थागत अधिकारों की रक्षा करेगा. मान्यता के लिए संस्थानों का सोसाइटी एक्ट, ट्रस्ट एक्ट या कंपनी एक्ट में पंजीकरण अनिवार्य होगा. साथ ही, संबंधित भूमि और संपत्तियाँ संस्थान के नाम पर दर्ज होना जरूरी होगा.

कांग्रेस ने धामी कैबिनेट के फैसले पर उठाए सवाल

कांग्रेस ने इस विधेयक पर सवाल उठाए हैं. पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुजाता पॉल ने इसे लेकर राज्य सरकार पर तीखा हमला बोला है. उनका कहना है कि विधानसभा सत्र शुरू होने वाला है और सरकार के पास जनता से जुड़े कोई ठोस मुद्दे नहीं हैं. कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ रही है, लेकिन सरकार केवल एक विशेष समुदाय को निशाना बनाने में जुटी है.

सुजाता पॉल ने यह भी कहा कि हमारे संविधान में अनुच्छेद 29 और 30 अल्पसंख्यकों के शैक्षिक अधिकारों की गारंटी देते हैं. इसके अलावा, 1992 और 2004 में केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक शिक्षा से जुड़े कानून बनाए थे. ऐसे में यह कहना गलत है कि केवल मुसलमानों को ही अल्पसंख्यक होने का लाभ मिल रहा है. उन्होंने राज्य की शिक्षा व्यवस्था पर भी सवाल खड़े किए.

सुजाता पॉल के अनुसार, उत्तराखंड में आम शिक्षा व्यवस्था चरमराई हुई है. कई जगह स्कूल और शिक्षक नहीं हैं, लेकिन सरकार को इस विधेयक को लाने की इतनी जल्दी है मानो यही सबसे बड़ी प्राथमिकता हो.

मदरसा बोर्ड भंग करने के प्लान पर क्या बोले एक्सपर्ट?

पुष्कर सिंह धामी कैबिनेट के फैसले पर इस्लामिक मामलों के जानकार खुर्शीद अहमद का कहना है, "जो कानून बनाने की बात सरकार कर रही है वो आर्टिकल 30A का घोर उल्लंघन है. इसके साथ 2004 में लाए गए एक्ट के मुताबिक पहले से ही देश में अल्पसंख्यक आयोग मौजूद है, जो शैक्षिक संस्थानों को मान्यता देता है."

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