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जबलपुर-रायपुर के बीच सफर होगा आसान, बनेगी 150 KM लंबी फोरलेन सड़क

जबलपुर  जबलपुर से रायपुर की सड़क की दशा जल्द बदलेगी। इस सड़क के कुछ हिस्से पर वाहन चालक चलने से घबराते हैं। इस सड़क को अब राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण फोरलेन बनाने जा रहा है। सड़क की न सिर्फ चौड़ाई बढ़ेगी बल्कि नए तरह से निर्माण किया जाएगा। जबलपुर से चिल्पी तक करीब 150 किलोमीटर के हिस्से का निर्माण एनएचएआइ करेगा। इस मार्ग के निर्माण में 4500 करोड़ का व्यय होगा। फिलहाल सडक निर्माण के लिए कंसल्टेंसी नियुक्त करने का प्रयास हो रहा है ताकि इसकी डिटेल प्रोजेक्ट बनाकर केंद्र सरकार को मंजूरी के लिए भेजा जा सके। सब कुछ ठीक रहा तो यह सड़क जो अभी एमपी रोड डेवलपमेंट कार्पोरेशन (एमपीएसईडीसी) के पास है, इसे वापस एनएचएआइ सड़क का हस्तातंरण करेगा। वन्य जीवों के लिए सुरक्षित मार्ग जबलपुर से चिल्पी के बीच मंडला क्षेत्र में आने वाला कान्हा नेशनल पार्क का कोर एरिया आता है। जहां वन्यजीवों की घनी आबादी विचरण करती है। ऐसे में एनएचएआई मार्ग में जगह-जगह अंडरपास और ओवर ब्रिज का निर्माण करेंगा ताकि वाहन निकलने से वन्य जीवों को किसी तरह की कोई परेशानी न हो। कई जगह साउंड प्रूफ उपकरण भी लगाए जाएंगे जिससे बंदरों और अन्य जीवों को वाहनों की आवाजाही खलल न पैदा करें। बता दें करीब 25 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर की लागत आ रही है। फोरलेन बनने से बढ़ेगी रफ्तार फिलहाल राष्ट्रीय राजमार्ग 30 जबलपुर से रायपुर के बीच दो लेन है। इस वजह से वाहनों की आवाजाही में थोड़ी परेशानी होती है। मौसम खराब होने पर वाहनों की लंबी कतार सड़क पर लग जाती है। आवागमन भी बाधित होता है। यहां कुछ जगह लैंड स्लाइडिंग की भी समस्या बनी हुई है इसके लिए लगातार एमपीआरडीसी को शिकायत होती है लेकिन वहां से कोई भी राहत नहीं मिल पा रही है।  एमपीआरडीसी द्वारा इस सड़क का निर्माण गुणवत्ताहीन तरीके से कराया जा रहा था। वर्षों से यह सड़क बेहद खराब स्थिति में है जिससे आवागमन में परेशानी का सामना करना पड़ता है। अब इस सड़क को सरकार फोरलेन में तब्दील होगी तो बड़े स्तर पर राहत मिलने की संभावना है। इस सड़क के लिए गडकरी ने मांगी थी माफी जबलपुर मंडला की यह वही सड़क है जिसके लिए केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को सड़क की खराब गुणवत्ता के लिए सार्वजनिक माफी मांगनी पड़ी थी। गडकरी 2022 में मध्य प्रदेश दौरे पर आए थे। तब उन्होंने मध्य प्रदेश को छत्तीसगढ़ से जोड़ने वाले नेशनल हाईवे की इस बदहाल सड़क को देखा। उन्होंने शर्मिंदगी महसूस की। सड़क की स्थिति को देखते हुए मंच से ही माफी मांगी थी। इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते, लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव भी मौजूद थे। केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी ने ये बयान सात नवंबर 2022 को मध्य प्रदेश के मंडला में दिया था। गडकरी ने जबलपुर से मंडला के बीच नेशनल हाईवे के टेंडर रद्द कर सड़क के इस हिस्से को फिर से बनवाने के निर्देश दिए थे। बाद में इस मार्ग को सुधारने के लिए 53 करोड़ रुपये की लागत से सुधार का काम हुआ था। 2015 में शुरू हुआ था निर्माण राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने 251 करोड़ की लागत से जबलपुर से मंडला के बीच इस राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण के लिए मध्य प्रदेश रोड डेवलपमेंट कार्पोरेशन को निर्माण एजेंसी बनाया था। तीन फेस में बनने वाली इस सड़क का काम साल 2015 में शुरू हुआ था, जिसे दिसंबर 2016 तक पूरा हो जाना था। लेकिन, अब तक हाईवे का निर्माण अधूरा है और जहां हाईवे बना वो घटिया निर्माण से टूट-फूट का शिकार है। एनएचएआइ के प्रोजेक्ट डायरेक्टर अमृत लाल साहू ने कहा कि राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण जबलपुर से चिल्पी के बीच करीब 150 किमी की सड़क को फोरलेन बनाने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए कंसल्टेंसी की तलाश हो रही है। हम जल्द डीपीआर बनाकर केंद्र को भेजेंगे यदि मंजूरी मिली तो एमपीआरडीसी से यह सड़क लेकर एनएचएआई निर्माण कराएंगा।

रायपुर में कमिश्नरी सिस्टम की संभावना, जानिए कैसे होगा कानून व्यवस्था का बेहतर नियंत्रण

रायपुर  कानून व्यवस्था को सुधारने के लिए छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कमिश्नरी सिस्टम लागू करने की तैयारी है। सीएम विष्णुदेव साय के बाद राज्य के गृहमंत्री और डेप्युटी सीएम विजय शर्मा ने भी कमिश्नरी सिस्टम को लेकर अहम जानकारी दी है। विजय शर्मा ने कहा कि हम कमिश्नरी प्रणाली लेकर आ रहे हैं, जिससे पर्याप्त व्यवस्था सुनिश्चित होगी और पुलिस त्वरित निर्णय ले सकेगी। जीरो पॉइंट पर निर्णय लेने के लिए प्रैक्टिस चल रही है। क्या है कमिश्नरी सिस्टम पुलिस कमिश्नरी सिस्टम एक प्रशासनिक व्यवस्था है। इस व्यवस्था के अंतर्गत पुलिस आयुक्त के पास कानून-व्यवस्था और पुलिस प्रशासन से संबंधित सभी शक्तियां होती हैं। ज्यादा शक्तियां होने से पुलिस को तेजी से निर्णय ले सकती है। इस सिस्टम के तहत पुलिस आयुक्त के पास जिला मजिस्ट्रेट जैसी शक्तियां हो जाती हैं। कई जगहों पर लागू है यह सिस्टम पुलिस कमिश्नरी सिस्टम देश के कई राज्यों में बड़े शहरों में लागू है। जिले का एसपी पुलिस का मुखिया होता है। कानून व्यवस्था को कंट्रोल करना एसपी की अहम जिम्मेदारी होती है। लेकिन यह सिस्टम लागू होने के बाद एसपी, एसएसपी की जगह पुलिस कमिश्नर होता है। पुलिस कमिश्नर किस रैंक के अधिकारी को बनाया जाएगा यह फैसला राज्य सरकार करती है। राज्य सरकार डीआईजी से लेकर एडीजी स्तर तक के अधिकारी को यह जिम्मेदारी दे सकती है। जिस अधिकारी को यह जिम्मेदारी दी जाती है वह अनुभवी अफसर होते हैं। राज्य सरकार उसके अधिकारों को लेकर नोटिफिकेशन जारी करती है। कौन-कौन से अधिकार देने हैं यह राज्य सरकार तय करती है। यह जरुरी नहीं है कि सारे अधिकार डिस्ट्रिक मैजिस्ट्रेट के जैसे हों। क्या बदलाव होंगे कमिश्नरी बन जाने से सबसे बड़ा फर्क यह पड़का है कि जिला पुलिस का मुखिया एक अनुभवी और ऊंचे रैंक वाला अधिकारी होता है। बहुत सारे काम उसकी मंसा के अनुरुप होते हैं। पुलिसिंग व्यवस्था प्रभावी बनती है। जरुरत के मुताबिक पुलिस फोर्स मिल सकती है। इसका फायदा आम जनता को भी मिलता है। छोटे मोटे दंड वाले अपराधों की तफ्तीस का अधिकार हेड कांस्टेबल को मिल जाता है। जिससे अपराध को नियंत्रण पर में मदद मिलती है। अभी ऐसे मसलों का निपटारा एसएआई या एसआई रैंक के अधिकारी करते हैं।

शिक्षकों को मिलेगा सरकारी मकान, मध्यप्रदेश में स्कूलों के पास बनेगा आवास

भोपाल  स्कूलों में नियमित पढ़ाई हो सके इसके लिए मध्यप्रदेश शिक्षा विभाग स्कूलों के पास शिक्षकों को मकान बनाकर देगा। यह महिला शिक्षकों(Government Teacher) के लिए होंगे। लोक शिक्षण संचालनालय इसकी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करेगा। यह रिपोर्ट जिलों से मिली जानकारी के आधार पर बनेगी। आवास ऐसे स्कूलों के आसपास बनेंगे जहां आवाजाही मुश्किल होती है। लोक शिक्षण ने सभी जिलों को इसके लिए निर्देश भेजे थे। जिलों से जमीन तलाश करने के बाद उसकी रिपोर्ट मांगी थी। बारिश के कारण इस काम में रुकावट आई। इसे अब फिर शुरू किया जाएगा। विभाग के निर्देश के तहत हर जिले में 100 आवास बनेंगे। महिला शिक्षकों के लिए प्राथमिकता होगी। तीन से पांच एकड़ में बहुमंजिला इमारत इस प्रोजेक्ट के तहत फ्लैट दिए जाने हैं। यानि विभाग बहुमंजिला इमारतें तैयार कराएगा। हर जिले से इन इमारतों के लिए तीन से पांच एकड़ जमीन को चिन्हित कर रिपोर्ट मांगी गई थी। यह पहला चरण है। हर विकासखंड मुख्यालय पर 100 आवास बनाने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। इसके लिए 3 से 5 एकड़ जमीन की आवश्यकता होगी। लोक शिक्षण संचालनालय के संचालक डीएस कुशवाहा ने इसके संबंध में निर्देश जारी किए गए थे। जिलों से मिली रिपोर्ट के आधार पर अब समीक्षा होना है। इन्हें मिलेगा लाभ मध्यप्रदेश में 94 हजार स्कूल हैं। इनमें एक लाख से अधिक महिला शिक्षक(Government Teacher) हैं। ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में इनकी संख्या 25 हजार से अधिक है। वहीं फिलहाल मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार गांवों और छोटे जिलों के स्कूलों में पदस्थ शिक्षकों के लिए ही घर का निर्माण कराने की तैयारी कर रहा है।

भेड़ाघाट-लम्हेटाघाट को मिलेगी विश्व धरोहर की मान्यता? प्राचीन चट्टानों और भूगर्भीय रहस्यों से भरा क्षेत्र

जबलपुर  भेड़ाघाट व लम्हेटाघाट की चट्टानें यूनेस्को के विश्व धरोधर सूची में शामिल होने के करीब पहुंच गई हैं। जिसके बाद नर्मदा तट पर बसे जबलपुर की प्राचीन धरा को अब पूरी दुनिया में पहचान मिलेगी। भूगर्भ शास्त्र के अनुसार दो हजार करोड़ वर्ष पुरानी जबलपुर के नर्मदा तट की चट्टानें सदियों से पृथ्वी की कई संरचनाओं के निर्माण की गवाह रही हैं। कुछ वर्ष पहले यूनेस्को ने भेड़ाघाट और लम्हेटाघाट (भूगर्भशास्त्र में लमेटा फार्मेशन के नाम से विख्यात) की चट्टानों को विश्व धरोहर सूची में शामिल करने का निर्णय किया और वर्ष 2021 में लम्हेटा यूनेस्को की संभावित सूची में शामिल हुआ। संगमरमर के पत्थरों को चीरकर निकलती नर्मदा के इस तट को दुनिया के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों की सूची में लाने के लिए वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया (डब्ल्यूआइआइ), जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया, मध्य प्रदेश पर्यटन बोर्ड समेत राष्ट्रीय स्तर की अन्य एजेंसी कार्य कर रही हैं। विशेषज्ञों के दल ने किया दौरा विशेषज्ञों का एक दल ने भेड़ाघाट, लम्हेटा का दौरा किया और इस बात पर सहमति जताई कि यह स्थल अगले दो वर्ष के अंदर यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में स्थायी रूप से नाम दर्ज करवा लेगा। डब्ल्यूआइआइ के विषय विशेषज्ञ भूमेश सिंह भदौरिया ने बताया कि यह साइट प्राकृतिक श्रेणी में भूगर्भ के महत्व के लिहाज से देश की पहली अति प्राचीन धरोहर होगी। इधर, डब्ल्यूआईआई द्वारा तैयार प्रारंभिक मूल्यांकन को यूनेस्को ने स्वीकार कर लिया है। इसके साथ ही नामांकन प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है। आगे यूनेस्को से प्रारंभिक मूल्यांकन की रिपोर्ट आने के बाद नामांकन डोजियर यूनेस्को को सौंपा जाएगा। डोजियर जमा होने के बाद यूनेस्को के इंटरनेशनल यूनियन फार कंजर्वेशन आफ नेचर (आइयूसीएन) का मूल्यांकन दल स्थल का निरीक्षण करेगा। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग दो वर्ष का समय लगेगा। क्या है भूगर्भीय महत्व भेडाघाट और इसके निकट दो हजार से बाइस सौ करोड़ वर्ष पुरानी चट़टानों से लेकर पंद्रह लाख वर्ष पुरानी चट्टानें मौजूद हैं। इस समयावधि के बीच पृथ्वी में हुई भू वैज्ञानिक गतिविधियों के प्रमाण यहां मौजूद हैं। यहां की इगनिंग बराइट नाम की चटटानें इस बात का प्रमाण हैं कि यहां कभी ज्वालामुखी फटने जैसी घटनाएं भी हुई थीं। यहां नर्मदा नदी का प्रवाह के परिवर्तन प्रमाण में देखने मिलते हैं जिसे नदी अपहरण कहा जाता है। नर्मदा के इस तट को पूरे विश्व में लमेटा फार्मेशन के नाम से जाना जाता है। भूगर्भ शास्त्रियों के लिए यह स्थल बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यहां विभिन्न समय कालखंड की चट़टानों के साथ-साथ डायनासोर के अंडों के फासिल भी मिले हैं। केंद्र के निर्देश पर चल रही प्रक्रिया केंद्रीय पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के निर्देश पर शुक्रवार को विभिन्न विभागों के अधिकारियों ने भेड़ाघाट, लम्हेटाघाट के स्थलों का निरीक्षण किया। दल में वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया के विज्ञानी डा. गौतम तालुकदार, विषय विशेषज्ञ भूमेश सिंह भदौरिया, प्रोजेक्ट एसोसिएट दीपिका सायरे एवं स्नेहा पांडे, जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया के डा. सुहेल अहमद, सर्वे आफ इंडिया के जयप्रकाश पाटीदार, कुलदीप सिंह बागरी, हेमंत तथा भेडाघाट नगर परिषद के सीएमओ विक्रम सिंह तथा मध्य प्रदेश टूरिज्म कार्पोरेशन के मार्केटिंग प्रमुख योगेंद्र रिछारिया, जीएम अमित सिंह आदि शामिल थे। 2200 करोड़ साल पुरानी हैं चट्टानें     लम्हेटाघाट में 2200 करोड़ साल पुरानी चट्टानें हैं इन्हें महाकोशल राक कहा जाता है। करोड़ों साल पहले यहां समुद्र था जिसके किनारे नमी में डायनासोर प्रजनन करते थे। अंडे देते थे। करीब 65 करोड़ साल पहले लम्हेटा में ज्वालामुखी फटा जिसका लावा ठंडा होकर लम्हेटाघाट की चट्टानों में बदल गया। प्राकृतिक रूप से यह अदभुत है कि यहां की चट्टानों में खड़े हो तो एक पैर जिस चट्टान पर होगा वह 22 करोड़ साल पुरानी होगी वहीं दूसरा पैर जिस पर रखा होगा वह 65 करोड़ साल पुरानी। ये बेहद दुर्लभ है। देश में प्राकृतिक श्रेणी में भूगर्भीय महत्व वाली यह पहली साइट है। – भूमेश सिंह भदौरिया, विषय विशेषज्ञ, वर्ल्ड हेरिटेज नर्मदा घाटी रहस्य समेटे हुए है     मां नर्मदा पृथ्वी पर सबसे प्राचीन और पवित्र नदियों में से एक हैं। नर्मदा घाटी अपने आप में अनेक रहस्य समेटे हुए है जो मानव सभ्यता के उन अनजान पहलुओं से अवगत कराती है जिसकी खोज में आधुनिक मानव निरंतर प्रयत्नशील है। नर्मदा मैया के तट पर संगमरमर की चट्टानें करोडों वर्ष के भूगर्भीय परिवर्तन की मूक गवाह हैं जो मानव मात्र को अचंभित कर देती है। जबलपुर का लम्हेटा और भेड़ाघाट यूनेस्को की विश्व धरोहरों की स्थायी सूची में अपना गहरा हस्ताक्षर दर्ज कराने की कगार पर है। इस स्थल को विश्व पर्यटन मानचित्र पर लाने के लिए मध्य प्रदेश पर्यटन निरंतर प्रयत्नशील है।- शिव शेखर शुक्ल, पर्यटन सचिव, एमडी मध्य प्रदेश पर्यटन बोर्ड  

कम उपयोग में पीएमश्री एयर एंबुलेंस सेवा, 4 महीने में सिर्फ 85 मरीजों ने लिया लाभ

भोपाल  मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की महत्वाकांक्षी योजना 'पीएमश्री एयर एंबुलेंस सेवा' की उपयोगिता पर सवाल उठाने लगे हैं। इस सेवा के उपयोग में न जनता रुचि ले रही, न ही जनप्रतिनिधि और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी। मई 2024 में प्रारंभ हुई इस सेवा से अभी तक 85 रोगियों को ही प्रदेश के भीतर या दूसरे राज्य में उपचार के लिए पहुंचाया गया है। खास बात यह है कि एंबुलेंस का उपयोग हो या नहीं, पर सरकार की तरफ से एंबुलेंस का संचालन करने वाली कंपनी को प्रतिमाह नियत घंटों के किराये का भुगतान करने की शर्त है। सरकार हेलीकाप्टर का 40 घंटे और हवाई जहाज का 60 घंटे का फिक्स किराया कंपनी को देती है, पर इतने घंटे भी सेवा नहीं ले पा रही है। हेलीकाप्टर का किराया प्रतिघंटे सवा तीन लाख रुपये और हवाई जहाज का दो लाख रुपये है। यानी एक करोड़ 30 लाख रुपये हेलीकाप्टर और एक करोड़ 20 लाख रुपये हवाई जहाज का किराया सरकार प्रति माह चुका रही है, जबकि प्रतिमाह औसतन पांच रोगी ही योजना का लाभ उठा रहे हैं। लाभ उठाने वालों में सबसे ज्यादा रीवा के कुल 85 मरीजों ने अब तक योजना का लाभ उठाया है, जिनमें सबसे ज्यादा रीवा के 30 (35 प्रतिशत) रोगी हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि रीवा उप मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा राजेन्द्र शुक्ल का गृह जिला है। वह यहां बैठकों और आम सभाओं में सेवा का उपयोग करने के लिए अपील करते रहे हैं। इस तरह लगभग 16 माह में प्रदेश के 55 में से 17 जिलों के रोगियों को ही इसका लाभ मिला है। यह स्थिति तब है जब खुद मुख्यमंत्री इस सेवा का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार करने के लिए अधिकारियों को निर्देशित करते रहे हैं। ऐसे ले सकते हैं मदद आयुष्मान योजना के हितग्राहियों के लिए यह सेवा निश्शुल्क मिलती है। अन्य मरीजों को निर्धारित दर पर भुगतान करना होता है। जरूरत के मुताबिक, रोगी को एक शहर से दूसरे शहर या दूसरे राज्य एयरलिफ्ट किया जाता है। दूसरे राज्य के अस्पताल भेजने के लिए सीएमएचओ की अनुशंसा पर कलेक्टर अनुमति देते हैं। रीवा दूर होने के कारण लोग इस सेवा की मदद ले रहे हैं     भौगोलिक रूप से रीवा दूर होने के कारण त्वरित उपचार के लिए लोग इस सेवा की मदद ले रहे हैं। दूसरा यह कि लोगों में वहां जागरूकता भी अच्छी है। अन्य जिलों के अधिकारियों को भी प्रचार-प्रसार के लिए लगातार कहा जा रहा है। – तरुण राठी, आयुक्त, लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा