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सुल्तानगंज विधानसभा: नीतीश कुमार की पकड़ आज भी मजबूत

सुल्तानगंज सुल्तानगंज विधानसभा सीट भागलपुर जिले में स्थित है…यह विधानसभा क्षेत्र बांका लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यह सीट साल 1951 से ही अस्तित्व में है। 2008 से पहले तक यह भागलपुर लोकसभा का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन 2008 में हुए परिसीमन के बाद यह क्षेत्र बांका लोकसभा के अंतर्गत आ गया। साल 1951 में पहली बार इस सीट पर चुनाव हुए और 1967 तक कांग्रेस का ही कब्जा रहा। 1951 में कांग्रेस के राश बिहारी लाल, 1957 में सरस्वती देवी तो 1962 में देबी प्रसाद महतो चुनाव जीते थे। 1967 में इस सीट पर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बी.पी.शर्मा विधायक चुने गए थे। 1969 और 1972 में इस सीट पर एक बार फिर से कांग्रेस ने कब्जा जमाया और राम रक्षा प्रसाद यादव लगातार दो बार विधायक चुने गए थे।   1977 में यह सीट जनता पार्टी के खाते में गई और जागेश्वर मंडल विधायक बने थे। 1980 और 1985 में भी कांग्रेस का ही कब्जा रहा। 1980 में नंद कुमार मांझी और 1985 में उमेश चंद्र दास विधायक चुने गए थे। 1990 और 1995 में यह सीट जनता दल के पास रही और फणींद्र चौधरी लगातार दो बार विधायक बने। साल 2000 में इस सीट पर समता पार्टी के गणेश पासवान विधायक चुने गए थे। 2005 में जेडीयू की टिकट पर सुधांशु शेखर भास्कर यहां से विधायक बने। वहीं 2010 और 2015 में लगातार दो बार यहां से जेडीयू उम्मीदवार सुबोध राय ने जीत हासिल की थी। 2020 में जेडीयू की तरफ से ललित नारायण मंडल ने फिर से सुल्तानगंज में तीर को निशाने पर ही मारा था।   वहीं 2020 के चुनाव में सुल्तानगंज सीट पर जेडीयू उम्मीदवार ललित नारायण मंडल ने जीत हासिल की थी। ललित नारायण मंडल को 72 हजार आठ सौ 23 वोट मिला था तो कांग्रेस उम्मीदवार ललन कुमार को 61 हजार दो सौ 58 वोट ही मिला था। इस तरह से ललित नारायण मंडल ने ललन कुमार को 11 हजार पांच सौ 65 वोट के अंतर से हरा दिया था। वहीं एलजेपी कैंडिडेट नीलम देवी 10 हजार दो सौ 22 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहीं थीं।   वहीं 2015 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर जेडीयू कैंडिडेट सुबोध राय ने जीत हासिल की थी। सुबोध राय ने बीएलएसपी के हिमांशु पटेल को 14 हजार 33 वोटों से हराया था। सुबोध राय को कुल 63 हजार तीन सौ 45 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर रहे हिमांशु पटेल को कुल 49 हजार तीन सौ 12 वोट मिले थे तो वहीं तीसरे स्थान पर रहे निर्दलीय कैंडिडेट ललन कुमार को कुल 14 हजार 73 वोट मिले थे।   वहीं 2010 में हुए विधानसभा चुनाव में सुल्तानगंज सीट पर जेडीयू उम्मीदवार सुबोध राय ने जीत हासिल की थी। सुबोध राय ने आरजेडी कैंडिडेट रामावतार मंडल को 4 हजार आठ सौ 45 वोट के अंतर से हराया था। सुबोध राय को कुल 34 हजार छह सौ 52 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर रहे रामावतार मंडल को कुल 29 हजार आठ सौ सात वोट मिले थे तो वहीं तीसरे स्थान पर रहे एलटीएसडी के ओमदत्त चौधरी को कुल 9 हजार 20 वोट ही मिले थे।   वहीं 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में सुल्तानगंज सीट पर जेडीयू कैंडिडेट सुधांशु शेखर भास्कर ने जीत हासिल की थी। सुधांशु शेखर भास्कर ने आरजेडी कैंडिडेट गणेश पासवान को 11 हजार छह सौ 87 वोटों से हराया था। सुधांशु शेखर भास्कर को कुल 48 हजार 63 वोट मिले थे, जबकि दूसरे नंबर पर रहे गणेश पासवान को कुल 36 हजार तीन सौ 76 वोट मिले थे तो वहीं तीसरे स्थान पर रहे सीपीआई कैंडिडेट विजय कुमार पासवान को कुल 6 हजार पांच सौ आठ वोट मिले थे।   सुल्तानगंज विधानसभा सीट के चुनावी नतीजों को तय करने में कुशवाहा, यादव, ब्राह्मण और मुस्लिम वोटरों की अहम भूमिका रही है। सुल्तानगंज सीट को जेडीयू का गढ़ माना जाता है…इसलिए इस बार तेजस्वी यादव को कुछ नया करना होगा। अगर तेजस्वी यादव ने सुल्तानगंज में कुछ नया दांव नहीं चला तो यहां फिर से ‘तीर’ निशाने पर लग सकता है।

भारत-पाक मैच पर उद्धव ठाकरे का बड़ा बयान, सड़क पर उतरने की चेतावनी

मुंबई  एशिया कप में भारत और पाकिस्तान के बीच 14 सितंबर को होने वाले क्रिकेट मैच को लेकर शिवसेना (UBT) चीफ उद्धव ठाकरे ने सड़क पर उतरने का ऐलान कर दिया है। उन्होंने कहा कि एक आतंकवादी देश के साथ मैच खेलने राष्ट्रीय भावना का अपमान है। उद्धव ठाकरे ने कहा कि शिवसेना के कार्यकर्ता पूरे महाराष्ट्र में सड़कों पर उतरेंगे और मैच का विरोध करेंगे। उद्धव ठाकरे ने कहा, हमारे सैनिक सीमा पर अपनी जान कुर्बान कर रहे हैं, इस स्थिति में क्या हमें पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलना चाहिए। उन्होंने आगे कहा, 'मेरे पिता (बालासाहेब ठाकरे) ने जावेद मियांदाद से कहा था कि जब तक पाकिस्तान से भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियां जारी रहेंगी, तब तक क्रिकेट नहीं खेला जाएगा।' एक दिन पहले ही आदित्य ठाकरे ने कहा था कि बीजेपी ने अपनी विचारधारा बदल दी है। उन्होंने कहा कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकता लेकिन क्रिकेट मैच कैसे हो सकता है। कांग्रेस की महाराष्ट्र इकाई ने इसे पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए लोगों के परिजनों और कर्तव्य निभाते हुए शहीद हुए सैनिकों का अपमान बताया। वहीं, शरद पवार के नेतृत्व वाली राकांपा (एसपी) ने कहा कि मैच की अनुमति देने से सरकार का दोहरा चरित्र उजागर हो गया है। आलोचना का जवाब देते हुए, महाराष्ट्र के मंत्री आशीष शेलार ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों को द्विपक्षीय राजनीतिक गतिरोधों से प्रभावित नहीं किया जा सकता। महाराष्ट्र कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत ने कहा कि इस क्रिकेट मैच की अनुमति देना एक कूटनीतिक विफलता है और पहलगाम आतंकवादी हमले में मारे गए लोगों के परिजनों और कर्तव्य निभाते हुए शहीद हुए सैनिकों का अपमान है। एनसीपी प्रवक्ता जितेंद्र आव्हाड ने कहा, ‘‘इस क्रिकेट मैच ने सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के दोहरे मानदंडों को उजागर कर दिया है, जिनकी राजनीति भारत-पाकिस्तान के इर्द-गिर्द घूमती है।’’ इस बीच, भाजपा मंत्री शेलार, जो एशिया क्रिकेट परिषद बोर्ड में बीसीसीआई के प्रतिनिधि भी हैं, ने शिवसेना (उबाठा) सांसद संजय राउत पर इस मुद्दे पर ‘‘भारत विरोधी’’ रुख अपनाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, ‘‘हमारा रुख हमेशा से स्पष्ट रहा है कि भारतीय क्रिकेट टीम पाकिस्तान का दौरा नहीं करेगी और पाकिस्तान की टीम भी भारत नहीं आएगी। हालांकि, हम अपनी टीम को किसी अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में खेलने या भाग लेने से नहीं रोक सकते। यह कैसा रुख है? यह उचित रुख नहीं है?’’ शेलार ने कहा, ‘‘जो लोग अब भारत के मैच खेलने का विरोध कर रहे हैं, उन्हें याद रखना चाहिए कि (दिवंगत शिवसेना संस्थापक) बालासाहेब ठाकरे ने अपने आवास पर मियांदाद की मेजबानी की थी।’’  

राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर बड़ा फैसला जल्द? BJP की सबसे बड़ी बाधा हुई दूर

नई दिल्ली भारतीय जनता पार्टी (BJP) कई महीनों से राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव को टालती आ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के साथ शीर्ष भाजपा नेतृत्व के तल्ख रिश्ते को माना जा रहा है। हालांकि, बीते कुछ महीनों से दोनों ही तरफ से संबंधों को सामान्य करने और दिखाने की कोशिशें की जा रही हैं। आरएसएस और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने ही इसकी जिम्मेदारी संभाली है। इसके बाद अब इस बात की संभावना जताई जा रही है कि भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम का ऐलान पार्टी कभी भी कर सकती है। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने आरएसएस की जरूरत को लेकर बयान दिया तो हर कोई अचरज में पड़ गया। सूत्रों का कहना है कि आरएसएस को भी यह बात नागवार गुजरी। इसका खामियाजा भगवा पार्टी को लोकसभा चुनाव में देखने को मिला, जब भाजपा 240 सीटों पर सिमट कर रह गई, जबकि उसने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान 'अबकी बार 400 पार' का नारा दिया था। कहा जाता है कि संघ के कार्यकर्ताओं ने इस चुनाव में अनमने ढंग से भाजपा का साथ दिया था। आपको बता दें कि नड्डा ने कहा था कि भाजपा को अब संघ की जरूरत नहीं रह गई है। 15 अगस्त को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किला से देश को संबोधित कर रहे थे, तब उन्होंने आरएसएस की तारीफ करते हुआ इसे दुनिया का सबसे बड़ा एनजीओ बताया। इसके बाद मोहन भागवत ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आरएसएस के एक कार्यक्रम में साफ शब्दों में कहा था कि राजनीति हो या समाज सेवा इसमें रिटायरमेंट की कोई उम्र नहीं होती है। इससे पहले संघ प्रमुख ने ही कहा था कि 75 साल की उम्र में लोगों को खुद से रिटायर हो जाना चाहिए। आपको बता दें कि इसी साल प्रधानमंत्री 75 साल के होने वाले हैं। आरएसएस की प्रशंसा करने वालों में प्रधानमंत्री मोदी ही अकेले नहीं हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमिता शाह ने भी हाल ही में कई मौकों पर आरएसएस की सराहना की है। उन्होंने साफ-साफ कहा है कि उन्हें स्वयंसेवक होने पर गर्व है। आरएसएस का कार्यकर्ता होना किसी भी कीमत पर निगेटिव पॉइंट नहीं हो सकता है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि किसी भी स्वयंसेवक को तब तक नहीं रुकना है जब तक कि भारत फिर से महान नहीं बन जाता है। भाजपा के दोनों दिग्गज नेताओं और आरएसएस चीफ के बयान से भाजपा और संघ के बीच रिश्ते सामान्य होने के संकेत मिल रहे हैं। अब इस बात की प्रबल संभावना है कि दोनों ही संगठन मिलकर जल्द ही भाजपा के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर अंतिम मुहर लगा सकते हैं। हालांकि संघ न कई मौकों पर कहा है कि सरकार या भाजपा के कार्यों में आरएसएस का हस्तक्षेप नहीं होता है। आरएसएस और भाजपा के बीच सामान्य हुए रिश्तों में कई दावेदारों के नाम की चर्चा होने लगी है। उनमें सबसे पहला नाम शिवराज सिंह चौहान का आता है, जो कि वर्तमान केंद्र सरकार में मंत्री हैं। वहीं, नितिन गडकरी के नाम पर भी अंदरखाने चर्चा होने लगी है। इसके अलावा, केंद्रीय मंत्री और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और घर्मेंद्र प्रधान का नाम भी रेस में शामिल होने की चर्चा है। भाजपा अक्सर अपने फैसलों से सियासी पंडितों को चौंकाती रही है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन बनता है।  

संपत्ति 242 करोड़, प्राइवेट जेट… फिर भी चर्चा में क्यों हैं विधायक संजय पाठक?

भोपाल  मध्य प्रदेश की राजनीति में संजय पाठक एक चर्चित चेहरा हैं। कटनी जिले की विजयराघवगढ़ विधानसभा सीट से विधायक संजय पाठक को प्रदेश के सबसे अमीर विधायकों में गिना जाता है। उनकी पहचान न केवल एक प्रभावशाली नेता के रूप में है, बल्कि अपार संपत्ति और आलीशान जीवनशैली के कारण भी वे सुर्खियों में रहते हैं। संपत्ति और आलीशान जीवन साल 2023 विधानसभा चुनाव में दाखिल एफिडेविट के अनुसार, संजय पाठक की कुल संपत्ति 242.09 करोड़ रुपये (BJP MLA Sanjay Pathak Net Worth) है। वे प्राइवेट जेट के मालिक भी हैं, जो उन्हें अन्य विधायकों से अलग बनाता है। 2022-23 में उनकी आय 3.9 करोड़ रुपये रही, जबकि उनकी पत्नी निधि पाठक की आय 4.02 करोड़ रुपये दर्ज की गई। हालांकि, अपार संपत्ति के बावजूद उनके ऊपर करीब 19 करोड़ रुपये का कर्ज भी है। राजनीतिक सफर विजयराघवगढ़ सीट से लगातार राजनीति कर रहे संजय पाठक का नाम क्षेत्र में मजबूत पकड़ रखने वाले नेताओं में आता है। उनकी सक्रियता और संगठन पर पकड़ ने उन्हें पार्टी में पहचान दिलाई। विवादों से घिरा नाम हाल ही में वे अवैध खनन से जुड़े मामले में चर्चा में आए। हाई कोर्ट के जज विशाल मिश्रा ने खुलासा किया कि पाठक ने उनसे फोन पर बातचीत करने की कोशिश की थी। इसके बाद जज ने खुद को मामले की सुनवाई से अलग कर लिया। इतना ही नहीं, पाठक के वकील अंशुमान सिंह ने भी केस से खुद को अलग कर लिया। 'मैं ये केस छोड़ रहा हूं…' उन्होंने साफ किया है कि मैंने कोर्ट को लिखा है कि आनंद माइनिंग कॉर्पोरेशन और निर्मला मिनरल्स, जिन दो कंपनियों के केस की मैं पैरवी कर रहा था, उनके किसी रिलेटिव ने जस्टिस मिश्रा को कॉल किया। इस बात का जस्टिस मिश्रा ने एक सितंबर के आदेश में जिक्र किया। इसकी वजह से मैं ये केस छोड़ रहा हूं और मैंने इस बारे में अपने क्लाइंट को बता दिया है।  

गहलोत का बयान: मणिपुर दौरे पर PM मोदी को पहले जाना चाहिए था

जयपुर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13 सितंबर को पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर जा रहे हैं, जिसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने औपचारिक करार दिया। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि प्रधानमंत्री को काफी पहले ही मणिपुर जाकर वहां के लोगों की सुध लेनी चाहिए। लेकिन, अफसोस, उन्होंने आज तक ऐसा करना जरूरी नहीं समझा और अब वो मणिपुर जा रहे हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि उनका दौरा कुछ नहीं, सिर्फ औपचारिकता भर है। मैं समझता हूं कि इस तरह के दौरे को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री सिर्फ चार घंटे के लिए मणिपुर जा रहे हैं। मैंने दो महीने पहले गृह मंत्री अमित शाह को कहा भी था कि वे मणिपुर जाएं और वहां की स्थिति के बारे में समझने का प्रयास करें। कांग्रेस नेता ने कहा कि सबसे पहले आपको यह समझना होगा कि किसी भी राज्य में प्रधानमंत्री के दौरे का बहुत ही महत्व होता है। आज मणिपुर की स्थिति वैश्विक मोर्चे पर चर्चा का विषय बनी हुई है। अब वहां की स्थिति किसी से छुपी हुई नहीं है। वहीं, अब अगर मणिपुर से हिंसा की खबर सामने आई है, तो इससे यह साफ जाहिर होता है कि यह प्रधानमंत्री मोदी के दौरे का जवाब है। मैं कहता हूं कि अगर प्रधानमंत्री मोदी काफी पहले ही मणिपुर दौरे पर जाते, तो आज इस तरह की स्थिति ही पैदा नहीं होती। लेकिन, यह दुख की बात है कि आज तक प्रधानमंत्री ने कभी भी मणिपुर की स्थिति की सुध लेने की जरूरत नहीं समझी। शायद इसी वजह से वहां के लोगों में प्रधानमंत्री के आगमन को लेकर गुस्सा है। साथ ही, अशोभनीय टिप्पणी के संबंध में सवाल किए जाने पर कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने कहा कि सभी लोग एक-दूसरे की माता का सम्मान करते हैं। मैं कहता हूं कि निसंदेह राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी की मां का सम्मान करते हैं। विपक्ष के नेता पक्ष के नेताओं की मां का सम्मान करते हैं और पक्ष के नेता भी विपक्ष के नेताओं का सम्मान करते हैं। हर माता का सम्मान इस देश में होना चाहिए। मां तो मां होती है। मां की जगह इस दुनिया में कोई भी नहीं ले सकता है। मैं समझता हूं कि अब मां जैसे विषय को राजनीतिक विषय बनाना उचित नहीं है। इसके अलावा, उन्होंने नेपाल की स्थिति को चिंता का विषय बताया और कहा कि इससे पहले भी कई देश, जिनमें श्रीलंका और अफगानिस्तान जैसे कई देश शामिल हैं, जहां पर राजनीतिक अस्थिरता हमें देखने को मिल चुकी है, ऐसे में अगर अब मौजूदा समय में हमारे पड़ोसी देश नेपाल में इस तरह की हिंसात्मक स्थिति बनी हुई है, तो निसंदेह हमें इसके समाधान का मार्ग तलाशना होगा। उन्होंने कहा कि हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहां देश की जनता को अपने नेतृत्व पर भरोसा है। इसके अलावा, कई मामलों में भारत ने वैश्विक मंच पर अहम भूमिका निभाई है। ऐसी स्थिति में हमें इस बात की नैतिक जिम्मेदारी लेनी होगी कि आखिर नेपाल में हमारे रहने के बावजूद ऐसा कैसे हो गया। आखिर इसके पीछे कौन साजिश कर रहा है? कौन मुल्क ऐसा कर रहा है? इस बारे में पता होना चाहिए। इसकी जानकारी निश्चित तौर पर विदेश मंत्रालय के पास है और होनी चाहिए।

पुरानी रिपोर्ट खारिज, सिद्धारमैया ने नवरात्र में की नई जातीय गणना की घोषणा

बेंगलुरु कांग्रेस शासित कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने शुक्रवार को ऐलान किया कि राज्य में 22 सितंबर से 7 अक्टूबर के बीच दशहरा की छुट्टियों के दौरान एक नया सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण कराया जाएगा। उन्होंने कहा कि 2015 में की गई जाति जनगणना को सरकार ने नामंजूर कर दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि पिछली जनगणना के आंकड़े एक दशक पुराने हो चुके हैं, इसलिए समाज की मौजूदा स्थिति को समझने के लिए नई जाति जनगणना जरूरी हो गई है। मुख्यमंत्री ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, "समाज में कई धर्म और जातियाँ हैं। विविधता और असमानता भी है। संविधान कहता है कि सभी के साथ समान व्यवहार होने चाहिए और सामाजिक न्याय होना चाहिए।" उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि नया सर्वेक्षण असमानताओं को दूर करने और लोकतंत्र की मज़बूत नींव रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। 2 करोड़ परिवारों को किया जाएगा शामिल कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा किए जाने वाले इस सर्वे में राज्य के लगभग 2 करोड़ परिवारों के तहत आनेवाली करीब 7 करोड़ पूरी आबादी को शामिल किए जाने की उम्मीद है। इस सर्वे के दौरान हरेक परिवार को एक विशिष्ट घरेलू पहचान पत्र (UID) स्टिकर दिया जाएगा। इनमें से अब तक 1.55 करोड़ घरों पर ये स्टिकर चिपकाए जा चुके हैं। परिवारों की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षिक स्थिति का विवरण एकत्र करने के लिए 60 प्रश्नों वाली एक प्रश्नावली भी तैयार की गई है। हरेक को 20,000 रुपये तक का मानदेय रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वेक्षण के लिए दशहरा की छुट्टियों के दौरान 1.85 लाख सरकारी शिक्षकों को तैनात किया जाएगा। इस काम के लिए हरेक को 20,000 रुपये तक का मानदेय मिलेगा, जिससे शिक्षकों के पारिश्रमिक के लिए कुल आवंटन 325 करोड़ रुपये हो जाएगा। राज्य ने इस पूरी प्रक्रिया के लिए 420 करोड़ रुपये निर्धारित किए हैं, जो 2015 की जाति जनगणना के दौरान खर्च किए गए 165 करोड़ रुपये से ढाई गुना से भी ज़्यादा है। बिजली मीटर के नंबरों की होगी जियो-टैगिंग रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वे के दौरान हरेक घर को बिजली मीटर के नंबरों से जियो-टैग किया जाएगा, और मोबाइ नंबों को राशन कार्ड और आधार से जोड़े जाएँगे। जो लोग सर्वे कर्मियों को अपनी जाति का विवरण नहीं देना चाहते, उनके लिए एक समर्पित हेल्पलाइन (8050770004) पर कॉल करके या ऑनलाइन जानकारी देने के विकल्प भी उपलब्ध कराए गए हैं। दिसंबर 2025 तक आएगी रिपोर्ट मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने नागरिकों से पूर्ण सहयोग देने का आग्रह किया। मधुसूदन नाइक की अध्यक्षता वाले आयोग को वैज्ञानिक और समावेशी तरीके से सर्वेक्षण करने का काम सौंपा गया है। उम्मीद है कि आयोग अपनी अंतिम रिपोर्ट दिसंबर 2025 तक सौंप देगा। बता दें कि इससे पहले कर्नाटक पिछड़ा वर्ग आयोग ने सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण 2015 रिपोर्ट तैयार की थी। इसे 17 अप्रैल को सिद्धारमैया कैबिनेट में पेश किया जाना था। लेकिन उससे पहले ही यह लीक हो गई थी, जिस पर विवाद मच गया था और रिपोर्ट पेश नहीं हो पाई। पिछली जातीय गणना पर उठे थे सवाल राज्य के सबसे प्रभावशाली वोक्कालिगा और वीरशैव-लिंगायत समुदाय ने भी उस सर्वे पर सवाल उठाते हुए सिद्धारमैया सरकार को कठघरे में खड़ा किया था। आयोग ने बताया था कि उसने राज्य की 6.35 करोड़ आबादी में से 5.98 करोड़ लोगों के बीच सर्वे कर ये रिपोर्ट बनाई है। इन दोनों समुदायों ने आरोप लगाया था कि उनकी आबादी घटाकर बताई गई है। कांग्रेस सरकार का महीने भर में तीसरा दांव दरअसल, कर्नाटक में अगले कुछ महीनों में स्थानीय निकाय चुनाव होने हैं। उससे पहले इस सर्वे को सिद्धारमैया सरकार का एक दांव माना जा रहा है। एक तरफ इस सर्वे से वह वोक्कालिगा और वीरशैव-लिंगायत समुदाय की नाराजगी दूर करने जा रहे हैं तो दूसरी तरफ राज्य के अन्य ओबीसी, SC/ST वर्ग को भी साधने की कोशिशों में जुटे हैं। इससे पहले वह इसी महीने अल्पसंख्यक महिलाओं के लैंगिक सर्वेक्षण का भी आदेश दे चुके हैं। इसी महीने वह स्थानीय चुनाव बैलेट पेपर से कराने की घोषणा कर चुके हैं, जिसे राज्य चुनाव आयोग ने माना लिया है। इस तरह महीने भर में यह उनका तीसरा दांव है। बड़ी बात यह है कि कांग्रेस शासित राज्य में ये कवायद बिहार चुनाव से पहले कराई जा रही है। कांग्रेस इसके जरिए बिहार चुनावों में भी सियासी संदेश देने की कोशिश कर रही है।  

राहुल गांधी के गैरहाजिरी पर BJP का हमला, उपराष्ट्रपति शपथग्रहण से चूके राहुल

नई दिल्ली  भाजपा ने गुरुवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर भारत के 15वें उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन के शपथग्रहण समारोह से अनुपस्थित रहने को लेकर तीखा हमला बोला है। भाजपा प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी ने संवैधानिक परंपराओं का बहिष्कार किया है और वे भारतीय लोकतंत्र और संविधान का अपमान कर रहे हैं। भंडारी ने एक्स पर लिखा, “राहुल गांधी को भारतीय संविधान से नफरत है! राहुल गांधी को भारतीय लोकतंत्र से नफरत है! कुछ दिन पहले वे लाल किले पर स्वतंत्रता दिवस समारोह से गायब थे और आज उपराष्ट्रपति के शपथग्रहण से। क्या ऐसा व्यक्ति, जो संवैधानिक अवसरों को नजरअंदाज करता है, सार्वजनिक जीवन के योग्य है?” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राहुल गांधी के पास मलेशिया में छुट्टियां बिताने का समय है, लेकिन संवैधानिक कार्यक्रमों में शामिल होने का नहीं है। उन्हें भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरनाक करार दिया। कांग्रेस नेता उदित राज ने कहा कि हर संवैधानिक कार्यक्रम में विपक्ष के नेता की उपस्थिति अनिवार्य नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष ने पार्टी का प्रतिनिधित्व किया। भाजपा ही संविधान को कमजोर कर रही है, जबकि राहुल गांधी उसे बचाने के लिए लड़ रहे हैं। भाजपा के सहयोगी शिवसेना के नेता और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी विपक्ष की अनुपस्थिति पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि राजनीतिक मतभेद संवैधानिक कार्यक्रमों पर हावी नहीं होने चाहिए। जानकारी के अनुसार राहुल गांधी शपथग्रहण में शामिल नहीं हो सके क्योंकि वे गुजरात में पार्टी कार्यक्रम के लिए रवाना हुए थे। हालांकि, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे समारोह में मौजूद थे। आपको बता दें कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई। उन्होंने विपक्ष समर्थित उम्मीदवार बी. सुधर्शन रेड्डी को 152 वोटों से हराया। राधाकृष्णन इससे पहले महाराष्ट्र के राज्यपाल रह चुके हैं और अब वे 11 सितंबर 2030 तक इस पद पर रहेंगे। पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी समारोह में मौजूद रहे।  

उद्धव ठाकरे पर भरोसा नहीं! मंत्री नितेश राणे ने शिवसेना (UBT)-MNS गठबंधन पर किया कटाक्ष

मुंबई  महाराष्ट्र के मंत्री नितेश राणे ने शिवसेना (यूबीटी) के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर बड़ा हमला बोला. उन्होंने उद्धव ठाकरे को अविश्वासनीय व्यक्ति करार देते हुए कहा कि उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता. इसके साथ ही मनसे-शिवसेना (उद्धव) गठबंधन पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि कौन किसके साथ जाता है, यह उनके दल का विषय है. राणे ने आरोप लगाया कि मातोश्री पर गए कांग्रेस नेताओं को खुद उद्धव ठाकरे ने बाहर निकाला था. उन्होंने सवाल उठाया कि क्या कांग्रेस, मनसे उम्मीदवार को स्वीकार करेगी? महाराष्ट्र की सियासत में इंडिया गठबंधन में मनसे को भी शामिल करने की बात चल रही है. ऐसी अटकलें हैं कि निकाय चुनाव में मनसे के नेता राज ठाकरे इंडिया गठबंधन की पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे. जो औरंगजेब की बात करेगा, उसे वापस भेजा जाएगा मालवणी/धाराशिव में औरंगजेब नारेबाजी पर नितेश राणे ने कहा, “हमारा देश हिंदू राष्ट्र है. यहां यदि कोई औरंगजेब का उदारीकरण करेगा, तो उन्हें पाकिस्तान भेजा जाएगा.” हैदराबाद गजट पर चुनौती पर उन्होंने कहा, “लोकतंत्र में हर किसी को अपनी बात रखने की आजादी है. किसी को भी कोर्ट जाने का अधिकार है.” रश्मी शुक्ला-नाना पटोले पर राणे ने कहा, “रश्मी शुक्ला के खिलाफ साजिश की जा रही है, यह हम पहले दिन से कह रहे हैं. अब सबके सामने आ गया है.” उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा कि “नाना पटोले कितनी बार मुंह के बल गिरेंगे, इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया जाना चाहिए.” ओबीसी आरक्षण से नहीं होगी कोई छेड़छाड़ ओबीसी आरक्षण पर आश्वासन पर राणे ने कहा कि ओबीसी आरक्षण से कोई छेड़छाड़ नहीं होगी. मंत्री नितेश राणे ने कोंकण में हुई बैठक का जिक्र करते हुए कहा कि इस मीटिंग का मुख्य उद्देश्य कोंकण की इकोनॉमी को मजबूत करना है. इस चर्चा में कोंकण को काजू, आम और मछली का एक प्रमुख केंद्र बनाने और जयगढ़ बंदरगाह के विकास पर चर्चा हुई. इसके साथ ही जल परिवहन से जोड़ने के लिए एक डीपीआर तैयार करने पर भी बैठक में विचार किया गया.  

बीना की विधायक निर्मला सप्रे को नया झटका, उमंग सिंघार पहुंचे हाईकोर्ट

बीना बीना से विधायक निर्मला सप्रे की मुश्किलें कम होती नजर नहीं आ रही है,क्योंकि अब नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने हाईकोर्ट जबलपुर में याचिका दायर कर दी है। विधायक निर्मला सप्रे की सदस्यता रद्द कराने के लिए सिंघार ने हाईकोर्ट जबलपुर का रुख कर लिया है आपको बता निर्मला सप्रे सागर की बीना सीट से कांग्रेस के टिकट पर साल 2023 में विधानसभा चुनाव जीतीं थीं लेकिन साल 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री मोहन यादव की मौजूदगी में भगवा पार्टी में शामिल हो गई थीं।  उमंग सिंघार ने जो याचिका लगाई है उसमें मध्य प्रदेश सरकार, विधानसभा प्रमुख सचिव, विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र तोमर के साथ निर्मला सप्रे को पार्टी बनाया है। पहले  उमंग सिंघार की ओर से सप्रे की सदस्यता रद्द करने को लेकर इंदौर खंडपीठ में याचिका लगाई थी, लेकिन इंदौर खंडपीठ ने याचिका खारिज करते हुए जबलपुर हाईकोर्ट में जाने की सलाह दी थी। अब नेता विपक्ष ने जबलपुर हाइकोर्ट में याचिका लगा दी है। मामले पर जल्द ही सुनवाई की तारीख तय होगी।

गौशाला मुद्दे पर जीतू पटवारी का सीधा वार, सीएम मोहन यादव को 7 दिन का अल्टीमेटम

इंदौर   मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष जीतू पटवारी ने मुख्यमंत्री मोहन यादव को सीधी चुनौती दी है। उन्होंने कहा कि प्रदेशभर में सड़क दुर्घटनाओं में रोजाना सैकड़ों गायों की मौत हो रही है। सरकार की जिम्मेदारी है कि गौशालाओं को व्यवस्थित किया जाए। पटवारी ने कहा है कि ‘मैं मुख्यमंत्री को चुनौती देता हूं कि एक सप्ताह के भीतर सभी गौशालाओं को दुरुस्त किया जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो मैं खुद निरीक्षण करूंगा और उसका वीडियो बनाकर सार्वजनिक करूंगा।’ उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार गोरक्षा के नाम पर सिर्फ राजनीति कर रही है, जबकि सड़कों पर बेसहारा मवेशी रोज़ दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे हैं।