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मध्यप्रदेश के बड़े गांवों को मिलेगा नियोजित विकास का तोहफा, मास्टर प्लान की तैयारी शुरू

भोपाल  मध्य प्रदेश के 2000 से ज्यादा आबादी वाले गांवों को आदर्श गांव बनाने के लिए जल्द ही एक मास्टर प्लान तैयार किया जाएगा. इसके लिए संभागों से 5-5 गांवों का चयन किया गया है. प्रदेश के पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने बताया कि इस योजना के तहत पहले चरण में राज्य के संभागों से 5-5 गांवों का चयन किया गया है, जिन्हें आदर्श गांवों के रूप में विकसित किया जाएगा. मंत्री ने कहा कि मास्टर प्लान का उद्देश्य 2000 से अधिक आबादी वाले गांवों का विकास करना है ताकि विकास का प्रवाह अर्ध-शहरी क्षेत्रों तक पहुंच सके. इस योजना का उद्देश्य ऐसे क्षेत्रों की पहचान करना है जहां विकास को लागू करके बदलाव लाया जा सके. इस मामले पर बात करते हुए पटेल ने कहा कि मध्य प्रदेश के गांवों को लेकर मास्टर प्लान का उद्देश्य 2,000 से अधिक आबादी वाले गांवों को विकसित करना है। इस मास्टर प्लान की विकास की धारा अर्ध-शहरी क्षेत्रों तक पहुंचे। उन्होंने कहा कि प्रयास ऐसे क्षेत्रों की पहचान करना है जहां विकास को अमली जामा पहना कर परिवर्तन लाया जा सके। इन गांवो के विकास के लिए सरकार की तरफ से मास्टर प्लान बनाकर इनका विकास किया जाएगा। इससे लोगों को काफी सुविधाएं मिल जाएंगी मंत्री ने कहा कि दो हजार से अधिक की आबादी वाले गांवों की पहचान होनी है ताकि उन्हें आदर्श गांव के रूप में विकसित किया जा सके। उन्होंने कहा कि इस योजना के तहत पांच संभाग से पांच गांव लिए गए हैं, जिनमें इंदौर का परवलिया, उज्जैन का चिंतामन जवासिया, ग्वालियर का बदरवास, जबलपुर का बरमान और सागर का मडियादो शामिल हैं। पटेल ने कहा कि इन गांवों को आदर्श के तौर पर विकसित किया जाएगा ताकि अन्य गांवों के लिए योजना बनाने में सुविधा हो। प्रहलाद सिंह पटेल ने कहा कि 2000 से अधिक आबादी वाले गांवों की पहचान की जानी है ताकि उन्हें आदर्श गांवों के रूप में विकसित किया जा सके. उन्होंने बताया कि इस योजना के तहत पांच संभागों से 5 गांवों को चुना गया है. इनमें इंदौर का परवलिया, उज्जैन का चिंतामन जवासिया, ग्वालियर का बदरवास, जबलपुर का बरमान और सागर का मड़ियादोह. उन्होंने कहा कि इन गांवों को मॉडल के रूप में विकसित किया जाएगा ताकि अन्य गांवों के लिए योजना बनाना आसान हो सके. 

वाल्मी और इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी अमरकंटक के बीच होगा एमओयू

पेसा एक्ट के बेहतर क्रियान्वयन के लिए त्रि-पक्षीय अनुबंध आज 24 जुलाई को आज 24 जुलाई को होगा पेसा एक्ट पर त्रि-पक्षीय समझौता, ग्राम स्वशासन को मिलेगा बल वाल्मी और इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी अमरकंटक के बीच होगा एमओयू भोपाल प्रदेश में पेसा एक्ट के बेहतर क्रियान्वयन के लिए आज 24 जुलाई को त्रि-पक्षीय अनुबंध होगा। अनुबंध सचिव पंचायती राज मंत्रालय, केन्द्र सरकार, प्रमुख सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास एवं इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी अमरकंटक के बीच होगा। कार्यक्रम मध्यप्रदेश जल एवं भूमि प्रबंध संस्थान वाल्मी, भोपाल में आज 24 जुलाई को शाम 4 बजे से होगा। कार्यक्रम में पेसा एक्ट पर बनी पुस्तिका का विमोचन किया जाएगा। साथ ही देशभर से आए पेसा एक्ट पैनलिस्ट, विशेषज्ञों के बीच चर्चा होगी। प्रदेश में पेसा एक्ट के बेहतर क्रियान्वयन, उपनियमों को लागू करना, जनजातीय समुदाय को प्रशिक्षण देना, जनजातीय समुदाय की परंपराओं की रक्षा, नए शोध, जनजातीय कलाओं को कैसे सुरक्षित रखा जाए और जनजातीय समुदाय के बीच हो रहे बेहतर कार्यों का प्रचार-प्रसार, के बारे में चर्चा की जाएगी। कार्यक्रम में केन्द्रीय सचिव पंचायती राज मंत्रालय विवेक भारद्वाज, प्रमुख सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास श्रीमती दीपाली रस्तोगी, संचालक सह आयुक्त पंचायत राज संचालनालय छोटे सिंह सहित अन्य अधिकारी उपस्थित रहेंगे।  

काली ब्रा से ब्रेस्ट कैंसर का डर सिर्फ एक मिथक, मेडिकल रिसर्च ने किया साफ

नई दिल्ली   हाल ही में सोशल मीडिया और व्हाट्सएप ग्रुप्स पर एक मैसेज तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें दावा किया जा रहा है कि काली रंग की ब्रा पहनने से महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर हो सकता है। इस खबर ने कई महिलाओं को डराया है, जबकि कुछ इसे अफवाह मानकर नजरअंदाज कर रहे हैं। आइए, इस दावे की वैज्ञानिक जांच करते हैं और समझते हैं कि इसमें कितनी हकीकत है। काली ब्रा और ब्रेस्ट कैंसर का दावा कैसे फैला? इंटरनेट पर कई बार यह बात सामने आई है कि काली ब्रा, खासकर टाइट या अंडरवायर ब्रा पहनने से शरीर में गर्मी बढ़ती है, जिससे त्वचा को नुकसान पहुंचता है और यह ब्रेस्ट कैंसर का कारण बन सकती है। इसके अलावा कुछ लोगों का मानना है कि काले रंग की ब्रा सूरज की किरणों को ज्यादा सोखती है, जिससे स्तन के टिश्यू में गर्मी बढ़ती है और कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। लेकिन क्या यह सच है? क्या है वैज्ञानिक सच? विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और Cancer Research UK जैसी प्रमुख संस्थाओं की रिपोर्ट के अनुसार, अभी तक ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिला है जो यह साबित करे कि ब्रा का रंग, चाहे वह काला हो या कोई भी रंग, ब्रेस्ट कैंसर का कारण बनता है। 2014 में फ्रेड हचिंसन कैंसर रिसर्च सेंटर, सिएटल की एक स्टडी में 1500 महिलाओं पर रिसर्च की गई, जिसमें ब्रा पहनने की आदतों जैसे कि ब्रा की टाइटनेस, पहनने का समय, और रंग का ब्रेस्ट कैंसर से कोई संबंध नहीं पाया गया। 2023 में कैंसर रिसर्च यूके ने भी इस बात को दोहराया कि ब्रा का रंग या स्टाइल ब्रेस्ट कैंसर से जुड़ा नहीं है। 2024 में प्रकाशित एक अध्ययन में मैमोग्राम और बायोप्सी डेटा की मदद से यह पाया गया कि ब्रेस्ट कैंसर के रिस्क फैक्टर्स में जेनेटिक म्यूटेशन (BRCA1 और BRCA2 जीन), फैमिली हिस्ट्री, हार्मोनल बदलाव, मोटापा, शराब और स्मोकिंग जैसे कारण शामिल हैं, लेकिन ब्रा का रंग या टाइट होना इनमें कहीं भी शामिल नहीं है। डॉक्टर क्या कहते हैं? नई दिल्ली के अनुभवी ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. रमेश शर्मा, जो 20 सालों से ब्रेस्ट कैंसर के मरीजों का इलाज कर रहे हैं, कहते हैं कि काली ब्रा और ब्रेस्ट कैंसर का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। यह सिर्फ एक मिथक है जो सोशल मीडिया पर फैलाया जा रहा है। उनका कहना है कि ब्रेस्ट कैंसर का खतरा मुख्य रूप से जेनेटिक कारणों, जीवनशैली और उम्र से जुड़ा होता है। उन्होंने यह भी बताया कि बहुत टाइट ब्रा पहनने से त्वचा में जलन या चुभन हो सकती है, लेकिन इससे कैंसर नहीं होता। इसलिए महिलाओं को चाहिए कि वे नियमित रूप से मैमोग्राम करवाएं और ब्रेस्ट का सेल्फ-चेकअप करें। अगर ब्रेस्ट में कोई गांठ, निप्पल से स्राव, या त्वचा में कोई बदलाव दिखे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।   काली ब्रा पहनने से ब्रेस्ट कैंसर होने का दावा पूरी तरह से गलत और बिना किसी वैज्ञानिक आधार के है। महिलाओं को इस तरह की अफवाहों से घबराने की जरूरत नहीं है, बल्कि वे अपनी सेहत का ध्यान रखें, नियमित जांच कराएं और सही जानकारी ही फैलाएं।  

वर्ल्ड पॉवर चैम्पियनशिप में 10 लाख से अधिक स्कूली छात्रों ने की भागीदारी

भोपाल  प्रदेश के सरकारी स्कूलों में इंग्लिश भाषा के शिक्षकों के प्रशिक्षण की विशेष व्यवस्था स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा की जा रही है। प्रशिक्षण के लिये भोपाल में एक राज्य स्तरीय शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान इंग्लिश लर्निंग ट्रेनिंग इन्स्टीट्यूट (ईएलटीआई) कार्यरत है। यह संस्थान राज्य के समस्त शासकीय, प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च और उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के शिक्षण संस्थानों में इंग्लिश भाषा संबंधी अकादमिक और प्रशिक्षण के क्षेत्र में मार्गदर्शन एवं सहयोग कर रहा है। ईएलटीआई संस्थान इंग्लिश भाषा अध्यापन क्षेत्र में सतत उन्नयन एवं स्तरीकरण के लिये हैदराबाद के इंग्लिश एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय (ईएफएलयू) से सहयोग प्राप्त कर रहा है। इंग्लिश भाषा शिक्षकों का प्रशिक्षण स्कूल शिक्षा विभाग ने प्रदेश के सरकारी सकूलों में इंग्लिश भाषा पढ़ाने वाले शिक्षकों के प्रशिक्षण पर विशेष जोर दिया है। प्रशिक्षण के लिये ईएलटीआई ने शिक्षण सत्र के लिये कैलेंडर तैयार किया है। संस्थान इंग्लिश भाषा के मूल्यांकन के लिये विभिन्न स्तरों के प्रश्न-पत्रों के निर्माण और अन्य विषय के प्रश्न-पत्रों के अनुवाद कार्य में भी सहयोग कर रहा है। इंग्लिश भाषा के शिक्षकों को प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से जुड़े डिप्लोमा कोर्स कराने के लिये उनकी चयन प्रक्रिया में भी सहयोग कर रहा है। प्रदेश के ग्रामीण एवं आदिवासी अंचलों में कार्यरत शिक्षकों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम के आयोजन में संस्थान विशेष ध्यान दे रहा है। संस्थान समय-समय पर विभिन्न शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों की प्रभावशीलता के आकलन एवं मूल्यांकन के कार्यों को भी सतत रूप से कर रहा है। इंग्लिश ओलम्पियाड संस्थान ने पिछले वर्ष इंग्लिश विषय में कक्षा-2 से 8 के लिये संकुल, विकासखण्ड तथा जिला स्तरीय प्रतियोगिता के लिये ओलम्पियाड प्रश्न बैंक तथा प्रश्न-पत्रों का निर्माण किया था। पिछले वर्ष ओलम्पियाड में शामिल छात्रों की संख्या 10 लाख से अधिक रही। संस्थान ने माध्यमिक शालाओं में इंग्लिश विषय पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिये आवश्यकता आधारित प्रशिक्षण के लिये मेन्युअल का भी निर्माण किया है। संस्थान ने राज्य द्वारा निर्मित कक्षा-1 से 8 तक की इंग्लिश की पाठ्य-पुस्तकों और एनसीईआरटी से जुड़ी कक्षा-9 से 12 तक की पाठ्य-पुस्तकों के निर्माण में समन्वय का कार्य भी किया है।  

कोर्ट ने जताई चिंता: ट्रैफिक नियम तोड़ते हैं डिलीवरी कर्मचारी, पुलिस नहीं करती वैरिफिकेशन

इंदौर  मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कई बिंदुओं पर बात की। ऑनलाइन खाने-पीने का सामान सप्लाय करने वालों को लेकर कहा कि सबसे ज्यादा रेड सिग्नल जंप डिलीवरी वाले ही करते हैं। दो मिनट बचाने रेड लाइट जंप करते हैं और कुछ नहीं होता। ये हमारे घरों तक पहुंच रखते हैं, लेकिन इनके पुलिस सत्यापन की व्यवस्था नहीं है। कभी इनका आपराधिक रिकॉर्ड नहीं जांचा। इस बारे में नीति बनानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि ग्रीन बेल्ट, उद्यान और फुटपाथ पर धड़ल्ले से धार्मिक स्थल बन रहे हैं, लेकिन इस तरफ किसी का ध्यान नहीं है। ये धार्मिक स्थल यातायात को बाधित कर रहे हैं। यह किसी एक क्षेत्र की नहीं बल्कि पूरे शहर की समस्या है। इसका स्थायी समाधान जरूरी है। करोड़ों रुपये मूल्य की जमीन पर धार्मिक गतिविधियों के नाम पर कब्जा हो रहा है। हालत यह हो जाती है कि 80 फीट चौड़ी सड़क पर भी चलना मुश्किल है। ई-रिक्शा को लेकर कोई योजना नहीं कोर्ट ने ई-रिक्शा की व्यवस्था को लेकर भी नाराजगी जताई। कहा कि इस बारे में सख्ती से कार्रवाई जरूरी है। पुलिस ई-रिक्शा चालकों के पुलिस सत्यापन, ट्रेनिंग इत्यादि की व्यवस्था करे। ई-रिक्शा के चालकों की कोई सूची नहीं है। कभी उनका आपराधिक रिकार्ड नहीं जांचा जाता। इस संबंध में कार्रवाई सुनिश्चित करना चाहिए। यह कहा याचिकाकर्ता ने याचिकाकर्ता राजलक्ष्मी फाउंडेशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अजय बागडिया ने पैरवी की। उन्होंने कोर्ट के समक्ष कहा कि     चौराहों पर लगे सिग्नल 24 घंटे चालू रखे जाएं।     पुलिसकर्मी चौराहों पर यातायात नियंत्रित करने के बजाय मोबाइल चलाते हैं। सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।     वीआईपी मूवमेंट के दौरान सिग्नल ग्रीन रखे जाएं।     सड़कों पर गड्ढों की समस्या का स्थायी समाधान हो। कोर्ट ने कहा कि     जो रेड लाइट जंप करते हैं, उन्हें वहीं दो घंटे रोकें।     जिस चौराहे पर चालान बन रहे हैं, वहां तैनात पुलिसकर्मियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।     बीमा रिन्यू करने वाली कंपनी पहले बकाया चालान जमा कराए। इसके बाद बीमा रिन्यू किया जाए।     कार पुलिंग को बढ़ावा दें। शुरुआत हाई कोर्ट से हो सकती है। एक ऑफिस से जुड़े वकील एक कार से कोर्ट आएं तो सड़क पर वाहन संख्या कम करने में मदद होगी।     आईटीएमएस साफ्टवेयर के माध्यम से निगरानी और कानूनी कार्रवाई के लिए सैकड़ों स्थानों पर हाईडेफिनिशन कैमरे लगाए गए हैं।     पिछले दो वर्ष में यातायात पुलिस द्वारा 12 लाख से अधिक ई-चालान किए गए हैं।     यातायात नियमन के तीनों घटकों – यातायात इंजीनियरिंग, प्रवर्तन और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।     सरकार ने राहवीर योजना शुरू की है। इसके तहत दुर्घटना पीड़ित को अस्पताल पहुंचाने में मदद करने वाले व्यक्ति को उचित पुरस्कार दिया जाता है।     किसी भी समय समस्या पर प्रतिक्रिया देने और उसका समाधान करने के लिए 40 से अधिक त्वरित प्रतिक्रिया दल (क्यूआरटी) बनाए गए हैं।    

उज्जैन में लगेगा मेगा सोलर प्लांट, 55 हेक्टेयर में होगा 7000 करोड़ का निवेश

उज्जैन  उज्जैन जिले में स्थित बरंडवा उद्योगपुरी को जल्द एक और बड़ी सौगात मिल सकती है। सोलर एनर्जी की कंपनी जैक्सन यहां पर 7 हजार करोड़ रुपए का निवेश कर एक नई यूनिट स्थापित करने की तैयारी में है। 55 हेक्टेयर जमीन की होगी जरूरत सीएम डॉ मोहन यादव के औद्योगिक विकास के प्रयासों के बाद विक्रम उद्योगपुरी के साथ जिले के अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में बड़े निवेश आ रहे हैं। इन्हीं में से एक जैक्सन ग्रुप ने मक्सी के नजदीक बरंडवा उद्योगपुरी में सोलर उपकरण बनाने की यूनिट स्थापित करने में रुचि दिखाई है। कंपनी का यहां करीब 7 हजार करोड़ रुपए का प्लांट लगाने का प्रस्ताव है। हाल ही में कंपनी की ओर से मप्र औद्योगिक विकास निगम (एमपीआइडीसी) को पत्र लिख 55 हेक्टेयर जमीन की जरूरत जताई है। एमपीआइडीसी ने भूमि आवंटन को लेकर प्रक्रिया तेज कर दी है। जेक्सन कंपनी का प्लांट यहां स्थापित होता है, तो मक्सी क्षेत्र के लिए बड़े बदलाव का आधार साबित हो सकता है। 2 हजार लोगों को रोजगार मिलने की संभावना कंपनी मक्सी में बड़ा प्लांट शुरू करने की तैयारी में है। यदि 7 हजार करोड़ के निवेश से प्लांट स्थापित होता है तो इससे करीब दो हजार लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद है। एमपीआइडीसी के कार्यकारी निदेशक राजेश राठौर ने बताया कि जेक्सन कंपनी ने मक्सी के नजदीक बरंडवा में भूमि आवंटन के लिए पत्र दिया है। यहां करीब 7 हजार करोड़ रुपए से सोलर उपकरण निर्माण की युनिट स्थापित करने का प्रस्ताव है। भूमि आवंटन को लेकर कार्रवाई प्रचलित है।

अब पुरुष भी ले सकेंगे गर्भनिरोधक गोली, वैज्ञानिकों ने पास किया मानव परीक्षण का पहला चरण

नई दिल्ली पुरुषों के लिए गर्भनिरोधक गोली की दिशा में एक बड़ी कामयाबी मिली है. YCT-529 नाम की इस नई गोली ने पहला ह्यूमन सेफ्टी टेस्ट पास कर लिया है. ये गोली बिना हार्मोन के पुरुषों में शुक्राणु (स्पर्म) बनने की प्रक्रिया को रोकती है. अभी ये शुरुआती टेस्ट था, जिसमें 16 लोगों पर जांच की गई कि गोली शरीर में सही मात्रा में पहुंचती है या नहीं और क्या इससे कोई गंभीर साइड इफेक्ट्स होते हैं. अच्छी खबर ये है कि कोई बड़ा साइड इफेक्ट नहीं दिखा. अब ये गोली बड़े टेस्ट्स की ओर बढ़ रही है, जहां इसकी सेफ्टी और असर दोनों की जांच होगी. आइए, समझते हैं कि ये गोली क्या है? कैसे काम करती है? पुरुषों के लिए ये क्यों खास है? पुरुषों के लिए गर्भनिरोधक गोली: क्या है ये नया आविष्कार? अभी तक पुरुषों के पास गर्भनिरोध के लिए सिर्फ दो विकल्प थे: कन्डोम और वासेक्टॉमी (नसबंदी). कन्डोम हर बार इस्तेमाल करना पड़ता है. वासेक्टॉमी एक स्थायी तरीका है, जिसे उलटना (रिवर्सल) मुश्किल होता है. लेकिन YCT-529 नाम की ये गोली पुरुषों के लिए नया और आसान विकल्प ला सकती है. ये गोली…     बिना हार्मोन के काम करती है: महिलाओं की गर्भनिरोधक गोलियों में हार्मोन होते हैं, जो कई बार साइड इफेक्ट्स जैसे मूड स्विंग्स या वजन बढ़ना लाते हैं. YCT-529 में ऐसा कुछ नहीं है.     शुक्राणु बनने से रोकती है: ये पुरुषों के शरीर में शुक्राणु बनाने की प्रक्रिया को अस्थाई तौर पर बंद कर देती है.     उलटने योग्य (रिवर्सिबल): गोली बंद करने के 4-6 हफ्तों में पुरुष की फर्टिलिटी (प्रजनन क्षमता) वापस आ जाती है. 22 जुलाई 2025 को Communications Medicine जर्नल में इस टेस्ट के नतीजे छपे. यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा और कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने इस गोली को बनाया. YourChoice Therapeutics कंपनी इसके टेस्ट्स कर रही है. कैसे काम करती है YCT-529? YCT-529 गोली पुरुषों के शरीर में शुक्राणु बनने की प्रक्रिया को रोकती है. ये कैसे होता है, समझते हैं…     रेटिनॉइक एसिड रिसेप्टर अल्फा: हमारे शरीर में एक प्रोटीन होता है, जिसे रेटिनॉइक एसिड रिसेप्टर अल्फा कहते हैं. ये प्रोटीन शुक्राणु बनाने में अहम रोल निभाता है. इसे एक ताले की तरह समझिए, जिसमें विटामिन A (रेटिनॉइक एसिड) एक चाबी की तरह काम करता है. जब चाबी ताले में लगती है, तो शुक्राणु बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.     YCT-529 का जादू: ये गोली उस चाबी को ताले में लगने से रोकती है. इससे शुक्राणु बनने की प्रक्रिया रुक जाती है. पुरुष अस्थाई तौर पर बांझ (इन्फर्टाइल) हो जाता है.     बिना हार्मोन: ये गोली हार्मोन को छूती तक नहीं, इसलिए इससे हार्मोनल बदलाव जैसे मूड स्विंग्स, वजन बढ़ना या यौन इच्छा में कमी जैसी समस्याएं नहीं होतीं. वैज्ञानिकों ने इस गोली को बनाने के लिए रेटिनॉइक एसिड रिसेप्टर की संरचना को गहराई से समझा. कई अणुओं (मॉलिक्यूल्स) का टेस्ट किया, ताकि सही दवा बन सके. पहला ह्यूमन टेस्ट: क्या हुआ? पहला टेस्ट 16 पुरुषों (32 से 59 साल की उम्र) पर किया गया. ये टेस्ट सिर्फ ये देखने के लिए था कि…     क्या गोली शरीर में सही मात्रा में पहुंचती है?     क्या इससे कोई गंभीर साइड इफेक्ट्स होते हैं, जैसे दिल की धड़कन, हार्मोन, सूजन, मूड या यौन स्वास्थ्य में बदलाव? खास बात: सभी पुरुषों ने पहले वासेक्टॉमी (नसबंदी) करा रखी थी. ऐसा इसलिए, ताकि अगर गोली से कोई लंबा असर हुआ, तो प्रजनन क्षमता पर खतरा न हो. टेस्ट का तरीका कुछ लोगों को प्लेसीबो (बिना दवा की गोली) दी गई, कुछ को कम डोज (90 मिलीग्राम) और कुछ को ज्यादा डोज (180 मिलीग्राम). कुछ ने खाली पेट गोली खाई. कुछ ने खाना खाने के बाद ताकि ये देखा जाए कि खाना दवा के असर को कैसे प्रभावित करता है. नतीजे सभी डोज में गोली शरीर में अच्छी मात्रा में पहुंची. 180 मिलीग्राम डोज सबसे अच्छी थी. शायद यही भविष्य में इस्तेमाल होगी. कोई बड़ा साइड इफेक्ट नहीं दिखा. न हार्मोन बदले.न मूड खराब हुआ. न यौन स्वास्थ्य प्रभावित हुआ. गोली दिन में एक बार लेने की जरूरत होगी, लेकिन ये पक्का अगले टेस्ट्स में तय होगा. डॉ. स्टेफनी पेज (यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन) ने कहा कि ये पुरुषों के लिए नया गर्भनिरोधक विकल्प लाने की दिशा में पहला कदम है. हमें पुरुषों के लिए रिवर्सिबल तरीकों की सख्त जरूरत है.  जानवरों पर टेस्ट: क्या कहते हैं नतीजे? इससे पहले YCT-529 का टेस्ट चूहों और बंदरों पर किया गया था… चूहों पर: गोली लेने के 4 हफ्तों में शुक्राणु बनना बंद हो गया. गोली बंद करने के 4-6 हफ्तों में प्रजनन क्षमता वापस आ गई. मादा चूहों के साथ टेस्ट में 99% गर्भधारण रुका. बंदरों पर: 2 हफ्तों में शुक्राणु की संख्या बहुत कम हो गई. गोली बंद करने के 10-15 हफ्तों में पूरी फर्टिलिटी वापस आ गई. इन नतीजों ने गोली को इंसानों पर टेस्ट करने का रास्ता खोला. क्यों है ये गोली जरूरी? पुरुषों के लिए गर्भनिरोधक गोली कई मायनों में खास है…     जिम्मेदारी बांटना: अभी तक परिवार नियोजन (फैमिली प्लानिंग) का ज्यादातर बोझ महिलाओं पर है. ये गोली पुरुषों को भी जिम्मेदारी लेने का मौका देगी.     आजादी: पुरुषों को अपनी प्रजनन क्षमता पर ज्यादा नियंत्रण मिलेगा. वो खुद तय कर सकेंगे कि कब बच्चा चाहिए और कब नहीं.     सुरक्षित और आसान: कंडोम हर बार इस्तेमाल करना पड़ता है. वासेक्टॉमी स्थाई है. ये गोली रोज लेने का आसान और उलटने योग्य विकल्प है.     साइड इफेक्ट्स कम: क्योंकि ये हार्मोन-फ्री है, इससे मूड, वजन या यौन इच्छा पर असर होने की संभावना कम है. गुंडा जॉर्ज (यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा), जिन्होंने इस गोली को बनाया है कहती हैं कि ये गोली कपल्स को ज्यादा विकल्प देगी. पुरुषों को परिवार नियोजन में बराबर का रोल देगी.  आगे क्या? पहला टेस्ट पास होने के बाद अब बड़े टेस्ट्स की बारी है… 28 और 90 दिन का टेस्ट: अभी एक नया ट्रायल चल रहा है, जिसमें पुरुष 28 और 90 दिन तक YCT-529 लेंगे. इसमें सेफ्टी के साथ-साथ शुक्राणु की संख्या पर असर देखा जाएगा. ज्यादा लोग शामिल होंगे: अगले टेस्ट्स में ज्यादा पुरुषों को शामिल किया जाएगा, ताकि … Read more

हेरिटेज ट्रेन से घूमिए मध्यप्रदेश की हसीन वादियां, पातालपानी-कालाकुंड रूट फिर से होगा शुरू

इंदौर   प्रदेश की एकमात्र हेरिटेज ट्रेन, जो यात्रियों को सुहानी वादियों और प्राकृतिक नजारों का अनुभव कराती है, उसका संचालन चार माह के अंतराल के बाद फिर से शुरू होने जा रहा है। यह ट्रेन 26 जुलाई से प्रत्येक शनिवार और रविवार को पातालपानी रेलवे स्टेशन से कालाकुंड तक चलेगी। पश्चिम रेलवे के रतलाम मंडल द्वारा इसके संचालन के लिए विभागीय आदेश जारी कर दिया गया है। हालांकि, पातालपानी रेलवे स्टेशन तक पहुंचने के लिए पर्यटकों को सड़क मार्ग से ही जाना होगा। ट्रेन की यह यात्रा महू तहसील के घने जंगलों, ऊंची-नीची पहाड़ियों, झरनों और पक्षियों की चहचहाहट के बीच से गुजरती है, जिससे यात्रियों को अद्भुत अनुभव मिलता है। प्राकृतिक सौंदर्य और खानपान का मिलेगा लुत्फ पातालपानी का झरना, भुट्टा, मैगी और गरमा-गरम भजिए के साथ इस यात्रा का स्वाद और आनंद कई गुना बढ़ जाएगा। यह पूरा सफर सुबह से शाम तक चलेगा, जिसमें पर्यटक हर पल प्राकृतिक नजारों का भरपूर आनंद उठा सकेंगे। मानसून की शुरुआत होते ही पर्यटक इस हेरिटेज ट्रेन के संचालन का बेसब्री से इंतजार करते हैं। रेलवे ने हाल ही में एक ट्रायल रन भी किया है जो पूरी तरह सफल रहा। संचालन की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं और जल्द ही टिकट बुकिंग भी शुरू की जाएगी। महू तहसील के जंगल, पहाड़ियां और उनके बीचे बहते हुए प्राकृतिक झरने, पक्षियों की चहचहाट पातालपानी के झरने और भुट्टे, मैगी, भजिए के आनंद लेने का समय आ चुका है। ये आनंद पातालपानी रेलवे स्टेशन से कालाकुंड रेलवे स्टेशन तक चलने वाली हेरिटेज ट्रेन के सफर में मिलेगा। सुबह से शाम तक के इस सफर में पर्यटकों प्राकृतिक नजारों को देखकर दमक उठेंगे। मानसून शुरू होते ही पर्यटक हेरिटेज ट्रेन संचालन का इंतजार करते हैं। इसके संचालन के लिए रेलवे द्वारा एक बार ट्रायल रन भी कर लिया है, जो सफल भी रहा है। अब रेलवे ने संचालन शुरू करने की सभी तैयारी पूरी कर ली है। जल्द ही टिकट बुकिंग शुरू की जाएगी। हेरिटेज ट्रेन का किराया और खासियत -हेरिटेज ट्रेन के रैक में दो विस्टाडोम और तीन सेकंड क्लास के कोच रहेंगे। -विस्टाडोम का किराया 265 रुपये और नान एसी चेयर कार का किराया 20 रुपये होगा। -टाइमटेबल व स्टापेज सभी पहले की तरह ही रहेंगे। -विस्टाडोम के एक कोच में 60 सीटें हैं, दो कोच में 120 सीट रहेंगी। -विस्टाडोम कोच का एक ओर का किराया 265 रुपए रहेगा। -ट्रेन में नान एसी चेयर कार के तीन कोच रहेंगे। -चेयर कार के दो कोच में 64-64 सीटें और एक कोच में 24 सीटें हैं। -नान एसी चेयर कार का किराया 20 रुपए प्रति सवारी होगा। हेरिटेज ट्रेन से जुड़ी अन्य विशेषताएं 2018 में शुरू हुई थी हेरिटेज ट्रेन मध्य प्रदेश की इस पहली हेरिटेज ट्रेन का संचालन 25 दिसंबर 2018 को शुरू हुआ था। कुछ माह में ही इस ट्रेन ने प्रदेश सहित देशभर में अपनी पहचान बना ली थी। कोरोना काल के चलते अप्रैल 2020 में इस ट्रेन का संचालन बंद कर दिया गया था। चार अगस्त 2021 को ट्रेन में कई बदलाव कर दोबारा संचालन शुरू किया था। गर्मी का मौसम आते ही मार्च में इसे बंद कर दिया जाता है। विस्टाडोम कोच है आकर्षण का केंद्र रेलवे ने हेरिटेज ट्रेन में पर्यटकों के सफर को बेहतर और आरामदायक बनाने के लिए एसी विस्टाडोम लगाएं हैं। इन कोच में बड़े साइज के विंडो ग्लास, ट्रेलिंग विंडो, स्नैक्स टेबल और साइड पेंट्री हैं। पर्यटकों की सुविधा के लिए कोच में स्वच्छ टायलेट का निर्माण भी किया गया है। कोच की बाहरी भाग को आकर्षक पीवीसी शीट से सजाया गया है। हेरिटेज ट्रेन के रैक में दो विस्टाडोम और तीन नॉन एसी चेयर कार कोच होंगे। विस्टाडोम कोच का एक ओर का किराया 265 रुपए होगा जबकि नॉन एसी चेयर कार का किराया मात्र 20 रुपए प्रति सवारी तय किया गया है। विस्टाडोम कोच में बड़े साइज की खिड़कियां, ट्रेलिंग विंडो, स्नैक्स टेबल और साइड पेंट्री जैसी सुविधाएं होंगी। दो विस्टाडोम कोचों में कुल 120 सीटें होंगी जबकि नॉन एसी चेयर कार के तीन कोचों में कुल 152 सीटें (64+64+24) उपलब्ध होंगी। कोचों में स्वच्छ टॉयलेट और आकर्षक पीवीसी शीट से सजे बाहरी भाग पर्यटकों के अनुभव को और बेहतर बनाएंगे। 2018 से लेकर अब तक का सफर यह हेरिटेज ट्रेन पहली बार 25 दिसंबर 2018 को शुरू हुई थी और कुछ ही महीनों में प्रदेश ही नहीं, देशभर में मशहूर हो गई थी। अप्रैल 2020 में कोरोना महामारी के चलते इसका संचालन बंद कर दिया गया था। इसके बाद 4 अगस्त 2021 को कई बदलावों के साथ इसका पुनः संचालन शुरू किया गया था। हर वर्ष गर्मी का मौसम शुरू होते ही मार्च में इस ट्रेन का संचालन अस्थायी रूप से बंद कर दिया जाता है, और अब मानसून आते ही एक बार फिर यह पर्यटकों को प्राकृतिक सुंदरता की सैर कराने के लिए तैयार है। 

सुप्रीम कोर्ट की सख्ती: घरेलू हिंसा के मामलों में गिरफ्तारी से पहले 2 माह की मोहलत

नई दिल्ली घरेलू हिंसा से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है और इलाहाबाद हाई कोर्ट के दो साल पुराने दिशा-निर्देशों को अपनाते हुए कहा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के तहत दर्ज मामलों में पुलिस आरोपियों को दो महीने तक गिरफ्तार न करे। कोर्ट ने कहा कि जब कोई महिला अपने ससुराल वालों के खिलाफ 498A के तहत घरेलू हिंसा या दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज कराए तो पुलिस वाले उसके पति या उसके रिश्तेदारों को दो महीने तक गिरफ्तार न करे। कोर्ट ने दो महीने की अवधि को शांति अवधि कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को यह आदेश एक महिला IPS अधिकारी से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान दिया। कोर्ट ने उस महिला अधिकारी को उससे अलग हुए पति और उसके रिश्तेदारों के उत्पीड़न के लिए अखबारों में माफीनामा प्रकाशित कर माफी मांगने का भी आदेश दिया है। दो माह तक पुलिस कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करेगी इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2022 के दिशानिर्देशों के मुताबिक, दो महीने की शांति अवधि पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तारी सहित कोई भी कार्रवाई करने से रोकता है। HC के दिशानिर्देशों के अनुसार, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए के तहत दर्ज मामलों को पहले संबंधित जिले की परिवार कल्याण समिति (FWC) को निपटारे के लिए भेजा जाना चाहिए, और इस दौरान यानी पहले के दो महीनों तक पुलिस कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करेगी। देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की पीठ ने मंगलवार को इन दिशानिर्देशों को पूरे भारत में लागू करने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा, "इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा 13 जून 2022 को क्रिमिनल रिवीजन नंबर 1126/2022 के विवादित फैसले में अनुच्छेद 32 से 38 के तहत 'आईपीसी की धारा 498ए के दुरुपयोग से बचाव के लिए परिवार कल्याण समितियों के गठन' के संबंध में तैयार किए गए दिशानिर्देश प्रभावी रहेंगे और उपयुक्त अधिकारियों द्वारा लागू किए जाएंगे।" सुप्रीम कोर्ट ने पहले कर दिया था निरस्त बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा जारी यह दिशानिर्देश 2017 में राजेश शर्मा एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले में दिए गए फैसले पर आधारित हैं। दिलचस्प बात यह है कि 2018 में सोशल एक्शन फॉर मानव अधिकार बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ इसे संशोधित कर दिया था बल्कि इसे निरस्त भी कर दिया था। इस वजह से FWC निष्क्रिय हो गए थे। बहरहाल, कल के फैसले के साथ ही इलाहाबाद हाई कोर्ट का वे दिशानिर्देश अब लागू हो गए हैं। प्रत्येक जिले में FWC को भेजा जाएगा मामला उन दिशा निर्देशों के मुताबिक, प्राथमिकी या शिकायत दर्ज होने के बाद, "शांति अवधि" (जो कि प्राथमिकी या शिकायत दर्ज होने के दो महीने बाद तक है) समाप्त हुए बिना, नामजद अभियुक्तों की कोई गिरफ्तारी या पुलिस कार्रवाई नहीं की जाएगी। इस "शांति अवधि" के दौरान, मामला तुरंत प्रत्येक जिले में FWC को भेजा जाएगा। दिशा निर्देशों में कहा गया है कि केवल वही मामले FWC को भेजे जाएँगे, जिनमें IPC की धारा 498-A के साथ-साथ, कोई क्षति न पहुँचाने वाली धारा 307 और IPC की अन्य धाराएँ शामिल हैंऔर जिनमें कारावास 10 वर्ष से कम है।

भोपाल को मिलने जा रहा 26 करोड़ की लागत वाला लग्जरी वृद्धाश्रम, हर महीने देना होगा 50 हजार

भोपाल  भोपाल में पहली बार ऐसा वृद्धाश्रम खुलने जा रहा है जिसकी कल्पना आपने सपने में भी नहीं की होगी. ये वृद्धाश्रम आम ओल्ड ऐज होम से बहुत अलग होने वाला है. यहां आपको 24×7 मेडिकल सुविधाएं मिलेंगी, रहने, खाने पीने की पूरी व्यवस्था भी की गई है. हालांकि इन 5 स्टार जैसी सुविधाओं का लुत्फ उठाने के लिए आपको हर महीने 50-82 हजार खर्ज करने पड़ेंगे. मध्य प्रदेश का पहला लग्जरी वृद्धाश्रम इस वृद्धाश्रम का नाम संध्या छाया रखा गया है जो 1 अगस्त से भोपाल में शुरू हो रहा है. संध्या छाया को एमपी का पहला पेड लग्जरी वृद्धाश्रम माना जा रहा है. इस वृद्धाश्रम को सीनियर सिटिजन की हर जरूरतों को ध्यान में रख कर बनाया गया है. संध्या छाया के निर्माण में करीब 26 करोड़ रुपए खर्च किए गए है जिसकी वजह से ये ओल्ड एज होम एक लग्जरी ठिकाना माना जा रहा है. क्या है लग्जरी वृद्धाश्रम की खासियत भोपाल के लिंक रोड-3 के पत्रकार कॉलोनी स्थित संध्या छाया ओल्ड एज होम में आपको सिंगल बेडरुम से लेकर डबल बेडरुम की सुविधा मिलती है. पूरा वृद्धाश्रम 5 एकड़ में फैला हुआ है. पूरे परिसर में सीसीटीवी की सुविधा है. यहां दो रेसिडेंशियल ब्लॉक के साथ लॉन भी बनाया गया है. इस वृद्धाश्रम में 60 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग रह सकते हैं. कितना है किराया इस वृद्धाश्रम में रहने के लिए आपको हर महीने कम से कम 50 हजार का बजट रखना होगा. सिंगल रुम का 50 हजार वहीं डबल रुम में रहने के लिए प्रति व्यक्ति को  41 हजार रुपए खर्च करने होंगे. रजिस्ट्रेशन के वक्त एक लाख रुपए सिक्योरिटी अमाउंट भी जमा करना होगा . यहां खानापान से लेकर हर बेसिक सुविधाओं का भी खास ख्याल रखा गया है. बुजुर्ग यहां जैसे चाहे वैसे रह सकते हैं. हेल्थ चेकअप के लिए डॉक्टर हफ्ते में एक बार विजिट करेंगे. किसके अंडर में होगा वृद्धाश्रम एमपी सरकार इस वृद्धाश्रम को चलाने की पूरी जिम्मेदारी सेवा भारती को दी है. बुजुर्ग जो अमाउंट देंगे वो राशि सेवा भारती को मिलेगी. वहीं सिक्योरिटी अमाउंट एमपी सरकार को दी जाएगी. आश्रम के मैनेजमेंट, सुविधाओं में विस्तार और स्टाफ को वेतन देने में ये सिक्योरिटी अमाउंट खर्च की जाएगी.