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राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि: CM हेमंत व राज्यपाल ने महात्मा गांधी की प्रतिमा पर चढ़ाया फूल

रांची झारखंड में गांधी जयंती के अवसर पर राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन एवं विधायक कल्पना सोरेन ने मोरहाबादी स्थित बापू वाटिका में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री सोरेन ने कहा कि महात्मा गांधी के विचार, उनकी अहिंसा एवं सत्य की राह पर चलने की प्रेरणा आज भी पूरे देश और विश्व के लिए मार्गदर्शक है। मुख्यमंत्री ने कहा कि आज का दिन भारत के इतिहास का स्वर्णिम दिवस है। गांधी जी का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी शिक्षा और सिद्धांतों ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी बल्कि आजादी के बाद भी लोकतंत्र को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि ऐसे महान विभूतियों के आदर्श और त्याग ही हैं जिनकी वजह से आज भारत एक सशक्त और गौरवशाली लोकतंत्र के रूप में दुनिया के सामने खड़ा है। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर समस्त राज्यवासियों से आह्वान किया कि हम सभी अपने जीवन में पूरी संजीदगी से बापू के सिद्धांतों को अपनाएं और समाज में शांति, भाईचारा एवं एकता के माहौल को और मजबूती दें। मुख्यमंत्री सोरेन ने आज के दिन देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती पर भी उन्हें नमन किया। उन्होंने कहा कि शास्त्री जी सादगी, ईमानदारी एवं कर्मठता की मिसाल थे। उनके दिए गए नारे 'जय जवान, जय किसान' आज भी देशवासियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उन्होंने कहा कि शास्त्री जी के जीवन से हमें कर्तव्यपरायणता, देशभक्ति और जनसेवा की सीख मिलती है, जिसे आत्मसात कर हम झारखंड और भारत को और सशक्त बना।

तेजस्वी की उम्मीदों पर पानी फेरने को तैयार कांग्रेस? बिहार की राजनीति में बढ़ा तनाव

पटना सारा श्रृंगार किया पर ‘घेघा’ बिगाड़ दिया…बिहार के ग्रामीण अंचलों में ये कहावत काफी लोकप्रिय है. इसका उपयोग वैसे संदर्भों में किया जाता है जब ‘अज्ञानता वश’ किसी के पूरे परिश्रम पर पानी फिर जाता है. बिहार चुनाव के संदर्भ में क्या महागठबंधन के साथ यही कुछ होने जा रहा है? दरअसल, वोट चोरी और बिहार एसआईआर के मुद्दे पर जिस तरह से राहुल गांधी ने आक्रामक रूप दिखाया और एनडीए सरकार के विरुद्ध तमाम माहौल बनाया, क्या यह बिहार में फलीभूत होता हुआ दिख रहा है? 16 अगस्त से लेकर 3 सितंबर तक राहुल गांधी ने बिहार की यात्रा भी की, तेजस्वी यादव को भी साथ लिया और पूरी आक्रामकता से जदयू-भाजपा सरकार पर जोरदार प्रहार भी किए, लेकिन इसका परिणाम क्या हुआ? टाइम्स नाउ और जेवीसी की ताजा चुनावी सर्वे रिपोर्ट इसकी परतें खोलती है जो कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है! कांग्रेस की सियासी जमीन और खिसकी दरअसल कांग्रेस ने बिहार में कांग्रेस की मिट्टी पलीद हो जाने की तस्वीर इस सर्वे में दिखाई गई है. खास बात यह कि बीते 2020 के चुनाव से भी बदतर नतीजे कांग्रेस के लिए इस ताजा सर्वे में दिखाए जा रहे हैं. सर्वेक्षण से पता चलता है कि कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी का ‘वोट चुराने’ का अभियान मतदाताओं को रास नहीं आया है और 52 प्रतिशत लोगों ने विशेष जांच के आरोपों को निराधार बता दिया है. खास बात तो यह है कि सीटों के आंकड़े ऐसे हैं जो कांग्रेस की सियासी जमीन ही उसके पैरों तले से खिसका देने वाली है. नीतीश-तेजस्वी की टक्कर में कांग्रेस गुम! बता दें कि बिहार चुनाव 2025 जनमत सर्वेक्षण में जेवीसी पोल के अनुसार, इस साल नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में जनता दल (यूनाइटेड) को 53 सीटें मिलने की उम्मीद है. दूसरी ओर, भाजपा को 71 सीटें मिलने की संभावना है, जबकि राजद को 74 सीटें मिलने की उम्मीद है. यानी राजद और भाजपा बराबरी की टक्कर में है और पिछले चुनाव की तुलना में जदयू भी बढ़ता हुआ दिख रहा है और 10 सीटें अधिक आने का अनुमान है. लेकिन, सवाल कांग्रेस को लेकर है कि आखिर देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का बिहार में क्या होने वाला है? सर्वे की बड़ी तस्वीर, कांग्रेस की कमजोर नींव बता दें कि ओपिनियन पोल में सीटों की संख्या के मामले में एनडीए महागठबंधन पर मज़बूत बढ़त बनाए हुए है. जेवीसी पोल के अनुसार, एनडीए को 131-150 सीटें मिलने की उम्मीद है, जिसमें भाजपा को 66-77 सीटें, जेडी(यू) को 52-58 सीटें और एनडीए के अन्य सहयोगियों को 13-15 सीटें मिल सकती हैं. वहीं, सर्वेक्षण में महागठबंधन के लिए अनुमान लगाया गया है कि राजद को 57-71 सीटें मिल सकती हैं, उसके बाद कांग्रेस को 11-14 सीटें और अन्य को 13-18 सीटें मिल सकती हैं. इस तरह विपक्षी गठबंधन की कुल सीटों की संख्या 81-103 हो जाती है. सीएम फेस की रेस में तेजस्वी से आगे नीतीश प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी को 4-6 सीटें मिलने का अनुमान है, जबकि एआईएमआईएम, बसपा और अन्य को 5-6 सीटें मिलने का अनुमान है. सर्वेक्षण की सबसे खास बात यह है कि ये ओपिनियन पोल नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के लिए सकारात्मक संदेश दे रहे हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी पार्टी और बिहार में अपना जनाधार खोने की अफवाहों के विपरीत, बिहार चुनाव से पहले एक नए सर्वेक्षण से पता चलता है कि जेडीयू को 2020 की तुलना में अधिक सीटें मिलने की संभावना है. नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे पसंदीदा नेता बनकर उभरे हैं. चुनावी समीकरण और वोट शेयर का गणित जेवीसी पोल के अनुसार, इस साल नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में जनता दल (यूनाइटेड) को 53 सीटें मिलने की उम्मीद है। यह 2020 की तुलना में दस सीटें ज़्यादा है और इस साल अगस्त में किए गए सर्वेक्षण के अपने अनुमान से लगभग दोगुनी है. पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा और राजद ने क्रमशः 74 और 75 सीटें जीती थीं. वोट शेयर की बात करें तो एनडीए को 41-45 प्रतिशत वोट मिलने की उम्मीद है, जबकि महागठबंधन को 37-40 प्रतिशत वोट मिलने का अनुमान है. बिहार चुनाव में प्रशांत किशोर का एक्स-फैक्टर जेवीसी सर्वे के अनुसार, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी, जिसे कई लोग आगामी चुनावों में ‘एक्स-फैक्टर’ मानते हैं, 10-11 प्रतिशत वोट शेयर के साथ अच्छा प्रदर्शन कर सकती है. दूसरी ओर, कांग्रेस को एक और झटका लग सकता है. मुख्यमंत्री के सवाल पर, अधिकांश उत्तरदाताओं ने नीतीश को प्राथमिकता दी, 27 प्रतिशत ने उन्हें वोट दिया. राजद के तेजस्वी यादव 25 प्रतिशत वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे. इसके बाद प्रशांत किशोर (15%), चिराग पासवान (11%) और सम्राट चौधरी (8 प्रतिशत वोट) हैं. राहुल की रणनीति पर सवाल, तेजस्वी की टेंशन राहुल गांधी ने वोट चोरी और एसआईआर मुद्दे पर जमकर आक्रामकता दिखाई, लंबा दौरा किया, तेजस्वी यादव को साथ लिया और एनडीए सरकार को घेरा भी. लेकिन, सर्वे बताता है कि मतदाताओं को यह रणनीति रास नहीं आई. उल्टे, कांग्रेस की सियासी ज़मीन और खिसकती दिख रही है. राहुल गांधी की रणनीति को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. सवाल यह भी कि क्या बिहार के चुनावी रण में कांग्रेस फिर वही गलती दोहराने जा रही है जो राजद और तेजस्वी यादव के लिए सेटबैक साबित होने जा रही है. जाहिर है बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर आए ताज़ा जेवीसी सर्वे ने कांग्रेस की चिंता और गहरी कर दी है.  

गठबंधन की सियासत में कांग्रेस की चाल बदलती, विवादित बिल पर अचानक बदला रुख

नई दिल्ली बिहार चुनाव से पहले विपक्षी एकता बनाने की कोशिश और इंडिया गठबंधन की एकजुटता का संदेश देने की कोशिशों के तहत मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने अपने पुराने रुख में बदलाव किया है। इसी कड़ी में कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के अंदर सभी साथी दलों के बीच आम सहमति बनाने की कोशिश में पीएम-सीएम को हटाने संबंधी 130वें संविधान संसशोधन बिल समेत कुल तीन विधेयकों पर बनी संयुक्त संसदीय समिति का बहिषाकार करने का फैसला किया है। यह वही बिल है, जिसमें प्रावधान किया गया है कि 30 दिनों की जेल की सज़ा काट रहे प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को स्वतः बर्खास्त कर दिया जाएगा। हालाँकि, कांग्रेस का यह फैसला तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आप और शिवसेना द्वारा जेपीसी के बहिष्कार की घोषणा के बाद आया है। दरअसल, कांग्रेस भ्रष्टाचार का ठप्पा लगाए जाने के डर से अब तक जेपीसी से बाहर रहने के फैसले से हिचकिचा रही थी। कांग्रेस के अलावा दूसरे प्रमुख विपक्षी दलों यानी डीएमके, एनसीपी और वाम दलों की भी JPC में भागीदारी भी संदिग्ध है। इससे इस बात की संभावना प्रबल हो गई है कि अब पूरा विपक्ष इस मुद्दे पर एकजुट हो गया है और जेपीसी का बहिष्कार करने जा रहा है। बता दें कि संसद के मॉनसून सत्र के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इन विधेयकों को संसद में पेश किया था, जिसे बाद में सदन ने संयुक्त संसदीय समिति को जांच के लिए भेज दिया था। कांग्रेस का क्या तर्क था? कांग्रेस सूत्रों के हवाले से TOI की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पार्टी ने जेपीसी से दूर रहने का औपचारिक फैसला ले लिया है और जल्द ही लोकसभा अध्यक्ष को इस बारे में सूचित किया जाएगा। पहले कांग्रेस इस तर्क के साथ जेपीसी में शामिल होने को तैयार हुई थी कि सरकार को इस समिति में मनमानी करने की पूरी छूट नहीं दी जा सकती लेकिन इस विचार पर विपक्षी एकता भारी पड़ी और अब कांग्रेस ने उन चारों दलों का साथ देने का फैसला किया, जो पहले ही दिन से JPC का बहिष्कार कर रहे थे। केसी वेणुगोपाल ने दिए थे संकेत कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने भी इससे पहले इस बात के संकेत दिए थे कि कांग्रेस इंडिया गठबंधन के साथी दलों के बीच इस मुद्दे पर आम सहमति बनाने की कोशिश करेगी और मिलकर ही सामूहिक फैसला लेगी। बता दें कि जब 30 अगस्त को लोकसभा में यह बिल पेश किया गया था, तब विपक्षी दलों ने सदन में खूब हंगामा मचाया था। बड़ी बात यह भी है कि तीनों विधेयकों को जेपीसी को सौंपे जाने के फैसले की घोषणा के लगभग एक महीने बाद भी लोकसभा अध्यक्ष जेपीसी की घोषणा नहीं कर पाए हैं।

संस्कृत हमारी विरासत का आधार, इसे संरक्षित करना सबकी जिम्मेदारी : मुख्यमंत्री

रायपुर भारतीय संस्कृति की आत्मा संस्कृत में निहित है, जो हमें विश्व पटल पर एक विशिष्ट पहचान प्रदान करती है। संस्कृत भाषा व्याकरण, दर्शन और विज्ञान की नींव है, जो तार्किक चिंतन को बढ़ावा देती है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने आज राजधानी रायपुर के संजय नगर स्थित सरयूपारीण ब्राह्मण सभा भवन में आयोजित विराट संस्कृत विद्वत्-सम्मेलन को संबोधित करते हुए यह बात कही।  मुख्यमंत्री साय ने कहा कि संस्कृत शिक्षा आधुनिक युग में भी प्रासंगिक और उपयोगी है। संस्कृत भाषा और साहित्य हमारी विरासत का आधार हैं, जिन्हें हमें संरक्षित और संवर्धित करना चाहिए।  मुख्यमंत्री साय ने कहा कि देववाणी संस्कृत पर चर्चा के साथ यह सम्मेलन भारतीय संस्कृति, संस्कार और राष्ट्र को सुदृढ़ बनाने का एक महान प्रयास है। मुख्यमंत्री साय ने संस्कृत भाषा के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए संस्कृत भारती छत्तीसगढ़ और सरयूपारीण ब्राह्मण सभा छत्तीसगढ़ द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना की तथा उन्हें बधाई और शुभकामनाएँ दीं। मुख्यमंत्री साय ने कहा कि आधुनिक शिक्षा में संस्कृत भाषा को शामिल करने से विद्यार्थियों का बौद्धिक विकास सुनिश्चित होगा। संस्कृत में वेद, उपनिषद और पुराण जैसे ग्रंथों का विशाल भंडार है, जो दर्शन, विज्ञान और जीवन-मूल्यों का संदेश देते हैं। वेदों में वर्णित आयुर्वेद, गणित और ज्योतिष आज भी प्रासंगिक हैं और शोध का विषय हो सकते हैं। इन ग्रंथों में कर्म, ज्ञान और भक्ति के सिद्धांत स्पष्ट रूप से प्रतिपादित हैं, जो आधुनिक जीवन में शांति और संतुलन ला सकते हैं।ऐसे में संस्कृत शिक्षा आधुनिक युग में भी उतनी ही प्रासंगिक और उपयोगी है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा कि वेदों और उपनिषदों के ज्ञान को अपनाकर हम अपनी विरासत को संजोने के साथ-साथ अपने जीवन को भी समृद्ध बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमें युवाओं को संस्कृत साहित्य से जोड़ने के लिए प्रेरित करना होगा, ताकि वे इस ज्ञान को नई पीढ़ी तक पहुँचा सकें। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि तकनीक के माध्यम से संस्कृत शिक्षा को आकर्षक और प्रासंगिक बनाया जा सकता है। राज्य में संस्कृत विद्वानों और शिक्षकों की सक्रिय भागीदारी से इस दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकते हैं। उन्होंने आह्वान किया कि इस सम्मेलन के माध्यम से हमें संस्कृत विद्या के प्रचार-प्रसार और अगली पीढ़ी को जोड़ने का संकल्प लेना चाहिए। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री साय ने सरयूपारीण ब्राह्मण सभा, छत्तीसगढ़ के प्रचार पत्रक का विमोचन भी किया। विराट संस्कृत विद्वत्-सम्मेलन का आयोजन संस्कृत भारती छत्तीसगढ़ एवं सरयूपारीण ब्राह्मण सभा छत्तीसगढ़ के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।  सम्मेलन को संबोधित करते हुए संस्कृत भारती के प्रांताध्यक्ष डॉ. दादू भाई त्रिपाठी ने कहा कि इतिहास में ऐसे अनेक प्रमाण मिलते हैं, जिनसे सिद्ध होता है कि एक समय संस्कृत जनभाषा के रूप में प्रचलित थी। छत्तीसगढ़ी भाषा का संस्कृत से सीधा संबंध है। छत्तीसगढ़ी में पाणिनि व्याकरण की कई धातुओं का सीधा प्रयोग होता है। उन्होंने यह भी बताया कि सरगुजा क्षेत्र में सर्वाधिक आदिवासी विद्यार्थी संस्कृत की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। मुख्यमंत्री साय ने कार्यक्रम में सरयूपारीण ब्राह्मण समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान देने वाले व्यक्तियों को सम्मानित किया। इनमें गठिया रोग विशेषज्ञ डॉ. अश्लेषा शुक्ला, उत्कृष्ट तैराक अनन्त द्विवेदी तथा पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सच्चिदानंद शुक्ला शामिल थे। सम्मेलन को दंडी स्वामी डॉ. इंदुभवानंद महाराज, सरयूपारीण ब्राह्मण सभा छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष डॉ. सुरेश शुक्ला और अखिल भारतीय संस्कृत भारती शिक्षण प्रमुख डॉ. श्रीराम महादेव ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर डॉ. सतेंद्र सिंह सेंगर, अजय तिवारी, बद्रीप्रसाद गुप्ता सहित बड़ी संख्या में संस्कृत शिक्षकगण, सामाजिक प्रतिनिधि और गणमान्यजन उपस्थित थे।