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ऋतिक रोशन के पर्सनैलिटी राइट्स : दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला, ई-कॉमर्स और सोशल प्लेटफॉर्म्स से हटाने होंगे पोस्ट

नई दिल्ली,  दिल्ली हाईकोर्ट ने बॉलीवुड अभिनेता ऋतिक रोशन को बड़ी राहत दी है। अदालत ने ऋतिक रोशन के पर्सनैलिटी राइट्स की सुरक्षा के लिए एक अहम आदेश जारी किया है। इस आदेश के तहत कोर्ट ने बिना अनुमति के सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफॉर्म पर लगाए गए पोस्ट्स के यूआरएल हटाने का निर्देश दिया है। यह कदम ऋतिक रोशन की पहचान और छवि के अनधिकृत उपयोग को रोकने के लिए उठाया गया है। न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि आदेश पारित करने से पहले सभी संबंधित पक्षों को सुना जाएगा ताकि न्यायसंगत निर्णय लिया जा सके। अदालत ने ऋतिक रोशन के वकील से प्रोफाइल पेजों का विवरण मांगा है और साथ ही मूल सब्सक्राइबर की जानकारी भी हासिल करने को कहा है। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि आदेश पारित करते समय सभी पक्षों की बात सामने आए और न्याय प्रक्रिया पूरी पारदर्शिता के साथ आगे बढ़े। इस मामले में अदालत ने ईबे, फ्लिपकार्ट, और टेलीग्राम जैसे बड़े ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स की दलीलों को भी रिकॉर्ड पर लिया है। इन प्लेटफॉर्म्स ने बताया है कि कुछ पोस्ट का व्यावसायिक उपयोग किया जा रहा है और इसलिए उन पोस्ट के यूआरएल हटाने की मांग की जा रही है। ऋतिक रोशन की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि उनकी तस्वीरों और नाम का ऑनलाइन दुरुपयोग किया जा रहा है। इसमें कई बार उनकी पहचान से जुड़ी गलत और भ्रामक सामग्री भी शामिल है, जो उनके व्यक्तित्व अधिकारों का उल्लंघन है। इसके अलावा, कुछ लोग उनकी छवि का इस्तेमाल करके कमाई भी कर रहे हैं, जो पूरी तरह से गैरकानूनी है। इसी वजह से अभिनेता ने न्यायालय से आग्रह किया कि उनके पर्सनैलिटी राइट्स की कड़ी सुरक्षा की जाए और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर बिना अनुमति उनके फोटो, वीडियो या नाम के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया जाए। ऋतिक रोशन के अलावा कई अन्य मशहूर हस्तियों ने भी अपने पर्सनैलिटी राइट्स की सुरक्षा के लिए अदालत का रुख किया है। इनमें ऐश्वर्या राय बच्चन, अभिषेक बच्चन, करण जौहर और कुमार सानू जैसे नाम शामिल हैं, जिन्होंने बिना अनुमति के अपनी तस्वीरों, आवाज और पहचान के इस्तेमाल को रोकने के लिए अदालत से राहत मांगी थी। अदालतों ने इन सभी को अंतरिम राहत देते हुए कहा था कि उनकी पहचान का अपमानजनक या गलत तरीके से उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। भारत में पर्सनैलिटी राइट्स को लेकर अभी तक कोई विशेष कानून नहीं बना है, लेकिन न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार की रक्षा करते हुए हस्तियों को संरक्षण प्रदान कर रहे हैं। यह अधिकार किसी भी व्यक्ति की पहचान, छवि और आवाज को बिना अनुमति के उपयोग से बचाता है।  

वैवाहिक झगड़ों में बच्चे को हथियार बनाने पर हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी

नई दिल्ली  दिल्ली हाईकोर्ट ने तलाक के एक मामले की सुनवाई करते हुए अपने एक अहम फैसले में कहा है कि वैवाहिक विवाद में नाबालिग बच्चे को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना गलत है। हाईकोर्ट ने यह माना है कि पति या पत्नी द्वारा नाबालिग बच्चे को जानबूझकर दूसरे माता-पिता से अलग करने की कोशिश न सिर्फ मनोवैज्ञानिक क्रूरता है, बल्कि यह तलाक का वैध आधार हो सकता है। हाईकोर्ट ने यह फैसला एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया, जिसने सितंबर 2021 में एक फैमिली कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें क्रूरता के आधार पर विवाह को भंग कर दिया गया था। रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की बेंच ने 19 सितंबर को दिए अपने आदेश में कहा कि वैवाहिक विवादों में बच्चे को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने से न केवल दूसरे माता-पिता को नुकसान पहुंचता है, बल्कि बच्चे के भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डालता है और इससे पारिवारिक सद्भाव की नींव कमजोर होती है। इस जोड़े की शादी मार्च 1990 में हुई थी, जिससे उनका एक बेटा हुआ और पत्नी ने 2008 से साथ रहने से इनकार कर दिया। इसके चलते पति ने 2009 में तलाक के लिए अर्जी दी थी। सितंबर 2021 में निचली अदालत ने उस व्यक्ति को तलाक दे दिया, जिसके खिलाफ महिला ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। महिला का दाव- पति यौन संबंध बनाने को तैयार नहीं था महिला ने अपनी याचिका में कहा कि उसने अपने पति से नाता नहीं तोड़ा, बल्कि तलाक की अर्जी दायर करने के बाद भी अपने बेटे के साथ ससुराल में ही रहती रही। उसने आगे कहा कि उसका पति यौन संबंध बनाने को तैयार नहीं था और उसके ससुराल वालों ने उसके साथ मारपीट की थी। वहीं, इसके महिला के पति ने अपनी याचिका में मौजूदा मुलाकात आदेशों के बावजूद अपने बेटे से संपर्क बनाए रखने की अपनी नाकाम कोशिशों का जिक्र किया। उसने दावा किया कि उसने चार-पांच बार अपने बच्चे से मिलने की कोशिश की, लेकिन बच्चे ने उससे बात करने से इनकार कर दिया। आखिरकार उसने यह मुलाकातें बंद कर दीं। पति ने आगे दावा किया कि तलाक की अर्जी दायर करने के बाद महिला ने उसके और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ कई आपराधिक शिकायतें दर्ज कराईं। मनोवैज्ञानिक क्रूरता का एक गंभीर रूप जस्टिस शंकर द्वारा लिखित फैसले में हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा, ''नाबालिग बच्चे को प्रतिवादी से जानबूझकर अलग-थलग करना मनोवैज्ञानिक क्रूरता का एक गंभीर रूप है। वैवाहिक विवाद में बच्चे को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने से न केवल प्रभावित माता-पिता को चोट पहुंचती है, बल्कि बच्चे की भावनात्मक स्वास्थ्य भी नष्ट हो जाता है और पारिवारिक सौहार्द की जड़ पर आघात पहुंचता है।'' हाईकोर्ट ने अपने 29 पन्नों के फैसले में यह भी माना कि वैवाहिक यौन संबंध से लगातार वंचित रखना क्रूरता की पराकाष्ठा है। कोर्ट ने कहा, "यह सर्वविदित है कि यौन संबंध और वैवाहिक कर्तव्यों का निर्वहन शादी का आधार है, उनके लिए लगातार इनकार करना न केवल वैवाहिक जीवन के बिखराव को दर्शाता है, बल्कि क्रूरता का भी प्रतीक है जिसके लिए न्यायिक हस्तक्षेप जरूरी है।"