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मोदी-ट्रंप रिश्तों में आएगा नया मोड़? जल्द हो सकती है अहम मुलाकात

नई दिल्ली पीएम नरेंद्र मोदी मलयेशिया के दौरे पर आसियान समिट में जा सकते हैं। यदि वह ASEAN समिट में गए तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से भी मुलाकात हो सकती है और इस पर दुनिया भर की नजरें होंगी। वह आसियान समिट से इतर डोनाल्ड ट्रंप से मिल सकते हैं। माना जा रहा है कि दोनों देशों के बीच ट्रेड डील को लेकर इस दौरान बात हो सकती है। पाकिस्तान और अमेरिका के बीच बीते कुछ महीनों में करीबी बढ़ती दिखी है और ऐसी स्थिति में नरेंद्र मोदी और ट्रंप की मुलाकात के मायने क्या होंगे, यह देखने वाली बात होगी। अमेरिका ने जिस तरह पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर को तवज्जो दी है और उन्हें वाइट हाउस तक बुलाया था, उससे कयास लग रहे हैं कि एक बार फिर से शीत युद्ध जैसे हालात बन सकते हैं। तब भारत गुटनिरपेक्षता की राजनीति करते हुए एक तरह से रूस के ब्लॉक में था। वहीं अमेरिका की गोद में पाकिस्तान बैठा था। एक बार फिर से रूस और भारत का विरोध करते हुए अमेरिका उसी रणनीति पर आगे बढ़ता दिखता है। ऐसे हालात में पीएम नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप की मीटिंग में क्या निकलता है, यह चर्चा का विषय है। अब तक सरकारी सूत्रों ने स्पष्ट नहीं किया है कि पीएम नरेंद्र मोदी का ASEAN समिट में जाना तय है या नहीं। लेकिन दौरे से इनकार भी नहीं है। बता दें कि खुद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कह चुके हैं कि वह 26 अक्तूबर से होने वाले ASEAN समिट में जाएंगे और पीएम नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की उम्मीद है। इससे पहले दोनों नेताओं की आखिरी मुलाकात इस साल फरवरी में हुई थी, जब पीएम नरेंद्र मोदी द्विपक्षीय वार्ता के लिए अमेरिका गए थे। लेकिन रिश्तों के बिगड़ने की शुरुआत तब हुई, जब अमेरिका की ओर से भारत पर मोटा टैरिफ लगाया गया। इसके अलावा डोनाल्ड ट्रंप की ओर से बार-बार दावे हुए कि उन्होंने जंग रुकवाई है। इस बात ने भी भारत को असहज किया है और दोनों देशों के रिश्ते निचले स्तर पर पहुंचे हैं।

नदीम ने रची थी गुलशन कुमार की हत्या की साजिश? वकील ने बताई अनुराधा पौडवाल से जुड़ी चौंकाने वाली वजह

मुंबई कैसेट किंग गुलशन कुमार की हत्या मेन मास्टरमाइंड नदीम सैफी थी। यह कहना है, लॉयर उज्ज्वल निकम का। 1997 में दिनदहाड़े गुलशन कुमार को गोलियों से छलनी कर दिया गया था। इस हत्याकांड ने हर किसी को झकझोर दिया था। उनकी हत्या की वजह भी अभी तक किसी को ठीक से नहीं पता। कुछ लोग इसे पैसे का लेनदेन बताते हैं। वहीं उज्ज्वल निकम ने इशारा किया है कि दोनों की सिंगर अल्का याज्ञनिक और अनुराधा पौडवाल की वजह से राइवलरी थी। इसीलिए भारत नहीं आ रहा नदीम शुभंकर मिश्रा के पॉडकास्ट में उज्ज्वल निकम से पूछा गया कि क्या गुलशन कुमार की हत्या में नदीम का हाथ था? इस पर उन्होंने जवाब दिया, 'हां, उसका हाथ था। इसीलिए वह वापस नहीं आ रहा है। वह ट्रायल फेस नहीं कर रहा है। वरना ट्रायल में क्यों नहीं आता।' नदीम कई साल यूके में रहने के बाद अब दुबई में रह रहा है। ट्रायल नहीं फेस करना चाहता नदीम उज्ज्वल ने बताया कि कुछ साल पहले नदीम ने वापस आने की इच्छा जाहिर की थी। वह बोले, 'उसने प्रपोजल दिया था कि वापस आना चाहता हूं। मैंने कहा, 'बिल्कुल वापस आओ और ट्रायल फेस करो।' वह नहीं चहता था।' क्यों हुई गुलशन कुमार की हत्या उज्ज्वल से पूछा गया कि गुलशन कुमार की हत्या क्यों हुई थी? इस पर उन्होंने जवाब दिया, 'वो एकदम अलग कहानी है। अनुराधा पौडवाल इनकी सिंगर थीं। अल्का याज्ञनिक उनकी सिंगर थीं। बस। पुलिस को लगता है कि नदीम इस हत्या का मुख्य षड्यंत्रकर्ता था। उसने ही सब रचा था। पुलिस का मानना है कि हत्या नदीम के कहने पर हुई और साजिश दुबई में रची गई।' कैसे हुई थी हत्या गुलशन कुमार वैष्णो देवी और शिव के परम भक्त थे। 12 अगस्त 1997 को वह मंदिर से पूजा करके वापस आ रहे थे तभी उन पर हमला कर दिया गया। गुलशन कुमार को 16 गोलियां लगी थीं और मौके पर ही उनका निधन हो गया। 30 अगस्त को इस हत्याकांड में नदीम-श्रवण की जोड़ी वाले नदीम का हाथ सामने आया। रिपोर्ट्स थीं कि गुलशन कुमार ने नदीम के अल्बम 'हाय अजनबी' की ठीक से पब्लिसिटी नहीं की तो वह नाराज था। हालांकि काफी पहले से दोनों के बीच काफी मनमुटाव चल रहा था।

क्या है कफाला सिस्टम? सऊदी में ऐतिहासिक बदलाव से प्रवासी मजदूरों को मिला आज़ादी का तोहफा

दुबई  सऊदी अरब में अब पहले के मुताबिक जॉब करना आसान हो गया है क्योंकि इस देश ने गुलामी की जंजीर कही जाने वाली दशकों पुरानी कफाला सिस्टम का अंत कर दिया है। यह लेबर स्पॉन्सरशिप सिस्टम था, जिसके तहत लाखों विदेशी कामगारों के जीवन और अधिकारों को नियंत्रित किया जाता था। जून 2025 में घोषित यह निर्णय अब प्रभावी हो गया है। यह प्रवासी कल्याण और श्रम अधिकारों में सुधार की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। इस सुधार से लगभग 1.3 करोड़ प्रवासी कामगारों को लाभ होने की उम्मीद है, जिनमें से अधिकांश दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया से हैं। इनमें भारतीयों की भी बड़ी संख्या है। कफाला सिस्टम क्या? कफाला, अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ 'प्रायोजन' यानी स्पॉन्सरशिप होता है। यह शब्द खाड़ी देशों में जीवन के एक तरीके को उजागर करता है। इसके तहत कोई भी विदेशी कामगार या श्रमिक वहां किसी नियोक्ता के स्पॉन्सरशिप पर ही काम कर सकता था। इस सिस्टम में नियोक्ताओं का अपने कर्मचारियों पर लगभग पूरा कंट्रोल होता है। कर्मचारी अपने स्पॉन्सरशिप की इजाजत के बिना न तो नौकरी बदल सकते हैं, न देश छोड़ सकते हैं, या यहां तक ​​कि उसे कोई कानूनी मदद भी नहीं मिल सकती है। यह एक तरह से गुलामी की जंजीर थी। 1950 के दशक से ही चला आ रहा यह सिस्टम 1950 के दशक से ही चला आ रहा है। सऊदी अरब के अलावा यह कतर, कुवैत, जॉर्डन जैसे देशों में बहुत प्रचलित सिस्टम है। कफाला सिस्टम मूल रूप से तेल-समृद्ध खाड़ी अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण के लिए आवश्यक सस्ते विदेशी श्रमिकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने और उसका प्रबंधन करने के लिए डिजाइन किया गया था। इस प्रणाली के अनुसार, प्रत्येक प्रवासी श्रमिक एक स्थानीय प्रायोजक, जिसे कफ़ील कहा जाता था, से बंधा होता था, जो उनके निवास, रोजगार और कानूनी स्थिति पर अधिकार रखता था। श्रमिकों के शोषण का जरिया था ये सिस्टम शुरुआत में यह सिस्टम प्रवासी श्रमिकों की मदद के लिए लाया गया था ताकि विदेशी जमीं पर उनके रहमे-सहने, खाने-पीने का इंतजाम उसके स्पॉन्सर करें लेकिन बाद में यह सिस्टम श्रमिकों के शोषण का जरिया बन गया। नियोक्ता श्रमिकों के पासपोर्ट जब्त कर लेते थे, वेतन देने में देरी या इनकार किया करते थे, और उनकी आवाजाही पर बैन लगा रहे थे। बेचारा श्रमिक उनकी मर्जी के बिना अपने घर भी नहीं लौट सकते थे, या दुर्व्यवहार की स्थिति में अधिकारियों से भी संपर्क नहीं कर सकते थे। सऊदी अरब Vision 2030 का हिस्सा हालांकि, कई अधिकार समूह अक्सर कफाला सिस्टम की तुलना 'आधुनिक गुलामी' से करते रहे हैं, और कहते हैं कि इसने श्रमिकों से उनकी बुनियादी स्वतंत्रता छीन ली और उन्हें शोषण के दलदल में धकेल दिया है। लेकिन अब सऊदी अरब के हालिया श्रम सुधारों ने कफाला सिस्टम की जगह कॉन्ट्रैक्ट एंप्लॉयमेंट मॉडल को लागू किया है। सऊदी प्रेस एजेंसी के अनुसार, नए सिस्टम में विदेशी वर्कर्स को मौजूदा कंपनी या कहें कफील की इजाजत लिए बगैर नई कंपनी ज्वाइन करने की अनुमति होगी। बता दें कि सऊदी अरब Vision 2030 के तहत देश में सुधार कर रहा है और कफाला सिस्टम को खत्म करना भी इसी पहल का हिस्सा है।

बाल-बाल बचीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, केरल में लैंड करते ही धंस गया हेलीपैड

केरल केरल के पथानामथिट्टा जिले में राजीव गांधी स्टेडियम स्थित नव-निर्मित हेलीपैड का एक हिस्सा उस समय धंस गया जब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हेलिकॉप्टर के पहिए उसमें फंस गए। यह हादसा उस वक्त हुआ जब राष्ट्रपति सबरीमला दर्शन के बाद यहां उतरीं। अधिकारियों के अनुसार, हेलिकॉप्टर के जमीन पर छूते ही हेलीपैड की सतह का हिस्सा अचानक धंस गया। घटना के बाद हेलिकॉप्टर एक ओर झुक गया, जिसके बाद मौके पर मौजूद पुलिस और अग्निशमन दल के कर्मियों ने तुरंत बचाव कार्य शुरू किया। संयुक्त प्रयासों से हेलिकॉप्टर को सुरक्षित बाहर निकाला गया। अधिकारियों ने बताया कि यह हेलीपैड अंतिम समय में तैयार किया गया था। खराब मौसम के कारण राष्ट्रपति के हेलिकॉप्टर की लैंडिंग स्थल निलक्कल से बदलकर प्रमादम (राजीव गांधी स्टेडियम) कर दिया गया था। इसलिए मंगलवार देर रात तक कंक्रीट डालकर नया हेलिपैड बनाया गया। लेकिन चूंकि कंक्रीट पूरी तरह सूख नहीं पाया था, इसलिए वह हेलिकॉप्टर के वजन को सहन नहीं कर सका और धंस गया। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने पीटीआई को बताया कि स्टेडियम को लैंडिंग स्थल के रूप में आखिरी पल में चुना गया और इसी वजह से निर्माण अधूरा रह गया था। आपको बता दें कि राष्ट्रपति मुर्मू मंगलवार शाम को अपनी चार दिवसीय केरल यात्रा पर तिरुवनंतपुरम पहुंची थीं। बुधवार को वे सबरीमला मंदिर में दर्शन और आरती करने पहुंचीं। इस दौरान पथानामथिट्टा जिले के प्रमादम में उनके हेलिकॉप्टर की लैंडिंग हुई, जहां यह हादसा हुआ। घटना में किसी को चोट नहीं आई और राष्ट्रपति पूरी तरह सुरक्षित हैं। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने राष्ट्रपति का स्वागत करते हुए एक्स (X) पर लिखा, “केरल आगमन पर भारत की माननीय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का हार्दिक स्वागत। उनका यहां होना हमारे राज्य और जनता के लिए गर्व की बात है।”

भारत और कतर की बढ़ती पकड़ से घबराए तुर्की-पाक, इस्लामी नेतृत्व पर मंडरा रहा टकराव

काबुल  दक्षिण एशिया और इस्लामी जगत में तेजी से बदलते समीकरणों के बीच भारत और कतर ने ऐसे कदम उठाए हैं, जिसने न केवल अफगानिस्तान बल्कि पूरे मुस्लिम वर्ल्ड में नए संकेत दे दिए हैं. भारत सरकार ने मंगलवार को काबुल में अपने मिशन को अपग्रेड कर फिर से ‘दूतावास’ का दर्जा देने की घोषणा की है. वहीं कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल थानी ने अफगानिस्तान में मिर्दिफ अली अल काशूती को अफगानिस्तान का नया राजदूत नियुक्त किया है. ये दोनों फैसले ऐसे समय में आए हैं, जब अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच अगली वार्ता तुर्की में होने वाली है और इस्लामी जियो पॉलिटिक्स में नए शक्ति समीकरण बनते दिख रहे हैं. भारत ने काबुल में खोला दूतावास भारत सरकार ने अफगानिस्तान में काबुल स्थित अपने तकनीकी मिशन को तत्काल प्रभाव से दूतावास में अपग्रेड करने का फैसला लिया है. भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस महीने अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी के भारत दौरे के दौरान काबुल में भारतीय तकनीकी मिशन को दूतावास का दर्जा देने की घोषणा की थी. मुत्तकी 9 से 16 अक्टूबर तक भारत में थे. इस दौरान वह दक्षिण एशिया के सबसे प्रभावशाली इस्लामिक इदारे ‘दारुल उलूम देवबंद’ का भी दौरा किया था. तालिबान की वैचारिक जड़ें जो प्रतीकात्मक रूप से इस भारतीय इदारे से भी जुड़ी मानी जाती हैं. मुत्तकी के दौरे के दौरान कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई, जिसमें अफगानिस्तान में भारत की विकास और मानवीय सहायता की भूमिका भी शामिल थी. वहीं अब अफगानिस्तान में दोबारा से दूतावास शुरू करने पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यह फैसला भारत और अफगानिस्तान के बीच द्विपक्षीय रिश्तों को ‘हर क्षेत्र में और गहराई तक’ ले जाने की दिशा में एक अहम कदम है. भारत पहले ही अफगानिस्तान में कई विकास परियोजनाओं और स्वास्थ्य सहायता कार्यक्रमों का हिस्सा रहा है और अब दूतावास के दोबारा एक्टिव होने से ये संबंध औपचारिक रूप से और मजबूत होंगे. कतर ने काबुल में नियुक्त किया पूर्ण राजदूत उधर, कतर ने भी इस्लामी कूटनीति में अपनी पकड़ और भूमिका को और मज़बूत करने की दिशा में कदम बढ़ाया है. इस खाड़ी देश ने मिर्दिफ अल काशूती को अफगानिस्तान में पूर्ण राजदूत बनाने का फैसला किया है. वह पिछले तीन वर्षों से काबुल स्थित कतर दूतावास में वरिष्ठ राजनयिक के रूप में काम कर रहे थे. कतर ने यह नियुक्ति ऐसे वक्त पर की है जब वह अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव में मध्यस्थ की भूमिका निभा रहा है, और दोनों देशों की अगली बैठक तुर्किये में होने वाली है. इस्लामिक वर्ल्ड की धुरी नहीं तुर्की-पाकिस्तान एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत और कतर के ये कदम एक बड़े भू-राजनीतिक संदेश का हिस्सा हैं. यह संकेत है कि इस्लामी वर्ल्ड की धुरी अब सिर्फ तुर्की या पाकिस्तान के इर्द-गिर्द नहीं घूमेगी. तुर्की खुद को इस्लामी दुनिया का नेता बनाने की कोशिश करता रहा है. वहीं पाकिस्तान अफगानिस्तान में अपनी प्रभावशाली भूमिका बनाए रखना चाहता है. हालांकि भारत और कतर की बढ़ती उपस्थिति से इन दोनों देशों का चिंतित होना लाजमी माना जा रहा है. भारत ने जहां मुत्तकी के दौरे और देवबंद जैसी इस्लामी संस्था के माध्यम से एक ‘धार्मिक संवाद की कूटनीति’ को आगे बढ़ाया है. वहीं कतर ने अपनी ‘मध्यस्थ डिप्लोमेसी’ के जरिये इस्लामिक देशों में तुर्की की बढ़ती दखलअंदाजी को संतुलित करने की कोशिश की है. यह दोनों घटनाएं बताती हैं कि दक्षिण एशिया में इस्लामी विश्व की नई धुरी बन रही है, जिसमें भारत, कतर और अफगानिस्तान की भूमिका अहम होती जा रही है. ऐसे में तुर्की और पाकिस्तान के लिए यह एक स्पष्ट संकेत है कि ‘खलीफा बनने की कोशिश’ के दिन अब आसान नहीं रहे.  

चीन को नहीं रास आई भारत की प्रगति, WTO में दर्ज कराई आपत्ति

नई दिल्ली आधुनिक भारत की अर्थव्‍यवस्‍था दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्‍यवस्‍था बन चुकी है, क्‍योंकि देश की घरेलू खपत अन्‍य देशों की तुलना में ज्‍यादा है. एग्रीकल्‍चर हो या ईवी, भारत हर सेक्‍टर्स में तरक्‍की के नए मुकाम हासिल कर रहा है. ईवी प्रोडक्‍ट्स के मामले में भारत घरेलू निर्माण पर फोकस है. यही बात ड्रैगन को पसंद नहीं आ रही है, जिस कारण उसने विश्व व्यापार संगठन (WTO) के पास शिकायत कर डाली है. चीन का आरोप है कि भारत की इलेक्ट्रिक वाहन और बैटरी सब्सिडी योजनाएं आयात की तुलना में घरेलू उत्‍पादों को प्राथमिकता दे रही हैं, जो वैश्विक व्‍यापार नियमों का उल्लंघन करती हैं. चीन का कहना है कि भारत के विशाल ईवी बाजार तक पहुंच चाहने वाले चीनी वाहन निर्माताओं को संभवतः दरकिनार किया जा रहा है.  चीन ने भारत से रखी ये मांग WTO के एक कम्युनिकेशन लेटर के मुताबिक, बीजिंग ने WTO सेटलमेंट मैकनिज्‍म के तहत तीन भारतीय कार्यक्रमों के तहत सेटमेंट करने की रिक्‍वेस्‍ट की है. चीन ने उन्नत रसायन सेल (ACC) बैटरी भंडारण के लिए उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना, ऑटोमोबाइल और ऑटो उद्योग के लिए पीएलआई योजना, और इलेक्ट्रिक पैसेंजर कार विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए एक अलग पॉलिसी की मांग रखी है.  चीन ने भारत पर और क्‍या लगाए आरोप  चीन का दावा है कि ये उपाय घरेलू स्‍तर पर बन रहे वस्‍तुओं के उपयोग पर 'पात्रता और प्रोत्साहनों के वितरण की शर्तें' लगाते हैं, जो चीनी उत्‍पादों के साथ भेदभाव है. चीन का कहना है कि इस तरह के प्रतिबंध सब्सिडी और प्रतिपूरक उपायों (SCM) समझौते, टैरिफ और व्यापार पर सामान्य समझौते (गैट) 1994, और व्यापार-संबंधी निवेश उपायों पर समझौते (ट्रिम्स) के तहत भारत के दायित्वों का उल्लंघन करते हैं.  WTO फाइलिंग में कहा गया है कि ये उपाय चीन को मिलने वाले लाभों को रद्द या कम कर देते हैं. चीन विवाद को सुलझाने के पहले कदम के रूप में परामर्श के लिए एक डेट की मांग कर रहा है. भारत के इन योजनाओं का क्‍या है मतलब?  भारत के प्रोत्साहन कार्यक्रमों का उद्देश्य आयात पर निर्भरता कम करते हुए स्थानीय इलेक्ट्रिक वाहन और बैटरी उत्पादन को बढ़ावा देना है. मई 2021 में शुरू की गई PLI-ACC योजना में 50 GWh घरेलू बैटरी क्षमता विकसित करने के लिए ₹18,100 करोड़ का परिव्यय शामिल है. सितंबर 2021 में ₹25,938 करोड़ की लागत से स्वीकृत ऑटो-केंद्रित PLI योजना का लक्ष्य ऑटोमोटिव टेक्‍नोलॉजी का घरेलू उत्पादन और रोजगार पैदा करना है.  भारत का बढ़ा व्‍यापार घाटा  लेकिन BYD जैसे चीनी ईवी निर्माताओं को यूरोपीय संघ में घटते मुनाफे और विनियामक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें 27% टैरिफ भी शामिल है. हालांकि फिर भी चीन का आयात बढ़ा है. 2024-25 में चीन को भारत के निर्यात में 14.5% की गिरावट के आई, लेकिन चीन से आयात में 11.5% की वृद्धि हुई है. इससे बीजिंग के साथ भारत का व्यापार घाटा बढ़कर 99.2 बिलियन डॉलर हो गया. 

दिवाली की बधाई पर ट्रंप को मोदी का जवाब –दो लोकतंत्र कर रहे हैं दुनिया का नेतृत्व

नई दिल्ली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सोशल मीडिया पोस्ट करते हुए दिवाली पर बधाई संदेश देने के लिए शुक्रिया अदा किया है. पिछले दिनों दिवाली के मौके पर अमेरिकी राष्ट्रपति ने पीएम मोदी को फोन करके बधाई दी थी. नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, "राष्ट्रपति ट्रंप, आपके फ़ोन कॉल और दिवाली की हार्दिक शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद. प्रकाश के इस पर्व पर, हमारे दो महान लोकतंत्र दुनिया को उम्मीद की रोशनी दिखाते रहें और आतंकवाद के सभी रूपों के खिलाफ एकजुट रहें." ट्रंप ने दिवाली पर दी थी बधाई… व्हाइट हाउस द्वारा जारी एक बयान में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रोशनी के त्योहार दिवाली मनाने वाले सभी लोगों को शुभकामनाएं दीं. इस दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, "आज, मैं दिवाली, 'रोशनी का त्योहार' मनाने वाले हर अमेरिकी को अपनी शुभकामनाएं देता हूं." ट्रंप ने आगे कहा, "कई अमेरिकियों के लिए, दिवाली अंधकार पर प्रकाश की विजय का एक शाश्वत स्मरण है. यह परिवारों और दोस्तों को एक साथ लाकर समुदाय का जश्न मनाने, उम्मीद से ताकत हासिल करने और नवीनीकरण की स्थायी भावना को अपनाने का भी वक्त है." उन्होंने आगे कहा, "लाखों नागरिक दीये और लालटेन जलाते हैं, और हम इस शाश्वत सत्य पर प्रसन्न होते हैं कि अच्छाई की हमेशा बुराई पर विजय होती है. दिवाली मनाने वाले प्रत्येक अमेरिकी के लिए, ईश्वर करे कि यह त्यौहार स्थायी शांति, समृद्धि, आशा और शांति लाए."

ट्रंप के सपनों को झटका! चीन ने उतारा हाई-टेक ‘गोल्डन डोम’ डिफेंस सिस्टम

चीन अमेरिका महज सपने बुन रहा था, लेकिन चीन ने उसे हकीकत का जामा पहना दिया। यूं कहें तो पूरी दुनिया ने एक ऐसी अभूतपूर्व शक्ति परिवर्तन का साक्ष्य देखा, जिसकी कोई कल्पना भी न कर सकता। दशकों से अमेरिका यह सोच रहा था कि वह पृथ्वी को मिसाइल रक्षा के एक नए युग में ले जाएगा। मानवता को तबाही से बचाने वाला एक अंतरिक्ष-आधारित किलेबंदी तैयार करेगा। लेकिन वाशिंगटन अभी-अभी योजनाएं गढ़ ही रहा था कि बीजिंग ने इसे साकार कर दिखाया। और दुनिया को स्पष्ट संदेश दे दिया कि तय कर लो, सुपरपावर कौन है? दरअसल चीन ने 'बिग डेटा प्लेटफॉर्म' नामक एक वास्तविक, कार्यशील वैश्विक मिसाइल रक्षा नेटवर्क का प्रोटोटाइप विकसित कर लिया है। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने किसी अनुमति या पूर्णता के इंतजार के बिना इसे सीधे तैनात कर दिया। अब इस प्रोटोटाइप के सक्रिय होते ही एक चमत्कारिक परिवर्तन हो चुका है। जहां अमेरिका के पास केवल एक अवधारणा है, वहीं चीन के पास ठोस हकीकत। अमेरिका ने अपने इस दृष्टिकोण को 'गोल्डन डोम' नाम दिया था। एक ग्रहीय सुरक्षा कवच, जो अंतरिक्ष-आधारित और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से संचालित हो, तथा पृथ्वी के किसी भी कोने से प्रक्षेपित किसी भी मिसाइल का पता लगाकर उसे नष्ट करने में सक्षम हो। 2025 में डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित यह प्रणाली वैश्विक सुरक्षा में क्रांतिकारी बदलाव का वादा कर रही थी। लेकिन जब पेंटागन बजट और डेटा प्रवाह पर बहसों में उलझा था, चीन के इंजीनियर मैदान में कूद पड़े थे। चीन के प्रमुख रक्षा अनुसंधान संस्थान, नानजिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स टेक्नोलॉजी में ली जुदोंग की टीम के अनुसार, यह सफलता महज मिसाइलों या उपग्रहों में नहीं, बल्कि डेटा प्रसंस्करण की क्रांति में छिपी है। उनका सिस्टम पृथ्वी के किसी भी भाग से एक साथ चीन पर दागी गईं 1000 मिसाइलों को ट्रैक कर सकता है। अंतरिक्ष, समुद्र, वायु और भूमि पर फैले सेंसरों के विशाल जाल के सहारे, यह वास्तविक समय में खतरों को संग्रहित, विश्लेषित और प्राथमिकता निर्धारित करता है। हर प्रक्षेप पथ, हर वारहेड, हर छलावे की पहचान होती है, उसे सूचीबद्ध किया जाता है और प्रभाव से पहले ही केंद्रीय कमांड को सूचना भेजी जाती है। पीएलए की यह प्रणाली केवल रडार या उपग्रहों पर निर्भर नहीं है; यह विभिन्न आपूर्तिकर्ताओं से, अलग-अलग समयों में और विविध सैन्य मंचों से प्राप्त डेटा को एकीकृत करती है। उधर, प्रशांत महासागर के उस पार अमेरिकी गोल्डन डोम अभी भी एक सपना मात्र है, जो आंतरिक विवादों में फंसा पड़ा है। इसकी अनुमानित लागत 140 अरब पाउंड से लेकर खरबों पाउंड तक बताई जा रही है। जुलाई में अमेरिकी स्पेस फोर्स के जनरल माइकल गुएटलिन ने कबूल किया था कि किसी को, यहां तक कि उन्हें भी 'गोल्डन डोम' के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है।

2200 km/h स्पीड, 65% स्वदेशी और ब्रह्मोस का जुड़ाव — तेजस MK1A की ताकत क्या है?

नई दिल्ली  भारत की रक्षा ताकत एक बार फिर दुनिया को चौंकाने वाली है. हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा निर्मित तेजस Mk1A (Tejas Mk1A) अब पहली उड़ान के लिए तैयार है. शुक्रवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी में महाराष्ट्र के नासिक से यह देश का सबसे आधुनिक स्वदेशी लड़ाकू विमान आसमान में उड़ान भरेगा. यह वही ‘तेजस’ है, जो पूरी तरह भारतीय इंजीनियरिंग, तकनीक और आत्मनिर्भर भारत की मिसाल है. भारतीय वायुसेना इसे अपने बेड़े में शामिल करने जा रही है. और माना जा रहा है कि इसे बीकानेर के नाल एयरबेस पर तैनात किया जाएगा, ताकि पाकिस्तान की सीमा के पास भारत की हवाई शक्ति और भी मजबूत हो सके. भारत का ‘गेमचेंजर’ फाइटर- तेजस MK1A तेजस एमके-1ए पुराने मिग-21 का एडवांस वर्जन है, जिसमें अल्ट्रा-मॉडर्न एवियोनिक्स, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम और बेहतर रडार लगाए गए हैं. इसकी अधिकतम रफ्तार 2,200 किमी/घंटा है. यानी कुछ ही मिनटों में यह दुश्मन की सीमा तक पहुंच सकता है. इसमें लगी आधुनिक ब्रह्मोस मिसाइल, एयर-टू-एयर और एयर-टू-ग्राउंड स्ट्राइक क्षमता इसे “सुपर-पावर जेट” बनाती है. इसके अलावा यह दुनिया के सबसे हल्के लेकिन घातक फाइटर जेट्स में शामिल है, जो किसी भी मौसम में मिशन पूरा कर सकता है. 65% स्वदेशी तकनीक, भारत की ताकत का नया प्रतीक तेजस एमके-1ए की सबसे बड़ी उपलब्धि इसका 65 प्रतिशत स्वदेशी योगदान है. एचएएल ने बताया कि इसके अधिकांश पार्ट्स भारतीय कंपनियों ने तैयार किए हैं. रडार से लेकर एवियोनिक्स और स्ट्रक्चर तक. यह भारत की तकनीकी ताकत दिखाने वाला कदम है और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की बड़ी उपलब्धि है. मिग-21 की जगह लेगा ‘तेजस’ भारतीय वायुसेना ने हाल ही में अपने पुराने मिग-21 बेड़े को रिटायर किया है. अब उसकी जगह तेजस एमके-1ए लेगा. वायुसेना और एचएएल के बीच 62,370 करोड़ रुपए का अनुबंध हुआ है. इसके तहत 97 स्वदेशी लड़ाकू विमान भारत को मिलेंगे. इनमें 68 सिंगल-सीटर और 29 ट्विन-सीटर ट्रेनर जेट शामिल हैं. इंजन और उत्पादन में मिली रफ्तार अमेरिकी कंपनी GE ने एचएएल को अब तक चार GE-404 जेट इंजन सप्लाई किए हैं. वित्त वर्ष के अंत तक कुल 12 इंजन मिलने की उम्मीद है. इन इंजनों की मदद से तेजस के उत्पादन और वायुसेना को डिलीवरी में तेजी आएगी. आने वाले कुछ सालों में भारतीय वायुसेना के पास दर्जनों तेजस फाइटर जेट्स होंगे. हर एक दुश्मन के लिए डर की वजह. पाकिस्तान की ‘नींद उड़ाने’ को तैयार तेजस एमके-1ए की तैनाती के बाद भारत की सीमाएं पहले से कहीं ज्यादा सुरक्षित होंगी. इसकी रफ्तार, हथियार क्षमता और स्टेल्थ डिजाइन पाकिस्तान की वायुसेना के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन सकती है. रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि तेजस का हर स्क्वॉड्रन “आत्मनिर्भर भारत की उड़ती ढाल” साबित होगा. भारत के आसमान में ‘स्वदेशी शेर’ की दहाड़ तेजस एमके-1ए सिर्फ एक विमान नहीं, बल्कि भारत की तकनीकी ताकत, वैज्ञानिक क्षमता और सैन्य आत्मनिर्भरता का प्रतीक है. जब यह शुक्रवार को नासिक के आसमान में उड़ान भरेगा, तो यह भारत के एयरोस्पेस इतिहास का एक नया अध्याय लिखेगा.  

टैक्स बचाने की नई रणनीति पर काम कर रहा एप्पल, इनकम टैक्स में कर सकता है बदलाव

नई दिल्ली  एप्पल कंपनी भारत में अपने कारोबार को बढ़ावा दे रही है। कंपनी के आईफोन अब भारत में बहुत तेजी से बन रहे हैं। कंपनी ने इस वित्तीय वर्ष के पहले छह महीनों में ही 10 अरब डॉलर (करीब 88,730 करोड़ रुपये) के आईफोन का निर्यात किया है। यह एक रेकॉर्ड है। अब अमेरिका की यह कंपनी भारत सरकार से अनोखी मांग कर रही है। कंपनी की मांग से ऐसा लगता है कि इसकी लॉबी भारत सरकार पर हावी हो रही है। एप्पल भारत सरकार से इनकम टैक्स कानून में बदलाव की मांग कर रहा है। रॉयटर्स के मुताबिक कंपनी चाहती है कि उसे अपने कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरर्स को दिए जाने वाले हाई-एंड आईफोन बनाने वाली मशीनों के मालिकाना हक पर टैक्स न देना पड़े। सूत्रों का कहना है कि यह एक ऐसी समस्या है जो एप्पल के भारत में भविष्य के विस्तार में बाधा डाल सकती है। भारत एप्पल के अनुरोध की सावधानी से समीक्षा कर रहा है। भारत में मौजूदगी बढ़ा रही कंपनी यह मांग ऐसे समय में आई है जब एप्पल चीन से बाहर निकलकर भारत में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है। काउंटरपॉइंट रिसर्च के मुताबिक साल 2022 से भारत में आईफोन की हिस्सेदारी दोगुनी होकर 8% हो गई है। जबकि दुनिया भर में आईफोन की कुल शिपमेंट में चीन का हिस्सा अभी भी 75% है, वहीं भारत का हिस्सा 2022 से चार गुना बढ़कर 25% हो गया है। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल बाजार है। क्या है एप्पल का प्लान? एप्पल के कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरर्स फॉक्सकॉन और टाटा ने पांच प्लांट खोलने के लिए अरबों डॉलर का निवेश किया है। लेकिन इस पैसे का एक बड़ा हिस्सा आईफोन असेंबली के लिए महंगी मशीनें खरीदने में चला जाता है।एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर एप्पल अपनी व्यावसायिक प्रथाओं को बदले बिना नई दिल्ली को साल 1961 के उस कानून को बदलने के लिए राजी नहीं कर पाता जो भारत में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों के विदेशी मालिकाना हक को कवर करता है, तो उसे अरबों डॉलर का अतिरिक्त टैक्स देना पड़ सकता है। चीन में नहीं देना होता टैक्स चीन में एप्पल आईफोन बनाने वाली मशीनें खरीदता है और उन्हें अपने कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरर्स को देता है। भले ही वह उन मशीनों का मालिक हो, फिर भी उस पर कोई टैक्स नहीं लगता है। लेकिन भारत में ऐसा संभव नहीं है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी और दो अन्य उद्योग सूत्रों ने बताया कि इनकम टैक्स एक्ट के तहत एप्पल के ऐसे मालिकाना हक को एक तथाकथित 'व्यावसायिक संबंध' माना जाएगा। इससे अमेरिकी कंपनी के आईफोन मुनाफे पर भारतीय टैक्स लग जाएगा। एप्पल को होगा फायदा सूत्रों ने बताया कि एप्पल के अधिकारियों ने हाल के महीनों में भारतीय अधिकारियों से इनकम टैक्स के इस कानून में बदलाव के लिए बातचीत की है। कंपनी को डर है कि मौजूदा कानून उसके भविष्य के विकास में बाधा डाल सकता है। एक सूत्र ने कहा कि कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरर्स एक हद से ज्यादा पैसा नहीं लगा सकते। उन्होंने कहा अगर पुराने कानून में बदलाव किया जाता है तो एप्पल के लिए विस्तार करना आसान हो जाएगा।