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मुख्यमंत्री साय बोले – इसरो की उपलब्धियाँ हैं भारतवासियों की शान

इसरो की यात्रा में छत्तीसगढ़ की भागीदारी, युवाओं के लिए नए अवसर और शासन की कार्यकुशलता बढ़ाने में इसरो की तकनीक के उपयोग पर हुई विस्तृत चर्चा रायपुर  मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से राजधानी रायपुर स्थित मुख्यमंत्री निवास कार्यालय में इसरो अहमदाबाद केंद्र के निदेशक डॉ. एन. एम. देसाई के नेतृत्व में अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने सौजन्य भेंट की। बैठक के दौरान मुख्यमंत्री साय और वैज्ञानिकों के बीच इसरो की यात्रा में छत्तीसगढ़ की भागीदारी को बढ़ाने, राज्य के युवाओं के लिए नए अवसर सृजित करने, शासन के कामकाज में पारदर्शिता और दक्षता लाने के लिए इसरो की तकनीक के उपयोग तथा स्कूल–कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए इसरो द्वारा संचालित गतिविधियों पर विस्तारपूर्वक चर्चा हुई। मुख्यमंत्री साय ने इसरो की उपलब्धियों की सराहना करते हुए कहा कि भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में जो ऊँचाइयाँ प्राप्त की हैं, वह प्रत्येक भारतीय के लिए गर्व का विषय है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार नवाचार और तकनीकी शिक्षा को प्रोत्साहित कर रही है, ताकि प्रदेश के युवा स्पेस साइंस के प्रति रुचि लेकर देश के अंतरिक्ष अभियानों में सक्रिय भागीदारी निभा सकें। मुख्यमंत्री साय ने कहा कि इसरो द्वारा प्रदेश के विद्यार्थियों के लिए इंटर्नशिप और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएँ, जिससे उन्हें अंतरिक्ष विज्ञान की व्यावहारिक जानकारी प्राप्त हो सके। उन्होंने यह भी कहा कि इसरो की तकनीक का उपयोग कृषि, खनन नियंत्रण, भू-अतिक्रमण की निगरानी तथा धान खरीदी के दौरान अवैध गतिविधियों की पहचान जैसे कार्यों में प्रभावी रूप से किया जा सकता है। इस अवसर पर इसरो अहमदाबाद केंद्र के निदेशक डॉ. एन. एम. देसाई ने मुख्यमंत्री को इसरो द्वारा संचालित विभिन्न परियोजनाओं की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि युवाओं को अंतरिक्ष विज्ञान से जोड़ने के लिए इसरो कई अभिनव कार्यक्रम चला रहा है, जिन्हें छत्तीसगढ़ में भी विस्तारित किया जाएगा। इस दौरान प्रदेश में एक ‘स्पेस गैलरी’ की स्थापना को लेकर भी सकारात्मक चर्चा हुई। डॉ. देसाई ने मुख्यमंत्री साय को इसरो अहमदाबाद केंद्र के भ्रमण हेतु आमंत्रित किया और उन्हें इसरो द्वारा हाल ही में लॉन्च किए गए उपग्रहों तथा मिशन चंद्रयान की प्रतिकृतियाँ स्मृति स्वरूप भेंट कीं। इसरो के वैज्ञानिक भगवान मधेश्वर की तस्वीर देखकर हुए अभिभूत मुख्यमंत्री निवास में आयोजित  बैठक के दौरान इसरो के वैज्ञानिकों की नजर जब भगवान मधेश्वर की तस्वीर पर पड़ी, तो वे उसे देखकर अभिभूत हो गए। जिज्ञासावश उन्होंने मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से इसके बारे में जानकारी प्राप्त की। मुख्यमंत्री ने बताया कि मधेश्वर पहाड़ जशपुर जिले में स्थित है, जहाँ भगवान शिव विशाल प्राकृतिक शिवलिंग स्वरूप में पूजे जाते हैं। स्थानीय लोग भगवान शिव के इस स्वरूप की अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा-अर्चना करते हैं। उन्होंने कहा कि यह स्थल न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि छत्तीसगढ़ की समृद्ध प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है। मुख्यमंत्री साय ने सभी वैज्ञानिकों को भगवान मधेश्वर के छायाचित्र भेंटस्वरूप प्रदान किए। इस अवसर पर मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव सुबोध कुमार सिंह, मुख्यमंत्री के सचिव राहुल भगत, राजस्व विभाग की सचिव रीना बाबा साहब कंगाले, उच्च शिक्षा विभाग के सचिव डॉ. एस. भारतीदासन, संचालक रोजगार एवं प्रशिक्षण विजय दयाराम के., संचालक भू-अभिलेख विनीत नंदनवार, इसरो के ग्रुप डायरेक्टर डॉ. डी. के. पटेल, डॉ. दीपक कुमार सिंह, कलेक्टर गौरव कुमार सिंह सहित अन्य अधिकारीगण उपस्थित थे।

भोपाल में 26 सितंबर से शुरू होगा विज्ञान मेला, ISRO निदेशक देंगे युवाओं को खास क्लास

भोपाल राजधानी भोपाल में 12 वें विज्ञान मेले का आयोजन किया जा रहा है. इसमें पहली बार राजधानी के बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय को भी आयोजन में पार्टनर बनाया गया है. अब तक इसका आयोजन विज्ञान भारती और मध्य प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के तत्वावधान में किया जाता था. लेकिन इस बार बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय को भी शामिल किया गया है. इसरो निदेशक से संवाद करेंगे युवा वैज्ञानिक मध्य प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के महानिदेशक अनिल कोठारी ने बताया कि, ''इस बार विज्ञान मेला में जो भी बच्चे सम्मिलित होंगे, उनको देश और प्रदेश के वरिष्ठ वैज्ञानिकों से बात करने का मौका मिलेगा.'' कोठारी ने बताया कि, ''अभी इसरो के निदेशक डॉ. वी. नारायणन ने इस संवाद में शामिल होने की सहमति दी है. इनके अलावा भोपाल में भी 16 शोध संस्थान हैं, उनके वैज्ञानिक भी संवाद में शामिल होंगे.'' 4 दिन तक बीयू परिसर में लगेगा मेला विज्ञान की नवीनतम उपलब्धियों और नवाचारों का भव्य विज्ञान मेला का आयोजन किया जा रहा है. बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय (बीयू) के मैदान एवं ज्ञान विज्ञान भवन परिसर में 12वां विज्ञान मेला 26 से 29 सितंबर तक आयोजित होगा. इस आयोजन में देश के विभिन्न अंचलों से विज्ञानी, शोधकर्ता, विद्यार्थी और शिक्षक शामिल होंगे. इस मेले का उद्देश्य नवाचार और संवाद के माध्यम से समाज के सामने आने वाली चुनौतियों के समाधान प्रस्तुत करना है. विज्ञान मेले में ये रहेगा खास इस आयोजन में प्रमुख आकर्षण अत्याधुनिक विज्ञान प्रदर्शनी, टेक्नोलॉजी शो और इनोवेशन स्टॉल होंगे. इसमें राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थान इसरो, एनटीपीसी, एम्प्री सहित अन्य सस्थानों की प्रदर्शनी लगाई जाएगी. इसमें सरकारी, निजी, गैर सरकारी संगठन, संस्थान, कंपनियां, सामाजिक संगठन और स्कूल-कालेज सक्रिय रूप से भाग लेंगे. पंजीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है. इच्छुक प्रतिभागी निर्धारित पोर्टल पर पंजीयन कर सकते हैं. कार्यशालाएं, व्याख्यान और विशेष सत्र होंगे इस विज्ञान मेले में कार्यशालाएं, व्याख्यान और विशेष सत्र होंगे. नवाचार संगम में कृषि, पर्यावरण से संबंधित सामाजिक समस्याओं पर तकनीकी समाधान के नवाचार पर आधारित इस प्रतियोगिता में आमंत्रित किए गए हैं. इसमें 315 पंजीकरण हुए हैं. वहीं ज्ञान सेतु में विज्ञान शिक्षक कार्यशाला, उपस्थित विज्ञान शिक्षकों को विज्ञान प्रयोग किट का वितरण किया जाएगा. वहीं भारतीय ज्ञान परंपरा संगोष्ठी में विविध राष्ट्रीय एवं राज्य के शोध एवं शिक्षा संस्थानों से करीब 200 विज्ञानी एवं प्राध्यापक रहेंगे. इस गोष्ठी में भारतीय ज्ञान परंपरा-राष्ट्रीय प्रकोष्ठ के संयोजक आईआईटी इंदौर के प्रोफेसर गंटी सूर्यनारायण मूर्ती का मार्गदर्शन भी मिलेगा. सीधा संवाद कार्यक्रम में 300 विद्यार्थी प्रतिदिन विज्ञानियों से संवाद का अवसर पाएंगे. इसके अलावा स्कूल और कॉलेज विद्यार्थियों द्वारा सांस्कृतिक एवं विशेष प्रस्तुतियां होंगी.  

भारत का सबसे बड़ा स्पेसपोर्ट तैयार, ISRO दिसंबर 2026 से करेगा रॉकेट लॉन्चिंग की शुरुआत

कुलसेकरपट्टिनम  भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम अब नई ऊंचाई की ओर बढ़ रहा है. आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के बाद तमिलनाडु के तूतीकोरिन जिले के कुलसेकरपट्टिनम में देश का दूसरा बड़ा लॉन्च कॉम्प्लेक्स तैयार किया जा रहा है. ISRO प्रमुख वी. नारायणन ने बुधवार को भूमि पूजन के बाद घोषणा की कि दिसंबर 2026 तक यह प्रोजेक्ट पूरा हो जाएगा. इस विशाल कॉम्प्लेक्स को 2,300 एकड़ जमीन पर विकसित किया जा रहा है. यहां से हर साल करीब 20 से 25 रॉकेट लॉन्च होंगे. खास बात यह है कि यहां से छोटे उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV) छोड़े जाएंगे, जो 500 किलो तक का पेलोड 400 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंचा सकते हैं. नारायणन ने कहा, ‘हमारा लक्ष्य दिसंबर 2026 तक सारा काम पूरा करने का है. अगले साल की चौथी तिमाही तक हम यहां से पहला लॉन्च करने की योजना बना रहे हैं. प्रधानमंत्री सही समय पर लॉन्च की तारीख की घोषणा करेंगे.’ इस लॉन्च कॉम्प्लेक्स का शिलान्यास फरवरी 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए किया था. क्यों जरूरी था नया स्पेसपोर्ट?     अब तक इसरो का मुख्य लॉन्च सेंटर श्रीहरिकोटा रहा है, जहां से 1971 से PSLV और GSLV जैसे बड़े रॉकेट छोड़े जाते हैं. लेकिन छोटे रॉकेट, खासकर SSLV, के लिए वहां से पोलर ऑर्बिट में लॉन्च करना मुश्किल है.     कारण है श्रीलंका. श्रीहरिकोटा से सीधे दक्षिण की ओर लॉन्च करने पर रॉकेट श्रीलंका के ऊपर से गुजरते. इस खतरे से बचने के लिए रॉकेटों को ‘डॉगलेग मैन्युवर’ करना पड़ता है. यानी पहले पूर्व की ओर मुड़ना और फिर दक्षिण की ओर झुकना.     यह घुमाव छोटे रॉकेटों के लिए बेहद महंगा पड़ता है क्योंकि इसमें ज्यादा ईंधन खर्च होता है और पेलोड की क्षमता भी कम हो जाती है. यही वजह है कि कुलसेकरपट्टिनम चुना गया. कुलसेकरपट्टिनम ही क्यों?     कुलसेकरपट्टिनम समुद्र किनारे स्थित है. यहां से सीधे दक्षिण की ओर रॉकेट छोड़े जा सकते हैं, जहां हजारों किलोमीटर तक सिर्फ महासागर है, कोई आबादी नहीं. इसका फायदा यह है कि रॉकेट सीधे पोलर ऑर्बिट की तरफ जाएगा, बिना अतिरिक्त ईंधन खर्च किए.     इसरो वैज्ञानिकों का कहना है कि इस कदम से छोटे उपग्रहों की लॉन्चिंग लागत काफी कम होगी और अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत की प्रतिस्पर्धा और बढ़ेगी.     इस लॉन्च कॉम्प्लेक्स से छोटे उपग्रहों का व्यावसायिक प्रक्षेपण भी होगा. भारत की निजी स्पेस कंपनियों को भी यहां से लॉन्च करने की सुविधा मिलेगी. इससे देश का अंतरिक्ष कार्यक्रम और आत्मनिर्भर होगा. ISRO प्रमुख नारायणन के अनुसार, यह प्रोजेक्ट सिर्फ तकनीकी नहीं बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी अहम है. भारत अब छोटे उपग्रहों की ग्लोबल डिमांड को पूरा करने के लिए बेहतर स्थिति में होगा. श्रीहरिकोटा से बड़े रॉकेट उड़ान भरेंगे और कुलसेकरपट्टिनम से छोटे उपग्रह, इसरो का यही भविष्य का खाका है. दिसंबर 2026 से जब यहां से रॉकेटों की गड़गड़ाहट गूंजेगी, तब भारत की अंतरिक्ष यात्रा का नया अध्याय लिखा जाएगा.

भारत के पास होंगे नए हाईटेक डिफेंस सैटेलाइट्स, तैयारियों में ISRO और प्राइवेट कंपनियां

नई दिल्ली ऑपरेशन सिंदूर के बाद दुश्मन के इलाके पर लगातार नजर रखने की जरूरत महसूस की जा रही है। इसलिए, भारत अपनी सेना के लिए 52 नए सैटेलाइट (डिफेंस सर्विलांस सैटेलाइट) जल्दी ही लॉन्च करने की योजना बना रहा है। साथ ही एक मजबूत मिलिट्री स्पेस डॉक्ट्रिन ( अंतरिक्ष में युद्ध के नियम) भी तैयार कर रहा है। पिछले साल अक्टूबर में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ने स्पेस-बेस्ड सर्विलांस (SBS) प्रोग्राम के तीसरे चरण को मंजूरी दी थी। इस पर 26,968 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। इसके तहत, इसरो (ISRO) 21 सैटेलाइट बनाएगा और तीन प्राइवेट कंपनियां 31 सैटेलाइट बनाएंगी। 2026 अप्रैल तक पहला डिफेंस सर्विलांस सैटेलाइट लॉन्च होगा इनमें से पहला डिफेंस सर्विलांस सैटेलाइट 2026 के अप्रैल तक लॉन्च हो जाएगा। 2029 के अंत तक सभी 52 सैटेलाइट लॉन्च करने की योजना है। यह प्रोजेक्ट डिफेंस स्पेस एजेंसी (DSA) की अगुवाई में चल रहा है। डीएसए रक्षा मंत्रालय के इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (IDS) का हिस्सा है। एक सूत्र ने TOI को बताया, 'सैटेलाइट को जल्दी ही लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) और जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में लॉन्च करने के लिए काम चल रहा है। जिन तीन प्राइवेट कंपनियों को कॉन्ट्रैक्ट मिला है, उन्हें सैटेलाइट बनाने की गति बढ़ाने के लिए कहा गया है।' लो अर्थ ऑर्बिट पृथ्वी के करीब की कक्षा है, जबकि जियोस्टेशनरी ऑर्बिट पृथ्वी से बहुत दूर की कक्षा है। 2026 के अंत तक तैयार हो जाएंगे सैटेलाइट्स भारत सरकार ने तीन प्राइवेट कंपनियों—अनंत टेक्नोलॉजीज, सेंटम इलेक्ट्रॉनिक्स और अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज को सैटेलाइट बनाने के समय को चार साल से घटाकर 12-18 महीनों में पूरा करने को कहा है। अब ये सैटेलाइट्स 2026 के अंत तक तैयार हो सकते हैं, जबकि पहले इनका प्लान 2028 का था। अनंत टेक्नोलॉजीज जिस सैटेलाइट को बना रही है, उस सैटेलाइट के इसी साल तैयार हो जाने की संभावना है। इसे ISRO के भारी रॉकेट LVM-3 या फिर एलन मस्क की कंपनी SpaceX के जरिए लॉन्च किया जा सकता है। 3 बिलियन डॉलर की योजना ये सारी प्रक्रिया 3 बिलियन डॉलर की Space-based Surveillance-3 (SBS-3) योजना के तहत हो रही है, जिसे अक्टूबर में कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) ने मंजूरी दी थी। इसके तहत कुल 52 निगरानी सैटेलाइट बनाए जा रहे हैं। इनमें से 31 प्राइवेट कंपनियां बना रही हैं और बाकी ISRO धीरे-धीरे बनाएगा। कौन कंपनियां बना रहीं हैं ये सैटेलाइट तीनों कंपनियां—हैदराबाद की अनंत टेक्नोलॉजीज, बेंगलुरु की सेंटम इलेक्ट्रॉनिक्स और अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज ISRO की पुरानी पार्टनर और सप्लायर रही हैं। इन्होंने पहले भी निगरानी सैटेलाइट्स और चंद्रयान-3 जैसे मिशनों में अहम भूमिका निभाई है। अनंत टेक्नोलॉजीज़, जिसे ISRO के पूर्व साइंटिस्ट सुब्बा राव पावुलुरी लीड कर रहे हैं और सेंटम इलेक्ट्रॉनिक्स, जिसके चेयरमैन अप्पाराव मल्लवारपू हैं। इन दोनों कंपलियों ने चंद्रयान-3 में अहम कॉम्पोनेंट्स सप्लाई किए थे। तीसरी कंपनी, अल्फा डिजाइन को अप्रैल 2019 में अदाणी डिफेंस एंड एयरोस्पेस ने पूरी तरह खरीद ली थी। ये कंपनी ISRO के लिए NavIC सैटेलाइट्स बनाने में भी शामिल रही है, जो कि भारत का खुद का GPS सिस्टम है। प्राइवेट कंपनियां का संवेदनशील प्रोजेक्ट्स में बड़ी भूमिका सरकारी कॉन्ट्रैक्ट्स प्राइवेट स्पेस कंपनियों के लिए बहुत अहम होते हैं। स्पेस इंडस्ट्री के एक्सपर्ट्स भी मानते हैं कि प्राइवेट कंपनियां बड़े और संवेदनशील प्रोजेक्ट्स में बड़ी भूमिका निभा सकती हैं। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के स्पेस फेलो चैतन्य गिरी ने बताया कि ये कंपनियां पहले से ही ISRO की सप्लायर हैं, इसलिए इनके लिए सैटेलाइट्स बनाना और लॉन्च करना कोई नई बात नहीं है। भारत के रक्षा मंत्रालय की ओर से इन सैटेलाइट्स निर्माण की प्रक्रिया तेज करने का ‘सॉफ्ट ऑर्डर’ उस वक्त आया, जब भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ 'ऑपरेशन सिंदूर' की शुरुआत की थी। चीन-पाकिस्तान से हिंद महासागर क्षेत्र तक पर रहेगी नजर सूत्र ने आगे बताया,'स्पेस-बेस्ड सर्विलांस (SBS)-3 का लक्ष्य चीन और पाकिस्तान के बड़े इलाकों के साथ-साथ हिंद महासागर क्षेत्र को भी कवर करना है। इसके लिए, सैटेलाइट कम समय में एक ही जगह की तस्वीरें ले सकेंगे और उनकी क्वालिटी भी बेहतर होगी। स्पेस डॉक्ट्रिन को भी बेहतर बनाया जा रहा है।'इसका मतलब है कि सैटेलाइट पहले से अधिक तेजी से और बेहतर तरीके से जानकारी जुटा पाएंगे। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन की ओर से पाकिस्तान की सक्रिय सपोर्ट की रिपोर्ट आ चुकी हैं। ऐसे में अंतरिक्ष में चीन की बढ़ती ताकत को अब भारत के लिए नजरअंदाज करना नाममुकिन हो चुका है। हाई-एल्टीट्यूड प्लेटफॉर्म सिस्टम खरीदने की भी तैयारी इसके साथ ही भारतीय वायुसेना (IAF) तीन हाई-एल्टीट्यूड प्लेटफॉर्म सिस्टम (HAPS) एयरक्राफ्ट खरीदने की तैयारी कर रही है। HAPS एक तरह के ड्रोन होते हैं, जो बहुत ऊंचाई पर उड़ते हैं और लंबे समय तक खुफिया जानकारी जुटाने, निगरानी करने और टोह लेने (ISR) का काम करते हैं। इन्हें 'स्यूडो-सैटेलाइट'(छद्म सैटेलाइट) भी कहा जाता है। एनबीटी ऑनलाइन पहले भी यह खबर दे चुका है। देखते ही फौरन कार्रवाई करने लायक लूप बनाने पर जोर ऑपरेशन सिंदूर (पाकिस्तान के खिलाफ 7 से 10 मई के बीच) के दौरान भारत ने कार्टोसैट जैसे घरेलू सैटेलाइट और विदेशी कमर्शियल सैटेलाइट का इस्तेमाल करके पाकिस्तानी सेना की हरकतों पर नजर रखी थी। एक और सूत्र ने कहा, 'हमें अपने ऑब्जर्व, ओरिएंट, डिसाइड एंड एक्ट (OODA) लूप को छोटा करना होगा। भारत जितनी जल्दी 52 सैटेलाइट को अंतरिक्ष में स्थापित करेगा, उतना ही बेहतर होगा।' OODA लूप का मतलब है कि किसी भी स्थिति को देखकर, समझकर, फैसला लेकर तुरंत कार्रवाई करना। अंतरिक्ष में भी चीन की चुनौती से निपटने की तैयारी जरूरी भारत को अपनी सैटेलाइट की सुरक्षा के लिए भी एक शील्ड भी बनानी होगी। क्योंकि, चीन डायरेक्ट एसेंट एंटी-सैटेलाइट मिसाइल, को-ऑर्बिटल सैटेलाइट, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर उपकरण और हाई-पावर्ड लेजर जैसे हथियार बना रहा है। इनका इस्तेमाल करके वह दूसरे देशों को अंतरिक्ष के इस्तेमाल को सीमित कर सकता है। चीन का मिलिट्री स्पेस प्रोग्राम 2010 में सिर्फ 36 सैटेलाइट से बढ़कर 2024 तक 1,000 से ज्यादा सैटेलाइट तक पहुंच गया था। इनमें से 360 सैटेलाइट ISR (खुफिया जानकारी जुटाने, निगरानी करने और टोह लेने) मिशन के लिए हैं। रियल-टाइम सिचुएशनल अवेयरनेस की आवश्यकता अहम इस महीने की शुरुआत में एक सेमिनार में आईडीएस चीफ एयर मार्शल आशुतोष दीक्षित ने भारत के 'निगरानी दायरे' को बढ़ाने की … Read more