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रूसी तेल पर ट्रंप के आरोपों को भारत का जवाब – पहले देशहित, बाकी बाद में

नई दिल्ली डोनाल्ड ट्रंप के रूसी तेल वाले दावे पर भारत का जवाब आ गया है. भारत ने साफ कर दिया है कि उसकी प्राथमिकता भारत के लोग हैं और कुछ नहीं. ट्रंप के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत का तेल आयात भारत के हितों की रक्षा के आधार पर तय होता है. भारतीय उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना भारत की प्राथमिकता है. दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया था कि उन्हें पीएम मोदी ने भरोसा दिलाया है कि भारत अब रूस से तेल नहीं खरीदेगा. इसी दावे पर विदेश मंत्रालय ने बयान दिया है. ट्रंप के बयान पर भारतीय विदेश मंत्रालय का बयान विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा, ‘भारत तेल और गैस का एक प्रमुख आयातक देश है. अस्थिर वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में भारतीय उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना हमारी निरंतर प्राथमिकता रही है. हमारी आयात नीतियां पूरी तरह इसी उद्देश्य से निर्देशित होती हैं. ऊर्जा की स्थिर कीमतें सुनिश्चित करना और आपूर्ति को सुरक्षित रखना हमारी ऊर्जा नीति के दो प्रमुख लक्ष्य रहे हैं. इसके तहत हमने अपने ऊर्जा स्रोतों का विस्तार किया है और बाजार की परिस्थितियों के अनुसार विविधीकरण किया है.’ अमेरिका संग संबंधों पर क्या कहा? विदेश मंत्रायल ने आगे भारत संग संबंधों पर कहा, ‘जहां तक अमेरिका का संबंध है, हम कई वर्षों से अपनी ऊर्जा खरीद को बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं. पिछले एक दशक में इसमें लगातार प्रगति हुई है. वर्तमान प्रशासन ने भारत के साथ ऊर्जा सहयोग को और गहरा करने में रुचि दिखाई है. इस विषय पर बातचीत जारी है.’ डोनाल्ड ट्रंप ने क्या कहा था?  डोनाल्ड ट्रंप ने ओवल ऑफिस में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान समाचार एजेंसी एएनआई की ओर से पूछे गए एक सवाल के जवाब में दिया. एएनआई ने एक सवाल किया कि क्या अमेरिकी राष्ट्रपति भारत को एक विश्वसनीय साझेदार मानते हैं? इस पर ट्रंप ने कहा, ‘हां, बिल्कुल. वह (पीएम मोदी) मेरे मित्र हैं. हमारे बीच बहुत अच्छे संबंध हैं. भारत रूस से तेल खरीद रहा है, इससे मैं खुश नहीं था. हालांकि, उन्होंने अब मुझे आश्वासन दिया है कि भारत रूस से तेल नहीं खरीदेगा. यह एक बड़ा कदम है. अब हमें चीन से भी यही करवाना होगा.’ क्यों निराश हैं ट्रंप? ट्रंप यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने में अपनी असमर्थता के कारण निराश हैं. इस युद्ध की शुरुआत लगभग चार साल पहले रूस के आक्रमण से हुई थी. उन्होंने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के प्रति असंतोष व्यक्त किया है, जिन्हें वह सुलह की राह में सबसे बड़ी बाधा बताते रहे हैं. ट्रंप का शुक्रवार को यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की से मिलने का कार्यक्रम है. चीन के बाद भारत रूसी तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार है और ट्रंप ने इसके दंड के तौर पर अगस्त में भारत पर शुल्क बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया था.  

ट्रंप का दांव उलटा पड़ा, अमेरिकी जनता भुगत रही टैरिफ का खामियाजा

वाशिंगटन डोनाल्ड ट्रंप ने किसी देश पर 25%, तो भारत और ब्राजील जैसे देशों पर 50%  का हाई टैरिफ लगाया है, लेकिन उनका ये कदम खुद अमेरिका के लिए ही परेशानी का सबब बनता जा रहा है. दुनियाभर के तमाम दिग्गज इकोनॉमिस्ट ने इसकी आलोचना की है. अब IMF की पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ भी इसमें शामिल हो गई हैं. उन्होंने कहा है कि US Tariff के छह महीने के बाद भी इसका कोई खास असर देखने को नहीं मिला है और अमेरिका में जो राजस्व बढ़ा है, वो खुद अमेरिकी जनता और यहां की कंपनियों से ही लिया गया है.  अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर निगेटिव असर ट्रंप टैरिफ के चलते दुनिया में ट्रेड वॉर जैसी स्थिति बनी है. फिर बात चाहे चीन के साथ व्यापार युद्ध की हो, या फिर ब्राजील जैसे देशों की. भारत के बारे में देखें, तो ट्रंप ने पहले 25% टैरिफ का ऐलान किया और फिर रूसी तेल खरीद को मुद्दा बनाते हुए इसे दोगुना करते हुए 50% कर दिया. लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया के तमाम देशों पर टैरिफ लगाकर आखिर अमेरिका को क्या हासिल हुआ? तो इसे लेकर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर भारतीय मूल की गीता गोपीनाथ ने बड़ा दावा किया है. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट के जरिए कहा कि इसका निगेटिव असर खुद US Economy पर ही हुआ है.  US के ग्राहकों-कंपनियों पर बढ़ा बोझ गीता गोपीनाथ ने अपनी एक्स पोस्ट में कहा है कि डोनाल्ड ट्रंप को टैरिफ का ऐलान किए छह महीने से ज्यादा हो गए हैं, लेकिन इसका कोई खास नतीजा नहीं निकल सका है. उन्होंने लिखा, 'अमेरिका के टैरिफ से क्या हासिल हुआ? क्या सरकार के लिए राजस्व बढ़ा? हां, काफी बढ़ा, लेकिन यह पैसा करीब-करीब पूरी तरह से अमेरिकी कंपनियों से ही वसूला गया और कुछ हद तक इसकी भरपाई अमेरिकी उपभोक्ताओं से की गई. कुल मिलकार ट्रंप का टैरिफ इनके लिए एक टैक्स जैसा ही साबित हुआ.  टैरिफ से सुधार के कोई संकेत नहीं IMF की पूर्व चीफ इकोनॉमिस्ट गीता गोपीनाथ ने टैरिफ की आलोचना करते हुए कहा कि ये सीधे तौर पर अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए निगेटिव स्कोरकार्ड रहा है. भारत और ब्राजील से आयात पर 50% तक, और कुछ भारतीय दवाओं पर तो 100% तक टैरिफ घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और व्यापार संतुलन में सुधार लाने के लिए थे. लेकिन इसका अमेरिका को बहुत कम या कोई आर्थिक लाभ नहीं हुआ है. उन्होंने लिखा कि न तो व्यापार संतुलन में सुधार और न ही अमेरिका विनिर्माण क्षेत्र में इसके पॉजिटिव असर का कोई संकेत मिला है.  उल्टा महंगाई में कर दिया इजाफा  गीता गोपीनाथ ने टैरिफ के चलते अमेरिका में महंगाई दर को लेकर कहा कि इसके लागू होने के बाद से देश में महंगाई में थोड़ा इजाफा देखने को मिला है. खासतौर पर घरेलू उपकरणों, फर्नीचर, कॉफी जैसी चीजों के दाम में बढ़ोतरी देखने को मिली है. गोपीनाथ ही नहीं, बल्कि दुनिया के तमाम एक्सपर्ट्स ने भी अपने-अपने तरीके से ट्रंप के टैरिफ की आलोचना की है और इसे खुद अमेरिका के लिए खराब करार दिया है. 

नोबेल शांति पुरस्कार की दौड़ में डोनाल्ड ट्रंप: क्या मिलेगा उन्हें सम्मान?

ओस्लो  दुनिया के सबसे प्रतिष्ठा प्राप्त सम्मानों में से एक नोबेल पुरस्कार के विजेताओं की घोषणा अगले सप्ताह की जाएगी। इसके तहत चिकित्सा, भौतिकी, रसायन विज्ञान, साहित्य, अर्थशास्त्र और शांति के क्षेत्र में उपलब्धियों के लिए सम्मान दिए जाते हैं। लोगों की दिलचस्पी यह जानने में है कि आखिर नोबेल शांति पुरस्कार के लिए डोनाल्ड ट्रंप को सम्मान दिया जाता है या नहीं। नोबेल शांति पुरस्कार के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को 2018 से अमेरिका के लोगों के साथ-साथ विदेशों में नेताओं द्वारा कई बार नामित किया गया है। उन्होंने अपने नए कार्यकाल के तहत इसी साल 19 जनवरी को कमान संभाली थी। उसके बाद से वह 7 युद्धों को रुकवाने का दावा कर चुके हैं। वहीं नोबेल समिति के एक सदस्य ने पिछले दिनों कहा था कि इस बार डोनाल्ड ट्रंप के नाम पर विचार होना मुश्किल है। ऐसा इसलिए क्योंकि जिन उपलब्धियों के नाम पर उनके लिए दावा किया जा रहा है, वे नोबेल नॉमिनेशन की आखिरी तारीख के बाद की हैं। दिसंबर में एक रिपब्लिकन सांसद ने अब्राहम समझौते की मध्यस्थता के लिए भी ट्रंप के नाम का प्रस्ताव दिया था। इस समझौते ने इजराइल और कुछ अरब देशों के बीच संबंधों को सामान्य बना दिया था। अब देखना होगा कि दिसंबर की उस उपलब्धि के नाम पर डोनाल्ड ट्रंप को सम्मान मिलता है या नहीं। नोबेल पुरस्कारों का ऐलान 10 अक्तूबर तक होना है। इसके अलावा ओस्लो से कुछ सूत्रों ने कहा कि जिस तरह डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका फर्स्ट की नीति पर काम कर रहे हैं और बाहरी लोगों के लिए वैमनस्यता का भाव दिखा रहे हैं, उसके चलते भी उन्हें पुरस्कार मिलना मुश्किल है। नोबेल पुरस्कारों का क्या है इतिहास नोबेल पुरस्कारों की शुरुआत 19वीं सदी के स्वीडन के व्यवसायी और वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल ने की थी। उनके पास 300 से ज़्यादा पेटेंट थे, लेकिन पुरस्कारों से पहले उनकी प्रसिद्धि का कारण नाइट्रोग्लिसरीन को एक ऐसे यौगिक के साथ मिलाकर डायनामाइट का आविष्कार करना था। इसके चलते बड़े-बड़े धमाके करना आसान हो गया। डायनामाइट निर्माण, खनन और हथियार उद्योग में बेहद लोकप्रिय हो गया और इसने नोबेल को बहुत अमीर बना दिया। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में उन्होंने अपनी विशाल संपत्ति का इस्तेमाल वार्षिक पुरस्कारों के लिए धन जुटाने में करने का निर्णय लिया। चिकित्सा, भौतिकी, रसायन विज्ञान, साहित्य और शांति के क्षेत्र में पहला नोबेल पुरस्कार अल्फ्रेड नोबेल के निधन के पांच साल बाद 1901 में प्रदान किया गया था। वर्ष 1968 में स्वीडन के केंद्रीय बैंक ने अर्थशास्त्र के लिए छठा पुरस्कार शुरू किया। हालांकि नोबेल पुरस्कार के शुद्धतावादी इस बात पर ज़ोर देते हैं कि अर्थशास्त्र का पुरस्कार तकनीकी रूप से नोबेल नहीं है। फिर भी इसे हमेशा अन्य पुरस्कारों के साथ ही प्रदान किया जाता है। नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकन प्रक्रिया पुरस्कारों की संबंधित समितियों द्वारा किसी भी नामांकन की घोषणा नहीं की जाती है।

शटडाउन संकट गहराया: ट्रंप को जरूरी समर्थन नहीं मिला, बंद हो सकते हैं कई सरकारी काम

वाशिंगटन अमेरिका एक बार फिर सरकारी शटडाउन के मुहाने पर खड़ा है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पार्टी को सीनेट में अस्थायी फंडिंग बिल पास कराने के लिए कम से कम 60 वोटों की जरूरत थी, लेकिन सिर्फ 55 वोट ही जुट पाए. यानी यह प्रस्ताव गिर गया. अब सरकार के पास जरूरी फंडिंग का विस्तार नहीं है और इसका सीधा मतलब है कि कई संघीय कामकाज रुक सकते हैं. अमेरिकी कानून के तहत जब तक बजट या अस्थायी फंडिंग बिल पास नहीं होता, तब तक 'गैर-जरूरी' सरकारी विभागों और सेवाओं को बंद करना पड़ता है. इस स्थिति को ही शटडाउन कहा जाता है. पिछले दो दशकों में यह अमेरिका की पांचवीं बड़ी शटडाउन स्थिति बन सकती है. इससे पहले रिपब्लिकन ने सरकार को 21 नवंबर तक खुला रखने के लिए एक अल्पकालिक वित्त पोषण विधेयक पेश किया है. हालांकि, डेमोक्रेट्स का कहना है कि यह पर्याप्त नहीं है. वे चाहते हैं कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ग्रीष्मकालीन मेगा-बिल से मेडिकेड कटौती को वापस लिया जाए और अफोर्डेबल केयर एक्ट के प्रमुख टैक्स क्रेडिट को बढ़ाया जाए. रिपब्लिकन ने इन मांगों को सिरे से खारिज कर दिया है. किसी भी पक्ष के पीछे हटने के की वजह से इस हफ्ते सदन में मतदान भी निर्धारित नहीं है. सात साल बाद यह पहला मौका होगा, जब फंड की कमी की वजह से अमेरिका में कई सेवाएं प्रभावित होंगी. 2018 में ट्रंप के पिछले कार्यकाल के दौरान शटडाउन 34 दिनों तक चला था. इस बार खतरा और गंभीर माना जा रहा है, क्योंकि ट्रंप इसकी आड़ में लाखों कर्मचारियों की छंटनी और कई अहम योजनाओं को बंद करने की तैयारी कर सकते हैं. शटडाउन से ठीक पहले उन्होंने इसके संकेत भी दे दिए हैं. क्यों होता है शटडाउन? सरकारी शटडाउन तब होता है, जब कांग्रेस संघीय एजेंसियों को चलाने के लिए वार्षिक व्यय विधेयकों पर सहमत नहीं हो पाती. एंटीडेफिशिएंसी एक्ट एजेंसियों को बिना अनुमति के पैसा खर्च करने से रोकता है, इसलिए जब पैसा खत्म हो जाता है, तो सरकार का ज्यादातर काम भी बंद हो जाता है. अमेरिकी सरकार के अलग-अलग विभागों को चलाने के लिए भारी मात्रा में फंड की जरूरत होती है. इसके लिए संसद (कांग्रेस) से बजट या फंडिंग बिल पारित कराना जरूरी होता है. लेकिन जब राजनीतिक मतभेद या गतिरोध की वजह से तय समयसीमा में फंडिंग बिल पारित नहीं हो पाता, तो सरकार के पास कानूनी रूप से खर्च करने के लिए फंड नहीं बचता. ऐसी स्थिति में अमेरिकी सरकार को अपनी गैर-जरूरी सेवाएं बंद करनी पड़ती हैं, जिसे सरकारी शटडाउन कहा जाता है. यह आमतौर पर अस्थायी होता है, लेकिन इस बार ट्रंप कई विभागों को स्थायी रूप से बंद करने और हजारों कर्मचारियों को नौकरी से हटाने की तैयारी में हैं. क्या बंद होगा, क्या खुला रहेगा? अगर समय सीमा बीत जाती है तो एजेंसियों को 'गैर-अपवादित' कर्मचारियों को छुट्टी पर भेजना शुरू करना होगा. विशेष रूप से वे कर्मचारी जो जीवन या संपत्ति की सुरक्षा से संबंधित नहीं हैं. ट्रंप के पहले कार्यकाल में 35 दिनों के बंद के दौरान, 340,000 कर्मचारियों को छुट्टी पर भेजा गया था, जबकि बाकी कर्मचारियों ने सरकार के फिर से खुलने तक बिना वेतन के काम किया. इस बार, एफबीआई जांच, सीआईए ऑपरेशन, हवाई यातायात नियंत्रण, सैन्य सेवा, सामाजिक सुरक्षा जांच, मेडिकेयर दावे और पूर्व सैनिकों की स्वास्थ्य सेवा जैसे महत्वपूर्ण कार्य जारी रहेंगे. डाक वितरण भी अप्रभावित रहेगा क्योंकि अमेरिकी डाक सेवा अपने स्वयं के राजस्व पर चलती है. लेकिन कई एजेंसियां अपने काम में भारी कटौती करेंगी. शिक्षा विभाग अपने करीब 90% कर्मचारियों की छंटनी करेगा, हालांकि छात्र सहायता जारी रहेगी. स्मिथसोनियन संग्रहालय और राष्ट्रीय चिड़ियाघर अपने दरवाज़े बंद कर देंगे. FDA ने दवा और उपकरणों की मंज़ूरी में देरी की चेतावनी दी है. और राष्ट्रीय उद्यान सेवा कुछ स्थलों के दरवाज़े बंद कर देगी, जबकि अन्य सीमित कर्मचारियों के साथ खुले रहेंगे.

रूसी तेल पर भारत अडिग, ट्रंप ने यूरोप से कहा– सिर्फ हमें नहीं, चीन को भी रोको

वाशिंगटन रूसी तेल की खरीद को लेकर भारत को टैरिफ का दंड देने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अब यूरोप के पीछे पड़ गए हैं. गुरुवार को दुनिया के नेताओं के साथ एक बैठक में उन्होंने कहा कि यूरोप को रूसी तेल खरीदना बंद कर देना चाहिए. उन्होंने कहा कि यूक्रेन में युद्ध को खत्म करने के लिए चीन पर आर्थिक दबाव डालना चाहिए. व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने अमेरिका ब्रॉडकास्टर सीएनएन को यह जानकारी दी. ट्रंप ने गुरुवार को यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की और अन्य यूरोपीय नेताओं के साथ 'Coalition of the Willing' की बैठक में यह टिप्पणी की. यह यूक्रेनी सहयोगियों का एक समूह है जो युद्ध को समाप्त करने और भविष्य के हमलों से यूक्रेन को सुरक्षा प्रदान करने की कोशिश कर रहा है. यूरोपीय देशों पर ट्रंप की टिप्पणी के बाद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने यूक्रेन में शांति को लेकर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि 26 देशों ने वादा किया है कि अगर युद्ध विराम समझौते को अंतिम रूप दिया जाता है तो वे संभावित शांति सेना में योगदान देंगे. हालांकि, माना जाता है कि अमेरिकी के बिना यूरोपीय देश यूक्रेन को सुरक्षा की गारंटी नहीं दे पाएंगे. मैक्रों ने गुरुवार को इस बात को स्वीकार करते हुए कहा कि यूक्रेन की सेना को मजबूत करने और यूक्रेन में यूरोपीय सैनिकों को तैनात करने में तीसरा फैक्टर अमेरिका का 'सेफ्टी नेट' होना चाहिए. फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने कहा, 'आने वाले दिनों में हम इन सुरक्षा गारंटियों के लिए अमेरिकी समर्थन को अंतिम रूप दे देंगे.' पुतिन के साथ मीटिंग के हफ्तों बाद भी रूस के साथ ट्रंप की बात नहीं बन रही ट्रंप और यूरोपीय नेताओं की यह बैठक यूक्रेन में युद्ध समाप्त न करा पाने की ट्रंप की हताशा के बीच हो रही है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ अलास्का शिखर सम्मेलन के लगभग तीन हफ्ते बाद भी ट्रंप शांति वार्ता में प्रगति न होने से लगातार निराश हो रहे हैं. अमेरिकी अधिकारियों ने बताया कि ट्रंप इस बात पर विचार कर रहे हैं कि रूस और यूक्रेनी नेताओं के बीच बैठक कराने में उन्हें पर्सनली कितना शामिल होना चाहिए. रूस की सरकारी न्यूज एजेंसी आरआईए के अनुसार, क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने शुक्रवार को कहा कि रूस और यूक्रेन के बीच किसी भी शीर्ष स्तरीय बैठक से पहले 'काफी काम' करने की जरूरत है. व्हाइट हाउस के अधिकारी ने कहा कि मैक्रों और यूरोपीय नेताओं ने ट्रंप को बैठक में बुलाया था जिसमें ट्रंप ने 'इस बात पर जोर दिया कि यूरोप को रूसी तेल खरीदना बंद करना चाहिए क्योंकि इससे रूस को युद्ध में मदद मिल रही है. ट्रंप ने यह भी कहा कि रूस ने एक साल में यूरोपीय संघ को ईंधन बेचकर 1.1 अरब यूरो कमाया है. अधिकारी ने कहा, 'राष्ट्रपति ने इस बात पर भी जोर दिया कि यूरोपीय नेताओं को रूस के युद्ध प्रयासों की फंडिंग के लिए चीन पर आर्थिक दबाव डालना चाहिए.' रूस के साथ व्यापार करने वालों को निशाना बना रहे ट्रंप लेकिन… रिपोर्ट में कहा गया कि भले ही ट्रंप रूस के साथ बिजनेस करने वाले देशों को निशाना बना रहे हैं लेकिन निजी तौर पर वो इस बात से फिक्रमंद भी हैं कि ऐसा करने से रूस के साथ यूक्रेन में युद्ध खत्म करने की वार्ता प्रभावित हो सकती है.  जब ट्रंप से पूछा गया कि क्या वो रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहे हैं, तो ट्रंप ने कहा कि वो ऐसा पहले ही कर चुके हैं. ट्रंप ने कहा, 'मैंने भारत के संबंध में पहले ही ऐसा कर दिया है.' उन्होंने रूसी तेल आयात करने को लेकर भारत पर टैरिफ बढ़ाकर 50% करने के अपने फैसले का जिक्र किया. 

डोनाल्ड ट्रंप ने किया बड़ा संकेत, किस और नोबेल पर खुलासा

वॉशिंगटन  अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि जल्दी ही यूक्रेन और रूस के बीच जारी जंग थम सकती है। उन्होंने सीबीएस न्यूज को दिए इंटरव्यू में कहा कि मैं सब कुछ देख रहा हूं। अब इस इन पर नजर थी। इसके बारे में राष्ट्रपति पुतिन और जेलेंस्की से बात चल रही है। उन्होंने कहा कि कुछ होने वाला है, लेकिन वे लोग इसके लिए तैयार नहीं हैं। लेकिन फिर भी कुछ होगा और हम ऐसा करने जा रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब रूस ने यू्क्रेन पर हमले तेज कर दिए हैं। इन हमलों में 15 लोग मारे गए हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने फोन पर दिए इंटरव्यू में कहा कि मुझे लगता था कि रूस आसानी से मान जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब लगता है कि कुछ होने ही वाला है। यही नहीं डोनाल्ड ट्रंप ने चीन में विक्ट्री परेड में व्लादिमीर पुतिन के हिस्सा लेने पर भी टिप्पणी की। ट्रंप ने कहा कि मुझे पता था कि ऐसा होगा और पुतिन एवं जिनपिंग के साथ किम जोंग उन भी रहेंगे। ट्रंप ने तिकड़ी पर तंज कसते हुए कहा कि मुझे पता है कि वे लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं। उन्हें लगा होगा कि मैं देख रहा हूं और यह सच है। अमेरिकी नेता ने कहा कि मेरे इन सभी लोगों के साथ अच्छे संबंध हैं। अगले एक से दो सप्ताह में आपको पता चल जाएगा कि ये कितने अच्छे हैं। अपनी ही तारीफ करते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि मैं धैर्य रखना जानता हूं। मैं सामने वाले को चांस देता हूं कि वह आए और टेबल पर बात की जाए। इसके अलावा डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर से क्रेडिट लिया और कहा कि मैंने दुनिया में 6 से 7 युद्ध रुकवा दिए हैं। मैं नोबेल प्राइज के लिए डिजर्व करता हूं। इन जंगों के बारे में बताता हुए वाइट हाउस के अधिकारियों का कहना है कि शायद डोनाल्ड ट्रंप इजरायल-ईरान, रवांडा-कांगो, अर्मेनिया-अजरबैजान, थाइलैंड-कंबोडिया, भारत-पाकिस्तान, मिस्र-इथियोपिया और सर्बिया-कोसोवो के बारे में बात कर रहे हैं। उन्होंने युद्ध रुकवाने के क्रेडिट लेते हुए कहा कि ये सारे देश आपस में लड़ रहे थे। इन लोगों के लिए जंग ही एक रास्ता बन गया था और शांति की बात भी भूल चुके थे। लेकिन मैंने जब दखल दिया और कहा कि अब बहुत हो चुका है। आप लोगों ने बहुत सी जानें ले ली हैं तो फिर जंग थमी और इन देशों को युद्ध से हटाने में सफल रहा। इस बार उन्होंने दिलचस्प तरीके से यह जरूर कहा कि मैं नोबेल पुरस्कार नहीं मांग रहा। इस साल के नोबेल सम्मान विजेताओं के नाम अगले महीने घोषित होने वाले हैं। ट्रंप ने कहा कि मैं तो सिर्फ युद्धों को रुकवाना चाहता हूं। मुझे दुनिया का अटेंशन पाने की कोई चाहत नहीं है।  

शेयर बाजार ने दिखाई मजबूती, ट्रंप की धमकियां और टैरिफ भी नहीं डिगा सके भरोसा

मुंबई डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने भारत पर लगाए गए 25 फीसदी के टैरिफ को बुधवार को बढ़ाकर 50 फीसदी कर दिया. इसका कोई बड़ा असर गुरुवार को शेयर बाजार में देखने को नहीं मिला. हालांकि, सेंसेक्स-निफ्टी दोनों इंडेक्स गिरावट के साथ लाल निशान पर जरूर ओपन हुए. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स इंडेक्स जहां खुलते ही 250 अंक से ज्यादा टूटा और फिर अचानक रिकवरी मोड में नजर आने लगा, तो निफ्टी ने भी मामूली गिरावट के साथ कारोबार की शुरुआत की. हालांकि, ट्रंप के टैरिफ का डर सिर्फ बाजार ही नहीं, बल्कि भारतीय करेंसी रुपया पर भी नहीं दिखा और ये डॉलर के मुकाबले तेजी के साथ ओपन हुआ. Rupee, अमेरिकी डॉलर की तुलना में 3 पैसे की बढ़त के साथ 87.69 पर ओपन हुआ. ट्रंप टैरिफ के डर से बेअसर बाजार ट्रंप के भारत पर टैरिफ बढ़ाने के बाद शेयर बाजार की शुरुआत सुस्ती के साथ हुई. सेंसेक्स अपने पिछले बंद 80,543.99 की तुलना में 80,262 पर ओपन हुआ, लेकिन फिर तेज रिकवरी मोड में नजर आया और कुछ ही मिनटों में ट्रंप के टैरिफ डर को दरकिनार करते हुए 80,421 पर ट्रेड करने लगा. निफ्टी की भी चाल सेंसेक्स की तरह ही रही और ये भी 24574 के अपने पिछले बंद की तुलना में बेहद मामूली गिरावट के साथ 24,464 पर खुला और फिर अचानक 24,542 पर पहुंच गया. इसकी चाल देखकर ऐसा नहीं लगता कि Trump Tarifff का बाजार में कोई डर है.   1433 शेयर गिरावट में खुले शेयर मार्केट में कारोबार की शुरुआत होने पर 751 कंपनियों के शेयरों ने गिरावट के साथ लाल निशान पर कारोबार की शुरुआत की थी, तो वहीं 1433 कंपनियों के स्टॉक्स ने गिरावट के साथ लाल निशान पर कारोबार शुरू किया. इसके अलावा 150 शेयरों की स्थिति में किसी भी तरह का कोई बदलाव देखने को नहीं मिला. शुरुआती कारोबार में जिन शेयरों में तेज गिरावट आई, उनमें Kotak Mahindra Bank, Tata Steel, SBI, Coal India और Jio Financial शामिल रहे. इसके अलावा जो शेयर ट्रंप के टैरिफ के बावजूद उछाल मारते नजर आए, उनमें Hero MotoCorp, Cipla, Bajaj Finserv, Maruti Suzuki, JSW Steel शामिल थे.  एक्सपर्ट भी सीमित असर का जता रहे थे अनुमान शेयर बाजार में एक्सपर्ट्स के अनुमानों के मुताबिक ही 50% टैरिफ का मामूली असर देखने को मिल रहा है. बता दें कि ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि बाजार अब ट्रंप टैरिफ में उतार-चढ़ाव के असर को पूरी तरह से समझ चुका है और बाजार में यह गिरावट सीमित रहेगी, इसके पीछे की एक बड़ी वजह ये भी है कि भारतीय बाजारों में इससे भी खराब स्थिति का सामना भी किया है और इंडेक्स पहले से ही ओवरसोल्ड स्थिति में हैं. इन 10 शेयरों में तूफानी तेजी बाजार में शेयरों की चाल पर नजर डालें, तो टैरिफ के डर से बेअसर लार्जकैप कंपनियों में शामिल ITC, Titan, Trent जैसे शेयर ग्रीन जोन में ट्रेड कर रहे थे. इसके अलावा मिडकैप कैटेगरी में शामिल Lupin Share (4.50%), Tornt Power Share (2%) और Coforge Share (1.95%) की बढ़त के साथ कारोबार कर रहे थे. स्मॉलकैप कंपनियों में Rain Share (10.25%), ITI Ltd Share (6.65%), Kirlosker Brothers Share (5.75%), Data Matics Share (5.52%) की उछाल के साथ ट्रेड कर रहे थे. 

25% आयात शुल्क पर फिलहाल रोक, ट्रंप का फैसला एक हफ्ते टला — जानें अगली डेट

नई दिल्ली अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप (Donald Trump) ने भारत पर बुधवार को 25 फीसदी टैरिफ लगाने का ऐलान किया था, जो 1 अगस्‍त यानी आज से प्रभावी होने वाला था. लेकिन अब इसे एक सप्‍ताह के लिए टाल दिया गया है. अमेरिका की ओर से जारी किए गए नए निर्देश में अब ये टैरिफ 7 दिन बाद भारत समेत बांग्‍लादेश, ब्राजील और अन्‍य देशों पर लगाया जाएगा, जो 7 अगस्‍त 2025 से प्रभावी होगा. बुधवार को डोनाल्‍ड ट्रंप ने अचानक से भारत समेत कई देशों पर टैरिफ का ऐलान करते हुए दुनिया में फिर से हलचल मचा दी थी. भारत पर 25 फीसदी टैरिफ का ऐलान करते हुए ट्रंप ने कहा था कि व्‍यापार बाधा को दूर करने के लिए ये टैरिफ लगाया जा रहा है. इसके अलावा, जुर्माने का भी ऐलान किया गया था, जो रूस से तेल और डिफेंस प्रोडक्‍ट्स खरीदने के कारण है. हालांकि अभी अमेरिका ने नए आदेश के तहत सभी देशों पर लगने वाले टैरिफ को 1 सप्‍ताह के लिए टाल दिया है यानी अब टैरिफ लगने की नई डेडलाइन 7 अगस्‍त हो चुकी है. देशहित में हर संभव कदम! जिसपर भारत ने बिना कोई जवाबी कार्रवाई के सीधे शब्‍दों में कहा कि देशहित में हर संभव कार्रवाई की जाएगी. वहीं एक सरकारी अधिकारी ने कहा था कि भारत नेगोशिएशन टेबल पर अमेरिका के टैरिफ का जवाब देगा. लोकसभा में बोलते हुए केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने भी कहा था कि बात 10 से 15 फीसदी टैरिफ को लेकर हुई है. उन्‍होंने कहा था कि टैरिफ को लेकर देशहित में हर संभव कार्रवाई की जाएगी.  अमेरिका क्या चाहता है? भारत पर अतिर‍िक्‍त दबाव बढ़ाने के लिए अमेरिका ने टैरिफ लगा रहा है. वह चाहता है कि जल्‍द से जल्‍द भारत अपने एग्रीकल्‍चर और डेयरी सेक्‍टर्स से समझौता करके डील कर ले, लेकिन भारत इसपर राजी नहीं है. भारत का कहना है कि किसी भी सूरत में वह अपने कृषि और डेयरी सेक्‍टर्स को अमेरिका के लिए नहीं खोल सकता.  अमेरिका भारत से अपने कृषि और डेयरी उत्पादों, खासकर (नॉन-वेज मिल्क) और जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) फसलों के लिए बाजार खोलने और इन पर टैरिफ कम की डिमांड कर रहा है, जिस कारण अभी व्‍यापार डील नहीं हो पा रही है. अमेरिका इसमें 100 फीसदी टैरिफ से छूट चाहता है. भारत क्‍यों नहीं मानना चाहता यूएस की बात? भारत में दूध को धार्मिक और सांस्‍कृतिक तौर पर पवित्र माना जाता है और मांसाहारी चारा खाने वाले मवेशियों से मिले दूध (नॉनवेज मिल्‍क)  को अनुमति देना भारत के लिए स्‍वीकार्य नहीं है. भारत चाहता है कि दोनों देशों के बीच एक संतुलित सौदा हो, जो 140 करोड़ लोगों, खासकर 70 करोड़ किसानों के हितों की रक्षा हो. खाद्य सुरक्षा, किसानों के हित, और रणनीतिक स्वायत्तता को प्रमुखता पर रखना चाहता है. साथ ही अमेरिकी बाजार में बेहतर पहुंच की उम्‍मीद कर रहा है.