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डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य: छठ व्रत के समय पूजा का महत्व

लोक आस्था का महापर्व छठ  25 अक्टूबर से ‘नहाय-खाय’ के साथ शुरू हो रहा है और 28 अक्टूबर को ‘उषा अर्घ्य’ के साथ इसका समापन होगा. चार दिनों तक चलने वाले इस कठिन व्रत में सूर्य देव और छठी मैया की उपासना की जाती है. इस पर्व की सबसे अनूठी और महत्वपूर्ण रीत है डूबते हुए सूर्य (संध्या अर्घ्य) और उगते हुए सूर्य (उषा अर्घ्य) को अर्घ्य देना. हिंदू धर्म में आमतौर पर उगते सूर्य को ही जल चढ़ाया जाता है, लेकिन छठ ही एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें पहले अस्ताचलगामी (डूबते) सूर्य और फिर उदयगामी (उगते) सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. आइए जानते हैं छठ पूजा में सुबह और शाम की पूजा में क्या अंतर है. छठ पूजा: शाम की पूजा (डूबते सूर्य को अर्घ्य) तीसरा दिन छठ पर्व के तीसरे दिन, यानी कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इसे संध्या अर्घ्य भी कहते हैं. मान्यता है कि शाम के समय सूर्य देव अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ होते हैं, जो सूर्य की अंतिम किरण हैं. इसलिए इस अर्घ्य को प्रत्यूषा अर्घ्य भी कहा जाता है. डूबते सूर्य को अर्घ्य देना इस बात का प्रतीक है कि जीवन में हर उत्थान (उगने) के बाद पतन (डूबना) निश्चित है और हमें अपने जीवन के उतार-चढ़ावों को स्वीकार करना चाहिए. इस अर्घ्य से भक्तों के जीवन से अंधकार दूर होता है. इस दिन व्रती महिलाएं और पुरुष कमर तक पानी में खड़े होकर, बांस के सूप या पीतल की टोकरी में फल, ठेकुआ, गन्ना आदि पूजा सामग्री रखकर अर्घ्य देते हैं. छठ पूजा: सुबह की पूजा (उगते सूर्य को अर्घ्य) चौथा दिन छठ पर्व के चौथे और अंतिम दिन, यानी सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इसे उषा अर्घ्य कहा जाता है. धार्मिक मान्यता है कि सूर्योदय के समय सूर्य देव अपनी पत्नी ऊषा के साथ होते हैं, जो सूर्य की पहली किरण हैं और जिन्हें भोर की देवी भी कहा जाता है. इसलिए इसे उदयगामी अर्घ्य या ऊषा अर्घ्य कहते हैं. उगते सूर्य को अर्घ्य देना नवजीवन, वर्तमान और सुनहरे भविष्य का प्रतीक है. व्रती सूर्य देव से शक्ति, स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि और संतान के दीर्घायु होने का आशीर्वाद मांगते हैं. उदयगामी अर्घ्य देने के बाद ही छठ महापर्व का विधिवत समापन होता है और व्रती अपना 36 घंटे का निर्जला व्रत खोलते हैं. इस दिन व्रती फिर से नदी या तालाब में खड़े होकर, सूर्य की पहली किरण को दूध और जल से अर्घ्य देकर छठी मैया और सूर्य देव की आराधना करते हैं. डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने का महत्व माना जाता है कि संध्या अर्घ्य जहां जीवन की कठिनाइयों को दूर करने की प्रार्थना है, वहीं उषा अर्घ्य सभी मनोकामनाओं की पूर्ति और नए जीवन के आरंभ का प्रतीक है. इस प्रकार, छठ महापर्व न केवल सूर्य की उपासना का त्योहार है, बल्कि यह पवित्रता, अनुशासन, और जीवन के हर पड़ाव को सम्मान देने की भारतीय संस्कृति के गहरे मूल्यों को भी दर्शाता है.

घर और ऑफिस में तांबे का सूरज लगाएं, करें करियर और मान-सम्मान की वृद्धि

वास्तु के अनुसार घर की सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने के लिए हम कई तरह के उपायों को आजमाना पसंद करते हैं। घर के हर एक कोने में हम वास्तु के अनुसार ही चीजों का प्लेसमेंट करते हैं, जिससे समृद्धि बनी रहे। ऐसी ही चीजों में से एक है घर में तांबे का सूरज लगाना। वास्तुशास्त्र के अनुसार, तांबे का सूरज घर में लगाना न केवल सौंदर्य बढ़ाता है बल्कि यह एक सकारात्मक और सशक्त वातावरण भी प्रदान करता है। तांबे का सूरज घर में लगाने के कई फायदे होते हैं। तांबा एक महत्वपूर्ण धातु है, जिसे सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। तांबे का सूरज घर के उत्तर-पूर्व दिशा में स्थापित करने से विशेष लाभ मिलता है। तांबा सूर्य का प्रतीक है, जो जीवन और ऊर्जा का स्रोत है। इसे घर में लगाने से घर में सकारात्मकता और जीवन शक्ति का संचार होता है। इससे परिवार के सदस्यों में स्वास्थ्य, खुशी और समृद्धि बढ़ती है। तांबा गर्मी को संतुलित करता है। यह घर के वातावरण को शुद्ध करता है और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है। इस प्रकार घर में ताजगी और शांति बनी रहती है। तांबे का सूरज व्यक्ति की मनोबल को भी बढ़ाता है। यह आत्मविश्वास और ऊर्जा को बढ़ाने में सहायक होता है, जिससे व्यक्ति अपने लक्ष्यों को बेहतर तरीके से प्राप्त कर सकता है। वास्तु की मानें तो घर में तांबे का सूर्य पूरे घर के लिए ऊर्जा का एक उत्कृष्ट स्रोत माना जाता है। यदि आप सूर्य की ऊर्जा का प्रतीक तांबे का सूरज घर में लगाते हैं तो आपके घर के चारों तरफ यश, र्कीति और खुशहाली बनी रहती है। तांबे को एक प्रभावशाली धातु के रूप में जाना जाता है और मान्यता है कि इस तरह का सूरज घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। यह घर के लोगों के बीच सामंजस्य बनाए रखने में मदद करता है और इससे निकलने वाली ऊर्जा वातावरण में समृद्धि जोड़ती है, जिससे पारिवारिक कलह से मुक्ति मिलती है। यदि आप लोकप्रियता हासिल करना चाहते हैं तो अपने घर में तांबे का सूर्य अवश्य लगाना चाहिए। यदि आप किसी कार्यस्थल पर इसे लगाते हैं तो यह सफलता दिलाने में मदद करता है।

युगों पुरानी छठ परंपरा की कहानी: जानें इसका आरंभ कहाँ हुआ

लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा कल से शुरू हो रही है. छठ पूजा छठी मैया और भगवान सूर्य को समर्पित की गई है. छठ पूजा में भगवान सूर्य और छठी मैया की पूजा की जाती है. ये महापर्व चार दिनों तक चलता. कल से शुरू होने वाली छठ पूजा का समापन 28 अक्टूबर को होगा. कल नहाय-खाय से ये महापर्व शुरू होगा. 28 अक्टूबर को उदयगामी सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही महापर्व का समापन हो जाएगा. छठ पूजा वर्तमान में नहीं, बल्कि युगों से होती हुई चली आ रही है. छठ पूजा की उत्पत्ति को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. छठ पूजा की शुरुआत बिहार एक जिले से हुई थी. आइए जानते हैं कि बिहार का वो कौनसा जिला है, जहां से छठ महापर्व की शुरुआत हुई? मुंगेर से हुई थी छठ पूजा की शुरुआत छठ पूजा की शुरुआत सबसे पहले बिहार के मुंगेर से हुई थी.धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता सीता ने सबसे पहला छठ पूजन बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर किया था. इसके बाद छठ महापर्व की शुरुआत हुई. वाल्मीकि और आनंद रामायण के अनुसार मुंगेर में माता सीता ने छह दिनों तक रहकर छठ पूजन किया था. दरअसल, भगवान राम को रावण वध का पाप लगा था. इस पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के कहने पर प्रभु ने फैसला किया वो राजसूय यज्ञ कराएंगे. इसके बाद मुग्दल ऋषि को आमंत्रण भेजा गया, लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम और माता सीता आदेश दिया कि वो दोनों ही उनके आश्रम में आएं. इसके बाद बाद मुग्दल ऋषि ने माता सीता को सूर्य की अराधना करने की सलाह दी. मुग्दल ऋषि के कहने पर माता सीता ने व्रत किया. माता सीता ने की थी सूर्य देव की अराधना ऋषि के आदेश पर माता सीता ने कार्तिक मास की षष्ठी तिथि पर मुंगेर के बबुआ गंगा घाट के पश्चिमी तट पर भगवान सूर्य की अराधना की. सूर्य देव की अराधना के दौरान माता सीता ने अस्ताचलगामी सूर्य को पश्चिम दिशा की ओर उदयगामी सूर्य को पूर्व दिशा की ओर अर्घ्य दिया था. जिस जगह पर माता सीता ने व्रत किया, वह सीता चारण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. इतना ही नहीं मंदिर के गर्भ गृह में पश्चिम और पूर्व दिशा की ओर माता सीता के चरणों के निशान आज भी मौजूद हैं. साथ ही शिलापट्ट पर सूप, डाला और लोटा के निशान हैं.

महिलाओं के लिए छठ का महत्व: कठिन व्रत में छिपा सुख और समर्पण

लोक आस्था का महापर्व ‘छठ पूजा’ न केवल बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे देश में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है. यह चार दिवसीय व्रत कठोर तपस्या, प्रकृति प्रेम और सूर्य देव के प्रति अटूट आस्था का प्रतीक है. दिवाली के ठीक बाद, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से सप्तमी तक मनाया जाने वाला यह पर्व महिलाओं द्वारा मुख्य रूप से अपनी संतान की लंबी आयु, परिवार के सुख-समृद्धि और मनोवांछित संतान की प्राप्ति के लिए रखा जाता है. आइए, जानते हैं कि महिलाएं क्यों रखती हैं यह कठिन व्रत और क्या है इसका महत्व. संतान सुख की कामना और छठी मैया का आशीर्वाद छठ व्रत का सबसे बड़ा और प्राथमिक महत्व संतान सुख से जुड़ा है. संतान की दीर्घायु और कुशलता: महिलाएं अपनी संतान की रक्षा, अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयु के लिए यह 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं. संतान प्राप्ति का वरदान: यह व्रत नि:संतान दंपत्तियों के लिए भी बहुत लाभदायक माना जाता है. मान्यता है कि छठी मैया (षष्ठी देवी) की आराधना से उन्हें पुत्र या पुत्री रत्न की प्राप्ति होती है और उनकी सूनी गोद भर जाती है. छठी मैया कौन हैं? पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठी मैया को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री और बच्चों की रक्षा करने वाली देवी माना जाता है. वे सृष्टि की रचना करने वाली देवी प्रकृति का छठा अंश हैं. यह भी मान्यता है कि ये सूर्य देव की बहन हैं, इसलिए छठ पर्व पर सूर्य के साथ छठी मैया की भी पूजा की जाती है. सूर्य देव की उपासना से आरोग्य और सौभाग्य छठ पूजा में प्रत्यक्ष देवता सूर्य देव की उपासना की जाती है. सूर्य को आरोग्य, ऊर्जा और जीवन का दाता माना गया है. स्वास्थ्य और रोगों से मुक्ति: सूर्य को आरोग्य का देवता कहा जाता है. छठ व्रत रखने से व्रतियों और उनके परिवार को उत्तम स्वास्थ्य, तेज और दीर्घायु की प्राप्ति होती है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी, सुबह और शाम के समय सूर्य को अर्घ्य देने से सूर्य की ऊर्जा शरीर को लाभ पहुंचाती है और रोगों से लड़ने की शक्ति मिलती है. सुख-समृद्धि और सौभाग्य: सूर्य देव को अर्घ्य देने से कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है, जिससे जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य का आगमन होता है. सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए भी यह व्रत रखती हैं. छठ व्रत इतना कठिन क्यों? निर्जला व्रत (36 घंटे तक): यह व्रत लगभग 36 घंटों तक चलता है, जिसमें व्रती (व्रत रखने वाला) को न तो कुछ खाना होता है और न ही पानी पीना होता है. इतने लंबे समय तक बिना पानी के रहना शारीरिक सहनशक्ति की एक कठिन परीक्षा है. कठोर शुद्धता और नियम: छठ पर्व की शुरुआत से लेकर समापन तक शुद्धता और पवित्रता के बहुत कड़े नियम होते हैं, जिनका चार दिनों तक सख्ती से पालन करना होता है. इसमें व्रती को अपने हाथ से ही सारा काम करने की निष्ठा रखनी पड़ती है. ठंडे जल में खड़े होकर पूजा: कार्तिक मास की ठंडी ऋतु में व्रती को नदी, तालाब या घाट पर ठंडे जल में घंटों खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देना होता है, जो शारीरिक रूप से बेहद चुनौतीपूर्ण होता है. चार दिनों का महापर्व: तिथियां 2025 छठ पूजा का पर्व चार दिनों तक चलता है, जिसकी शुरुआत ‘नहाय-खाय’ से होती है और समापन ‘उषा अर्घ्य’ के साथ होता है.     पहला दिन 25 अक्टूबर नहाय-खाय: नदी में स्नान और शुद्ध, सात्विक भोजन ग्रहण.     दूसरा दिन 26 अक्टूबर खरना: दिनभर उपवास, शाम को गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण, जिसके बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू.     तीसरा दिन 27 अक्टूबर संध्या अर्घ्य: डूबते सूर्य को अर्घ्य देना.     चौथा दिन 28 अक्टूबर उषा अर्घ्य: उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण (समापन) प्रकृति और लोक संस्कृति का अद्भुत संगम छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह प्रकृति, जल और सूर्य की उपासना से जुड़ा लोक संस्कृति का अद्भुत पर्व है. इस दौरान घाटों को सजाया जाता है, पारंपरिक लोकगीत गाए जाते हैं, और प्रसाद में ठेकुआ, चावल के लड्डू और मौसमी फलों का उपयोग होता है, जो शुद्धता और सादगी का प्रतीक है. यही कारण है कि यह महापर्व करोड़ों लोगों के लिए केवल एक व्रत नहीं, बल्कि जीवन में सकारात्मक, परिवार के कल्याण और प्रकृति के प्रति सम्मान व्यक्त करने का एक अनूठा माध्यम है.

जानें कौन सा घर का कोना है धनवृद्धि का मार्ग, बस रखें खाली फ्लावर पॉट

घर में खुशहाली और आर्थिक समृद्धि बनाए रखना हर किसी की इच्छा होती है। वास्तु शास्त्र में कुछ आसान लेकिन असरदार उपाय बताए गए हैं, जो जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। इनमें से एक सरल और प्रभावशाली तरीका है- घर के सही कोने में खास रंग का खाली फ्लावर पॉट रखना। यह न केवल घर की ऊर्जा को संतुलित करता है, बल्कि अनावश्यक खर्चों को कम करने में भी मदद करता है। बस दो छोटे उपायों को अपनाकर आप अपने घर और जीवन में सुख-समृद्धि ला सकते हैं। फ्लावर पॉट के लिए सही कोने का चयन वास्तु के अनुसार, घर के उत्तर-पूर्वी या दक्षिण-पश्चिमी कोने में खाली फ्लावर पॉट रखना शुभ माना जाता है। यह कोना सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है और घर के वातावरण में संतुलन बनाता है। साथ ही घर-परिवार में खुशहाली और समृद्धि बनी रहती है। फ्लावर पॉट के लिए रंगों का महत्व वास्तु के अनुसार, फ्लावर पॉट का रंग भी बहुत मायने रखता है। इसलिए घर में खाली फ्लावर पॉट रखते समय रंगों का चयन करना भी बहुत जरूरी है। घर में सफेद, हरे, नीले रंग के फ्लावर पॉट रखने चाहिए क्योंकि यह शांति और मानसिक स्थिरता को स्थिर रखते हैं और धन, समृद्धि बढ़ाने में सहायक होते हैं। साथ ही इन रंगों के फ्लावर पॉट रखने से घर में सकारात्मक ऊर्जा और मानसिक स्पष्टता बनी रहती है।

भविष्य सफल बनाना है? तो तुरंत छोड़ें ये 5 आदतें

हर इंसान में कुछ अच्छी और कुछ बुरी आदतें होती है। लेकिन खुद को बेहतर इंसान बनाना चाहते हैं तो रोजाना की कुछ आदतों का ध्यान रखना जरूरी होता है क्योंकि यहीं वो आदते हैं जो हमें ना केवल हेल्दी बनाती हैं बल्कि लाइफ में आगे बढ़ने में मदद करती हैं। अगर आपके अंदर ये 5 तरह की आदतें हैं तो उन्हें फौरन छोड़ दें, ये आपकी ग्रोथ को रोकते हैं। दूसरों से तुलना दूसरों से खुद की तुलना करना सबसे बड़ी बुरी आदत है। क्योंकि ये ना केवल आपके मेंटल पीस को खत्म करता है बल्कि लाइफ में मिलने वाली संतुष्टि को खत्म करता है। कई बार दूसरों से तुलना के चक्कर में अपने लक्ष्य तक पहुंचने की बजाय भटक जाते हैं। जल्दी से हार मान लेना अगर किसी काम में सफलता नहीं मिलती तो फौरन उस काम से हार मान लेना भी एक बुरी आदत है। क्योंकि ये आदत आपको सफल नहीं होने देती है। अगर आप चाहते हैं कि खुद को बेहतर इंसान बनाएं तो आसानी से हार मानने की बजाय बार-बार कोशिश करें। काम टालने की आदत अगर आप भी आज के काम को कल पर टालते हैं तो ये आदत फौरन छोड़ दें। ये आदत आपको बाकी लोगों से पीछे छोड़ देगी क्योंकि आपके कई काम अधूरे होंगे। हमेशा परफेक्ट होने की चाह अगर आपको हर चीज सही समय पर और बिल्कुल परफेक्ट चाहिए तो इस आदत को भी छोड़ दें। कई बार सही समय आने का इंतजार करने के चक्कर में आप नई चीजों को शुरू नहीं करते। हमेशा शिकायत करना सुनकर काफी नॉर्मल सी बात लगती है लेकिन अगर आप लोगों की कंप्लेन करते हैं। तो धीरे-धीरे ये आपकी आदत बन जाती है और आप दूसरों के निगेटिव साइड पर ज्यादा फोकस करने लगते हैं।  

तुलसी के ये उपाय कार्तिक मास में करेंगे आपको मालामाल!

कार्तिक का महीना व्रतों और त्योहारों के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण होता है. इस माह में करवा चौथ, धनतेरस और दिवाली जैसे त्योहार मनाए जाते हैं. देवउठनी एकादशी भी इसी माह में पड़ती है. जब भगवान विष्णु चार माह की योगनिद्रा से जागते हैं और चतुर्मास का समापन होता है, जिसके बाद विवाह समेत तमाम मांगलिक कामों की शुरुआत हो जाती है. कार्तिक माह भगवान विष्णु को समर्पित किया गया है. इस माह में भगवान विष्णु का विधि-विधान से पूजन किया जाता है. इस माह में भगवान विष्णु के साथ माता तुलसी की भी पूजी जाती है. माता तुलसी देवी लक्ष्मी का स्वरूप मानी जाती हैं. ऐसे में इस माह में उनकी पूजा का विशेष महत्व धर्म शास्त्रों में बताया गया है. कार्तिक मास में तुलसी पूजन और कुछ विशेष उपाय करने से माता लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि और धन संपदा बढ़ती है. वैदिंक पंचांग के अनुसार, इस साल आठ अक्टूबर से कार्तिक के महीने की शुरुआत हो चुकी है. ये कार्तिक मास अगले महीने पांच नवंबर तक रहेगा. तुलसी के उपाय जल चढ़ाएं कार्तिक मास में रोज जल चढ़ाना चाहिए. ऐसा करना शुभ होता है. इससे माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, लेकिन द्वादशी तिथि को जल नहीं चढ़ाना चाहिए. तुलसी के सामने दीपक जलाएं कार्तिक के पूरे महीने के दौरान तुलसी के सामने घी का दीपक अवश्य प्रज्वलित करना चाहिए. ऐसा शाम के समय में करना चाहिए. तुलसी पर दूध चढ़ाएं कार्तिक माह में रोजाना जल में थोड़ा सा दूध डालकर माता तुलसी को चढ़ाना चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से आर्थिक तंजी से छुटकारा मिल जाता है. तुलसी पर चढ़ाएं 16 श्रृंगार कार्तिक मास में तुलसी माता को चुनरी चढ़ानी चाहिए. साथ ही 16 श्रृंगार का सामान भी अर्पित करना चाहिए. ऐसा करने से दांपत्य जीवन खुशहाल रहता है. तुलसी की मिट्टी कार्तिक मास में तुलसी को जल देने के बाद रोजाना उनके जड़ की थोड़ी सी मिट्टी अपने माथे और नाभि पर लगानी चाहिए. ऐसा करने माता तुलसी आशीर्वाद देती हैं.  

वास्तु के अनुसार इस दिशा में लगाएं पारिजात, जीवन में आएगी तरक्की और सकारात्मक ऊर्जा

 हिंदू धर्म में पारिजात के पौधे का विशेष धार्मिक महत्व बताया गया है. सफेद-नारंगी रंग के पारिजात के इन फूलों को हरसिंगार या रात की रानी के नाम से भी जाना जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, पारिजात के फूल माता लक्ष्मी को अत्यंत प्रिय हैं. यही कारण है कि इसे घर में लगाने से मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है. वास्तु शास्त्र में भी इस पौधे का खास महत्व है. यह पौधा नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और घर में सुख, समृद्धि और शांति लाता है, लेकिन इसे लगाते समय सही दिशा और शुभ दिन का ध्यान रखना जरूरी होता है, नहीं तो इसके विपरीत परिणाम भी मिल सकते हैं. कब लगाएं पारिजात का पौधा पारिजात के पौधे को घर में लगाने के लिए सोमवार या शुक्रवार और गुरुवार का दिन शुभ माना गया है. सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है, वहीं शुक्रवार का दिन धन की देवी माता लक्ष्मी का माना गया है, गुरुवार  का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है. इन दिनों में पौधा लगाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है और परिवार के सदस्यों के बीच सामंजस्य बना रहता है. किस दिशा में लगाएं पारिजात का पौधा वास्तु शास्त्र के अनुसार, पारिजात के पौधे को घर के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में लगाना सबसे शुभ माना गया है. यह दिशा देवताओं की दिशा कही जाती है और यहां पौधा लगाने से घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है. आप उत्तर दिशा भी इस पौधे को लगा सकते हैं. माना जाता है कि इस दिशा में पारिजात लगाने से घर से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मकता बढ़ती है. ध्यान रहे कि पौधे को कभी भी घर के दक्षिण-पश्चिम कोने में न लगाएं, क्योंकि वास्तु के अनुसार  यह दिशा स्थिरता की होती है और यहां पौधा लगाने से उन्नति रुक सकती है. पारिजात के फायदे   1. धन और समृद्धि की प्राप्ति: पारिजात का पौधा घर में धन और समृद्धि लाने वाला माना जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, जब पारिजात का पौधा घर में लगाया जाता है, तो माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है. इसके आसपास की ऊर्जा सकारात्मक रहती है, जिससे घर के सदस्यों के व्यवसाय और आर्थिक मामलों में लाभ होता है.  2. वास्तु दोष से मुक्ति: पारिजात का पौधा सिर्फ सुंदर नहीं है, बल्कि वास्तु दोष दूर करने वाला भी माना जाता है. घर में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा और अशुभ प्रभावों को यह पौधा कम करता है. इसके लगाने से घर का वातावरण स्वच्छ, शांत और सकारात्मक बनता है.  3. संतान और पारिवारिक सुख: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पारिजात का पौधा परिवार में प्रेम और सौहार्द बनाए रखने में मदद करता है. इसे लगाने से परिवार के सदस्यों के बीच मेलजोल और सामंजस्य बढ़ता है. साथ ही, इसे घर में लगाने से संतान सुख की प्राप्ति होती है.  4. पूजा में महत्व: पारिजात के फूल केवल सुंदर नहीं, बल्कि पूजा में अत्यंत शुभ माने जाते हैं. इन फूलों से देवी-देवताओं की आराधना करने पर विशेष कृपा प्राप्त होती है.  पारिजात के फूल भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को प्रिय हैं. इसलिए यह पूजा और हवन में विशेष रूप से इस्तेमाल किया जाता है, जिससे घर में आध्यात्मिक ऊर्जा और दिव्यता बनी रहती है. 

छठ महापर्व कल से आरंभ, पूजा के चार चरणों और संध्या अर्घ्य की पूरी जानकारी यहां जानें

हिंदू धर्म में छठ का पर्व बहुत ही विशेष और खास माना जाता है. इस त्योहार पर सूर्यदेव और छठी मैय्या की पूजा-उपासना की जाती है. छठ पर्व के ये 4 दिन बहुत ही खास माने जाते हैं, जो कि विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है. छठ पूजा को प्रतिहार, डाला छठ, छठी और सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है. छठ पूजा का व्रत महिलाएं अपने परिवार और पुत्र की दीर्घायु के लिए करती हैं. इस बार छठ के पर्व की शुरुआत 25 अक्टूबर, शनिवार से होने जा रही है और इसका समापन 28 अक्टूबर, मंगलवार को होगा. छठ के पर्व ये चार दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं जिसमें पहला होता है नहाय-खाय, दूसरा खरना, तीसरा संध्या अर्घ्य और चौथा ऊषा अर्घ्य-पारण. चलिए अब छठ के पर्व की सभी तिथियों के बारे में जानते हैं.  छठ पर्व 2025 कैलेंडर (Chhath Puja 2025 Calender) पहला दिन- नहाय खाय, जो कि 25 अक्टूबर 2025 को है. दूसरा दिन- खरना, जो कि 26 अक्टूबर को है. तीसरा दिन- संध्या अर्घ्य, जो कि 27 अक्टूबर को किया जाएगा.  चौथा दिन- ऊषा अर्घ्य, जो कि 28 अक्टूबर को किया जाएगा. छठ पर्व के चार दिनों का महत्व नहाय खाय (Nahay Khay)- छठ पूजा का पहला दिन होता है नहाय खाय. इस दिन व्रती किसी पवित्र नदी में स्नान करके, इस पवित्र व्रत की शुरुआत करती हैं. स्नान के बाद भोजन ग्रहण किया जाता है, जिससे व्रत की शुरुआत हो जाती है. इस दिन सूर्योदय सुबह 6 बजकर 28 मिनट पर होगा और सूर्यास्त शाम 5 बजकर 42 मिनट पर होगा.  खरना (Kharna)- छठ पूजा का दूसरा दिन होता है खरना. खरना को लोहंडा भी कहा जाता है. इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं. शाम के समय व्रती मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर गुड़ की खीर (रसिया) और घी से बनी रोटी तैयार करती हैं. सूर्य देव की विधिवत पूजा के बाद यही प्रसाद सबसे पहले ग्रहण किया जाता है. इस प्रसाद को खाने के बाद व्रती अगले दिन सूर्य को अर्घ्य देने तक अन्न और जल का पूर्ण रूप से त्याग करती हैं. संध्या अर्घ्य (Sandhya Arghya)- छठ पूजा का तीसरा और महत्वपूर्ण दिन होता है संध्या अर्घ्य. इस दिन व्रती दिनभर बिना जल पिए निर्जला व्रत रखती हैं. फिर, शाम को व्रती नदी में डूबकी लगाते हुए ढलते हुए सूरज को अर्घ्य देती हैं. इस दिन सूर्य अस्त शाम 5 बजकर 40 मिनट पर होगा. ऊषा अर्घ्य (Usha Arghya)- इस पूजा का चौथा और आखिरी दिन होता है ऊषा अर्घ्य. इस दिन सभी व्रती और भक्त नदी में डूबकी लगाते हुए उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं. इस दिन सूर्योदय सुबह 6 बजकर 30 मिनट पर होगा. अर्घ्य देने के बाद, 36 घंटे का व्रत प्रसाद और जल ग्रहण करके खोला जाता है, जिसे पारण कहा जाता है. छठ पूजा महत्व  छठ पूजा सूर्य देव और छठी मईया की आराधना का पर्व है, जिसे शुद्धता, आस्था और अनुशासन का प्रतीक माना जाता है. इस दिन व्रती पूरी निष्ठा और संयम के साथ सूर्य देव को अर्घ्य देकर जीवन में सुख, समृद्धि और संतानों के कल्याण की कामना करते हैं. यह पर्व प्रकृति, जल और सूर्य की उपासना से जुड़ा है, जो मानव जीवन में ऊर्जा और सकारात्मकता के महत्व को दर्शाता है.

कब है अक्षय नवमी — 30 या 31 अक्टूबर? जानें पूर्ण पूजा विधि और महत्व

हिंदू धर्म में कार्तिक मास का विशेष महत्व है. इस महीने में मनाए जाने वाले पर्वों में से एक है अक्षय नवमी, जिसे आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है. माना जाता है कि इस दिन किया गया कोई भी शुभ कार्य या दान-पुण्य कभी खत्म नहीं होता और इसका फल ‘अक्षय’ यानी अनंत काल तक बना रहता है. इस साल यह शुभ तिथि 30 या 31 अक्टूबर को लेकर असमंजस है. आइए जानते हैं कि 2025 में अक्षय नवमी कब है, इसकी सही पूजा विधि क्या है और इसका क्या महत्व है. अक्षय नवमी 2025: सही तारीख और शुभ मुहूर्त     पंचांग के अनुसार, अक्षय नवमी हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है.     कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि प्रारंभ 30 अक्टूबर 2025, सुबह 08 बजकर 27 मिनट से.     कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि समाप्त 31 अक्टूबर 2025, सुबह 10 बजकर 03 मिनट तक. उदयातिथि के अनुसार चूंकि नवमी तिथि का सूर्योदय 31 अक्टूबर को हो रहा है और इस दिन पूजा के लिए पर्याप्त समय (सुबह 10 बजकर 03 मिनट तक) मिल रहा है, इसलिए उदयातिथि के नियमानुसार 31 अक्टूबर 2025 को अक्षय नवमी मनाई जाएगी. आंवले के पेड़ की पूजा आंवले के पेड़ के तने को जल से सींचें. पेड़ के तने के चारों ओर कच्चा सूत (कलावा) लपेटें. फल, फूल, धूप, दीप, रोली, चंदन आदि से पूजा करें. आरती करें और 108 बार परिक्रमा करें. पूजा के बाद पेड़ के नीचे बैठकर अपनी मनोकामनाएं कहें. इस दिन सामर्थ्य अनुसार वस्त्र, अन्न, सोना, चांदी या फल-सब्जियों का दान करना चाहिए. दान करने से पुण्य ‘अक्षय’ हो जाता है. पूजा के बाद आंवले के पेड़ के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराएं और स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें. माना जाता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है. जो लोग व्रत करते हैं, उन्हें दिन भर व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए और शाम को आंवले के पेड़ की पूजा के बाद ही फलहार करना चाहिए. अक्षय नवमी का लाभ इस दिन किए गए दान-पुण्य से जीवनभर सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है. भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा से घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है. इस दिन व्रत रखने से संतान की उन्नति और दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है. अक्षय नवमी का महत्व धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षय नवमी का महत्व अक्षय तृतीया के समान ही माना जाता है. इस दिन से ही द्वापर युग का आरंभ हुआ था. यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित है. अक्षय पुण्य: इस दिन किए गए स्नान, दान, तर्पण, पूजा और सेवा कार्यों का पुण्य कभी खत्म नहीं होता और जन्म-जन्मांतर तक व्यक्ति के साथ रहता है. आंवले के पेड़ की पूजा: पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने सृष्टि को आंवले के पेड़ के रूप में स्थापित किया था. यह भी माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु आंवले के पेड़ में निवास करते हैं. इसलिए इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे हर कार्य में सफलता मिलती है. रोग मुक्ति: आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करने से व्यक्ति को रोग-दोष से मुक्ति मिलती है और उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होता है. मां लक्ष्मी का आशीर्वाद: यह नवमी मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए भी अत्यंत शुभ मानी जाती है.