samacharsecretary.com

जनसंख्या बदलाव का असर: असम के 11 जिलों में हिंदू अल्पसंख्यक, मुस्लिम बहुल इलाके बढ़े

दिसपुर  उत्तर प्रदेश के संभल की डेमोग्राफी बदल गई है. संभल हिंसा पर बनी कमेटी की रिपोर्ट चौंकाने वाली है. संभल में हिंदू आबादी घट गई है. रिपोर्ट की मानें तो संभल नगर पालिका क्षेत्र में हिंदू आबादी आजादी के समय 45 फीसदी थी. अब यह घटकर 15 फीसदी रह गई है. इस पर अब सियासत भी तेज हो चुकी है. हालांकि, हकीकत देखें तो संभल तो अभी झांकी है. इससे अधिक तो असम चौंकाता है. असम में ऐसे कम से कम 11 जिले हैं, जहां की डेमोग्राफी में बहुत बड़ा बदलाव हुआ है. असम में कम से कम 11 जिलों में हिंदू बहुसंख्यक से अल्पसंख्यक हो चुके हैं. खुद असम के मुख्यमंत्री का कहना है कि 2041 तक राज्य में मुस्लिमों और हिंदुओं की आबादी 50-50 हो सकती है. दरअसल, साल 2011 की जनगणना के अनुसार दावा किया जा रहा है कि असम के 11 जिलों में मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक हो गई है, जहां हिंदू अब अल्पसंख्यक हैं. इन जिलों में अवैध घुसपैठ, जन्म दर में अंतर और प्रवासन को मुख्य कारण माना जा रहा है. यह स्थिति उत्तर प्रदेश के संभल जिले की हालिया जांच रिपोर्ट से काफी मिलती-जुलती है, जहां भी डेमोग्राफिक शिफ्ट में हिंदू आबादी घट गई है. असम के ये 11 जिले, जहां मुस्लिम हो गए बहुसंख्यक     धुबरी- 79.67% मुस्लिम     गोलपारा- 57.52% मुस्लिम     बरपेटा- 70.74% मुस्लिम     मोरीगांव- 52.56% मुस्लिम     नागांव- 55.36% मुस्लिम     दरांग-64.34% मुस्लिम     हैलाकांडी- 60.31% मुस्लिम     करीमगंज-56.36% मुस्लिम     बोंगाईगांव – 50.22% मुस्लिम     साउथ सलमारा-मानकाचार- डेटा उपलब्ध नहीं     होजाई- डेटा उपलब्ध नहीं राज्य में कैसे घटते गए हिंदू? दरअसल, 2011 की जनगणना के अनुसार, असम की कुल मुस्लिम आबादी 1.07 करोड़ थी. यह राज्य के कुल 3.12 करोड़ निवासियों का 34.22 प्रतिशत थी. राज्य में 1.92 करोड़ हिंदू थे, जो कुल जनसंख्या का करीब 61.47 प्रतिशत था. 2011 की जनगणना के अनुसार कम से कम नौ जिले मुस्लिम बहुल थे. जबकि 2001 में यह संख्या महज छह थी . अभी मौजूदा समय में यह संख्या बढ़कर कम से कम 11 हो गई है. 2001 में कितने जिले मुस्लिम बहुल? 2001 में जब असम में 23 जिले थे, तब छह जिलों में मुस्लिम बहुल थे. धुबरी (74.29), गोलपाड़ा (53.71), बारपेटा (59.37), नागांव (51), करीमगंज (52.3) और हैलाकांडी (57.63). क्या है कारण? असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का मानना है कि हिंदुओं की घटती आबादी की वजह बांग्लादेशी घुसपैठ है. इसके अलावा विशेषज्ञों का मानना है कि उच्च जन्म दर, प्रवासन और भूमि अतिक्रमण जैसे कारक भी जिम्मेदार हैं. अनुमान के मुताबिक, अगले कुछ सालों में राज्य में हिंदू आबादी 61% से घटकर अनुमानित 50% के करीब पहुंच सकती है, जबकि मुस्लिम 34% से बढ़कर 40% से अधिक हो सकती है. अगर सीएम की मानें तो 2041 तक दोनों की आबादी बराबर हो जाएगी, अगर इसी अनुपात से डेमोग्राफी में बदलाव होते रहे तो. संभल से जैसा असम में हाल? असम में यह डेमोग्राफिक बदलाव, उत्तर प्रदेश के संभल से मिलती जुलती है. संभल की रिपोर्ट में डेमोग्राफिक बदलाव को ‘साजिश’ बताया गया है. रिपोर्ट के अनुसार, 1947 में संभल नगर पालिका क्षेत्र में हिंदू 45% थे, जबकि मुस्लिम 55%. आज हिंदू घटकर 15 फीसदी रह गए हैं. मुस्लिम 85% हो गए हैं. जांच समिति ने इसे ‘व्यवस्थित परिवर्तन’ माना, जिसमें हिंदू मंदिरों को निशाना बनाया गया और आबादी का ‘एथनिक क्लीनिंग’ जैसा असर हुआ.

शिक्षा का अजीब हाल: 8 हजार स्कूलों में स्टूडेंट ही नहीं, 1 लाख में सिर्फ 1 टीचर

नई दिल्ली शिक्षा मंत्रालय की नई UDISE+ (यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन) रिपोर्ट 2024-25 के अनुसार, भारत में पहली बार स्कूल शिक्षकों की संख्या 1 करोड़ के पार पहुंच गई है. यह उपलब्धि देश की शिक्षा व्यवस्था में बड़ा बदलाव मानी जा रही है क्योंकि इससे न केवल शिक्षकों की उपलब्धता बढ़ी है, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता और स्टूडेंट-टीचर अनुपात (Student-Teacher Ratio) में भी सुधार हुआ है. महिला शिक्षकों की संख्या बढ़ी  देश में महिला शिक्षकों की संख्या में भी साल 2014 के तुलना में इजाफा हुआ है. शिक्षा मंत्रालय के रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2014 से अभी तक 51.36 लाख शिक्षकों की भर्ती की जा चुकी है, जिनमें से 61 प्रतिशत महिलाएं हैं. मौजूदा समय में जहां पुरुष शिक्षकों की संख्या 46.41 लाख हैं. वहीं, महिला शिक्षकों की संख्या 54.81 लाख हैं.  भारत में कुल स्कूलों की संख्या 14.71 लाख है, जिसमें 69 प्रतिशत सरकारी हैं और इनमें कुल छात्रों के नामांकन का दर 49 प्रतिशत है. वहीं, देश में कुल प्राइवेट स्कूलों की संख्या 26 प्रतिशत है, लेकिन ये देश के 41 प्रतिशत छात्रों को शिक्षा प्रदान करते हैं. वहीं, देश के कुल शिक्षकों में से 51 प्रतिशत शिक्षक सरकारी स्कूलों में और 42 प्रतिशत शिक्षक प्राइवेट स्कूलों में हैं.  UDISE Report: शिक्षकों की संख्या में बढ़ोतरी रिपोर्ट के मुताबिक, 2022-23 की तुलना में 2024-25 में शिक्षकों की संख्या में 6.7% की वृद्धि हुई है. अब देश में अलग-अलग स्तरों पर स्टूडेंट-टीचर अनुपात अलग-अलग है. शिक्षकों की संख्या में वृद्धि छात्र-शिक्षक अनुपात में सुधार, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने और शिक्षकों की उपलब्धता में क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.      क्या है डेमोग्राफिक चेंज? 3 प्वाइंट में समझें, संभल हिंसा पर सौंपी गई रिपोर्ट में इसपर क्यों हुई है चर्चा     ट्रंप टैरिफ जारी रहा, तो भारत के निर्यात पर पड़ेगा भारी असर; विशेषज्ञों ने बताया स्थिति से निपटने का तरीका     शरीर पर 36 जख्म और पोस्टमार्टम में निकली 17 गोलियां, झारखंड के चर्चित नीरज सिंह हत्याकांड को जानिए स्टूडेंट-टीचर रेशियो (PTR) और बेहतर परिणाम यूडीआईएसई प्लस (UDISE Plus) की रिपोर्ट के अनुसार आधारभूत, प्राथमिक, मध्य और माध्यमिक स्तर पर विद्यार्थी-शिक्षक अनुपात क्रमशः 10, 13, 17 और 21 है. यह अनुपात राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में सुझाए गए 1:30 से कहीं बेहतर है. रिपोर्ट बताती है कि कम अनुपात होने से शिक्षक और छात्रों के बीच संवाद बेहतर होता है, जिससे पढ़ाई आसान बनती है और परिणाम भी अच्छे आते हैं. छात्रों के स्कूल छोड़ने के दर में गिरावट  शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, बच्चों के स्कूल छोड़ने के दर में भी गिरावट आई है. प्राइमरी लेवल पर स्कूल छोड़ने वाले छात्रों की संख्या एक साल में 3.7 प्रतिशत से घटकर 2.3 प्रतिशत हो गई है. मिडिल लेवल पर स्कूल छोड़ने वाले छात्रों की संख्या 1 साल में 5.2 प्रतिशत से घटकर 3.5 प्रतिशत और सेकेंडरी लेवर पर 10.9 प्रतिशत से घटकर 8.2 प्रतिशत हो गई है. इसी प्रकार छात्रों के स्कूल में बने रहने के दर में भी वृद्धि हुई है. प्राइमरी लेवल पर बच्चों के स्कूल में बने रहने का दर एक साल में 85.4 प्रतिशत से बढ़कर 92.4 प्रतिशत हो गई है. वहीं, मिडिल लेवल पर एक साल में 78 प्रतिशत से बढ़कर 82.8 प्रतिशत और सेकेंडरी लेवल पर यह एक साल पहले में 45.6 प्रतिशत से बढ़कर 47.2 प्रतिशत हो गई है.  महिला शिक्षकों की संख्या तेजी से बढ़ी ताजा रिपोर्ट बताती है कि 2023-24 के सत्र में कुल शिक्षक 98.83 लाख थे, जो अब 1 करोड़ 1 लाख 22 हजार 420 हो गए हैं। इनमें से 51% (51.47 लाख) शिक्षक सरकारी स्कूलों में हैं। एक दशक में महिला शिक्षकों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। 2014-15 में पुरुष शिक्षक 45.46 लाख और महिला 40.16 लाख थीं, जो 2024-25 में बढ़कर क्रमश: 46.41 लाख और 54.81 लाख हो गई हैं। बीते दशक में महिला शिक्षकों की संख्या करीब 8% बढ़ने की बड़ी वजह इनकी भर्तियां हैं। 2014 से अब तक 51.36 लाख भर्तियों में से 61% महिला शिक्षकों की हुई हैं। पीपुल-टीचर रेश्यो: अब 21 छात्रों पर एक शिक्षक, पहले 31 पर थे     मिडिल स्तर पर 10 साल पहले एक शिक्षक के पास 26 छात्र थे, जो घटकर 17 रह गए हैं। सेकंडरी स्तर पर यह 31 से घटकर 21 रह गया है। यानी छात्र व शिक्षकों के बीच संवाद बेहतर हो रहा है। शिक्षकों के पास जितने कम छात्र होंगे, वे उन्हें ज्यादा समय दे पाएंगे।     ड्रॉपआउट रेट घटा है। सेकंडरी पर 2023-24 में यह 10.9% था, जो 2024-25 में 8.2% बचा है। मिडिल स्तर पर यह 5.2% की तुलना में 3.5% और प्राथमिक पर 3.7% से घटकर 2.3% रह गई है।     प्राथमिक पर रिटेंशन रेट 2023-24 में 85.4% से बढ़कर अब 92.4 % हो गया है। मिडिल पर 78% से बढ़कर 82.8%, तो सेकंडरी पर यह 45.6% से बढ़कर 47.2% हो गया है। सेकंडरी स्तर पर नामांकन दर बढ़कर 68.5% हो गई है। डिजिटल सुविधा और इंटरनेट कनेक्टिविटी बढ़ी  डिजिटल सुविधा और इंटरनेट कनेक्टिविटी की बात करें तो स्कूलों में डिजिटल सुविधाएं भी लगातार बढ़ रही है. पिछले साल तक 57.2 प्रतिशत स्कूलों में कंप्यूटर थे, जो अब 64.7 प्रतिशत स्कूलों में हो गए हैं. वहीं, स्कूलों में इंटरनेट कनेक्टिविटी की बात करें, जो पिछले साल तक 53.9 प्रतिशत स्कूलों में थी, वो अब लगभग 63.5 प्रतिशत हो गई है.  बुनियादी सुविधाएं बेहतर इन सभी के साथ स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं भी पहले के मुकाबले बेहतर हुई है. अब 99.3 प्रतिशत स्कूलों में पीने का पानी, 93.6 प्रतिशत स्कूलों में बिजली, 97.3 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय और 96.2 प्रतिशत स्कूलों में लड़कों के लिए शौचालय हैं. इसी के साथ स्कूलों अन्य सुविधाओं का भी विस्तार हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक, अब 55 प्रतिशत स्कूलों में रैंप और रेलिंग, 89.5 प्रतिशत स्कूलों में लाइब्रेरी और 83 प्रतिशत स्कूलों में खेल के मैदान हैं.   ड्रॉपआउट दर और नामांकन में सुधार रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि एकल शिक्षक वाले स्कूलों की संख्या में लगभग 6% की कमी आई है और शून्य नामांकन वाले स्कूलों में करीब 38% की … Read more

भारत में जल्द दौड़ेगी सुपरफास्ट ट्रेन, दिल्ली- पटना का सफर सिर्फ ढाई घंटे में

नई दिल्ली भारत में इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर को दुरुस्‍त करने पर लगातार काम चल रहा है. खासकर रेल और रोड प्रोजेक्‍ट्स पर लाखों करोड़ रुपये का निवेश किया जा रहा है. मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन प्रोजेक्‍ट उनमें से एक है. इसका काम तेजी से चल रहा है और आनेवाले कुछ महीनों में देश की पहली बुलेट ट्रेन पटरियों पर दौड़ सकती है. इस बीच, हाईस्‍पीड ट्रेन को लेकर एक और बड़ी खबर सामने आई है. सबकुछ ठीक-ठाक रहा तो भारत में नेक्‍स्‍ट जेनरेशन बुलेट ट्रेन का प्रोडक्‍शन शुरू हो सकता है. भारत इस बाबत जापान के साथ करार कर सकता है. बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान की यात्रा पर हैं और इस दौरान दोनों देशों के बीच ई-10 शिंकानसेन बुलेट ट्रेन (E10 Shinkansen Bullet Train) की भारत में मैन्‍यूफैक्‍चरिंग पर समझौता होने की उम्‍मीद है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत और जापान जल्द ही मिलकर अगली पीढ़ी की ई-10 शिंकानसेन बुलेट ट्रेन का निर्माण कर सकते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय जापान यात्रा के दौरान इसका औपचारिक ऐलान किया जा सकता है. मामले से जुड़े लोगों ने बताया कि दोनों देशों के बीच इस साझेदारी पर सैद्धांतिक सहमति बन चुकी है. ई-10 शिंकानसेन को जापान की ALFA-X से विकसित किया गया है और इसे भारतीय परिस्थितियों के हिसाब से विशेष रूप से तैयार किया जाएगा. यह पहल भारत-जापान के बीच पहले से चल रहे अहमदाबाद-मुंबई हाई-स्पीड रेल प्रोजेक्ट को और मजबूती देगी. यह प्रोजेक्ट कुल 508 किलोमीटर लंबा है और इसका पहला 50 किलोमीटर का खंड 2027 तक गुजरात में शुरू होने की उम्मीद है, जबकि पूरा प्रोजेक्ट 2029 तक पूरा होगा. 400 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार ‘हिन्‍दुस्‍तान टाइम्‍स’ की रिपोर्ट के अनुसार, यह साझेदारी लगभग चार दशक पहले शुरू हुई मारुति-सुजुकी जॉइंट वेंचर की तरह ऐतिहासिक साबित हो सकती है. फर्क सिर्फ इतना है कि इस प्रोजेक्ट का पैमाना और रणनीतिक महत्व कहीं ज्यादा है. पीएम मोदी की पहल और जापान से उनकी गहरी दोस्ती का नतीजा है कि बुलेट ट्रेनें अब भारत में ही बनने की दिशा में कदम बढ़ाया गया है. ई-10 शिंकानसेन की अधिकतम रफ्तार 400 किलोमीटर प्रति घंटा होगी, जबकि भारत के लिए पहले ई-5 शिंकानसेन (320 किमी/घंटा) का विकल्प तय था. पीएम मोदी की विशेष दिलचस्पी और जापानी नेतृत्व से उनके घनिष्ठ संबंधों के चलते भारत को नवीनतम तकनीक का लाभ मिलने जा रहा है. दुनिया की सबसे सुरक्षित ट्रेन इस प्रोजेक्ट से न केवल भारत की तेज़ी से बढ़ती परिवहन ज़रूरतों को पूरा किया जाएगा, बल्कि यहां बनी ट्रेनों की आपूर्ति अन्‍य देशों को भी की जा सकती है. भारत की किफायती मैन्युफैक्चरिंग क्षमता और जापान की विश्वस्तरीय तकनीक और गुणवत्ता इसे एक्सीलेंस प्रोजेक्ट बना सकता है. पीएम मोदी अपने जापानी समकक्ष शिगेरू इशिबा के साथ वार्षिक शिखर सम्मेलन और बिज़नेस फोरम में शामिल होंगे. अगले दिन दोनों प्रधानमंत्री शिंकानसेन से यात्रा कर सेनदाई जाएंगे, जहां वे एक सेमीकंडक्टर फैक्ट्री का दौरा करेंगे और जापानी प्रांतों के गवर्नरों से मुलाकात करेंगे. जापानी पक्ष का मानना है कि भारत में हाई-स्पीड रेल नेटवर्क बनाते समय सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होगी. गौरतलब है कि 1964 में शुरू होने के बाद से शिंकानसेन का सुरक्षा रिकॉर्ड बेहतरीन रहा है. अभी तक किसी यात्री की ट्रेन हादसे में जान नहीं गई है.

इस साल का पहला और आखिरी चंद्र ग्रहण भारत में दिखाई देगा, तारीख 7-8 सितंबर तय

इंदौर  साल 2025 का दूसरा और अंतिम चंद्र ग्रहण, जिसे 'ब्लड मून' के नाम से भी जाना जाता है, अगले महीने दिखने वाला है। सितंबर  महीने में यह खगोलीय घटना देखने को मिलेगी। यह चंद्र ग्रहण कई देशों के साथ-साथ भारत में भी नजर आएगा। ऐसे में सूतक  काल भी मान्य होगा। जो जानते हैं यह खगोलीय घटना कब होगी और सूतक काल का समय क्या होगा? साल का आखिरी और दूसरा चंद्र ग्रहण भारत में 7 सितंबर को दिखेगा। इसी दिन पितृपक्ष की भी शुरुआत होगी। यह एक पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा।  इस दौरान चंद्रमा पूर्ण से गुजरेगा और एक चमकदार लाल रंग के गोले में बदल जाएगा। यानि इस दिन चंद्रमा लाल रंग का होगा, जिसे बल्ड मून कहा जाता है, जो कई सालों में एक बार दिखाई देता है। चंद्र ग्रहण करीब चार घंटे तक रहेगा। उज्जैन की जीवाजी वैधशाला के अधीक्षक राजेंद्र गुप्त ने बताया कि दिनांक 7-8 सितंबर 2025 को पूर्ण चन्द्र ग्रहण की खगोलीय घटना हो रही है। भारतीय समय के अनुसार पूर्ण चन्द्र ग्रहण का प्रारंभ 7 सितंबर 2025 को रात्रि 09:56:08 बजे से शुरू होगा। मध्य की स्थिति मध्यरात्रि 11:41:08 बजे पर होगी। इस समय चन्द्रमा का 136.8 प्रतिशत भाग पृथ्वी की छाया से ढका हुआ दृष्टिगोचर होगा अर्थात् पूर्ण चन्द्र ग्रहण की स्थिति दृष्टिगोचर होगी। ग्रहण के मोक्ष की स्थिति दिनांक 8 सितंबर 2025 को रात्रि 01:26:08 बजे पर होगी। यह ग्रहण भारत में पुराण रूप से दिखाई देगा। यह पूर्ण चन्द्र ग्रहण अंटार्कटिका, पश्चिमी प्रशांत महासागर, आस्ट्रेलिया, एशिया, हिन्द महासागर व यूरोप में भी दिखेगा। चन्द्र ग्रहण की स्थिति में पृथ्वी, सूर्य तथा चन्द्रमा के मध्य में होती है तथा पूर्ण ग्रहण की स्थिति में पृथ्वी की छाया से चन्द्रमा का पूर्ण भाग ढकता है। इसीलिए इसे पूर्ण चन्द्र ग्रहण कहते हैं। कब और कितने बजे लगेगा पूर्ण चंद्रग्रहण भारतीय समय के अनुसार, 7 सितंबर 2025 को चंद्र ग्रहण लगेगा। यह पूर्ण चंद्र ग्रहण रात 9:57 बजे शुरू होगा और 8 सितंबर को 1:26 बजे तक रहेगा। ग्रहण का स्पर्श रात 11:09 बजे होगा, जबकि मध्यकाल रात 11:42 बजे होगा। इसका मोक्ष काल रात 12:23 बजे से शुरू होगा। कुल मिलाकर, यह चंद्र ग्रहण लगभग 4 घंटे तक चलेगा। एक घंटे से ज्यादा समय तक चलने वाला चरम चरण तब होगा जब चंद्रमा अपने सबसे गहरे लाल रंग में दिखाई देगा। सूतक काल का समय चंद्र ग्रहण का सूतक काल 7 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 57 मिनट पर शुरू होगा। दरअसल, चंद्र ग्रहण के शुरू होने से करीब 9 घंटे पहले सूतक काल प्रारंभ हो जाता है। इस दौरान शुभ कार्यों को नहीं किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ग्रहण में मंदिरों के कपाट बंद हो जाते हैं। साल का आखिरी और पूर्ण चंद्रग्रहण भारत के कई शहरों में दिखाई देगा। यह ग्रहण दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, लखनऊ, बेंगलुरु समेत कुछ और शहरों में दिखाई देगा। भारत के अलावा ये ऑस्ट्रेलिया, अमेरिकी, फिजी और न्यूजीलैंड में भी दिखाया देगा।  क्या होता है 'ब्लड मून'?  खगोलीय वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस दौरान चंद्रमा पृथ्वी की छाया से पूरी तरह ढक जाएगा, जिससे वह लाल रंग का दिखाई देगा। यह नजारा भारतीय उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्सों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकेगा। खगोलशास्त्रियों ने इसे साल की सबसे खास खगोलीय घटनाओं में से एक बताया है। बता दें कि ब्लड मून पूर्ण चंद्र ग्रहण के दौरान होता है, जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के ठीक बीच में आ जाती है।