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मंदिर में इस्लाम प्रचार पर दर्ज FIR रद्द, हाईकोर्ट ने कहा– यह अपराध नहीं, मुस्लिम युवकों को राहत

बेंगलुरु कर्नाटक हाई कोर्ट ने वैसे तीन मुस्लिम व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया है, जिन पर एक हिंदू मंदिर में इस्लाम की शिक्षा को बढ़ावा देने वाले पर्चे बांटने और मौखिक रूप से अपनी धार्मिक मान्यताओं को समझाने का आरोप लगाया गया था। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि किसी मंदिर में सिर्फ इस्लाम का प्रचार करने वाला पर्चा बांटने और उसके बारे में व्याख्या करने से कोई अपराध नहीं हो जाता, जब तक कि धर्मांतरण से जुड़ा कोई साक्ष्य न मिलता हो। आरोपियों पर भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 299, 351(2) और 3(5) और कर्नाटक धर्म स्वतंत्रता अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2022 की धारा 5 के तहत आरोप लगाए गए थे। जस्टिस वेंकटेश नाइक टी की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि आरोपियों ने उपरोक्त कानूनों के तहत कोई अपराध नहीं किया है, क्योंकि उन लोगों ने किसी भी व्यक्ति को इस्लाम में धर्मांतरित करने का कोई प्रयास नहीं किया। हिन्दू धर्म पर अपमानजनक टिप्पणी के भी आरोप लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि चार मई 2025 को शाम 4:30 बजे, जब वह जामखंडी स्थित रामतीर्थ मंदिर गया था, तो कुछ लोग वहां मंदिर परिसर में इस्लामिक शिक्षा का प्रचार करने वाले पर्चे बाँट रहे थे और अपनी धार्मिक मान्यताओं के बारे में लोगों को मौखिक रूप से समझा रहे थे। शिकायत में बताया गया है कि घटनास्थल पर मौजूद हिन्दू श्रद्धालुओं ने उन लोगों से उनकी गतिविधियों के बारे में पूछताछ की थी, तो इसके जवाब में, मुस्लिम युवकों ने कथित तौर पर हिंदू धर्म की आलोचना करते हुए अपमानजनक टिप्पणियाँ की थीं। नौकरी और गाड़ी का दिया था प्रलोभन शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया था कि आरोपी मंदिर में मौजूद लोगों को इस्लाम धर्म अपनाने के एवज में गाड़ी देने और दुबई में नौकरी दिलाने का प्रलोभन दे रहे थे। दूसरी तरफ, अपने खिलाफ दर्ज अपराध को रद्द करने की मांग करते हुए, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि वे केवल अल्लाह या पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं का प्रचार कर रहे थे। धर्मांतरण के साक्ष्य नहीं याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत से कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा किसी व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित करने का प्रयास करने के आरोप केपीआरएफआर अधिनियम की धारा 5 के तहत दंडनीय अपराध के आवश्यक तत्वों को पूरा नहीं करते हैं क्योंकि ऐसे कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं, जिससे साबित हो कि वे सभी धर्मांतरण कराने की कोशिश कर रहे थे।

होटल ले जाने के मामले में टीचर को मिली जमानत, कोर्ट ने सहमति का किया उल्लेख

मुंबई  नाबालिग छात्र के यौन उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तार हुईं मुंबई की एक शिक्षिका को जमानत मिल गई है। मुंबई की एक कोर्ट ने सबूतों के आधार पर कहा कि दोनों के बीच सहमति से संबंध बने थे। टीचर पर आरोप थे कि उसने कई मौकों पर फाइव स्टार होटल ले जाकर नाबालिग छात्र का यौन शोषण किया है। अदालत ने जमानत देते समय आरोपी शिक्षिका पर पीड़ित से किसी तरह का संबंध नहीं साधने की शर्तें लगाई हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, स्पेशल पॉक्सो कोर्ट ने आदेश में कहा है कि सबूत दिखाते हैं दोनों के बीच सहमति से संबंध थे। स्पेशल जज सबीना मलिक ने कहा, 'आरोपी ने स्कूल से इस्तीफा दे दिया था, तो छात्र और शिक्षिका के बीच संबंध की बात नहीं है। ऐसे में प्रभाव उतना नहीं है।' जज ने कहा कि ट्रायल पूरा होने में समय लगेगा और आरोपी को तब तक हिरासत में रखने से कुछ नहीं मिलेगा। इधर, पीड़ित ने जमानत याचिका का विरोध किया है। पक्ष का कहना है कि अगर महिला को जमानत मिलती है, तो वह एक बार फिर छात्र को डराने धमकाने के रास्ते खोज लेगी। साथ ही कहा गया है कि वह सबूतों के साथ भी छेड़छाड़ कर सकती है। इसपर जज ने कहा कि जरूरी शर्तें लगाई जा सकती हैं, जिनके जरिए ऐसी आशंकाओं को दूर किया जा सकेगा। जज ने कहा कि आरोपी किसी भी तरह से पीड़ित से संपर्क नहीं करेगी। किसी भी गवाह या पीड़ित को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उकसाने, डराने या किसी चीज का वादा करने की रोक लगाई जाती है। जज ने यह भी साफ किया है कि इन शर्तों का उल्लंघन करने से जमानत तुरंत रद्द हो जाएगी। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, आरोपी की तरफ से दिए गए आवेदन में महिला ने अपने ऊपर लगे आरोपों से इनकार किया है। साथ ही उसका कहना है कि यह मामला झूठा और लड़के की मां के कहने पर किया गया है, क्योंकि वह उनके रिश्ते के खिलाफ थीं। महिला ने याचिका में लड़के से बातचीत के सबूत पेश किए और कहा है कि उसके पैरेंट्स को रिश्ते के बारे में पता था। वह इसके खिलाफ थे। क्या था केस पुलिस का दावा है कि शिक्षा नाबालिग छात्र के प्रति दिसंबर 2023 में आकर्षित हुई थी। उसने कथित तौर पर जनवरी 2024 में पहली बार यौन संबंधों की पेशकश की। FIR में कहा गया है कि शिक्षिका नाबालिग छात्र को बड़े होटलों में ले जाती थी, जहां कथित तौर पर उसका यौन शोषण किया जाता था। खबरें हैं कि टीचर ने कई बार शोषण करने से पहले छात्र को नशीला पदार्थ दिया।

कोर्ट ने जताई चिंता: ट्रैफिक नियम तोड़ते हैं डिलीवरी कर्मचारी, पुलिस नहीं करती वैरिफिकेशन

इंदौर  मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कई बिंदुओं पर बात की। ऑनलाइन खाने-पीने का सामान सप्लाय करने वालों को लेकर कहा कि सबसे ज्यादा रेड सिग्नल जंप डिलीवरी वाले ही करते हैं। दो मिनट बचाने रेड लाइट जंप करते हैं और कुछ नहीं होता। ये हमारे घरों तक पहुंच रखते हैं, लेकिन इनके पुलिस सत्यापन की व्यवस्था नहीं है। कभी इनका आपराधिक रिकॉर्ड नहीं जांचा। इस बारे में नीति बनानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि ग्रीन बेल्ट, उद्यान और फुटपाथ पर धड़ल्ले से धार्मिक स्थल बन रहे हैं, लेकिन इस तरफ किसी का ध्यान नहीं है। ये धार्मिक स्थल यातायात को बाधित कर रहे हैं। यह किसी एक क्षेत्र की नहीं बल्कि पूरे शहर की समस्या है। इसका स्थायी समाधान जरूरी है। करोड़ों रुपये मूल्य की जमीन पर धार्मिक गतिविधियों के नाम पर कब्जा हो रहा है। हालत यह हो जाती है कि 80 फीट चौड़ी सड़क पर भी चलना मुश्किल है। ई-रिक्शा को लेकर कोई योजना नहीं कोर्ट ने ई-रिक्शा की व्यवस्था को लेकर भी नाराजगी जताई। कहा कि इस बारे में सख्ती से कार्रवाई जरूरी है। पुलिस ई-रिक्शा चालकों के पुलिस सत्यापन, ट्रेनिंग इत्यादि की व्यवस्था करे। ई-रिक्शा के चालकों की कोई सूची नहीं है। कभी उनका आपराधिक रिकार्ड नहीं जांचा जाता। इस संबंध में कार्रवाई सुनिश्चित करना चाहिए। यह कहा याचिकाकर्ता ने याचिकाकर्ता राजलक्ष्मी फाउंडेशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अजय बागडिया ने पैरवी की। उन्होंने कोर्ट के समक्ष कहा कि     चौराहों पर लगे सिग्नल 24 घंटे चालू रखे जाएं।     पुलिसकर्मी चौराहों पर यातायात नियंत्रित करने के बजाय मोबाइल चलाते हैं। सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।     वीआईपी मूवमेंट के दौरान सिग्नल ग्रीन रखे जाएं।     सड़कों पर गड्ढों की समस्या का स्थायी समाधान हो। कोर्ट ने कहा कि     जो रेड लाइट जंप करते हैं, उन्हें वहीं दो घंटे रोकें।     जिस चौराहे पर चालान बन रहे हैं, वहां तैनात पुलिसकर्मियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।     बीमा रिन्यू करने वाली कंपनी पहले बकाया चालान जमा कराए। इसके बाद बीमा रिन्यू किया जाए।     कार पुलिंग को बढ़ावा दें। शुरुआत हाई कोर्ट से हो सकती है। एक ऑफिस से जुड़े वकील एक कार से कोर्ट आएं तो सड़क पर वाहन संख्या कम करने में मदद होगी।     आईटीएमएस साफ्टवेयर के माध्यम से निगरानी और कानूनी कार्रवाई के लिए सैकड़ों स्थानों पर हाईडेफिनिशन कैमरे लगाए गए हैं।     पिछले दो वर्ष में यातायात पुलिस द्वारा 12 लाख से अधिक ई-चालान किए गए हैं।     यातायात नियमन के तीनों घटकों – यातायात इंजीनियरिंग, प्रवर्तन और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।     सरकार ने राहवीर योजना शुरू की है। इसके तहत दुर्घटना पीड़ित को अस्पताल पहुंचाने में मदद करने वाले व्यक्ति को उचित पुरस्कार दिया जाता है।     किसी भी समय समस्या पर प्रतिक्रिया देने और उसका समाधान करने के लिए 40 से अधिक त्वरित प्रतिक्रिया दल (क्यूआरटी) बनाए गए हैं।    

हाईवे जाम कर रील शूटिंग पर HC सख्त, पूछा – अब तक वाहनों की जब्ती क्यों नहीं?

बिलासपुर  बिलासपुर में राष्ट्रीय राजमार्ग-130 पर रसूख का प्रदर्शन करते हुए रील बनाकर नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाने वाले युवकों पर पुलिस द्वारा केवल जुर्माना कर मामले को शांत करने की कोशिश पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट(Chhattisgarh High Court) ने कड़ा रुख अपनाया है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने मामले को स्वतः संज्ञान में लेते हुए राज्य सरकार से जवाब तलब किया है। कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए पूछा कि जब अन्य मामलों में गाड़ियां जब्त की जाती हैं, तो इस मामले में ऐसा क्यों नहीं किया गया? साथ ही पूछा कि मोटर व्हीकल एक्ट के अलावा भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धाराएं क्यों नहीं लगाई गईं?। क्या है मामला घटना बिलासपुर-रतनपुर नेशनल हाईवे 130 की है, जहां रायपुर रोड स्थित टोयोटा शोरूम से दो फार्च्यूनर लेने के बाद वेदांत शर्मा और उसके साथियों ने आधा दर्जन से अधिक महंगी गाड़ियों के काफिले के साथ हाईवे पर रुककर ड्रोन कैमरे और पेशेवर फोटोग्राफरों की मदद से रील शूट की। रील शूट के दौरान पूरी सड़क को अवरुद्ध कर दिया गया, जिससे यातायात प्रभावित हुआ और आम जनता को भारी परेशानी उठानी पड़ी। वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद भारी आलोचना शुरू हुई और संबंधित अकाउंट्स डिलीट कर दिए गए। कोर्ट की नाराजगी मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस मामले को लंच से पहले कोज लिस्ट में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया। कोर्ट ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि रसूखदार लोगों के लिए अलग और आम लोगों के लिए अलग मापदंड नहीं हो सकते। अदालत ने पूछा क्या सिर्फ जुर्माना कर देने से कानून का पालन हो जाता है? पुलिस को यह स्पष्ट करना होगा कि गाड़ियां जब्त क्यों नहीं की गईं और अन्य धाराएं क्यों नहीं जोड़ी गईं। राज्य सरकार से अगली सुनवाई तक पूरे मामले पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी गई है। पुलिस की कार्रवाई पर उठे सवाल वीडियो वायरल होने के बाद जनदबाव और मीडिया की खबरों के चलते पुलिस ने सात गाड़ियों पर महज 2000 हजार का का चालान किया और कुल 14,000 हजार रुपये की जुर्माना वसूली की। एक अन्य वाहन पर भी बाद में चालान किया गया, लेकिन बीएनएस की धाराओं में अपराध दर्ज नहीं किया गया था, न ही कोई गिरफ्तारी या गाड़ी जब्ती हुई थी। यह भी देखा गया कि कई गाड़ियों के नंबर अधूरे थे और आरोपी युवकों के नाम-पते या फोटो भी सार्वजनिक नहीं किए गए, जैसा आम मामलों में किया जाता है। पुलिस की प्रेस विज्ञप्ति में भी केवल जुर्माना वसूली की जानकारी दी गई, जिससे जनता में और नाराजगी बढ़ गई। न्यायालय की सख्ती के बाद सकरी पुलिस ने वेदांत शर्मा एवं अन्य युवकों के खिलाफ बीएनएस की धारा 126(2), 285 और 3(5) के तहत अपराध दर्ज कर लिया है। संबंधित वाहनों की जब्ती और आरोपियों की गिरफ्तारी की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।  

MPPSC परीक्षा प्रक्रिया पर हाईकोर्ट का कड़ा रुख, शेड्यूल में पारदर्शिता की मांग

जबलपुर    मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस संजीव कुमार सचदेवा और जस्टिस विनस सराफ की युगलपीठ ने राज्य सेवा परीक्षा 2025 को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए मप्र लोक सेवा आयोग (MPPSC) को निर्देश दिए हैं कि वह मुख्य परीक्षा का पूरा कार्यक्रम (शेड्यूल) न्यायालय में प्रस्तुत करे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शेड्यूल प्रस्तुत किए जाने के बाद ही मुख्य परीक्षा आयोजन की अनुमति से संबंधित राज्य सरकार के आवेदन पर विचार किया जाएगा। मामले की अगली सुनवाई 5 अगस्त को होगी। क्या है मामला भोपाल निवासी सुनीत यादव और अन्य की ओर से दायर याचिका में आरोप लगाया गया कि मप्र लोक सेवा आयोग ने 158 पदों के लिए 5 मार्च 2025 को प्रारंभिक परीक्षा के परिणाम जारी किए, लेकिन इसमें वर्गवार कट-ऑफ अंक सार्वजनिक नहीं किए गए। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि पहले सभी परीक्षाओं में वर्गवार कट-ऑफ अंक घोषित किए जाते थे, लेकिन इस बार आयोग ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के विभिन्न फैसलों को नजरअंदाज करते हुए यह जानकारी छिपा ली। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि आयोग ने अनारक्षित (ओपन) पदों के विरुद्ध आरक्षित वर्ग के प्रतिभाशाली अभ्यर्थियों को मुख्य परीक्षा के लिए चयनित नहीं किया। इससे पहले कोर्ट ने निर्देश दिया था कि आयोग वर्गवार कट-ऑफ मार्क्स जारी करे और न्यायालय की अनुमति के बिना मुख्य परीक्षा आयोजित न की जाए। राज्य सरकार की दलील सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान राज्य शासन की ओर से याचिका में अंतरिम आदेश के तहत लगी रोक हटाने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया। इस पर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसने मुख्य परीक्षा के आयोजन पर पूर्ण रोक नहीं लगाई है, लेकिन आयोग को पहले परीक्षा का पूरा कार्यक्रम पेश करना होगा। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता विनायक शाह ने पैरवी की। कोर्ट अब 5 अगस्त को अगली सुनवाई करेगा, जिसमें परीक्षा कार्यक्रम और सरकार के आवेदन दोनों पर विचार किया जाएगा।  

‘शक और दूरी’ बनी तलाक की वजह, हाईकोर्ट ने कहा- यह वैवाहिक क्रूरता है, पत्नी ने 1 लाख महीने मांगे थे

मुंबई  बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को तलाक के एक केस में कहा- यदि पत्नी अपने पति को शारीरिक संबंध से इनकार करती है। फिर उस पर किसी और महिला से संबंध होने का शक करती है तो इसे क्रूरता माना जाएगा। इस तरह की स्थिति तलाक का वैध आधार है। जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस नीला गोखले ने यह टिप्पणी करते हुए पुणे फैमिली कोर्ट के तलाक के फैसले को सही ठहराया। साथ ही महिला की तलाक को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। महिला की मांग थी कि उसके पति को उसे हर महीने 1 लाख रुपए मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया जाए। अब समझिए पूरा मामला… दरअसल, कपल की 2013 में शादी हुई थी। अगले ही साल दिसंबर 2014 से दोनों अलग रहे थे। पति ने 2015 में फैमिली कोर्ट में क्रूरता के आधार पर तलाक की अर्जी दी थी, जिसे मंजूरी मिल गई। पत्नी ने फैमिली कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी और पति से 1 लाख रुपए प्रति महीने गुजारा भत्ता की मांग भी की थी। पत्नी बोली- पति से प्रेम करती हूं, पति ने कहा- बेवफाई के आरोप लगाए महिला ने अपनी याचिका में कहा था- मेरे ससुराल वालों ने मुझे प्रताड़ित किया, लेकिन फिर भी मैं अपने पति से प्रेम करती हूं और तलाक नहीं चाहती। पति ने अपनी याचिका में कहा कि पत्नी ने शारीरिक संबंधों से इनकार किया और बेवफाई के आरोप लगाए। साथ ही परिवार, दोस्तों और कर्मचारियों के सामने शर्मिंदा किया। पति ने यह भी कहा कि पत्नी ने उसे छोड़कर अपने मायके चली गई थी। कोर्ट ने फैसले में कहा- शादी में अब सुलह की कोई संभावना नहीं है। पति के तलाक के आधार कानूनी रूप से जायज हैं। लिहाजा, पत्नी की याचिका को खारिज किया जाता है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने 14 अप्रैल को दिए एक फैसले में नाबालिग से रेप (POSCO) के आरोप में 3 साल से जेल में बंद 22 साल के युवक को जमानत दे दी थी। जस्टिस मिलिंद जाधव की बेंच ने कहा कि 15 साल की नाबालिग को पता था वह क्या कर रही है, वह इसके परिणाम भी जानती थी।

अदालत का स्पष्ट संदेश: बीमारी का हवाला देकर ट्रांसफर नहीं टाला जा सकता

ग्वालियर  मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर पीठ ने माध्यमिक शिक्षिका सुनीता यादव की ट्रांसफर रद्द करने संबंधी याचिका खारिज करते हुए सख्त टिप्पणी की है कि स्थानांतरण (ट्रांसफर) सेवा का अभिन्न हिस्सा है और जब तक कोई ट्रांसफर दुर्भावनापूर्ण या मनमाना न हो, अदालत उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती। क्या है पूरा मामला? शिक्षिका सुनीता यादव का स्थानांतरण 3 अक्टूबर 2024 को इंदरगढ़ के मढीपुरा मिडिल स्कूल से दतिया जिले के रुहेरा हाईस्कूल में किया गया था। उन्होंने इस ट्रांसफर को चुनौती देते हुए कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। प्रारंभ में कोर्ट ने उन्हें प्रतिवेदन देने का अवसर देते हुए जबरन ज्वॉइन न कराने के निर्देश प्रशासन को दिए थे। लेकिन प्रशासन ने उनका प्रतिवेदन 23 अप्रैल 2025 को खारिज कर दिया। इसके बाद शिक्षिका ने दोबारा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने याचिका में दो प्रमुख तर्क दिए- 1. मढीपुरा स्कूल में शिक्षकों की कमी है 2. स्वयं स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही हैं कोर्ट ने क्या कहा? हाईकोर्ट की एकलपीठ ने यह स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए प्रारंभिक प्रतिवेदन में कहीं भी स्वास्थ्य समस्याओं का उल्लेख नहीं था। साथ ही यह भी पाया गया कि मढीपुरा स्कूल में कुल तीन शिक्षक कार्यरत हैं और उनमें से सुनीता यादव को "सरप्लस" (अतिरिक्त शिक्षक) मानकर ही स्थानांतरण किया गया। ट्रांसफर को बताया सेवा का अभिन्न हिस्सा कोर्ट ने अपने फैसले में दो टूक कहा कि थानांतरण सरकारी सेवा का एक अनिवार्य पहलू है। जब तक कोई स्थानांतरण दुर्भावना से प्रेरित या असंगत न हो, तब तक उसमें न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने याचिका को निराधार बताते हुए खारिज कर दिया। हालांकि, हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि यदि अब याचिकाकर्ता को कोई नई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं, तो वह प्रशासन के समक्ष पुनः आवेदन कर सकती हैं और प्रशासन चाहे तो उन पर विचार कर सकता है।

IAS मीणा की सुरक्षा याचिका ठुकराई हाईकोर्ट ने, मणिपुर जाने से इनकार नहीं

जबलपुर  मणिपुर-त्रिपुरा कैडर के आईएएस एमएल मीणा को हाईकोर्ट की जबलपुर बैंच से करारा झटका लगा है. IAS मीणा की वह याचिका निरस्त कर दी गई है, जिसके जरिए उन्होंने अपने मूल कैडर मणिपुर से दूसरे राज्य में ट्रांसफर की मांग की थी. उन्होंने याचिका दायर करते हुए कहा था कि दो विधायकों से मारपीट के कारण उनकी जान को खतरा है. हाईकोर्ट जस्टिस अतुल श्रीधरन व जस्टिस डीके पालीवाल की युगलपीठ ने इस मामले में सुनवाई की. क्या है IAS मीणा का ट्रांसफर मामला? दरअसल, आईएएस अधिकारी एम एल मीणा की ओर से दायर याचिका में अपने मूल कैडर मणिपुर से दूसरे राज्य में ट्रांसफर किए जाने की राहत चाही गई थी. याचिका में कहा गया था कि उनका वर्ष 2006 में मणिपुर में दो विधायकों द्वारा उनके साथ कथित मारपीट की गई थी. मणिपुर में उनकी जान को खतरा है और सुरक्षा कारणों से उन्हें मणिपुर में वापस भेजा जाना अनुचित है. सुनवाई में कोर्ट ने क्या पाया? हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि 2001 बैच के आईएएस अधिकारी मीणा का मूल कैडर मणिपुर-त्रिपुरा है. उनका स्थानांतरण पूर्व में मध्य प्रदेश कर दिया गया था. इसके बाद उन्हें उनके मूल कैडर में वापस भेजने के आदेश जारी किए गए थे. वह विगत चार सालों से ड्यूटी से अनुपस्थित हैं, साल 2020 की आईबी रिपोर्ट में याचिकाकर्ता को मणिपुर में खतरा होने का कोई उल्लेख नहीं किया गया, जिसके बाद कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया. सरकार जिम्मेदारी तय करने के लिए स्वतंत्र युगलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि सरकार यह तय करने के लिए स्वतंत्र है कि अधिकारी को किस स्थान पर कार्य करना है. युगलपीठ ने याचिकाकर्ता पर कथित हमले के संबंध में प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों पर भी संदेह व्यक्त करते हुए कहा कि याचिका में किसी विधायक के विरुद्ध की गई एफआईआर नंबर, थाना या अन्य विवरण का उल्लेख नहीं किया गया है, जिससे पता चले कि आपराधिक मामला दर्ज भी हुआ था.

कर्मचारियों को राहत: प्रमोशन के बाद डिमोशन नहीं, हाई कोर्ट का बड़ा निर्णय

ग्वालियर  मध्यप्रदेश हाई कोर्ट(MP High Court) ने पुलिस विभाग की दो अलग-अलग कार्रवाइयों को अवैध करार देते हुए अहम फैसले सुनाए हैं। कोर्ट ने एक मामले में प्रमोशन के बाद डिमोशन(Demotion After Promotion) को असंवैधानिक बताया, वहीं दूसरे मामले में पहले से सजा हो चुके कर्मियों के खिलाफ दोबारा विभागीय जांच(second Departmental Inquiry) शुरू करने को नियम विरुद्ध ठहराया है। मामला 1: प्रमोशन के बाद डिमोशन अवैध यह केस प्रमोद कुमार दुबे से जुड़ा है, जिन्हें वर्ष 2010 में सहायक उपनिरीक्षक (एमटी) से उपनिरीक्षक (एमटी)के पद पर प्रमोट किया गया था। लेकिन बाद में विभाग ने यह कहकर उनका प्रमोशन रद्द कर दिया कि वर्ष 2007 में उन पर एक वेतनवृद्धि रोकने की सजा लगाई गई थी, जिसका प्रभाव 5 वर्षों तक माना गया। विभाग का आरोप था कि उन्होंने सेवा पुस्तिका में इस सजा का रिकॉर्ड छिपाया। लेकिन याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि प्रमोशन के लिए केवल पिछले 3 वर्षों में कोई बड़ी सजा नहीं होनी चाहिए, न कि 5 वर्षों की। कोर्ट ने यह तर्क मानते हुए कहा कि तीन साल की शर्त पूरी होती है, और विभाग का यह दावा कि सजा का प्रभाव 5 साल तक माना जाएगा, कानूनी और नीतिगत रूप से अस्थिर है। अतः कोर्ट ने डिमोशन का आदेश रद्द कर प्रमोशन को वैध घोषित किया। मामला 2: दोबारा विभागीय जांच अवैध दूसरे मामले में हाई कोर्ट ने सेवानिवृत्ति से पहले दो पुलिसकर्मियों के खिलाफ दोबारा विभागीय जांच शुरू करने को अवैध बताया है। यह मामला उपनिरीक्षक मनीराम नादिर और प्रधान आरक्षक ओमवीर सिंह की याचिका से जुड़ा है। याचिकाकर्ताओं ने बताया कि उनके खिलाफ पहली विभागीय जांच 14 दिसंबर 2020 को पूरी हो चुकी थी, जिसमें मनीराम पर 10 हजार रुपये का जुर्माना और ओमवीर सिंह की एक वेतनवृद्धि 6 महीने के लिए रोकी गई थी। इसके बावजूद विभाग ने 26 अक्टूबर 2022 को दोबारा जांच का नोटिस जारी किया, जिसे कोर्ट ने अधिकार क्षेत्र से बाहर और अवैध करार दिया। शासन पक्ष इस दोबारा जांच को न्यायोचित ठहराने में असफल रहा। कोर्ट ने साफ कहा कि एक बार सजा देने के बाद, बिना पूर्व आदेश रद्द किए दोबारा जांच करना कानूनन गलत है। 

संजीव सचदेवा बने MP हाईकोर्ट के नए चीफ जस्टिस, विवेक कुमार को भी मिली नई जिम्मेदारी

जबलपुर  जस्टिस संजीव सचदेवा मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के नए मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए गए हैं। केंद्र सरकार ने सोमवार को उनकी नियुक्ति की अधिसूचना जारी की। जस्टिस विवेक कुमार सिंह को भी मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में जज के रूप में नियुक्त किया गया है, जिससे हाईकोर्ट में जजों की संख्या 34 हो गई है। जस्टिस सचदेवा 24 मई 2025 को एक्टिंग चीफ जस्टिस नियुक्त किए गए थे और उन्होंने जस्टिस सुरेश कुमार कैत के रिटायरमेंट के बाद यह पद संभाला। जस्टिस विवेक कुमार सिंह का मद्रास से मध्य प्रदेश ट्रांसफर हुआ है। पूर्व चीफ जस्टिस एसके कैत की लेंगे जगह वे तत्कालीन चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत के रिटायरमेंट के बाद से चीफ जस्टिस का दायित्व संभाल रहे हैं। इससे पहले, उन्होंने 9 जुलाई 2024 से 24 सितंबर 2024 तक प्रदेश के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश का दायित्व भी संभाला था। 30 मई 2024 को जस्टिस संजीव सचदेवा का दिल्ली हाईकोर्ट से मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में ट्रांसफर हुआ था। केंद्र सरकार ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को एक और जज दिया है। जस्टिस विवेक कुमार सिंह की मध्यप्रदेश में नियुक्ति की गई है। वे अभी मद्रास हाईकोर्ट में हैं, जिनका ट्रांसफर जबलपुर किया गया है। अब मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में जजों की संख्या बढ़कर 34 हो गई हैं। एमपी हाईकोर्ट में अभी भी 29 जजों की कमी मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में जजों के कुल 53 पद स्वीकृत हैं। अभी भी 29 जजों की हाईकोर्ट में कमी है। जस्टिस सचदेवा को भोपाल में राज्यपाल शपथ दिलाएंगे। हालांकि, शपथ की तारीख अभी तय नहीं हुई है। जस्टिस विवेक कुमार सिंह को जबलपुर में ही जस्टिस सचदेवा शपथ दिलाएंगे। हाईकोर्ट में कुल 34 जज इसके साथ-साथ केंद्र सरकार ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को एक और नए जज जस्टिस विवेक कुमार सिंह की नियुक्ति की है, जो अभी फिलहाल मद्रास हाईकोर्ट में पदस्थ हैं. इसके बाद उन्होंने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर में स्थानांतरण किया गया है. उनकी नियुक्ति के बाद मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में कार्यरत जजों की संख्या बढ़कर 34 हो गई है. हालांकि हाईकोर्ट में कुल 53 जजों के पद स्वीकृत हैं. ऐसे में अब भी 19 जजों के पद खाली हैं.  राज्यपाल दिलाएंगे शपथ सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा को भोपाल में राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल शपथ दिलाएंगे. हालांकि अभी शपथ ग्रहण समारोह की तारीफ तय नहीं हुई है. वहीं जस्टिस विवेक कु्मार सिंह का शपथ ग्रहण जबलपुर में होगी, जहां नवनियुक्त चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा खुद उन्हें शपथ दिलाएंगे. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में नई नियुक्तियों से न्यायिक कामकाज में तेजी आने की उम्मीद जताई जा रही है.  जस्टिस सचदेवा के बारे में  1. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के नए चीफ जस्टिस कौन बने? (जस्टिस संजीव सचदेवा) 2. जस्टिस संजीव सचदेवा का जन्म कहां हुआ था? (दिल्ली में 26 दिसंबर 1964 को हुआ था.) 3. नए चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा ने कहां से पढ़ाई की थी? (दिल्ली कॉलेज से कॉमर्स से ग्रेजुएट किया है.) 4.  दिल्ली बार काउंसिल के अधिवक्ता के रूप में कब नामांकित हुए थे. ( सन 1988 ) 5. सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड के रूप में कब योग्यता प्राप्त की. ( सन 1995 ) 6. जस्टिस सचदेवा ने कहां कहां पर वकीलों को प्रशिक्षण दिया था. (आंध्र प्रदेश से लेकर दिल्ली हाईकोर्ट, रांची समेत अन्य जगहों पर ) 7. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के नए चीफ जस्टिस कब नियुक्त किए गए. (14 जुलाई 2025)